सूचना और प्रसारण मंत्रालय

'कलकोक्खो' मानवीय भावनाओं, संकट के दौरान हमारी अत्यधिक उदासीनता और अत्यधिक मानवता का डरावना काल्पनिक चित्रण है: आईएफएफआई 52 भारतीय पैनोरमा फीचर फिल्म की निर्देशक-जोड़ी


बंगाली मानसिक-आध्यात्मिक थ्रिलर 'कलकोक्खो' कोविड-19 महामारी से पैदा हुए खौफ और मानसिक व्यथा को सामने रखती है

'हमारी फिल्म मौजूदा समय के अनुरूप होने के साथ-साथ कालातीत भी है क्योंकि हम सभी महामारी के शिकार हैं': राजदीप पॉल और शर्मिष्ठा मैती

'हाउस ऑफ टाइम यह संदेश देती है कि सिर्फ जीवित रहना ही काफी नहीं है, हमें जीना भी है': निर्देशक शर्मिष्ठा मैती

Posted On: 27 NOV 2021 7:26PM by PIB Delhi

 

'यह सबसे अच्छा समय था, यह सबसे बुरा समय था, यह ज्ञान का युग था और यह मूर्खता का युग था.... यह उम्मीदों का वसंत था, यह निराशा की सर्दी थी।' हां, मानवीय प्रकृति के विरोधी पहलू जो गंभीर संकट के समय खुद को प्रकट करते हैं, जैसा कि चार्ल्स डिकेंस की 'ए टेल ऑफ टू सिटीज' के इन शब्दों से स्पष्ट होता है। बंगाली मानसिक-आध्यात्मिक थ्रिलर कल्कोक्खो का विषय भी यही है। 52वें भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में यह दिलचस्प कहानी फिल्म प्रेमियों को दिखाई गई।

https://static.pib.gov.in/WriteReadData/userfiles/image/7-1VE5G.jpg

कोविड-19 महामारी से पैदा हुए भय और मानसिक उन्माद के बीच, एक बेपरवाह लेकिन कुशल डॉक्टर को एक युवती बंधक बना लेती है। तीन महिलाओं के साथ एक लगभग सुनसान घर में बंदी- एक मानसिक रोगी युवती, एक मानसिक रोगी बूढ़ी औरत और एक असहाय लड़की के साथ- डॉक्टर को पता चलता है कि उसकी समझ से परे ताकतें भी हैं और वह न केवल अंतरिक्ष में बल्कि समय में भी फंस सकता है। यह फिल्म महामारी द्वारा सार्वभौमिक रूप से पैदा हुए भय और अस्थायी ठहराव को प्रदर्शित करती है और बेहद मायूसी और अत्यधिक मानवता का विचित्र संगम होता है।

निर्देशक-जोड़ी राजदीप पॉल और शर्मिष्ठा मैती ने बताया कि कैसे महामारी ने मानव स्वभाव में भावनाओं को उभारा है, या तो बहुत अंधेरा या बहुत उजाला। 'कलकोक्खो के माध्यम से, हम उस अनुभव के विभिन्न रंगों, भय और मानसिक उन्माद की भावनाओं को सामने लाना चाहते थे, जहां हमें लगा कि समय रुक गया है।' निर्देशक कल 26 नवंबर 2021 को गोवा में आईएफएफआई 52 से इतर एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे। निर्देशकों के साथ अभिनेत्री श्रीलेखा मुखर्जी, जो मुख्य पात्रों में से एक हैं और छायाकार राणा प्रताप करफॉर्मा भी मौजूद रहे।

https://www.youtube.com/watch?v=icJdFt79SKc

 

अगर यह कोविड-19 के लिए नहीं होता, तो उन्होंने कभी फिल्म बनाने के बारे में नहीं सोचा होता, राजदीप पॉल ने कहा, 'हमारी एक अन्य फिल्म बनाने की योजना थी। लेकिन जब हमने महसूस किया कि महामारी जल्द ही कम होने वाली नहीं है तो हमने कलकोक्खो बनाने के बारे में सोचा, जिसका अर्थ है हाउस ऑफ टाइम।'

https://static.pib.gov.in/WriteReadData/userfiles/image/7-2GFNS.jpg

 

