रक्षा मंत्रालय
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रक्षा मंत्री ने डिफेंसएक्सपो 2022 से इतर हिंद महासागर क्षेत्र और रक्षा मंत्रियों के सम्मेलन की मेजबानी की


क्षेत्र में सभी के हित के लिए नियम-आधारित सामुद्रिक व्यवस्था का आह्वान किया

आईओआर में सुरक्षा एवं स्थिरता के लिए मौजूदा और उभरते खतरों से निपटने के लिए सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता: श्री राजनाथ सिंह

"हम रणनीतिक प्रतिस्पर्धा की शून्य-संचय व्यवस्था से सहमत नहीं हैं; बल्कि ऐसी व्यवस्था चाहते हैं जिसमें सबके हित सुरक्षित हों"

Posted On: 19 OCT 2022 6:00PM by PIB Delhi

फरवरी 2021 में आयोजित 'हिंद महासागर क्षेत्र (आईओआर) रक्षा मंत्रियों के सम्मेलन' की भारी सफलता के बाद रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने दिनांक 19 अक्टूबर, 2022 को गुजरात के गांधीनगर में 12वीं डिफेंस एक्सपो के मौके पर आईओआर+ रक्षा मंत्रियों के सम्मेलन की मेजबानी की । कॉन्क्लेव में 40 देशों ने भाग लिया, जिसमें 22 मंत्रियों ने सम्मेलन को संबोधित किया, उनमें से कुछ हाइब्रिड मोड में थे । इस सम्मेलन का व्यापक विषय 'हिंद महासागर में चुनौतियां अवसर और सहयोग' था । इसने प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा और विकास (सागर) के दृष्टिकोण के अनुरूप आईओआर के भीतर रणनीतिक और वाणिज्यिक साझेदारी के साथ एक स्थिर एवं शांतिपूर्ण हिंद महासागर को बढ़ावा देने की दिशा में बातचीत  का अवसर प्रदान किया ।

मुख्य भाषण देते हुए श्री राजनाथ सिंह ने कॉन्क्लेव को एक संस्थागत और सहकारी वातावरण में संवाद को बढ़ावा देने वाली एक पहल बताया, जो हिंद महासागर क्षेत्र (आईओआर) में शांति, स्थिरता और समृद्धि को बढ़ावा दे सकती है । उन्होंने कहा कि इस मंच का नाम आईओआर+ रखा गया है क्योंकि इस सम्मेलन का विचार साझा जिम्मेदारी और समृद्धि है । "हम एक बहु-संरेखित नीति में विश्वास करते हैं जिसे अनेक हितधारकों के साथ जुड़ाव के माध्यम से महसूस किया जाता है, ताकि सभी के विचारों और मुद्दों पर चर्चा की जा सके और सभी के लिए एक समृद्ध भविष्य हेतु समाधान तलाशे जा सकें । भारत क्षेत्र में सभी के फायदे के लिए नियम-आधारित समुद्री व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए सभी साझेदार देशों के साथ काम करने को तैयार है ।"

रक्षा मंत्री ने प्रधानमंत्री के सागर के दृष्टिकोण को नई दिल्ली की हिंद महासागर नीति का विषय बताया । उन्होंने प्रधान मंत्री के कथन का उदाहरण दिया "हिंद महासागर क्षेत्र के लिए हमारा दृष्टिकोण क्षेत्र में सहयोग को आगे बढ़ाने में निहित है, साथ ही हमारे साझा समुद्री घर में हमारी क्षमताओं का उपयोग सभी के लिए करने में निहित है ।"

श्री राजनाथ सिंह ने मार्टिन लूथर किंग जूनियर के बयान का हवाला देते हुए कहा कि 'कहीं भी अन्याय हर जगह न्याय के लिए खतरा है', साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि यह बात उच्च कनेक्टिविटी और अन्योन्याश्रयता के इस युग में सर्वाधिक प्रासंगिक है । "जब किसी भी क्षेत्र की शांति और सुरक्षा को खतरा होता है, तो पूरी दुनिया इसके प्रभाव को कई तरह से महसूस करती है । हाल के यूक्रेनी संघर्ष ने दिखाया कि कैसे इससे पड़ने वाला प्रभाव सबसे कमजोर देशों के लिए ऊर्जा और खाद्य सुरक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है । इसी तरह, नाकाम देश न केवल अपने क्षेत्र के लिए, बल्कि दुनिया के लिए भी एक चुनौती है, क्योंकि ये देश आतंकवाद, समुद्री डकैती और तस्करी को पालने पोसने वाले अड्डों के रूप में कार्य कर सकते हैं । हमारा मानना ​​है कि इस तरह के मंचों के ज़रिए अपने साझेदार देशों को शामिल कर हम एक-दूसरे की चिंताओं को समझ सकते हैं और एक ऐसी वैश्विक व्यवस्था बनाने में मदद करते हैं जो हम सभी के लिए फायदेमंद है ।

