उप राष्ट्रपति सचिवालय

उपराष्ट्रपति द्वारा भारतीय वन सेवा (आईएफओएस) के प्रोबेशनरों को संबोधन का मूल पाठ (अंश)

Posted On: 24 JUL 2023 9:35PM by PIB Delhi

आप सबको नमस्कार!

मुझे विश्वास है कि आपको भारत की माननीय राष्ट्रपति से प्रेरणादायक परामर्श मिला होगा। हमारी राष्ट्रपति अत्यंत प्रतिभाशाली हैं; वह किसी और से अधिक, वन, पर्यावरण के महत्व तथा इस सेवा की प्रासंगिकता को जानती हैं। उनके स्तर तक पहुंचना कठिन होगा। वह दिल से बात करती है, हमेशा दृढ़ विश्वास के साथ बात करती है और मुझे विश्वास है कि यह आप सभी के लिए जीवन भर की यादगार घटना रही होगी। मैं इसे आपके साथ साझा कर सकता हूं- जब भी मुझे माननीय राष्ट्रपति के साथ बातचीत का अवसर मिलता है- हम दोनों एक समय में एक साथ राज्यपाल भी थे- बड़प्पन, लालित्य, प्रामाणिकता चारों ओर है और आप सभी ने धन्य महसूस किया होगा। उन्होंने आपको कुछ सलाह दी होगी; कृपया इसे कभी न भूलें।

मुझे आपको बताना होगा, एक बहुत ही महत्वपूर्ण सलाह जो आपको जीवन भर बनाए रखेगी, हमेशा अपने बैचमेट्स को याद रखें और हमेशा उनके संपर्क में रहें। उन्हें कभी न भूलें, और आप महसूस करेंगे कि जैसे-जैसे आप अपने पेशे में वरिष्ठ होते हैं, और जैसे-जैसे आप बड़े होते जाएंगे, आपको पता चलेगा कि यह कितना ऊर्जावान है। कभी भी अपने बैचमेट्स के साथ लाइव कनेक्ट में रहना न भूलें, इस प्रक्रिया में आप पूरे देश से जुड़ जाएंगे।

आप सबसे बड़े लोकतंत्र में इस विशिष्ट सेवा में ऐसे समय में शामिल हो रहे हैं जब भारत का उदय तेज गति से हो रहा है। विश्व भारत को एक अलग नजरिए से देख रहा है। आप भाग्यशाली हैं कि आप अमृत काल में हैं और आप उम्र, अनुभव तथा अपनी सेवा में वृद्धि के साथ हर दृष्टि से 2047 में भारत की प्राप्ति के योद्धा होंगे। आपको इस सेवा में शामिल होने के लिए मेरी बधाई।

मैंने कुछ प्रोबेशनरों से जानकारी पाई है कि जिस तरह का प्रशिक्षण दिया गया है वह काफी व्यापक, समावेशी है। इसे दोनों प्रोबेशनरों ने जुनून के साथ सुनायामैं उनकी बात में एक मिशन देख सकता था और यही कारण है कि यदि आप उस सेवा से प्यार करना शुरू करते हैं जिससे आप संबंधित हैं, तो आपके पास प्रदर्शन के लिए जुनून हैएक मिशन के लिए समर्पण है, आप एक अंतर लाएंगे। सौभाग्य से, आपकी सेवा ऐसी सेवा है जहां आपको उन लोगों के जीवन में परिवर्तन लाकर मानवता की सेवा करने का अवसर मिलेगा, जो वन के निकट हैं, वन में हैं। मैं, न केवल मानवजाति बल्कि जीवित प्राणियों की बात कर रहा हूं। पर्यावरण और जमीनी वास्तविकता से आपका ऐसा सीधा संबंध होगा। यह अवसर आपके पास आया है, मुझे विश्वास है कि आप इसका अधिकतम लाभ उठाएंगे।

