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भारत का सारस रेडियो टेलीस्कोप खगोलशास्त्रियों को ब्रह्मांड के पहले सितारों और आकाशगंगाओं की प्रकृति के बारे में जानकारी देता है

Posted On: 28 NOV 2022 9:30PM by PIB Delhi

वैज्ञानिकों ने बिग बैंग के सिर्फ 20 करोड़ वर्ष, एक अवधि जिसे अंतरिक्षीय प्रभात के रूप में जाना जाता है,  के बाद बनी चमकदार रेडियो आकाशगंगाओं के गुणों का निर्धारण किया है, जिससे सबसे शुरुआती रेडियो लाउड आकाशगंगाओं जो आमतौर पर बेहद विशाल ब्लैक होल द्वारा संचालित होती हैं, के गुणों के बारे में जानकारी मिली है ।

प्रारंभिक सितारों और आकाशगंगाओं का निर्माण कैसे हुआ और वे कैसे दिखते थे, इस बारे में अपनी जिज्ञासा की वजह से मानव ने ब्रह्मांड की गहराई से उत्पन्न होने वाले बेहद मंद संकेतों को जमीन और अंतरिक्ष- में स्थित आसमान पर लगातार नजर रखने वाली दूरबीनों के माध्यम से पकड़ने की कोशिश की है, जिससे ब्रह्माण्ड को लेकर बेहतर समझ हासिल हो सके।

रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट के द्वारा स्वदेश में डिजाइन और विकसित शेप्ड एंटीना मेज़रमेंट ऑफ द बैकग्राउंड रेडियो स्पेक्ट्रम 3 (सारस टेलीस्कोप) को 2020 की शुरुआत में उत्तरी कर्नाटक में दंडिगनहल्ली झील और शरावती नदी के पास स्थापित किया गया था।

अपनी तरह के इस पहले कार्य में सरस 3 के आंकड़ों का उपयोग करते हुए रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट (आरआरआई) बेंगलुरु द कॉमनवेल्थ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (सीएसआईआरओ), ऑस्ट्रेलिया के शोधकर्ताओं ने कैंब्रिज विश्वविद्यालय और तेल-अवीव विश्वविद्यालय के सहयोगियों के साथ पहली पीढ़ी की आकाशगंगाएं जो रेडियो वेवलैंथ पर साफ दिखती हैं, की एनर्जी आउटपुट, चमक और द्रव्यमान का अनुमान लगाया ।

वैज्ञानिक बेहद पुरानी आकाशगंगाओं के गुणों का अध्ययन इन आकाशगंगाओं के अंदर और उसके आसपास हाइड्रोजन परमाणुओं से विकिरण को देखकर करते हैं, जो कि लगभग 1420 मेगाहर्ट्ज की आवृत्ति पर उत्सर्जित होती है। ब्रह्मांड के विस्तार के साथ विकिरण में खिंचाव आता है. क्योंकि ये हमारी तरफ समय और अंतरिक्ष को पार करते हुए बढ़ता है और कम आवृत्ति वाले रेडियो बैंड 50-200 मेगाहर्ट्ज के रूप में पृथ्वी पर पहुंचता है, जो कि एफएम और टीवी ट्रांसमिशन के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है। ब्रह्मांड से मिलने वाले सिग्नल बेहद धुँधले होते हैं और हमारी खुद की आकाशगंगा से निकलने वाले बेहद चमकीले विकरण और पृथ्वी पर इंसानों के द्वारा बनाए गए व्यवधानों के बीच दबे होते हैं। इसलिए, सबसे शक्तिशाली मौजूदा रेडियो टेलीस्कोप का उपयोग करते हुए भी सिग्नल का पता लगाना खगोलशास्त्रियों के लिए एक चुनौती बना हुआ है।

आरआरआई के सौरभ सिंह और सीएसआईआरओ के रवि सुब्रह्मण्यन द्वारा 28 नवंबर, 2022 को नेचर एस्ट्रोनॉमी पत्रिका में प्रकाशित पेपर के परिणामों ने दिखाया है कि कैसे शुरुआती ब्रह्मांड से इस लाइन डिटेक्शन न होने पर भी खगोलशास्त्री असाधारण संवेदनशीलता के साथ शुरुआती आकाशगंगाओं के गुणों का अध्ययन कर सकते हैं।

"सारस 3 टेलीस्कोप से मिले परिणाम में पहली बार ऐसा हुआ है कि औसत 21-सेंटीमीटर लाइन का रेडियो ऑब्जर्वेशन सबसे शुरुआती रेडियो लाउड आकाशगंगाओं के गुणों के बारे में एक जानकारी प्रदान कर सकता है जो आमतौर पर बेहद विशाल ब्लैक होल द्वारा संचालित होती हैं" आरआरआई के पूर्व निदेशक और वर्तमान में अंतरिक्ष और खगोल विज्ञान सीएसआईआरओ, ऑस्ट्रेलिया के साथ जुड़े और इस शोध के लेखक श्री सुब्रह्मण्यन ने कहा यह काम सारस 2 के परिणामों को और आगे ले जाता है जिसने पहली बार शुरुआती सितारों और आकाशगंगाओं की  विशेषताओं के बारे में जानकारी दी थी

