रक्षा मंत्रालय

रक्षा मंत्रालय ने भारतीय नौसेना के लिए स्वदेशी रूप से विकसित 10 लिंक्स यू2 फायर नियंत्रण प्रणाली की आपूर्ति के लिए बीईएल के साथ अनुबंध पर हस्ताक्षर किये

Posted On: 31 DEC 2020 8:36PM by PIB Delhi

रक्षा मंत्रालय (एमओडी) ने विक्रय (भारतीय) श्रेणी के तहत 1,355 करोड़ रुपये की लागत से भारतीय नौसेना के प्रमुख युद्धपोतों के लिए 10 लिंक्स यू2 फायर नियंत्रण प्रणाली की खरीद हेतु भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) के साथ आज नई दिल्ली में एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किए। लिंक्स प्रणाली को स्वदेश में डिजाइन और विकसित किया गया है और यह प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के ‘आत्म-निर्भर’ भारत के दृष्टिकोण को बढ़ावा देगी।

लिंक्स यू2 जीएफसीएस एक नावल गन फायर नियंत्रण प्रणाली है, जिसे समुद्री हलचल के बीच निगरानी करने और लक्ष्यों को निशाना बनाने के लिए विकसित किया गया है। यह सटीक रूप से हवा/जमीन के लक्ष्यों पर नज़र रखने के साथ-साथ हथियार के लक्ष्य का अनुमान लगाने के लिए आवश्यक लक्ष्य डेटा बनाने में सक्षम है। इसे जहाज पर उपलब्ध मध्यम/छोटी रेंज की बंदूकों जैसे रूसी एके176, ए190, एके630 और एसआरजीएम के साथ संचालित किया जा सकता है।

गन फायर नियंत्रण प्रणाली को शानदार तरीके से डिजाइन दिया गया है और इसके माध्यम से सरल और लचीले तरीके से विभिन्न कार्यों को अंजाम दिया जा सकता है। यह प्रणाली भारतीय नौसेना के लिए विकसित और वितरित की गई है और पिछले दो दशकों से सेवा में है। इसके साथ-साथ यह विभिन्न श्रेणियों के विध्वंसकों, फ्रिगेट, मिसाइल बोट, कोरवेट, आदि भारतीय नौसेना के जहाजों की सामरिक आवश्यकताओं को संतोषजनक रूप से पूरा कर रही है।

इस प्रणाली को लगातार उन्नत किया गया है और प्रौद्योगिकी उन्नयन के साथ-साथ स्वदेशीकरण पर प्रमुख ध्यान रहा है। इस प्रणाली में उपयुक्त सामाग्री में स्वदेशी तकनीक में लगातार वृद्धि करते हुए विदेशी ओईएम पर पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही निर्भरता को खत्म किया जा रहा है। इस प्रणाली को एनओपीवी, तलवार और टीजी श्रेणी के जहाजों पर लगाया जाएगा। प्रणाली में शामिल निगरानी रडार, सर्वो और हथियार नियंत्रण मॉड्यूल सभी को पूरी तरह से बीईएल द्वारा डिजाइन और विकसित किया गया है। स्वदेशी तकनीक से विकसित यह प्रणाली अधिकतम समय तक कार्य करने के साथ-साथ इसके जीवनपर्यन्त उत्कृष्ट उत्पाद की गारंटी को सुनिश्चित करेगी।

अनुबंध में प्रस्तावित प्रणाली चौथी पीढ़ी की है और पूरी तरह से स्वदेश में निर्मित प्रणाली है, जिसे आत्म-निर्भर भारत की सच्ची भावना के साथ विकसित किया गया है। इन्हें अगले पांच वर्षों में बीईएल, बेंगलुरु द्वारा प्रदान किया जाएगा।

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