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भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) 52  में स्वर्ण मयूर दावेदार "नो ग्राउंड बिनिथ द फीट" यह चित्रित करना चाहती है कि कैसे जलवायु परिवर्तन कैसे प्रभावित कर सकने के साथ ही मनोवैज्ञानिक रूप से मानव जीवन को तार-तार कर सकता है


"पायेर तोले माटी  नाइ" एक और बहुत बड़ी महामारी है- जलवायु परिवर्तन की महामारी की ओर ध्यान आकर्षित करना चाहती है: निर्माता अबू शाहद एमोन

"हमें उम्मीद है कि लोग वास्तव में जलवायु परिवर्तन को सबसे बड़ी आपदा और मानव सभ्यता के सम्मुख आए सबसे बड़े संकट के रूप में लेंगे"

बाढ़ के पानी की धार से तबाह, उसके परिवार को अपने मृत पिता को दफनाने के लिए जमीन के एक टुकड़े तक के लिए हाथापाई करने पर विवश आत्मा को कुचलने वाली पीड़ा से टुकड़े-टुकड़े कर दिया गया है। यहां तक ​​​​कि उनके आंतरिक आघात के प्रलय से बेखबर होने के बावजूद, उसे अपने बाढ़ प्रभावित गांव तक पहुंचने के लिए नैतिक पतन, हत्या, धोखे और सामाजिक भर्त्सना की एक हड्डियों को थकाने वाली यात्रा करनी पड़ रही है। अपनी आस्तीनें  ऊपर करो और फिर अपने आप को अकथनीय और विलक्षण दु:ख के साथ बाढ़ के पानी में चलने के लिए तैयार करो, वह यही अकथनीय और विलक्षण दु:ख है जिसे अनुभव करते हुए उस  गरीब एम्बुलेंस चालक सैफुल को झेलना पड़ता है। न केवल अपने आप को उसकी पीड़ा में ड़ूब जाने के लिए, बल्कि उन हानिकारक तरीकों का एक नया, गहरा और एक बहुत ही निजी  अनुभव विकसित करने के लिए जिसमें मानवजनित जलवायु परिवर्तन व्यक्तिगत जीवन और आजीविका को प्रभावित करता है।

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भारत के अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव के 52वें संस्करण में फिल्म प्रेमियों को ऐसा ही अनुभव मिला और इसका श्रेय उस बांग्लादेशी फिल्म "पायेर तोले माटी नाइ" (नो ग्राउंड बिनिथ द फीट) को जाता है, जिसका इस महोत्सव में इंडियन प्रीमियर हुआ है। यह फिल्म प्रतिष्ठित स्वर्ण मयूर (गोल्डन पीकॉक) और इस समारोह के अन्य पुरस्कारों जैसे सर्वश्रेष्ठ निर्देशक, सर्वश्रेष्ठ अभिनेता (पुरुष), सर्वश्रेष्ठ अभिनेता (महिला) और विशेष जूरी पुरस्कार के लिए प्रतिस्पर्धा करने वाली पंद्रह फिल्मों में से एक है।

महोत्सव के अंतिम दिन आज, 27 नवंबर, 2021 को एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए, फिल्म के निर्माता अबू शहीद एमोन ने फिल्म के मुख्य संदेश के बारे में फिल्म के प्रतिनिधियों को बताया। "पायेर तोले माटी नाइ" अर्थात पैरों के नीचे कोई जमीन नहीं शीर्षक वाली यह फिल्म इस बात पर एक मजबूत परिप्रेक्ष्य देती है कि जलवायु परिवर्तन हर इंसान के जीवन को कैसे प्रभावित कर सकता है। उन्होंने कहा कि फिल्म के माध्यम से, हमने यह दिखाने का एक गंभीर प्रयास किया है कि सीमाओं को छोड़कर कैसे जलवायु परिवर्तन सामाजिक असमानता के लिए मार्ग प्रशस्त करता है और मनोवैज्ञानिक रूप से इंसानों को तोड़ देता है।  

