विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय

केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने पूर्वोत्तर भारत में पहली बार आयोजित अंतर्राष्ट्रीय जैवप्रौद्योगिकी सम्मेलन का उद्घाटन किया


स्वतंत्रता के बाद पहली बार पूर्वोत्तर क्षेत्र जैव प्रौद्योगिकी पर एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित कर रहा है, जिसमें 35 से अधिक देशों का प्रतिनिधित्व करने वाले 700 से अधिक अंतर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय प्रतिनिधि शामिल हैं

अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए, डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि यह जानकर प्रसन्नता हो रही है कि यह मणिपुर में हो रहा है क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले 9 वर्षों में पूर्वोत्तर को आतंकवाद के ठप्पे वाले क्षेत्र से उसे एक शांतिपूर्ण विकास मॉडल में बदल दिया है

जैव-संसाधन और सतत विकास संस्थान (आईबीएसडी) ने सामाजिक लाभ और आजीविका सृजन के लिए इस क्षेत्र के जैव-संसाधनों और पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों के विकास के लिए यह पहल की है: डॉ. जितेंद्र सिंह

मंत्री महोदय ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के एकीकरण के आह्वान के अनुरूप ही  आईबीएसडी ने उद्योगों और संस्थानों के बीच सहयोग विकसित करने के लिए मणिपुर, मिजोरम, सिक्किम, मेघालय सहित कई राज्यों में उद्योग-कनेक्ट (आईकनेक्ट) कार्यक्रम आयोजित किए हैं

Posted On: 25 FEB 2023 5:45PM by PIB Delhi

केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री एवं पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार),  प्रधानमंत्री कार्यालय, कार्मिक, लोक शिकायत, पेंशन, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष राज्य मंत्री डॉ जितेंद्र सिंह ने आज कहा, स्वतंत्रता  के बाद पहली बार देश का पूर्वोत्तर क्षेत्र जैव प्रौद्योगिकी पर एक ऐसा अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित कर रहा है जिसमें 35 से अधिक देशों का प्रतिनिधित्व करने वाले 700 से अधिक अंतर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय प्रतिनिधि शामिल हैं।

मंत्री महोदय ने बताया कि इस "अंतर्राष्ट्रीय जैव-संसाधन सम्मेलन" के साथ-साथ इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर एथनो-फार्माकोलॉजी की 22वीं कांग्रेस तथा एथनो-फार्माकोलॉजी के लिए सोसाइटी की 10वीं कांग्रेस (आईएसई एसएफईसी-2023) 24-26 फरवरी, 2023 सिटी कन्वेंशन सेंटर, इंफाल, मणिपुर में "रीइमैजिन एथनोफार्माकोलॉजी: ग्लोबलाइजेशन ऑफ ट्रेडिशनल मेडिसिन" विषय पर  आयोजित की जा रही है  I

इस अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा, यह जानकर प्रसन्नता हो रही है कि यह मणिपुर में हो रहा है, क्योंकि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले 9 वर्षों में पूर्वोत्तर को आतंकवाद के ठप्पे वाले क्षेत्र से उसे एक शांतिपूर्ण विकास मॉडल में बदल दिया है। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि इससे पहले तक पूर्वोत्तर को आवंटित धनराशि निचले स्तर तक नहीं पहुंचती थी, लेकिन मोदी जी के मई, 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद, धन गांवों में वास्तविक लाभार्थियों तक पहुंच रहा है और उसे विकास के लिए उपयोग किया जा रहा है ।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री ने कार्यभार संभालने के बाद हमेशा पूर्वोत्तर और अन्य पहाड़ी एवं पिछड़े क्षेत्रों को उच्च प्राथमिकता दी है और बताया कि मोदी जी ने पिछले 9 वर्षों में 50 से अधिक बार पूर्वोत्तर भारत का दौरा किया है, जबकि केंद्रीय मंत्रियों ने भी 400 से अधिक बार पूर्वोत्तर क्षेत्र का दौरा किया है।

सम्मेलन के विषय पर बात करते हुए, डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि जैव-संसाधन और सतत विकास संस्थान (आईबीएसडी) ने सोसाइटी फॉर एथनो-फार्माकोलॉजी, इंडिया और इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर एथनो-फार्माकोलॉजी, स्विट्जरलैंड के सहयोग से इस सम्मेलन का आयोजन किया है। उन्होंने इस पहल के लिए आईबीएसडी की प्रशंसा की और कहा कि ऐसा सामाजिक लाभ और आजीविका सृजन के लिए इस क्षेत्र के जैव-संसाधनों एवं पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों के विकास के लिए हो रहा है।

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डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के एकीकरण के आह्वान के अनुरूप ही  आईबीएसडी ने उद्योगों और संस्थानों के बीच सहयोग विकसित करने के लिए मणिपुर, मिजोरम, सिक्किम, मेघालय सहित कई राज्यों में उद्योग-कनेक्ट कार्यक्रम आयोजित किए हैं। इस आयोजन के अंतर्गत पूर्वोत्तर क्षेत्र के कई उद्यमियों ने उत्पादों/प्रक्रियाओं/प्रौद्योगिकियों के विकास के लिए अपने ज्ञान को जैव-संसाधनों के मूल्यवर्धन और पूर्वोत्तर क्षेत्र के जैव-संसाधनों से जैव-अर्थव्यवस्था के विकास के लिए साझा किया है ।

