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फिल्म "निराय थाथकलुल्ला मरम" ने आईएफएफआई 52में आए प्रतिनिधियों के सामने करुणा पर मार्मिक छवि पेश की जो धीरे-धीरे समाज से गायब हो रही है


"हम इंसान सहानुभूति,दया भाव और देखभाल करने की अपनी क्षमता खो रहे हैं"- जयराज, "ट्री फुल ऑफ पैरट्स" के निर्देशक

"नारायणन जैसे लोग प्रकृति और अपने आस-पास की दुनिया को हमसे बेहतर समझते हैं": निर्देशक जयराज, नेत्रहीन नायक पर

"यह मेरे जीवन का सबसे मूल्यवान दिन है, क्योंकि मैं आईएफएफआई जैसे बड़े फिल्म समारोह में भाग ले सका हूं": नारायणन चेरुपुझा

सिनेमा के विकास के लिए ओटीटी और थिएटर सह-अस्तित्व में रह सकते हैं: जयराज

 

एक युवा लड़का एक दृष्टिबाधित बूढ़े व्यक्ति, जो रास्ता भटक चुके हैं और उनकी याद्दाश्त भी लगभग चली गई है, के प्रति नि:स्वार्थ देखभाल और उनकी पूरी शिद्दत से चिंता करता दिखाई देता है। भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव के 52वें संस्करण में फिल्म प्रेमियों को इस प्राचीन प्रेम की बेदाग सुंदरता में सराबोर होने का दिल को छू लेने वाला अवसर मिला,जिसका श्रेय प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक जयराज की मलयालम फिल्म निराय थाथकलुल्ला मरम को जाता है। भारतीय पैनोरमा फीचर फिल्म श्रेणी में इस फिल्म को आईएफएफआई 52 के प्रतिनिधियों को दिखाया गया।

मानव अस्तित्व के सामान्य रोजमर्रा के पहलुओं में भ्रामक रूप से छिपी असाधारण सुंदरता को प्रकट करने की क्षमता हमेशा से निर्देशक जयराज की विशेषता और पहचान रही है। कल25 नवंबर,2021 को फिल्म समारोह से इतर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए प्रसिद्ध निर्देशक जयराज ने बताया कि फिल्म असल में दिखाना क्या चाहती है।

निराय थाथकलुल्ला मरम करुणा जैसी भावनाओं पर एक मार्मिक प्रदर्शन है,जो धीरे-धीरे हमारे समाज से गायब हो रहा है। यह फिल्म प्रेम,आशा,निराशा,विचार और देखभाल की विभिन्न मानवीय उद्गारों के सहारे एक चलती-फिरती यात्रा है।"

विशेष रूप से, ‘ट्री फुल ऑफ पैरट्स प्रतिष्ठित आईसीएफटी यूनेस्को गांधी पुरस्कार के लिए प्रतिस्पर्धा कर रही है। यह फिल्म आईएफएफआई में आई है जो महात्मा गांधी के शांति,सहिष्णुता और अहिंसा के आदर्शों को सबसे अच्छी तरह से दर्शाती है।

तो कैसे शुरू हुई ये दिल दहला देने वाली यात्रा?आठ साल का पूंजन रास्ता भटक चुके एक अंधे व्यक्ति को नाव के घाट पर अकेला बैठा देखता है। निर्देशक जयराज बताते हैं: “लड़का इस बूढ़े आदमी को नाव के घाट पर बैठा देखता है, जो घर वापस जाने के लिए रास्ता भटक चुका है। अपने नाम के अलावा,उस बूढ़े आदमी को सिर्फ इतना याद है कि उनके घर के सामने एक पेड़ है जहां बहुत सारे तोते रहते हैं। किसी ने उनकी मदद करने की नहीं सोची,यहां तक ​​कि पुलिस ने भी उनकी चिंता नहीं की।”

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लेकिन, पूंजन ने उनकी मदद करने का फैसला किया और रास्ते में परिचितों और अजनबियों से रास्ता पूछते हुए अंधे व्यक्ति के घर की ओर जाने वाला रास्ता तलाशने की कोशिश की। निर्देशक जयराज ने आईएफएफआई के प्रतिनिधियों को लड़के की करुणामयी भावना के बारे में बताया। उन्होंने कहा "हम इंसान सहानुभूति,दया भाव दिखाने और देखभाल करने की अपनी क्षमता खो रहे हैं। इधर, यह लड़का उस बूढ़े आदमी पर दया करता है जिसकी मदद के लिए कोई तैयार नहीं था। इस 8 साल के लड़के और उस दृष्टि दिव्यांग बूढ़े व्यक्ति के साथ उसने जो विशेष रिश्ता बनाया, उसके जरिए हम करुणा की भावना दिखा रहे हैं।”

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लड़के का चरित्र चित्रण करते हुएनिर्देशक जयराज ने कहा: “यह लड़का जो खुद अपने पूरे परिवार के जीवन यापन का बोझ उठाता है,इस बूढ़े आदमी की मदद करने का फैसला करता है। लड़के ने अपने पूरे परिवार की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठा रखी है। वह उनकी देखभाल करने के लिए जरूरत से ज्यादा काम करता है और ऐसे में कई बार स्कूल भी नहीं जाता है। वह उस तरह का बच्चा है,जो अपनी पूरी ताकत से अपने परिवार की रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध है।”