रक्षा मंत्री ने हिंद महासागर क्षेत्र (आईओआर) में सुरक्षा और स्थिरता के लिए मौजूदा और उभरते खतरों से निपटने के लिए सामूहिक प्रयासों का आह्वान किया । उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी प्रगतिशील पांच 'एस' दृष्टि में वैश्विक चिंताओं से निपटने के लिए भारत की प्रतिबद्धता व दृष्टि को पहले ही दर्शा दिया है, जिसमें सम्मान, संवाद, सहयोग, शांति और समृद्धि शामिल हैं । श्री राजनाथ सिंह ने एक जिम्मेदार भूमिका निभाने और क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा में योगदान करने के लिए भारत के दृढ़ संकल्प के बारे में बताया । उन्होंने कहा, "हमने हिंद महासागर क्षेत्र (आईओआर) के विभिन्न द्विपक्षीय और बहुपक्षीय मंचों पर संगठनात्मक और साथ ही परिचालन से जुड़े पहलुओं में अपनी प्रतिबद्धता का प्रदर्शन किया है और हम यह सुनिश्चित करने के लिए अपने इस जुड़ाव को आगे ले जाना चाहते हैं कि यह क्षेत्र निकट भविष्य में वैश्विक अर्थव्यवस्था के ड्राइविंग इंजन के रूप में अपनी सही जगह ले ले ।"

श्री राजनाथ सिंह ने आईओआर में साझा चुनौतियों को सूचीबद्ध किया जैसे समुद्री मार्गों के माध्यम से आतंकवाद का प्रसार, अवैध, गैर-रिपोर्टेड और अनियमित (आईयूयू) मत्स्याटन, समुद्री डकैती एवं क्षेत्रीय व वैश्विक खाद्य सुरक्षा । उन्होंने जोर देकर कहा कि समुद्री मार्गों के माध्यम से निर्यात, समर्थित या समन्वित आतंकवाद एक प्रमुख चिंता का विषय बना हुआ है और भारत इस खतरे को फैलने से रोकने की कोशिशें जारी रखे हुए है । उन्होंने इस बात की सराहना की कि पश्चिमी हिंद महासागर में ठोस अंतरराष्ट्रीय प्रयासों से समुद्री डकैती को ख़त्म सा कर दिया गया है तथा इस खतरे को रोकने के लिए निरंतर प्रयास जारी रखने चाहिए ।

आईयूयू मत्स्याटन पर, रक्षा मंत्री ने विभिन्न स्रोतों, यानी उपग्रहों, रडार, टोही विमानों या मानवीय खुफिया माध्यमों से एकत्र किए गए निगरानी डेटा के संकलन, मिलान और साझा करने के लिए एक अनेक देशों द्वारा किए जाने वाले राष्ट्रीय प्रयास का आह्वान किया । उन्होंने कहा कि यह अनियमित या धमकी भरे व्यवहार वाले एक्टर्स की पहचान करने में मदद करेगा, जिसके बाद उनका सख्ती से मुकाबला करने में मदद मिलेगी ।

श्री राजनाथ सिंह ने दोहराया कि भारत वैश्विक व्यवस्था की किसी भी श्रेणीबद्ध अवधारणा और अंतरराष्ट्रीय संबंधों में नैतिक श्रेष्ठता के ढोंग को स्पष्ट रूप से खारिज करता है । उन्होंने जोर देकर कहा कि नई दिल्ली हर देश के आपसी सम्मान और फायदे के आधार पर एक वैश्विक व्यवस्था में विश्वास करती है । उन्होंने कहा, "हम रणनीतिक प्रतिस्पर्धा के शून्य-राशि प्रतिमान को नहीं मानते हैं । इसके बजाय, हम अंतरराष्ट्रीय संबंधों के ऐसे प्रतिमान में विश्वास रखते हैं जहां सबके हित सुरक्षित हों । भारत आईओआर में शांति और स्थिरता की मांग करते हुए, देशों के बीच आपसी सहयोग और घनिष्ठ संपर्क को बढ़ावा देने के लिए हमारे सहयोगी देशों की सरकार, व्यापार और शिक्षाविदों के प्रतिनिधियों के साथ काम करने के लिए तैयार है ।"