सारस 3 ने अंतरिक्षीय प्रभात को लेकर खगोल भौतिकी के बारे में हमारी समझ में सुधार किया है, जिसने हमें यह बताया कि शुरुआती आकाशगंगाओं के भीतर मौजूद गैसीय पदार्थ का 3 प्रतिशत से भी कम हिस्सा सितारों में परिवर्तित हुआ, और यह कि शुरुआती आकाशगंगाएं जो रेडियो उत्सर्जन में उज्ज्वल थीं, एक्स-रे में भी मजबूत थीं, जिसने शुरुआती आकाशगंगाओं में और उसके आसपास ब्रह्मांडीय गैस को गर्म किया।" 'एस्ट्रोफिजिकल कन्सट्रेंट फ्रॉम द सारस 3 नॉन डिटेक्शन ऑफ कास्मिक डान स्काई-एवरेज्ड 21 सीएम सिग्नल' नामक पेपर लिखने वालों में से एक श्री सिंह ने जानकारी दी।

इस साल मार्च में, श्री सिंह ने श्री सुब्रह्मण्यन और सारस 3 टीम के साथ, एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी (एएसयू) और एमआईटी, यूएसए के शोधकर्ताओं द्वारा विकसित ईडीजीईएस रेडियो टेलीस्कोप द्वारा ढूंढे गए अंतरिक्षीय प्रभात  से मिले 21-सेमी के असामान्य सिग्नल को पता लगाने के दावों को खारिज करने के लिए इन आंकड़ों का इस्तेमाल किया। इस कदम ने ब्रह्माण्ड विज्ञान के सुसंगत मॉडल में विश्वास को बहाल करने में मदद की, जिस पर नए दावे के साथ सवाल उठे थे ।

इस साल मार्च में, श्री सिंह ने श्री सुब्रह्मण्यन और सारस 3 टीम के साथ, एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी (एएसयू) और एमआईटी, यूएसए के शोधकर्ताओं द्वारा विकसित ईडीजीईएस रेडियो टेलीस्कोप द्वारा ढूंढे गए अंतरिक्षीय प्रभात से मिले 21-सेमी के असामान्य सिग्नल को पता लगाने के दावों को खारिज करने के लिए इन आंकड़ों का इस्तेमाल किया।

'अब हमारे पास शुरुआती आकाशगंगाओं के द्रव्यमान को लेकर सीमाएं हैं, इसके साथ ही रेडियो, एक्स-रे, और पराबैंगनी तरंग दैर्ध्य में उनके ऊर्जा उत्पादन की सीमाएं भी हैं' श्री सिंह ने जानकारी दी। इसके अलावा, एक खास मॉडल का उपयोग करते हुए, सारस 3 रेडियो तरंग दैर्ध्य पर अतिरिक्त विकिरण की ऊपरी सीमा निर्धारित करने में सक्षम रहा है, जो की अमेरिका में एआरसीएडीई और लॉन्ग वेवलेंथ अरे (एलडब्लूए) प्रयोगों द्वारा निर्धारित की गई मौजूदा सीमाओं को और कम करता है।

'विश्लेषण से पता चला है कि 21 सेंटीमीटर हाइड्रोजन सिग्नल शुरुआती सितारों और आकाशगंगाओं की संख्या के बारे में जानकारी दे सकता है' एक अन्य लेखक कैंब्रिज विश्वविद्यालय के खगोल विज्ञान संस्थान की डॉ. अनास्तासिया फियाल्कोव ने साझा किया। हमारा विश्लेषण प्रकाश के पहले स्रोतों के कुछ प्रमुख गुणों की सीमाएं तय कर सकता है, जिसमें प्रारंभिक आकाशगंगाओं के द्रव्यमान और वो दक्षता जिससे ये आकाशगंगाएँ तारों का निर्माण कर सकती हैं, आदि शामिल हैं" फियाल्कोव ने कहा।

मार्च 2020 में अपनी अंतिम तैनाती के बाद से, सारस 3 को अपग्रेड की एक श्रृंखला से गुजारा गया है। इन सुधारों से 21-सेमी सिग्नल का पता लगाने की दिशा में और भी अधिक संवेदनशीलता प्राप्त होने की उम्मीद है। वर्तमान में, सारस टीम अपनी अगली तैनाती के लिए भारत में कई जगहों का आकलन कर रही है। ये जगहें काफी दूरदराज में हैं और तैनाती के लिए लॉजिस्टिक से जुड़ी कई चुनौतियों सामने रखती हैं। हालाँकि, वे विज्ञान के हिसाब से आशाजनक हैं और नए अपग्रेड के साथ, हमारे प्रयोग के लिए आदर्श प्रतीत होते हैं" सारस टीम के एक सदस्य यश अग्रवाल ने जानकारी दी।

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