भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग

भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) ने प्रतिस्पर्धा कानून के अर्थशास्त्र पर राष्ट्रीय सम्मेलन के आठवें संस्करण का आयोजन किया


मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) डॉ. नागेश्वरन ने कहा, बाजारों को प्रवेश संबंधी बाधाओं से मुक्त रखने के लिए नियामकों को हस्तक्षेप करने में संकोच नहीं करना चाहिए

Posted On: 03 MAR 2023 5:04PM by PIB Delhi

भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) ने आज प्रतिस्पर्धा कानून के अर्थशास्त्र पर आठवें राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया। प्रतिस्पर्धा कानून के अर्थशास्त्र के क्षेत्र में काम करने वाले विद्वानों, कार्यकर्ताओं, शिक्षाविदों और विशेषज्ञों को एक मंच पर लाने वाला यह सम्मेलन 2016 से हर साल सीसीआई द्वारा आयोजित किया जा रहा है।

भारत सरकार के वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) डॉ. वी. अनंत नागेश्वरन ने अपने मुख्य भाषण में कुशल बाजारों और समग्र राष्ट्रीय समृद्धि सुनिश्चित करने में प्रतिस्पर्धा के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि प्रतिस्पर्धा अर्थव्यवस्था की वास्तविक क्षमता को उजागर करती है और यथास्थिति से मुक्त होने में मदद करती है। मुक्त बाजार सिर्फ अपने भरोसे प्रतिस्पर्धा के लाभों की गारंटी नहीं दे सकता है। नैतिकता और आचार- व्यवहार को मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था का आधार बनाना चाहिए। इस संदर्भ में, उन्होंने प्रतिस्पर्धी माहौल की नकल करने वाली बाजार स्थितियों को बनाने में संबंधित क्षेत्र के नियामकों की प्रत्याशित भूमिका और प्रतिस्पर्धा एजेंसियों की पूर्व-प्रभावी भूमिका पर प्रकाश डाला। डॉ. नागेश्वरन ने कहा कि बाजारों को प्रवेश संबंधी बाधाओं से मुक्त रखने के लिए नियामकों को हस्तक्षेप करने में संकोच नहीं करना चाहिए।

उन्होंने जोर देकर कहा कि यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि पद पर बैठे होने के लाभ का दुरुपयोग न हो और पदधारी अपने आसपास कोई खाई न बना लें। उन्होंने कहा कि यदि बाजार में प्रमुख कंपनियां ऐसी गैर-भरोसेमंद कार्यप्रणालियों में संलग्न हैं जो बड़े नकारात्मक बाह्यताओं की ओर ले जाए, तो ऐसी कार्रवाइयों को प्रतिस्पर्धा-विरोधी प्रथाओं के दायरे में लाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि अल्पावधि में सामाजिक कल्याण को नुकसान पहुंचाने के अलावा, ये कार्रवाइयां परिचालन संबंधी प्रतिकूल स्थितियों के कारण संबंधित क्षेत्र में नई फर्मों के उभार को सीमित कर सकती हैं।

डॉ. नागेश्वरन ने विस्तार से यह बताया कि कैसे विनियमन और प्रतिस्पर्धा संबंधी नियमों को उनके कार्यों से उत्पन्न होने वाले अनपेक्षित परिणामों से अवगत होना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस संदर्भ में दिया गया एक उदाहरण डिजिटल बाजारों के संदर्भ में था, जहां डेटा स्वामित्व से संबंधित विनियमन वर्चस्व को बनाए रखने और बाजार के केन्द्रीकरण को मजबूत करने में मदद कर सकता है। उन्होंने बाजारों को प्रतिस्पर्धी बनाए रखने के लिए प्रवेश संबंधी बाधाओं को दूर करने और उनसे बचने के लिए नियामकों और प्रतिस्पर्धा प्राधिकरण के बीच सहयोग एवं संयुक्त प्रयासों का आह्वान किया।

अपने विशेष संबोधन में, सीसीआई की कार्यवाहक अध्यक्ष डॉ. संगीता वर्मा ने महामारी के बाद उबरने के चरण में भारतीय उद्योग के लिए निष्पक्ष और प्रतिस्पर्धी बाजारों की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला। उसने कहा कि आर्थिक सोच, उपकरण और साक्ष्य बाजार की स्थितियों के बारे में स्पष्ट दृष्टिकोण प्रदान करते हैं और वे प्रवर्तन संबंधी प्राथमिकताओं एवं उपायों को चुनने के लिए प्रतितथ्यात्मक हैं।