रक्षा मंत्री ने समुद्री संसाधनों के सतत इस्तेमाल को 21वीं सदी में हिंद महासागर क्षेत्र (आईओआर) देशों के विकास के लिए एक महत्वपूर्ण साधन बताया । उन्होंने यह सुनिश्चित करने के लिए सहयोगात्मक प्रयास करने का आह्वान किया कि हिंद महासागर का समुद्री विस्तार शांतिपूर्ण हो और क्षेत्रीय और वैश्विक खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए इसका बेहतर उपयोग किया जाए । उन्होंने कहा, "हमने नियम-आधारित व्यवस्था के प्रति अपने सम्मान का प्रदर्शन किया है और हिंद महासागर को शांति और स्थिरता के क्षेत्र के रूप में पोषित करने की आवश्यकता पर जोर देना जारी रखा है । हम इस बात को दोहराना चाहेंगे कि इस महत्वपूर्ण व्यापार और ऊर्जा जलमार्ग को शांतिपूर्ण रखने के लिए प्रभुत्व के बजाय अन्योन्याश्रयता ही एकमात्र तरीका है । दुनिया का आधा कंटेनर शिपमेंट, दुनिया के कार्गो ट्रैफिक का एक तिहाई ऑइल शिपमेंट का दो तिहाई हिंद महासागर क्षेत्र से ले जाए जाने से यह क्षेत्र स्पष्ट रूप से हमारे अंतरराष्ट्रीय मामलों में एक बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रखता है ।"

श्री राजनाथ सिंह ने जहाज, समुद्री विमान, तटीय रडार और अन्य निगरानी प्रणाली, प्रशिक्षण, भारतीय शिपयार्ड तक पहुंच और समान क्षमताओं के स्वदेशी विकास के लिए प्रशिक्षित जनशक्ति की उपलब्धता प्रदान करके भागीदार देशों के क्षमता निर्माण हेतु सरकार की प्रतिबद्धता को दोहराया । उन्होंने कहा कि भारत में एयरोस्पेस और रक्षा क्षेत्र ने एक लंबा सफर तय किया है, जिसमें निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग अत्याधुनिक तकनीकों के विकास में सबसे आगे हैं ।

"हाल ही में स्वदेशी रूप से निर्मित एयरक्राफ्ट कैरियर आईएनएस विक्रांत की कमीशनिंग, स्वदेशी रूप से विकसित अटैक हेलीकॉप्टर प्रचंड आदि को शामिल करना, स्वदेशी रक्षा निर्माण क्षमताओं को विकसित करने की दिशा में हमारे सफ़र में मील का पत्थर हैं । भारतीय एयरोस्पेस और रक्षा उद्योग विदेशी कंपनियों के लिए अपने सहयोग को नए स्तरों पर ले जाने के लिए एक आकर्षक और महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करते हैं । भारत विभिन्न प्रकार की मिसाइल प्रणाली, हल्के लड़ाकू विमान/ हेलीकॉप्टर, बहुउद्देश्यीय हल्के परिवहन विमान, युद्धपोत एवं गश्ती जहाज, आर्टिलरी गन सिस्टम, टैंक, रडार, सैन्य वाहन, इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणाली और अन्य हथियार प्रणालियों की आपूर्ति आईओआर देशों को करने के लिए तैयार है ।"

श्री राजनाथ सिंह ने आईओआर देशों से सभी के लिए पारस्परिक लाभ हेतु भारत में सरकार द्वारा बनाए गए अनुसंधान एवं विकास पारितंत्र का लाभ उठाने का आग्रह किया । उन्होंने कहा कि सही नीतियों और ढांचे के साथ भारत एक वैश्विक अनुसंधान एवं विकास केंद्र बनने की ओर अग्रसर है । उन्होंने कहा, "विशेष रूप से रक्षा क्षेत्र में हमारा स्टार्ट-अप पारितंत्र, दुनिया के सबसे बड़े पारितंत्र में से एक है और एक आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है । रक्षा एवं एयरोस्पेस उद्योग में नवाचार और प्रौद्योगिकी विकास को बढ़ावा देने के लिए अब नीतियां और ढांचे मौजूद हैं । हमें अपने साझेदार देशों से बहुत कुछ सीखना है और हमारे पास उनके साथ साझा करने के लिए बहुत कुछ है ।"