मंत्री महोदय ने कहा कि इस कार्यक्रम ने कई उद्यमियों को इस क्षेत्र के अद्वितीय जैव-संसाधनों और पारंपरिक ज्ञान को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित किया और यह भी बताया कि आईबीएसडी ने मेघालय में महिला उद्यमिता विकसित करने के लिए आईबीएसडी नोड मेघालय में स्केलिंग टेक्नोलॉजीज इनक्यूबेटर के लिए जैव इन्क्यूबेटर्स की स्थापना की है। .

डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा कि आईबीएसडी एंटी-वायरल, एंटी-बैक्टीरियल, एंटी-फंगल   और कीट विकर्षक, मधुमेह-रोधी, गठिया-रोधी, ब्रोन्कियल अस्थमा, गैस्ट्रो-प्रोटेक्टिव और इम्यूनो-मॉड्यूलेशन जैसे चिकित्सीय क्षेत्रों पर काम कर रहा है। उन्होंने कहा कि इस संस्थान ने नेटवर्क फार्माकोलॉजी और सहक्रियात्मक अध्ययन के साथ कार्रवाई के तंत्र को स्थापित करने के लिए संभावित चिकित्सीय प्रभावों के साथ कई औषधीय पौधों के मेटाबॉलिकल अध्ययन किए हैं और आशा व्यक्त की कि यह शोध स्थानीय जैव संसाधन  के साथ उत्पादों, प्रक्रियाओं और प्रौद्योगिकियों के विकास के लिए परंपरा से अलग परिवर्तनकारी दृष्टिकोण का नेतृत्व करेगा । उन्होंने आगे कहा कि इससे क्षेत्र के सामाजिक आर्थिक विकास के साथ-साथ पारंपरिक स्वास्थ्य देखभाल चिकित्सकों को लाभ के लिए पारंपरिक ज्ञान आधारित चिकित्सीय सामग्री के विकास में भी सहायता  मिलेगी।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने यह भी बताया कि जैव-संसाधनों के विकास के लिए आईबीएसडी पादप संसाधनों सहित अनुसंधान के सभी क्षेत्रों; पारंपरिक खाद्य पदार्थों सहित माइक्रोबियल संसाधन; पादप–औषधीय अभियान, नृजातीय औषधिशास्त्र एवं औषधि विकास ; पशु संसाधन; इस क्षेत्र की जैव-अर्थव्यवस्था को उत्प्रेरित करने के लिए पर्यावरण-पुनर्स्थापना, जल गुणवत्ता प्रबंधन और निगरानी को आगे बढ़ा रहा है। मंत्री महोदय ने कहा कि आईबीएसडी के सभी अनुसंधान दृष्टिकोण पूर्वोत्तर के विशेष संदर्भ में जैव-संसाधनों से जैव-अर्थव्यवस्था के विकास पर केंद्रित हैं।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने सभी एसएफई वार्षिक पुरस्कार विजेताओं को उनके अनुसंधान क्षेत्रों में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए बधाई दी। उन्होंने कहा कि मुझे यह जानकर खुशी हुई कि कई शोधकर्ताओं ने इस सम्मेलन में भाग लेने और इस क्षेत्र के जैव संसाधनों के विकास के अवसरों का पता लगाने के लिए की गई यात्रा और यहां निवास के लिए पुरस्कार प्राप्त किए हैं । 

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मंत्री महोदय ने इंफाल, मणिपुर और भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में पहली बार इस कांग्रेस के आयोजन के लिए आईबीएसडी के निदेशक प्रो. पुलक के. मुखर्जी और सभी वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं तथा कर्मचारियों की सराहना की।

जैव प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव डॉ राजेश गोखले ने कहा कि भारत में स्वास्थ्य सेवा चौमुखी राह पर है क्योंकि अब कई नवीन और विघटनकारी प्रौद्योगिकियां  भी बहुत तेज गति से उभर रही हैं। उन्होंने कहा कि भारत में जीवन प्रत्याशा  कम हो रही है और यह वैज्ञानिक एवं चिकित्सा समुदाय के लिए चिंता का विषय है।

जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत द्वारा ली गई बड़ी छलांग पर डॉ. गोखले ने कहा, भारत ने केवल दो वर्षों में चार स्वदेशी टीके विकसित किए हैं और वे हैं -  विश्व का पहला और भारत का स्वदेशी रूप से विकसित डीएनए वैक्सीन जेडवाईसीओवी-डी,भारत का पहला प्रोटीन सबयूनिट वैक्सीन सीओआर बीवीएएक्सटीएम, विश्व का पहला और भारत का स्वदेशी रूप से विकसित एमआरएनए वैक्सीन जीईएमसीओवीएसीटीएम-19 और विश्व का पहला और भारत का स्वदेशी रूप से विकसित इंट्रानेजल कोविड-19 वैक्सीन आईएनसीओवीएसीसी।