एक प्रोबेशनर ने कहा कि इसका श्रेय माता-पिता, शिक्षकों, मित्रों और शुभचिंतकों को जाता है; इसे कभी मत भूलना। यह एक महान श्रेय है, आपको इसे हमेशा याद रखना चाहिए। आप कल्पना नहीं कर सकते कि जब आप सेवा में शामिल हुए तो आपके परिवार के सदस्यों को कितनी खुशी मिली। आप में से प्रत्येक को एक पेशा, दूसरा पेशा मिल गया होता, और संभव है कि आपने बहुत अधिक पैसा कमाया होता, लेकिन जिस तरह का गौरव, जिस तरह का संतोष आपको इस स्तर के लोक सेवक होने से मिलेगाहमारे लोकतंत्र में, यह दुर्लभ अवसर है। वह संतुष्टि और प्रसन्नता हमेशा आपको अपने लिए और राष्ट्र के लिए उंचाई प्राप्त करने के लिए प्रेरित करेगी।

मैं 54वें बैच को बधाई देता हूं और हमें प्रसन्नता है कि इस बैच में हमारे पड़ोसी देश, हमारे मित्र राष्ट्र भूटान के दो प्रशिक्षु अधिकारी हैं। जब मैं पश्चिम बंगाल का राज्यपाल था, तब मुझे अन्य सेवाओं के अधिकारियों का भी स्वागत करने का अवसर मिला था और भूटान के प्रशिक्षु इसका हिस्सा थे। मुझे विश्वास है कि प्रशिक्षु न केवल प्रशिक्षण के लाभ को घर ले जाएंगे, बल्कि अपने देश के मित्रों के साथ उनका जुड़ाव भी होगा। आपको मेरी शुभकामनाएं। यह हमारे पड़ोसियों के साथ हमारी मित्रता को दिखाता है। वास्तव में, मैं आपको बता दूं कि पड़ोस काफी महत्वपूर्ण है और यही कारण है कि जब माननीय प्रधानमंत्री ने तीन दशकों की गठबंधन सरकारों के बाद 2014 में एकल पार्टी बहुमत प्राप्त किया तो उन्होंने सार्क देशों को आमंत्रित किया। भूटान के लोगों को हमारी शुभकामनाएं दें।

प्रकृति हमेशा हमारी सभ्यता के लोकाचार का अभिन्न अंग रही है, अनेक देश उस ऐतिहासिक विरासत का दावा नहीं कर सकते हैं जो हमारे पास है। यह 5000 वर्ष से अधिक प्राचीन है, लेकिन आप सभी पाएंगे कि प्रकृति के साथ अधिक जुड़ाव था, पर्यावरण का संरक्षण था जो विभिन्न शिष्टाचारों में दिखता था। यह आप सभी के लिए नवाचारी होना होगा और उस परिदृश्य को फिर से बनाने के बारे में लीक से हटकर सोचना होगा, मुझे विश्वास है कि आप इसमें सफल होंगे।

मनुष्य और उसके वातावरण के बीच सौहार्द हमेशा से जीवन का आधार रहा है। वस्तुतः यह केवल नींव नहीं है, यह उससे भी परे है: यह जीवन का अमृत है। आपको न केवल हमारे देश बल्कि समूची पृथ्‍वी की भलाई के लिए इस सद्भाव को बनाए रखने और संरक्षित करने की बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई है।

मेरे युवा मित्रों, यदि आप चारों ओर देखें, तो हर सेवा का एक पक्ष होता है, बहुत सी ऐसी सेवाएं बड़े स्‍तर में हैं, लेकिन आपकी सेवा का पृथ्‍वी के हर हिस्‍से से सीधा जुड़ाव है। आप सन्निकटता से जलवायु परिवर्तन में अपना योगदान दे सकते हैं और यह एक बहुत ही विशेष स्थिति है जो आप सभी के पास है। मेरा मानना है कि निदेशक और अन्य पदाधिकारियों को कोई भी पसंद नहीं करता, क्योंकि वे आपको कठोर प्रशिक्षण, बेहद व्यस्त कार्यक्रमों में व्यस्त रखते हैं; वे आपको परामर्श देते हैं और परामर्श देना आसान काम नहीं है। परामर्श देना कभी-कभी बहुत गंभीर और कठोर हो सकता है, लेकिन जिस क्षण आप संस्थान छोड़ेंगे, आप उन्हें हमेशा याद रखेंगे कि उन्होंने आपका मार्गदर्शन किया था। उन्होंने आपका पसीना बहाया ताकि आप दूसरों की देखभाल कर सकें। अपने जीवन में उनके योगदान को कभी न भूलें।

