ग्रामीण विकास मंत्रालय

श्री गिरिराज सिंह ने राष्ट्रीय वाटरशेड सम्मेलन का उद्घाटन किया


सम्मेलन उत्पादन प्रणाली के माध्यम से किसान की आय को दोगुना करने पर केंद्रित : वाटरशेड परियोजना क्षेत्रों में बागवानी/वृक्षारोपण

स्प्रिंगशेड के माध्यम से जल संरक्षण और मिशन अमृत सरोवर के माध्यम से जल स्रोत को नया जीवन देने पर चर्चा हुई

Posted On: 14 JUL 2022 7:31PM by PIB Delhi

वर्षा से सिंचित/परती भूमि के सतत विकास के महत्व को ध्यान में रखते हुए, भूमि संसाधन विभाग ने 14 जुलाई, 2022 को नई दिल्ली में एक राष्ट्रीय वाटरशेड सम्मेलन का आयोजन किया। उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता केंद्रीय ग्रामीण विकास और पंचायती राज मंत्री श्री गिरिराज सिंह ने की। ग्रामीण विकास और इस्पात राज्य मंत्री श्री फग्गन सिंह कुलस्तेग्रामीण विकास और उपभोक्ता कार्य एवं खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण राज्य मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति और पंचायती राज राज्य मंत्री श्री कपिल मोरेश्वर पाटिल भी कार्यक्रम में उपस्थित थे। जल शक्ति, ग्रामीण विकास, नीति आयोग, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन, पशुपालन, राष्ट्रीय वर्षा सिंचित क्षेत्र प्राधिकरण (एनआरएए) जैसे केंद्र सरकार के मंत्रालयों/विभागों के सचिवों और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने सम्मेलन में भाग लिया। एनएआरए सीईओ, और अन्य वरिष्ठ अधिकारी भी उपस्थित थे। पूरे देश से लगभग 600-700 प्रतिनिधि भी मौजूद थे।

यह सम्मेलन 2019 में सीओपी-14, यूएनसीसीडी का अध्यक्ष पद प्राप्त करते हुए, प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 2.1 करोड़ हेक्टेयर से 2.6 करोड़ हेक्टेयर परती भूमि को फिर से उपजाऊ बनाने की प्रतिबद्धता जताने के बाद हो रहा है।

सम्मेलन मूल रूप से तीन विषयों पर केंद्रित था:

(i) उत्पादन प्रणाली (वृक्षारोपण और बागवानी)

(ii) स्प्रिंगशेड का विकास

(iii) वाटरशेड परियोजना क्षेत्रों में अमृत सरोवर

इस अवसर पर, माननीय मंत्री ने भूमि संसाधन विभाग की उपलब्धियों पर ई-बुक और प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (डब्ल्यूडीसी-पीएमकेएसवाई) के वाटरशेड विकास घटक के लिए एमआईएस 2.0 का भी शुभारंभ किया।

विभिन्न राज्यों के राज्य मंत्रियों और वरिष्ठ अधिकारियों को संबोधित करते हुए, श्री  

श्री गिरिराज सिंह ने कहा कि राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को वाटरशेड परियोजनाओं को लागू कर परती भूमि पर कार्य करते हुए किसानों की आय को दोगुना करने की दिशा में पर्याप्त योगदान देने का प्रयास करना चाहिए। उन्होंने वाटरशेड परियोजना क्षेत्रों में वनरोपण, बागवानी और एकीकृत कृषि प्रणाली आदि की भूमिका पर जोर दिया ताकि ये गतिविधियां बड़े पैमाने पर किसानों की आय बढ़ाने में सहायक साबित हो सकें। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि राज्य/केंद्र शासित प्रदेशों को लाभार्थियों को मदद देने के लिए परियोजनाओं को लागू करते समय ऐसे प्रयास करने चाहिए जिससे वे अपनी जोत की सबसे अच्छी तरह से देखभाल कर सकें।