डॉ गोखले ने कहा कि आईबीएसडी का सूक्ष्मजैविक कल्चर संग्रह केंद्र पूर्वोत्तर क्षेत्र से सूक्ष्म जीवों के विशाल संग्रह के साथ अद्वितीय है, जो न केवल नई दवा के विकास के लिए संभावित नेतृत्व के रूप में खेल सकता है बल्कि सूक्ष्मजीव रोधी  प्रतिरोध अध्ययन के लिए भी बहुत प्रभावी है। उन्होंने कहा, आईबीएसडी एएमआर के उस  क्षेत्र में काम कर रहा है जिसकी स्थानीय प्रासंगिकता और वैश्विक महत्व है। आईबीएसडी गुणवत्ता मूल्यांकन, उत्पादों, प्रक्रियाओं और प्रौद्योगिकियों के विकास के लिए एनईआर के किण्वित खाद्य पदार्थों के सत्यापन पर भी  काम कर रहा है।

छत्तीसगढ़ के पूर्व राज्यपाल श्री शेखर दत्ता ने अपने संबोधन में कहा कि भारत आयुर्वेद, सिद्ध और यूनानी जैसी कई पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों का मूल स्थान है और भारतीय सभ्यता औषधीय उपयोग के लिए जैव संसाधनों की पहचान करने और उपयोग करने में बहुत रुचि लेती रही है। उन्होंने कहा की पारंपरिक फार्माकोलॉजी के मानकीकरण के साथ अच्छे संग्रह, भंडारण और अंत में अच्छी विनिर्माण प्रथाओं को विकसित करना समय की आवश्यकता है।

आईएसई के सचिव और बायोमेडिकल साइंसेज विभाग, कैगलियारी विश्वविद्यालय, इटली में प्रोफेसर मार्को लेओंटी, ने अपने संबोधन में कहा कि भारत एथनो-फार्माकोलॉजी में बड़ी रुचि ले रहा है और यह एक बहुत अच्छा संकेत है कि अधिक से अधिक शोध परियोजनाएं सामने आ रही हैं।

प्रोफेसर मार्को ने कहा कि आईबीएसडी अर्थव्यवस्था के विकास और ग्रामीण जनसंख्या के लाभ के लिए भारत के अन्य क्षेत्रों के लिए एक मॉडल बन सकता है। उन्होंने आगे कहा कि आईबीएसडी और इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर एथनो-फार्माकोलॉजी, स्विट्जरलैंड के बीच संयुक्त पहलें  भविष्य में भी जारी रहेगी।

प्रो. पुलोक के. मुखर्जी, निदेशक, आईबीएसडी ने रेखांकित किया कि आत्मनिर्भर भारत के लिए प्रधानमंत्री के दृष्टिकोण को पूरा करने के लिए, आईबीएसडी ने हर्बल औषधीय आधारित उत्पादों, किण्वित खाद्य पदार्थों, खाद्य मशरूम और कीड़ों के विकास हेतु एथनो एंटरप्रेन्योरशिप के आधार पर लाभ साझा करने और स्टार्ट-अप को बढ़ावा देने के लिए पारंपरिक चिकित्सकों और वैज्ञानिक समुदायों के बीच संबंध स्थापित किए हैं ।

सोसाइटी फॉर एथ्नोफार्माकोलॉजी, कोलकाता, भारत के उपाध्यक्ष श्री इंद्रनील दास, ने धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया ।

आईबीएसडी ने मणिपुर के एक आकांक्षी जिले चंदेल के महा संघ राजकीय हायर सेकेंडरी स्कूल में एक "विज्ञान संग्रहालय" स्थापित किया है। साथ ही आईबीएसडी इस क्षेत्र के स्थानीय जैव संसाधनों के बारे में वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने के लिए मणिपुर के विभिन्न स्कूलों, कॉलेजों के छात्रों के लिए वेबिनार, सेमिनार, प्रयोगशाला यात्राओं जैसी कई गतिविधियों का आयोजन कर रहा है।

आईबीएसडी की स्थापना वर्ष 2001 में इंफाल में जैव प्रौद्योगिकी विभाग, विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार के तत्वावधान की गई थी । यह संस्थान न केवल पूर्वोत्तर में मणिपुर के लोगों की सेवा कर रहा है, बल्कि सिक्किम के गंगटोक में क्षेत्रीय केंद्र और मेघालय के शिलांग में इसके अनुसंधान नोड्स तथा  मिजोरम के आइजोल सहित इसकी तीन अलग-अलग संस्थाएं भी हैं । आईबीएसडी ने पूर्वोत्तर भारत के जैव-संसाधनों के  जर्म-प्लाज्म संग्रह के लिए हराराउ, इंफाल में एक जैव संसाधन पार्क की स्थापना की है। अपनी स्थापना के बाद से ही आईबीएसडी" पूर्वोत्तर क्षेत्र के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए जैव-प्रौद्योगिकी हस्तक्षेप के माध्यम से जैव संसाधनों के विकास और उनके सतत उपयोग" के मिशन को पूरा करने के लिए अनुसंधान गतिविधियों और कई आउटरीच कार्यक्रमों में संलग्न है।

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