मैं आपसे प्रकृति के विकास और संरक्षण की आवश्यकता के बीच विवेकपूर्ण संतुलन बनाए रखने में मदद करने के लिए खुद को समर्पित करने का आग्रह करता हूं। इस प्रक्रिया में आपके सामने कई चुनौतियां होंगी। हमें यह हमेशा याद रखना चाहिए कि मानव जाति के रूप में हम प्राकृतिक संसाधनों के ट्रस्टी हैं। हम प्रकृति के ट्रस्टी हैं; हम व्यक्तिगत लाभ के लिए प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन नहीं कर सकते। हमारी जेब, हमारी वित्तीय क्षमता इस तरह के उपयोग को उचित नहीं ठहराती। किसी के पास धन अधिक हो सकता है, इसका यह मतलब नहीं है कि वह पेट्रोलियम, पानी, ऊर्जा का अंधाधुंध उपयोग कर सकता है। हमें प्राकृतिक संसाधनों के सर्वोत्तम उपयोग की आदत खुद में डालनी होगी और दूसरों को भी इस आदत के लिए प्रेरित करना होगा।

मैं आपको एक छोटी सी घटना सुनाता हूं, लगभग दो दशक पहले एक आईएफओएस अधिकारी मेरे पास आए, मैंने उनसे एक सवाल पूछा- वन उपज को बाहर ले जाने का इतना विरोध क्यों है? आपको पेड़ों के काटे जाने और उत्पाद के इस्तेमाल पर आपत्ति क्यों है? अज्ञानी लोगों के मामले में तो यह बात समझ में आती है। अधिकारी को यह बताते हुए खुशी हुई कि मुझे यह जानना होगा कि जंगल क्या है। वन कोई पौधारोपण क्षेत्र नहीं है; जंगल में एक पेड़ बढ़ता है और कुछ और उगाने के लिए उसे गिरना होता है। अब जिस क्षण आप इस ज्ञान को साझा करते हैं और लोगों को सलाह देते हैं, जो नियम-कानून तोड़कर वन उपज को कमाई के लिए बाहर ले जा रहे हैं। दूसरा, आपको मनुष्य की प्रकृति, वन क्षेत्र में रहने वाले या आसपास रहने वाले लोगों की आदतों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होना होगा, आपको उनकी जरूरतों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील और विचारशील होना होगा। मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि आप अपने लक्ष्य तक पहुंचेंगे।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने एक बार कहा था:

"पृथ्वी के पास हर किसी की ज़रूरत के लिए सभी कुछ है, लेकिन हर किसी के लालच के लिए कुछ नहीं।"

 

राष्ट्रपिता ने वास्तव में हमारा ध्यान एक महत्वपूर्ण चीज़ की ओर केंद्रित किया है। हमें खुद को लालच से दूर रखना होगा ताकि हम प्राकृतिक संसाधनों का अधिकतम उपयोग कर सकें।

मैं आपसे जन आंदोलन, जन जागरूकता पैदा करने की अपील करता हूं, आपकी भूमिका अपने अधिकार का प्रयोग करने में नहीं बल्कि कानून के तहत अधिक महत्वपूर्ण होगी, आपकी भूमिका एक परामर्शदाता के रूप में, एक प्रेरक के रूप में, एक प्रेरणा के रूप में अधिक है और यह बहुत दूर तक जाएगी, मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है, आप ऐसा करेंगे। हम सभी को सतर्क, सचेत और सक्रिय रहना चाहिए, क्योंकि हमारे व्यक्तिगत योगदान का समाज पर बड़ा प्रभाव पड़ता है।