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यह फिल्म निर्देशक मोहम्मद रब्बी मृधा की पहली फीचर फिल्म है, जिसे बांग्ला में पायेर तोले माटी नाई’’ के नाम से जाना जाता है। एमोन ने खुलासा किया कि किस बात ने उन्हें यह फिल्म बनाने के लिए प्रेरित किया, जो जलवायु परिवर्तन, गरीबी और सामाजिक बीमारियों जैसे मुद्दों का समाधान करना चाहती है। "जलवायु परिवर्तन वास्तविक है और यह इस समय हो रहा है। हमारा प्रयास एक और महाकाय वैश्विक आपदा के बारे में चर्चा शुरू करके ऐसा प्रभाव पैदा करना है, जिसके बारे में लोग अभी बात करने के लिए इच्छुक ही नहीं हैं। हमें उम्मीद है कि लोग वास्तव में जलवायु परिवर्तन को सबसे बड़ी आपदा और मानव सभ्यता के सामने सबसे बड़े खतरे के रूप में लेंगे।

" यह फिल्म समस्या की गंभीरता को कैसे सामने लाती है? इस बारे में एमोन बताते हैं: "फिल्म मेरे नायक की उस यात्रा के साथ-साथ चलती है जिसमें समाज को जलवायु परिवर्तन और प्रवासन के प्रभाव और जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले स्थान परिवर्तन के लिए एक दर्पण दिखाया गया है।

" यह दोहराते हुए कि उनकी फिल्म तथ्यों पर आधारित एक कल्पना है, लेकिन यह वास्तविक लोगों की विशेष कहानियों पर नहीं बनी है, एमोन ने कहा: "हमारा इरादा वास्तविकता को सबसे सहज प्राकृतिक और यथार्थवादी तरीके से चित्रित करना था।

" इस फिल्म के निर्माता जो स्वयं बांग्लादेश फिल्म उद्योग के एक प्रसिद्ध निर्देशक और लेखक भी हैं, ने दर्शकों को बताया कि कैसे जबरन स्थानांतरण और पलायन भूमंडलीय ऊष्मीकरण अर्थात ग्लोबल वार्मिंग का एक दूरगामी निश्चित और अपरिहार्य परिणाम है। अचानक उत्पन्न विशेष परिस्थितियों से विवश होकर लोग अपना घर-बार छोड़कर उन जगहों पर स्थानांतरित होने का प्रयास करते हैं जो उनके एक और असहज क्षेत्र में प्रवेश करना होता है। बदले यह में उन पीड़ितों के जीवन में एक नए प्रकार का संकट पैदा करता है। हमने यह चित्रित करने की कोशिश की है कि उस स्थानांतरण ने हमारे तीन नायकों को कैसे प्रभावित किया है।

सैफ की दो पत्नियों में से एक मीना की भूमिका निभाने वाली अभिनेत्री प्रियम आर्ची इस संवाददाता सम्मेलन (प्रेस कॉन्फ्रेंस) में इमोन के साथ शामिल हुईं और फिल्म में अभिनय के दौरान अपने अनुभव को साझा किया। उन्होंने बताया कि इस फिल्म की शूटिंग के दौरान, पात्रों द्वारा अनुभव की गई व्यथा और पीड़ा के साथ हमारा पहला सामना हुआ। जिस क्षेत्र में हम शूटिंग कर रहे थे, वहां रेड अलर्ट जारी कर दिया गया था, और कुछ दृश्यों को शूट करने के लिए हमें वहां 10 घंटे से अधिक समय तक भीगना पड़ा और पानी में रहना पड़ा।  

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अपनी भूमिका के बारे में बात करते हुए आर्ची ने कहा मीना एक साहसी महिला है जो जलवायु परिवर्तन की शिकार भी है। वह अपने परिवार के लिए सभी बाधाओं के खिलाफ लड़ रही है और जब मैंने पटकथा (स्क्रिप्ट) पढ़ी तब मैंने उसके लिए सम्मान अनुभव किया। भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) में नियमित रूप से भाग लेने वाले अबू शाहिद एमोन ने इस बार फिर से उत्सव में आने पर अपनी प्रसन्नता साझा की। उन्होंने कहा मैं 2014 से महोत्सव में भाग ले रहा हूं। पिछले आईएफएफआई में, बांग्लादेश प्रमुख आकर्षण (फोकस) का देश था और हमारी निर्माण (प्रोडक्शन) कंपनी द्वारा निर्मित पांच फिल्मों को यहां प्रदर्शित किया गया था।"

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हम अपने पूर्वजों से इस पृथ्वी को विरासत में प्राप्त नहीं करते बल्कि; हम इसे अपने बच्चों से उधार लेते हैं"। फिल्म हमें यह बताती है कि अब कार्रवाई करने का समय है और मानवीय रूप से प्रेरित जलवायु परिवर्तन और इसके विनाशकारी और सार्वभौमिक प्रभावों पर नए सिरे से ध्यान देने की तत्काल आवश्यकता है।

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