यह विचार कहां से आया? पॉल ने कहा, 'हमारे चारों ओर अफरातफरी मची हुई थी। लोगों को मौतों के बारे में पता था, डर इतना था कि अगर हम घर से बाहर कदम रखते हैं तो हम मर सकते हैं। ऐसे में हम यह सोचने के लिए प्रेरित हुए कि जीवित रहने का एकमात्र तरीका हमारे पास एक डॉक्टर का होना है। इससे हमारे दिमाग में यह विचार आया।'

पॉल ने कहा कि महामारी से पैदा हुए संकट के अलावा, हमारी फिल्म कई अन्य पहलुओं को भी सामने रखती है। 'मानव इतिहास में जब भी कोई संकट आया है, हम अपनी प्रकृति के दोनों चरम को प्रदर्शित करते हैं जैसे कि अत्यधिक उदासीनता और अत्यधिक मानवता, हमने इस संकट में भी देखा है। एक तरफ हमने देखा कि कैसे अपने ही पड़ोसियों और रिश्तेदारों के प्रति हमारा इतना अविश्वास पैदा हो गया था। दूसरी ओर, हमने देखा कि कैसे लोगों ने उन लोगों के लिए अपना सब कुछ समर्पित कर दिया, जिन्हें वे जानते भी नहीं थे। हमने इस पहलू को सबके सामने लाने की कोशिश की है।'

https://static.pib.gov.in/WriteReadData/userfiles/image/7-3BT6D.jpg

सिर्फ दो हफ्ते चली शूटिंग ज्यादातर एक घर पर हुई। शर्मिष्ठा मैती ने बताया कि फिल्म के लिए दृश्य फिर से तैयार करने में उन्हें वास्तविक चुनौतियों का सामना करना पड़ा। 'हम एक छोटे से घर में थे। हमें ऐसी छोटी सी जगह चाहिए थी, जो हर बार जब आप देखते तो थोड़ा अलग दिखती, ऐसे में कुछ नया करना पड़ता था।'

https://static.pib.gov.in/WriteReadData/userfiles/image/7-4KNMT.jpg

छायाकार राणा प्रताप करफॉर्मा ने कहा, 'शॉट्स की योजना बनाना और उसका विभाजन बेहद महत्वपूर्ण था क्योंकि हम ज्यादातर अंधेरे के तमाम पहलू को समझने की कोशिश कर रहे थे।'

क्या फिल्म में दर्शकों के लिए कोई संदेश है? मैती ने जवाब दिया: 'हमारी फिल्म एक समयावधि की होने के साथ-साथ कालातीत भी है क्योंकि हम सभी महामारी के शिकार हैं। कलकोक्खो के माध्यम से हम यह संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि केवल जीवित रहना ही काफी नहीं है, हमें जीना भी है।'

https://static.pib.gov.in/WriteReadData/userfiles/image/7-517SF.jpg

9 अक्टूबर 2021 को 26वें बुसान अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में फिल्म का वर्ल्ड प्रीमियर हुआ था।

निर्देशक राजदीप पॉल और शर्मिष्ठा मैती दोनों राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार विजेता हैं। वे वृत्तचित्र और लघु फिल्म निर्माता और एसआरएफटीआई कोलकाता के पूर्व छात्र हैं। कलकोक्खो उनकी पहली फीचर फिल्म है।

निर्माता अंजन बोस एक फिल्म निर्माता और औरोरा फिल्म कॉरपोरेशन के एमडी हैं। उन्हें सत्यजीत रे, ऋत्विक घटक और अन्य की फिल्मों के निर्माण और वितरण के लिए जाना जाता है। निर्देशक के रूप में उन्होंने तीन राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीते हैं।

****

एमजी/एएम/एएस

 



(Release ID: 1775769) Visitor Counter : 256


Read this release in: Urdu , English