जैसा कि आप सभी जानते हैं, वन संपदा के मामले में भारत दुनिया के शीर्ष 10 देशों में शामिल है। आप में से जो लोग गांवों या अर्ध शहरी क्षेत्रों से आते हैं, वे जानते हैं कि चारागाह भूमि हर साल कम हो रही है। तालाब सूख गए थे, उनके पुनरुद्धार के लिए अब एक अच्छा तंत्र स्थापित किया गया है। मैं विशेष रूप से यह संकेत दे रहा हूं कि न केवल सरकारी ड्यूटी पर रहते हुए आपके पास योगदान करने की क्षमता है, बल्कि जब आप अपने गांव जाते हैं, अपने शहरी कस्‍बे जाते हैं तो भी आप अपनी ऊर्जा खर्च कर सकते हैं और यह बहुत लंबा सफर तय करेगा।

हम एक ऐसे देश में हैं, जो इस समय ऐसी स्थिति में है जिसके बारे में मेरी पीढ़ी ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था। मुझे 1989 में संसद के लिए चुना गया था, मैं एक केंद्रीय मंत्री था; हमारी स्थिति ऐसी थी कि उस समय हमारा विदेशी मुद्रा भंडार 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर था और अपनी राजकोषीय विश्वसनीयता को बनाए रखने के लिए ठोस रूप में हमें सोना भेजना पड़ा। अब हमारा विदेशी भंडार 600 अरब अमेरिकी डॉलर के करीब है। मैं हर किसी से कहता रहता हूं कि हम भारतीयों को अपनी ऐतिहासिक उपलब्धियों पर गर्व करना चाहिए। हमें सदैव भारतीय होने पर गर्व होना चाहिए; हमें अपने भारत के हित को सर्वोपरि रखना होगा। अपने देश के हित को सर्वोपरि रखना वैकल्पिक नहीं है, यही एकमात्र रास्ता है।

मुझे थोड़ा पथ बदलने दीजिए: कोई भी देश, कोई भी व्यवस्था अनुशासन या मर्यादा के बिना फल-फूल नहीं सकती। जिस क्षण अनुशासन और मर्यादा से समझौता किया जाता है, हमारी संस्थाओं को गंभीर नुकसान होता है। यदि आप किसी संगठन में काम करते हैं, यदि आप अपने वरिष्ठों और अपने साथ काम करने वाले लोगों के माध्यम से अनुशासन उत्पन्न नहीं कर सकते हैं, तो आप प्रगतिशील पथ पर नहीं हो सकते। राज्यसभा के सभापति के रूप में, मुझे आपसे साझा करना चाहिए; सबसे बड़े लोकतंत्र में मैं लोकतंत्र के मंदिर में मर्यादा और अनुशासन सुनिश्चित करने के लिए अपने अधीन हर चीज का उपयोग करके काम कर रहा हूं। मर्यादा और अनुशासन को लागू करने के लिए कभी-कभी हमें अप्रिय स्थितियों का सहारा लेना पड़ता है, लेकिन हमें कभी भी संकोच नहीं करना चाहिए, क्योंकि मर्यादा और अनुशासन हमारे विकास से हमारी प्रतिष्ठा से हमारी समृद्धि से जुड़े हुए हैं। जिस क्षण हम उदार दृष्टिकोण अपनाते हैं, हम समाज की अच्छी सेवा नहीं करते हैं। इसलिए मैं आपसे अपील करता हूं कि मर्यादा की कमी और अनुशासन की कमी को कतई बर्दाश्त न करें। यदि आप ऐसा करते हैं, तो यह प्रभावशाली बदलाव लाएगा।