डॉ. वर्मा ने इस बात का उल्लेख किया कि डिजिटल मामलों में सीसीआई के हाल के फैसले बहुपक्षीय बाजारों के अर्थशास्त्र द्वारा संचालित नुकसान के नए सिद्धांतों पर आधारित हैं। उन्होंने डेटा तक पहुंच एवं नियंत्रण, खोज संबंधी दृश्यता और मांग पक्ष से संबंधित सुविधाओं के उन पहलुओं का उल्लेख किया जो डिजिटल व्यवस्था में प्रतिस्पर्धा को प्रभावित करते हैं। डिजिटल बाजारों में हालिया विकास के मद्देनजर, उन्होंने सीसीआई के भीतर संस्थागत क्षमता को मजबूत करने की अनिवार्यता की ओर इशारा किया। इस संदर्भ में, उन्होंने इस तथ्य से अवगत कराया कि आयोग ने एक ‘डिजिटल मार्केट्स एंड डेटा यूनिट’ (डीएमडीयू) स्थापित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। उन्होंने बाजार का अध्ययन करने के मामले में सीसीआई के सहयोगी प्रयासों को साझा किया और आशा व्यक्त की कि हाल ही में चेन्नई, कोलकाता तथा मुंबई में क्षेत्रीय कार्यालय खोलने से देशभर के शिक्षाविदों के साथ और अधिक सार्थक सहयोग संभव हो सकेगा।

अपनी प्रारंभिक टिप्पणी में, सीसीआई के सदस्य श्री भगवंत सिंह बिश्नोई ने इस बात पर जोर दिया कि भारतीय अर्थव्यवस्था, जो हाल ही में दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनी है, के विकास ने भी एक कुशल प्रतिस्पर्धा नियामक की जरूरत को और अधिक महत्वपूर्ण बना दिया है। प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002 की प्रस्तावना को “देश के आर्थिक विकास को ध्यान में रखते हुए” जैसी शब्दावली से उद्धृत करते हुए, श्री बिश्नोई ने प्रतिस्पर्धा और आर्थिक विकास के बीच के संबंधों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि प्रतिस्पर्धा अधिनियम और प्रतिस्पर्धा आयोग कानून एवं अर्थशास्त्र के जुड़वां स्तंभों पर टिका है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि यह वार्षिक सम्मेलन प्रतिस्पर्धा कानून के अर्थशास्त्र में नवीनतम प्रगति के बारे में विधि समुदाय, विशेष रूप से प्रतिस्पर्धा से संबंधित मामलों पर काम वाले कानूनविदों को जागरूक बनाने का काम करेगा।

उद्घाटन सत्र के अलावा, इस सम्मेलन में ‘प्रतिस्पर्धा और अर्थव्यवस्था’; और ‘अविश्वास प्रवर्तन में अर्थशास्त्र’ विषय पर दो तकनीकी सत्र आयोजित किए गए जिसमें शोधकर्ताओं ने प्रतिस्पर्धा कानून के अर्थशास्त्र पर शोधपत्र प्रस्तुत किए। प्रथम सत्र की अध्यक्षता नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, दिल्ली के प्रतिष्ठित प्रोफेसर डॉ. एम.एस.साहू ने की, जिन्होंने  विभिन्न उद्योगों और भारतीय अर्थव्यवस्था में प्रतिस्पर्धा से संबंधित शोध प्रस्तुत किया। दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के पूर्व वरिष्ठ प्रोफेसर डॉ. आदित्य भट्टाचार्य की अध्यक्षता में दूसरे सत्र में विभिन्न शोधपत्रों में अविश्वास प्रवर्तन में अर्थशास्त्र पर ध्यान केंद्रित किया गया।

इस राष्ट्रीय सम्मलेन का समापन 'एंटीट्रस्ट एंड रेगुलेशन: इंटरफेसेस एंड सिनर्जीज' पर एक पूर्ण सत्र के साथ हुआ, जिसका संचालन विधि लीगल के संस्थापक एवं शोध निदेशक डॉ. अर्घ्य सेनगुप्ता ने किया।

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