सूचना और प्रसारण मंत्रालय
जहां तक फिल्म निर्माण, उसे देखने और उसका मूल्यांकन करने का संबंध है, मुझे लिंग के आधार पर कोई अंतर नहीं दिखता: रक्षण बेनिएतमड, अध्यक्ष, अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता जूरी
समकालीन भारत की कलात्मक कल्पना अधिकांश फिल्मों में दिखाई देती है : नीला माधब पांडा, जूरी सदस्य
समकालीन भारतीय सिनेमा की जीवंतता, विविधता और कल्पना अद्भूत है : सिरो गुएरा, जूरी सदस्य
हमने राष्ट्रीयता और विचारधारा से परे सिनेमा की कला का आनंद लिया : विमुक्ति जयसुंदरा, जूरी सदस्य
52वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव के लिए अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता जूरी की अध्यक्ष और ईरानी फिल्म निर्माता रक्षण बेनिएतमड और फिल्म निर्माता सिरो गुएरा, विमुक्ति जयसुंदरा और नीला माधब पांडा सहित अन्य सदस्यों ने आज गोवा में आईएफएफआई 52 में मीडिया के साथ बातचीत की।
फिल्मों का मूल्यांकन करने के अपने अनुभव पर जूरी की अध्यक्ष और ईरानी फिल्म निर्माता रक्षन बेनिएतमड ने कहा कि उन्हें विभिन्न देशों की अलग-अलग फिल्मों को आंकने में मजा आया और यह एक अद्भुत अनुभव रहा। उन्होंने कहा, “जहां तक फिल्म निर्माण, उसे देखने और उसका मूल्यांकन करने का सवाल है, मुझे लिंग के आधार पर कोई अंतर नहीं दिखता। मैं लिंग के बजाय विशेषज्ञता और कौशल पर अधिक ध्यान केंद्रित करती हूं और ऐसा ही सभी महिला फिल्म निर्माताओं को करना चाहिए।“ उन्होंने फिल्म निर्माण और उसके मूल्यांकन में लिंग कारक और परिप्रेक्ष्य के महत्व पर सवाल के जवाब में ये बातें कही।
अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता जूरी के सदस्यों में से एक कोलंबियाई फिल्म निर्देशक सिरो गुएरा ने कहा, “हमने राष्ट्रीयता और विचारधारा से परे सिनेमा की कला और उसकी ताक़त का आनंद लिया। हम जब प्रतियोगिता के लिए फिल्म का चुनाव करते हैं तो यह देखते हैं कि फिल्म में दर्शकों को हिला देने या छूने की शक्ति है या नहीं, इसमें कुछ चकित कर देने वाला और नए आयाम या अवधारणा को प्रकट करने वाला तत्व है या नहीं, फिल्म में कहानी को साधनों का प्रभावी ढंग से उपयोग करके और विषयों की परवाह किए बिना कलात्मक योग्यता के साथ दिखाया गया है कि नहीं।“
भारतीय सिनेमा पर टिप्पणी करते हुए सिरो ने कहा कि भारतीय सिनेमा की जीवंतता, विविधता और कल्पना वास्तव में अद्भूत है। उन्होंने कहा, "यह वास्तव में एक प्रतिष्ठित फिल्म समारोह है और मैं जूरी का हिस्सा बनकर सम्मानित महसूस कर रहा हूं"।
हमने निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले जूरी सदस्यों के बीच फिल्म के बारे में चर्चा की। "जब मेरी फिल्म ‘एम्ब्रेस ऑफ द सर्पेंट’ ने 2015 में गोल्डन पीकॉक पुरस्कार जीता, तो दुर्भाग्य से मैं समारोह में शामिल नहीं हो सका था।
श्रीलंकाई निर्देशक विमुक्ति जयसुंदरा ने जूरी की तटस्थता के बारे में बात करते हुए कहा कि जब आप जूरी सदस्य होते हैं तो आपको अपनी राष्ट्रीयता और विचारधारा को अलग रखना होता है और कलात्मक योग्यता के आधार पर फिल्म का मूल्यांकन करना होता है।
जूरी द्वारा देखी गई फिल्म पर कोविड महामारी के प्रभाव के बारे में एक प्रश्न का उत्तर देते हुए प्रसिद्ध श्रीलंकाई निर्देशक विमुक्ति जयसुंदरा ने कहा कि महामारी का प्रभाव कैमरे के पीछे रहा होगा, चुनौतियां थी लेकिन यह आउटपुट में कभी परिलक्षित नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि आईएफएफआई के लिए चुनी गई फिल्में विविधता और उत्कृष्टता का प्रतिनिधित्व करती हैं।
जयसुंदरा ने भारतीय फिल्मों पर बात करते हुए कहा, "ऐसी कई कहानियां हैं जिसे भारत को दुनिया को दिखाने की जरूरत है। इस बार मुझे नई और दिलचस्प कहानियां और विषय मिले हैं, हालांकि मैंने अतीत में कई भारतीय फिल्में देखी हैं।“
राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्म निर्माता और जूरी सदस्य नीला माधब पांडा ने कहा कि आईएफएफआई अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए एक मंच है। उन्होंने जिस तरह की फिल्मों का चयन किया है, वह समावेशन और विविधता को दर्शाता है।
उन्होंने आगे कहा कि समकालीन भारत की कलात्मक कल्पना आज अधिकांश फिल्मों में दिखाई देती है। उन्होंने कहा कि यह खुशी की बात है कि हमारा क्षेत्रीय सिनेमा बड़ी तेजी से आगे बढ़ रहा है। इन क्षेत्रों से कई दमदार फिल्में आ रही हैं।
नीला माधब पांडा ने सिनेमा पर कोविड महामारी के प्रभाव को लेकर कहा कि जूरी सदस्यों ने किसी भी फिल्म में किसी भी तरह का कलात्मक समझौता नहीं पाया। उन्होंने कहा कि एक निर्देशक कभी-कभी एक कहानी से सालों जूझता है और फिल्म निर्माण में लंबा समय भी लगता है, इसलिए प्रभाव की यह बात केवल महामारी की अवधि के दौरान ही नहीं हो सकती है।
फिल्मों का मूल्यांकन करने के अपने अनुभव के बारे में बताते हुए जूरी के सदस्यों ने एक स्वर में कहा कि उन्होंने समारोह के आखिरी दिनों में सिनेमा का जमकर आनंद उठाया। उन्होंने कहा, "इस प्रतिष्ठित समारोह में इस तरह की विविध और अद्भुत फिल्में देखना एक अविश्वसनीय और यादगार अनुभव था।"
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