आपने देखा होगा कि हाल के दिनों में सरकार द्वारा उठाए गए कई कदमों के फलस्वरूप सत्ता के गलियारों को परिष्कृत किया गया है। अब सत्ता के बिचौलिए नहीं हैं, हमारे पास अब ऐसे लोग दिखाई नहीं देते हैं, जो शासन के पहलुओं से संबंधित सरकारी निर्णय लेने में अतिरिक्त कानूनी लाभ उठा सकें। यह एक बड़ी उपलब्धि है। लेकिन हम सभी को अपने राष्ट्रवाद पर चिंतन करने की जरूरत है। जो लोग भ्रष्टाचार के कारण पीड़ा झेल रहे हैं, ऐसे लोग जो कानून के क्रियान्वयन के कारण परेशानी में हैं... आप जैसे युवा, जो हमारे देश का भविष्य हैं, ऐसी स्थिति का सामना कैसे कर सकते हैं... कि कानून के शासन का सहारा लेने के बजाय, यदि आपको किसी एजेंसी द्वारा बुलाया जाता है, यदि आप जांच के दायरे में हैं, आपको नोटिस दिया जाता है, हमारे पास एक मजबूत न्यायिक प्रणाली और एक मजबूत विवाद समाधान व्यवस्था है, हम लोगों को सड़कों पर उतरते कैसे देख सकते हैं? यह उचित तरीका नहीं है। हम भ्रष्टाचार के आरोपियों को बच निकलने की इजाजत नहीं दे सकते। मुझे आपको बताते हुए खुशी हो रही है कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान इन भ्रष्ट लोगों के बच निकलने के लगभग सभी रास्ते बंद कर दिए गए हैं। यदि कोई व्यक्ति भ्रष्ट है, तो हम एक अलग दृष्टिकोण नहीं रख सकते- भले ही वे पहले किसी पद पर रहे हों, उनकी विरासत रही हो। भ्रष्टाचार से न्यायसंगत तरीके से निपटना होगा, वर्तमान में देश में यही हो रहा है।

मित्रों, आपको यह जानकर खुशी होगी कि हमारा देश, मेरी पीढ़ी के लोगों के सपनों से भी आगे जा रहा है। एक दशक पहले, हम 11वीं सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था थे; सितंबर 2022 में हम 5वीं सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था बन गये हैं। इस प्रक्रिया में हम अपने पूर्व औपनिवेशिक शासन वाले देश से भी आगे बढ़ गए। सभी संकेतों के अनुसार, दशक के अंत तक हम तीसरी सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था बन जायेंगे। विश्व के संगठनों ने, विशेष रूप से आईएमएफ ने, संकेत दिया है कि भारत निवेश और अवसर का एक उज्ज्वल व वैश्विक-पसंदीदा गंतव्य देश है। हम यही देख रहे हैं। ऐसे परिदृश्य में, आपका योगदान अंकगणितीय आधारित नहीं बल्कि ज्यामिति आधारित होना चाहिए।

हमारे लोग अनुभवी हुए हैं, लोगों ने बहुत तेजी से सीखा है। यदि हम डिजिटल धन-अंतरण की बात करें, तो 2022 में डिजिटल लेन-देन का आयाम इतना व्यापक था कि हमारा लेन-देन, कुल वैश्विक लेनदेन के 46 प्रतिशत तक पहुंच गया था। 2022 में हमारा लेन-देन अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी से चार गुना अधिक था। यह हमारे लोगों के सहनीयता के कारण संभव हुआ है, लोग बहुत तेजी से कौशल सीखते हैं, अन्यथा, हम लगभग 11 करोड़ किसानों को साल में तीन बार 2,25,000 करोड़ रुपये से अधिक की धनराशि कैसे भेज सकते हैं?

डिजिटल सुविधा होना और धन भेजना एक हिस्सा है, लेकिन प्राप्तकर्ता के पास भी यह क्षमता होनी चाहिए। यह क्षमता उनके पास मौजूद है। देशवासियों के पास प्रतिभा का एक मजबूत डीएनए है। हमारे लोगों ने पूरी दुनिया पर प्रभाव डाला है। पिछले वर्ष के हमारे इंटरनेट उपयोग को देखें; हमारे पास 85 करोड़ स्मार्टफोन थे, हमारे पास 70 करोड़ से अधिक इंटरनेट उपयोगकर्ता थे, हमारे देश की प्रति व्यक्ति डेटा खपत चीन और अमेरिका, दोनों की कुल डेटा खपत से भी अधिक थी।

इस प्रक्रिया में आपको कुछ ऐसा भी पता चलेगा, जो आप अब तक नहीं जानते होंगे। जब आप वन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के साथ संवाद करते हैं, उनकी अलग-अलग संस्कृतियों, अलग-अलग आदतों, अलग-अलग पृष्ठभूमियों को आप जानते हैं, तो आप उस तरह की सांस्कृतिक संपदा से परिचित होते हैं, जिसकी आपने कभी कल्पना भी नहीं की थी। आपको पता चलता है कि ये लोग किस प्रकार कलाकृतियों व वस्तुओं के निर्माण में उपज का उपयोग करते हैं, कैसे वे अपना जीवन निर्वाह करते हैं। ये सभी बातें आपके लिए आंखें खोलने वाली होंगी।