वाटरशेड परियोजनाओं के कार्यान्वयन में वांछित प्रभाव लाने के लिए, डीओएलआर ने श्री पोपटराव पवार (हिवारे बाजार मॉडल) और श्री जादव पायेंग (भारत के वन पुरुष) जैसे पद्म श्री पुरस्कार विजेताओं को और स्प्रिंगशेड विकास की भूमिका को बताने के लिए विशेषज्ञों जैसे श्री बी एम एस  राठौर (पूर्व मुख्य नीति सलाहकार, आईसीआईएमओडी) और श्री डी एस मीणा, अतिरिक्त सचिव, उत्तराखंड सरकार को आमंत्रित किया था।

श्री अजय तिर्की, सचिव, डीओएलआर, ने अपने संबोधन में उल्लेख किया कि डब्ल्यूडीसी-पीएमकेएसवाई में वर्षा सिंचित/परती भूमि को बहाल करने क्षमता है और यह बढ़ती जनसंख्या और प्रति व्यक्ति कृषि भूमि की  उपलब्धता में कमी को देखते हुए पहले से ज्यादा अनिवार्य हो गई है। उन्होंने बताया कि लगभग 67 प्रतिशत ग्रामीण आबादी कृषि पर बहुत अधिक निर्भर है और वर्षा सिंचित/परती भूमि की बहाली उनके लिए वरदान साबित हो सकती है। उन्होंने उल्लेख किया कि इस योजना के तहत होने वाली गतिविधियों से भूमि के क्षरण को रोकने, उत्पादकता बहाल करने, जैव विविधता को बढ़ाने, पारिस्थितिक सेवाओं और कई अन्य लाभों में मदद मिलेगी। डब्लूडीसी-पीएमकेएसवाई 2.0 खासतौर पर किसानों को अपने खेती न छोड़ने के लिए प्रेरित करेगा और इस प्रकार प्रवासन को कम करने में मदद करेगा  जो अस्वाभाविक/अनियोजित शहरीकरण और अन्य संबंधित प्रभावों को जन्म देता है, जिन्हें टाला जाना संभव है।

मिशन अमृत सरोवर का आह्वान प्रधानमंत्री मोदी ने किया है। डब्ल्यूडीसी-पीएमकेएसवाई 2.0 में डब्ल्यूडीसी-पीएमकेएसवाई 2.0 परियोजना क्षेत्रों में अमृत सरोवर बनाने की अपार संभावनाएं हैं और इसलिए राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों से उपयुक्त पहल करने का आग्रह किया गया।

 

प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (डब्ल्यूडीसी-पीएमकेएसवाई) का वाटरशेड विकास घटक

भारत सरकार द्वारा भूमि संसाधन विभाग (डीओएलआर) को प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (डब्ल्यूडीसी-पीएमकेएसवाई) के वाटरशेड विकास घटक नामक एक केंद्र प्रायोजित योजना को लागू करने के लिए निर्देशित किया गया है।

डीओएलआर ने डब्ल्यूडीसी-पीएमकेएसवाई 1.0 के तहत 2.957 करोड़ हेक्टेयर के लक्ष्य के साथ राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में 6382 वाटरशेड परियोजनाओं को वित्तीय रूप से समर्थन दिया है, जिसे मार्च 2022 तक सफलतापूर्वक पूरा किया गया है। डीओएलआर में परियोजनाओं की पूर्णता रिपोर्ट और अंतिम रिपोर्ट प्राप्त की जा रही है और परिणामों की रिपोर्ट अविश्वसनीय  है।

  • भूजल स्तर में 3 मीटर तक की वृद्धि,
  • खेती वाले क्षेत्र में 30% तक की वृद्धि,
  • किसान की वार्षिक आय में 70.13 प्रतिशत तक की वृद्धि,
  • दूध उत्पादन में 40% तक की वृद्धि और
  • फसल गहनता में 18.3% तक की वृद्धि।

राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के द्वारा अब तक 5693 परियोजनाओं को पूरा करने की सूचना दी गई है, जिसमें 2.710 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र को फायदा मिलता है। इस बीच, डीओएलआर ने दिसंबर, 2021 के दौरान 8134 करोड़ रुपये के केंद्रीय आवंटन और 49.5 लाख हेक्टेयर भूमि के लक्ष्य के साथ डब्ल्यूडीसी-पीएमकेएसवाई 2.0 भी शुरू की है। डब्ल्यूडीसी 2.0 के तहत कुल 1099 परियोजनाओं को पहले ही मंजूरी दी जा चुकी है। राष्ट्रीय वर्षा सिंचित क्षेत्र प्राधिकरण (एनआरएए) की मदद से डीओएलआर ने मौजूदा गाइडलाइन को अधिक समावेशी, वैज्ञानिक और स्पष्ट रूप से उत्पादन प्रणाली उन्मुख बनाने के लिए संशोधित किया।

डब्ल्यूडीसी-पीएमकेएसवाई 2.0 के तहत स्प्रिंगशेड का विकास

डब्ल्यूडीसी-पीएमकेएसवाई 2.0 के तहत, वाटरशेड के परियोजना क्षेत्रों के भीतर स्प्रिंगशेड विकास को एक नई गतिविधि के रूप में शामिल किया गया है। यह नीति आयोग की एक सिफारिश के आधार पर था, जो आईसीआईएमओडी के सहयोग से 2017-18 के लिए प्रकाशित एक रिपोर्ट में दी गई थी, जिसमें दर्शाया गया कि भारत में 40 से 50 लाख जलधाराओं में से लगभग 50% या तो सूख गए हैं या सूखने के कगार पर हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में स्प्रिंगशेड के विकास से देश की पारिस्थितिक, आर्थिक और जैव विविधता सुरक्षा के मुद्दों को हल करने में मदद मिलेगी।

डब्लूडीसी-पीएमकेएसवाई 2.0 इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें स्प्रिंगशेड विकास को नई गतिविधियों में से एक के रूप में शामिल किया गया है। यह विशेष रूप से हिमालयी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों और देश के अन्य पर्वतीय क्षेत्रों के लिए सबसे महत्वपूर्ण हो सकता है जो रणनीतिक, पारिस्थितिक, आर्थिक, सामाजिक-राजनीतिक रूप से उच्च महत्व के हैं। विडंबना यह है कि हिमालयी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में मानसून के मौसम में बहुत अधिक बारिश होती है, लेकिन कम बारिश की अवधि में उन्हें पीने के पानी की कमी की समस्या का सामना करना पड़ता है। इसके विपरीत, नाजुक हिमालयी परिदृश्य भी बहुत बार पारिस्थितिक क्षरण और भूस्खलन की समस्याओं का सामना करता है। डब्ल्यूडीसी-पीएमकेएसवाई 2.0 के परियोजना क्षेत्रों के तहत पर्वतीय क्षेत्रों में जल स्रोत को नया जीवन देकर, सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को अत्यधिक लाभ हो सकता है।

डीओएलआर ने डब्लूडीसी -पीएमकेएसवाई 2.0 की क्षमता को भुनाने की जिम्मेदारी ली है और किसानों की आय को दोगुना करने, राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान, भूमि क्षरण को रोकने और सतत विकास लक्ष्यों आदि की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है - जिससे भारत में बदलाव आ रहा है।

भारत सरकार का राष्ट्रीय एकीकृत वाटरशेड प्रबंधन कार्यक्रम (वर्तमान में डब्ल्यूडीसी-पीएमकेएसवाई) चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा वाटरशेड कार्यक्रम है (विश्व बैंक की रिपोर्ट, जुलाई 2014)

श्री नागेन्द्र नाथ सिन्हा, सचिव, ग्रामीण विकास मंत्रालय, वाटरशेड परियोजना के कार्यान्वयन में शामिल राज्य सरकारों/केंद्र सरकार के विभागों के अपर मुख्य सचिव/प्रधान सचिव/ सचिवों ने कार्यशाला में भाग लिया।

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