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गैर-अभिनेताओं के साथ काम करने के लिए प्रसिद्ध इस अपरंपरागत फिल्म निर्माता ने मास्टर आदित्यन, जिसने पूंजन की भूमिका निभाई और नारायणन चेरुपुझा, जिसने बूढ़े व्यक्ति की भूमिका निभाई है, के साथ काम करने का अपना अनोखा अनुभव साझा किया। उन्होंने कहा,“मैंने उन्हें कभी नियंत्रित या निर्देशित नहीं किया। बस संवाद दिया और उन्होंने अपना काम कर दिया।”

निर्देशक जयराज ने फिल्म प्रेमियों को बताया कि कैसे चेरुपुझा के साथ काम करने से उन्हें एक उज्ज्वल आंतरिक दृष्टि का उपहार मिला। उन्होंने कहा, “नारायणन एक दृष्टि दिव्यांग व्यक्ति हैं। वह एक शिक्षक हैं जिन्होंने सर्वश्रेष्ठ शिक्षक के लिए राष्ट्रपति पदक जीता है। वह केरल के कन्नूर में दृष्टिबाधित लोगों के लिए एक स्कूल चलाते हैं। फिल्म बनाने के दौरान,मैंने महसूस किया कि वह उन चीजों को देखने में सक्षम है जो दृष्टि से संपन्न होने के बावजूद हमें दिखाई नहीं देती हैं। उन्होंने मुझे प्रबुद्ध किया है और मेरी दृष्टि को और अधिक उज्ज्वल किया है।"

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निर्देशक जयराज ने यह बताने के लिए एक वाकया सुनाया कि कैसे चेरुपुझा ने उन्हें इस तरह का अहसास  कराया। “नारायणन जैसे लोग प्रकृति और अपने आस-पास की दुनिया को हमसे बेहतर समझते हैं। एक दिन शूटिंग के दौरान नारायण ने मुझसे कहा कि वह एक कमल के पत्ते को छूना चाहते हैं। उस अद्भूत पल ने मुझे उस मूल्य का एहसास कराया,जो उसके जैसे लोग उन चीजों में पाते हैं जो हमारे लिए कोई मायने नहीं रखते हैं।” जयराज ने कहा कि वह उनके लिए एक ज्ञानवर्धक क्षण था,यह एक अनूठा रहस्योद्घाटन था जिसने उनकी कई धारणाओं और दृष्टिकोणों को बदल दिया।

निर्देशक जयराज, निर्माता वीनू आर नाथ और कैमरामैन शिनू टी चाको के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस में शामिल हुए नारायणन चेरुपुझा ने आईएफएफआई में भाग लेने पर अपनी अपार खुशी साझा की। उन्होंने कहा "यह मेरे जीवन का सबसे बहुमूल्य दिन है, क्योंकि मैं आईएफएफआई जैसे बड़े फिल्म समारोह में भाग ले सका। मुझे अपने जीवन में ऐसे अवसर की उम्मीद नहीं थी। जब जयराज ने मुझे फिल्म का हिस्सा बनने के लिए आमंत्रित किया तो मैं आश्वस्त नहीं था। लेकिन वह पूरी यात्रा में मेरे लिए मेरे साथ मौजूद थे।”

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थिएटर पर ओटीटी प्लेटफॉर्म के प्रभाव के बारे में पूछे जाने पर फिल्म निर्देशक जयराज, जो एक ओटीटी प्लेटफॉर्म के मालिक भी हैं,ने कहा कि सिनेमा के विकास के लिएदोनों एक साथ रह सकते हैं। उन्होंने कहा, “कोविड ​​​​-19 ने ओटीटी में एक बड़ी छलांग का मार्ग प्रशस्त किया। दरअसल, ओटीटी प्लेटफॉर्म भी थिएटर की तरह है। कुछ फिल्मों के लिए,ओटीटी अपनी पहुंच के कारण सबसे अच्छा मंच है। हमें और फिल्मों की जरूरत है,हम एक्सपोजर चाहते हैं और उसके लिए ओटीटी अच्छा है।”

प्रकृति ने वास्तविकता को दिखाने और भावनाओं को जीवंत करके कहानी बताने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। “हमने इस फिल्म के माध्यम से कुछ भी बताने की कोशिश नहीं की है। उस यात्रा में प्रकृति ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसका एक ऐसा स्वर है,जहां यह मानव अस्तित्व के लिए आवश्यक विभिन्न भावनाओं को छूता है।"

न केवल एक बच्चे का पिता समान एक इंसान के प्रति प्यार और करुणा,बल्कि केरल के बेदाग स्थिर जल की निर्मल सुंदरता में खुद को डूबोने के लिएफिल्म निराय थाथकलुल्ला मरम देखें।

जयराज (उर्फ जयराज राजशेखरन नायर) एक पुरस्कार विजेता निर्देशक,पटकथा लेखक और निर्माता हैं जिन्हें 'जॉनी वॉकर' (1992), 'थिलक्कम' (2003) जैसी फिल्मों और महत्वाकांक्षी 'नवरस' श्रृंखला के लिए जाना जाता है।

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