श्री राजनाथ सिंह ने कहा कि जलवायु परिवर्तन का समुद्री पर्यावरण पर बहुत बड़ा प्रभाव है और इसका प्रभाव राष्ट्रीय और क्षेत्रीय आकांक्षाओं को आगे बढ़ाने के लिए चुनौतियां पैदा कर सकता है । उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत पिछले कुछ वर्षों से इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में मानवीय सहायता और आपदा राहत (एचएडीआर) आवश्यकताओं में पहला उत्तरदाता रहा है, जिसमें उन्होंने कोविड ​​​​-19 महामारी के दौरान सागर मिशन और ऑपरेशन समुद्र सेतु का विशेष उल्लेख किया । हालांकि उन्होंने प्रतिकूल घटनाओं पर बेहतर जवाब देने के लिए हिंद महासागर क्षेत्र (आईओआर) के देशों के बीच व्यापक और गहन आपदा प्रबंधन सहयोग का आह्वान किया । उन्होंने कहा, "हम इस क्षेत्र में नौसेनाओं के साथ बातचीत कर रहे हैं और आगे भी करते रहेंगे । हम भविष्य में चुनौतियों का सामना करने के लिए 'सेलिंग टूगेदर' से 'ऑपरेटिंग टूगेदर' की ओर बढ़ना चाहते हैं ।"

अपने स्वागत भाषण में रक्षा सचिव डॉ अजय कुमार ने दुनिया भर में एक सभ्यतागत कड़ी के रूप में हिंद महासागर की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला । उन्होंने कहा कि भारत के बढ़ते वैश्विक एकीकरण का मतलब है कि हिंद महासागर शीर्ष नीतिगत प्राथमिकताओं में से एक है । उन्होंने समुद्री सुरक्षा सहयोग को हिंद महासागर क्षेत्र (आईओआर) में भारत के विविध सहयोग पोर्टफोलियो का एक महत्वपूर्ण घटक बताया और 2019 में पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा प्रस्तावित इंडो पैसिफिक ओशन इनिशिएटिव सहित विभिन्न पहलों का उल्लेख किया, जो व्यावहारिक सहयोग को आगे बढ़ाता है । रक्षा सचिव ने दोहराया कि भारत आईओआर क्षेत्र में विकास और निरंतर स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए द्विपक्षीय, बहुपक्षीय और क्षेत्रीय मंचों पर काम करने के लिए तैयार है ।

नौसेना उप प्रमुख वाइस एडमिरल एस एन घोरमाडे ने 'लीवरेजिंग टेक्नोलॉजीज एंड होलिस्टिक कैपेसिटी बिल्डिंग - पाथवे टू सेफ एंड सिक्योर ओशन्स' विषय पर अपना वक्तव्य रखा, जिसमें समुद्री क्षमता निर्माण के लिए प्राथमिक प्रवर्तक के रूप में उभरती प्रौद्योगिकियों की भूमिका पर प्रकाश डाला गया ।

दूसरा आईओआर+ कॉन्क्लेव में रक्षा उद्योग सहयोग, रिफिट के लिए भारतीय शिपयार्ड की उपलब्धता, समुद्री यात्रा से जुड़ी मरम्मत, जहाज डिजाइन और जहाज निर्माण, भारतीय बंदरगाहों तक पहुंच, समुद्री सूचना-साझाकरण, समुद्री निगरानी और सहयोग, एचएडीआर, समुद्री प्रदूषण से निपटना, समुद्री व समुद्री विमानन संसाधनों आदि के दोहन के लिए प्रौद्योगिकियों और क्षमताओं का विकास, जैसे पहलु समाहित हैं ।

यह कॉन्क्लेव रक्षा उत्पादन विभाग, रक्षा मंत्रालय द्वारा आयोजित किया गया था । इस पहल को सभी भाग लेने वाले देशों द्वारा बहुत सराहा गया और पसंद किया गया।

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