मित्रों, यह जो अवसर आपको मिला है, इस देश के नागरिकों का रोल मॉडल बनने के लिए आपको कार्यालय में या बाहर रहकर प्रतिदिन काम करना जरूरी है। आप जो काम कर रहे हैं, वह हमारे संवैधानिक तौर-तरीकों में परिलक्षित होता है। आप राज्य के नीति-निदेशक सिद्धांतों में पायेंगे कि हमें पर्यावरण और पारितंत्र की देखभाल करनी चाहिए तथा आपको इनकी चिंता भी करनी चाहिए। आप मौलिक कर्तव्यों में इन्हें पायेंगे। मैं आपके करियर में बड़ी सफलता की कामना करता हूं, आपके सुखी जीवन, स्वस्थ जीवन की कामना करता हूं।

सेवा में आने के बाद, आपने परिवर्तन को स्वयं अनुभव किया होगा, आपने जिम्मेदारी की भावना, देश की सेवा करने की भावना, महसूस हो रही होगी। मैं अपने दो विचार आपके समक्ष रखता हूं।

पहला, मौलिक कर्तव्यों को ध्यानपूर्वक पढ़ें और यह सुनिश्चित करने का प्रयास करें कि हर कोई उनके बारे में जान सके, इसके लिए निवेश की आवश्यकता नहीं है, इसके लिए शारीरिक प्रयास की भी आवश्यकता नहीं है, इसके लिए बस इरादे की आवश्यकता है। इस इरादे का क्रांतिकारी असर होगा। मैं आपको एक छोटा सा उदाहरण देता हूं, प्रधानमंत्री द्वारा स्वच्छ भारत अभियान शुरू करने से पहले, एक व्यक्ति, जो विदेश में रहते हुए, कभी भी चलती कार से केले के छिलके बाहर नहीं फेंकता था, लेकिन जब वही व्यक्ति भारत आता है, तो उस केले के छिलके को तुरंत कार से बाहर फेंकना अपना मौलिक कर्तव्य समझता है। पर यह अब बदल गया है, एक बड़ा परिवर्तन हुआ है। इसलिए एक बार जब आप मौलिक कर्तव्यों पर ध्यान केंद्रित करेंगे, तो समाज की सेवा बहुत प्रभावी होगी।

दूसरा, आर्थिक राष्ट्रवाद एक ऐसी अवधारणा है, जिसे उपभोक्ता तथा व्यवसाय, व्यापार और उद्योग से जुड़े लोग नजरअंदाज कर रहे हैं। जरा सोचिए, क्या इस देश को विदेश के फर्नीचर की जरूरत है? लेकिन अरबों डॉलर विदेश चले जाते हैं क्योंकि फर्नीचर आयात किये जाते हैं। क्यों? क्योंकि यह थोड़ा सस्ता होता है। क्या हम वित्तीय लाभ के लिए अपने आर्थिक राष्ट्रवाद से समझौता कर सकते हैं? नहीं, पतंगें, दिवाली के दीये, मोमबत्तियां; ये सभी चीजें आयात की जाती हैं। एक बार जब प्रत्येक भारतीय नागरिक अपने आर्थिक राष्ट्रवाद की भावना को मजबूत कर लेगा, तो हमारा देश आर्थिक रूप से आज की तुलना में कहीं अधिक बेहतर होगा।

मुझे विश्वास है कि आप वनों में, वनों के आसपास रहने वाले लोगों के लिए इस देश के राजदूत होंगे। आप यह सुनिश्चित करने के लिए बड़े पैमाने पर योगदान देंगे कि हमारे पास उस तरह की जलवायु न हो, जो हमारे सहन करने की सीमा से परे हो तथा चुनौतीपूर्ण हो। आपको शुभकामनाएं और भारत की सेवा से जुड़ी एक शानदार यात्रा के लिए शुभकामनाएं।

धन्यवाद।

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