विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय

बैक्टीरिया विकसित होने में कमी लाने वाली एवं नैनो-संरचित स्वयं-स्वच्छ हो सकने वाली एल्यूमीनियम सतह जैवचिकित्सकीय  (बायोमेडिकल) और अंतरिक्ष से जुड़े (एयरोस्पेस) अनुप्रयोगों के लिए उपयोगी हो सकती है

Posted On: 28 JUL 2021 7:19PM by PIB Delhi

        शोधकर्ताओं के एक समूह ने हाल ही में एक सरल और पर्यावरण के अनुकूल निर्माण प्रविधि  का उपयोग करके एक नैनो-संरचित स्वयम स्वच्छ हो सकने वाली  टिकाऊ एल्यूमीनियम सतह विकसित की है। इस सतह पर  जैव चिकित्सकीय (बायोमेडिकल) से लेकर अन्तरिक्ष सम्बन्धी (एयरोस्पेस) और मोटरवाहन (ऑटोमोबाइल) से लेकर घरेलू उपकरणों तक के कई अनुप्रयोग हो सकते हैं, और इस प्राविधि को  औद्योगिक स्तर के उत्पादन के लिए आसानी से उपयोग में लाया जा सकता  है।

 

        एल्युमिनियम एक हल्की धातु है, जिसके कई औद्योगिक अनुप्रयोग हैं क्योंकि इसे आसानी से ढालकर  मशीनीकृत करके एक निश्चित  आकार दिया जा सकता है। हालांकि इसकी सतह पर  वायुमंडल में विद्यमान प्रदूषक  पदार्थों और आर्द्रता का  संचय सम्भव होने के कारण इसका उपयोग  और स्थिरता काफी सीमित हो जाती  है। इसके अलावा, एल्युमीनियम का निक्षालन (लीचिंग) भी  पर्यावरण और स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों का एक  कारण बनता है।

 

        इन समस्याओं को दूर करने के लिए शिव नादर विश्वविद्यालय, दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के शोधकर्ता डॉ हरप्रीत सिंह ग्रेवाल, डॉ हरप्रीत सिंह अरोड़ा और श्री गोपीनाथ पेरुमल और वहीं  के भौतिकी विभाग से डॉ सजल कुमार घोष और सुश्री प्रिया मंडल ने संयुक्त रूप से एक नैनो-संरचित एल्यूमीनियम सतह को  विकसित किया है जो जंग और लीचिंग प्रभाव को सीमित करने के साथ ही  अत्यधिक यांत्रिक, रासायनिक और तापीय (थर्मल) स्थायित्व भी  प्रदर्शित करती  है। भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग की विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी अवसंरचना के विकास हेतु कोष ('फंड फॉर इम्प्रूवमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी इंफ्रास्ट्रक्चर' -एफआईएसटी) परियोजना के माध्यम से प्राप्त एक रमन स्पेक्ट्रोमीटर का उपयोग इस कार्य को सम्पादित करने के लिए किया गया है। इसके परिणामों को स्वच्छ उत्पादन की शोध पत्रिका (जर्नल ऑफ़ क्लीनर प्रोडक्शन) में प्रकाशित  किया गया है।

 

        शोधकर्ताओं ने एल्यूमीनियम की सतह पर एक परत जैसी नैनो-संरचना विकसित की है। इसे किसी भी प्रकार के रासायनिक अभिकर्मकों और विषाक्त  सॉल्वैंट्स का उपयोग किए बिना, एक घंटे के लिए 80 डिग्री सेल्सियस  पर स्थिर किए  गए तापमान के साथ पानी में एल्यूमीनियम के नमूनों  को गर्म करके प्राप्त किया जाता है। सहज और पर्यावरण के अनुकूल इस प्रविधि  से प्राप्त सतह ने अपने ऊपर एक पूर्ण गीलेपन वाली  प्रकृति अर्थात किसी एक ठोस सतह पर तरल पदार्थों  के फैलने की क्षमता को दर्शाया । ऐसी सतह  पर कम सतह ऊर्जा वाली हाइड्रोकार्बन सामग्री का लेप इसे एक ऐसी सतह में बदल देता है जिस पर  पानी की एक छोटी बूंद भी टिक नहीं पाती और  तुरंत सतह से लुढ़क जाती है। यह गुण इसे स्वयं-सस्वच्छता अनुप्रयोगों के लिए उपयोगी बनाता है।

 

        इस बारे में डॉ. ग्रेवाल ने कहा कि "यह स्वयम-स्वच्छता  सतह  -80 डिग्री सेल्सियस  से 350 डिग्री सेल्सियस  तक के तापमान के  एक विस्तृत आयाम में भी  बनी रहती   है जिससे  इसकी संक्षारण प्रतिरोध क्षमता भी  में सुधार आता  है। वास्तव में यह प्राविधि अन्य प्रसंस्करण मार्गों द्वारा विकसित की जा रही  मौजूदा सतहों की तुलना में सतह पर  संक्षारण (जंग की) दर में 40 गुना कमी दिखाता है”

 

        डॉ. घोष के अनुसार कि हाइड्रोकार्बन के साथ लेपित किए हुए उनके नैनोस्ट्रक्चर अपनी आकारिकी (मॉर्फोलॉजी) के कारण इस सतह पर  बैक्टीरिया के चिपक जाने और उनके विकसित होने  को बहुत सीमा  तक कम करने में सक्षम हैं I इसलिए दंत प्रत्यारोपण और हृदय चिकित्सा में सहायक उपकरणों सहित स्वास्थ्य देखभाल और चिकित्सा उपकरणों में इसका उपयोग किया जा सकता है।

 

चित्र: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी अवसंरचना के विकास हेतु कोष ('फंड फॉर इम्प्रूवमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी इंफ्रास्ट्रक्चर'-एफआईएसटी) परियोजना के माध्यम से प्राप्त किया गया रमन स्पेक्ट्रोमीटर

 

 

 

चित्र: विकसित सतह की प्रविधि  का आरेखीय निरूपण

 

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