शिक्षा मंत्रालय

शिक्षक पर्व पहल के अंतर्गत "भारतीय भाषाओं का संवर्धन" विषय पर वेबिनार

Posted On: 17 SEP 2020 7:15PM by PIB Delhi

शिक्षा पर्व पहल के अंतर्गत केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान (सीआईआईएल) ने "भारतीय भाषाओं का संवर्धन" विषय पर 16 सितंबर को एक वेबिनार का आयोजन किया। शिक्षा मंत्रालय ने शिक्षा पर्व के अंतर्गत नई शिक्षा नीति (एनईपी) के केंद्रीय बिंदुओं को विशिष्ट रूप से दर्शाने के लिए वेबिनारों की एक श्रृंखला का आयोजन किया है।

      भाषा शिक्षा नीति का एक महत्वपूर्ण तत्व है और केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान (सीआईआईएल) सभी भारतीय भाषाओं के संवर्धन के लिए कार्य करता है। मंत्रालय के कार्यक्रम का अंग होने के चलते सीआईआईएल ने एनईपी 2020 के संदर्भ में भारतीय भाषाओं के विकास पर केंद्रित इस वेबिनार का आयोजन किया था। इस वेबिनार का उद्देश्य एनईपी के अंतर्गत भाषा के महत्व को विशिष्ट रूप से दर्शाना था।

    सीआईआईएल के निदेशक प्रोफेसर डी जी राव की अध्यक्षता में हुए इस वेबिनार में चार प्रसिद्ध विद्वानों ने एनईपी 2020 के विषय में अंतरदृष्टि दी। विशेषज्ञ वक्ताओं में प्रोफेसर उदय नारायण सिंह और प्रोफेसर अवधेश कुमार मिश्र (दोनों सीआईआईएल के पूर्व निदेशक), पद्मश्री प्रोफेसर अन्विता अब्बी और प्रख्यात द्रविड भाषाविद् प्रोफेसर उमामहेश्वर राव शामिल थे और इस वेबिनार के समन्वयक डॉक्टर नारायण कुमार चौधरी थे।

 

उनकी चर्चा के मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं:

1     एनईपी 2020 में भारतीय भाषाओं के संवर्धन के अवसर

2     भाषाई पारिस्थितिकी और देसी संस्कृति का संरक्षण

3     मातृभाषाओं को बढ़ावा देना और पठन पाठन की भाषा बनाना

4     भारतीय भाषाओं के लिए तकनीक का विकास

     प्रोफेसर यू एन सिंह ने इस बिंदु पर जोर दिया कि बहुभाषावाद  भारत के लिए बोझ नहीं रहा है और यहां हर एक प्रमुख भाषा किसी दूसरी भाषा के लिए संपर्क का कार्य करती है। उन्होंने इस बात को भी रेखांकित किया कि सभी भाषाओं के विकास के लिए एक समान रणनीति नहीं हो सकती क्योंकि एक स्थान पर जहां घर पर बोली जाने वाली भाषा काम करेगी वहीं दूसरी जगह मातृभाषा और तीसरी जगह स्थानीय भाषा। उन्होंने कहा कि इस दिशा में किए जाने वाले प्रयासों और पहलों की प्रकृति समावेशी होने के साथ-साथ ऐसी होनी चाहिए जिसमें समुदाय की भागीदारी हो। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि संसाधनों का उपयोग मातृभाषा में शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए पाठ्य पुस्तकें तैयार करने में किया जाना चाहिए और कहा कि इसमें भाषाविद् बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। उन्होंने केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान के इस दिशा में किए गए प्रयासों की सराहना की और बताया कि संस्थान और उसकी एनटीएम और एनटीएस जैसी योजनाओं और क्षेत्रीय भाषा केंद्रों को नई शिक्षा नीति के उद्देश्‍यों को पूरा करने के लिए क्या क्या-करना चाहिए।

   प्रोफेसर अवधेश कुमार मिश्र ने इस बात को रेखांकित किया कि वास्तव में हर भाषा मातृभाषा होती है हालांकि ऐसा हो सकता है कि हर मातृभाषा को भाषा का दर्जा प्राप्त नहीं हो। हो सकता है कि किसी भाषा के बहुत से स्वरूप हों लेकिन उसके किसी एक स्वरूप को ही भाषा का दर्जा मिले। उन्होंने भाषाओं और मातृभाषा की चर्चा विशेष तौर पर स्कूली शिक्षा के संदर्भ में की। उन्होंने ऐसे शिक्षक तैयार करने की आवश्यकता बताई जो मातृभाषा में शिक्षा दे सकें और इस बात पर जोर दिया कि शिक्षा मंत्रालय के अंतर्गत कार्य करने वाले भाषा संस्थानों को एनईपी 2020 के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए आपसी समन्वय से कार्य करना चाहिए। सर्वेक्षण के आंकड़ों के आधार पर प्रोफेसर मिश्र ने स्कूलों के वर्तमान परिदृश्य का ख़ाका खींचा और स्कूलों में लागू त्रिभाषा फार्मूले को जारी रखने का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि एनईपी में अभी तक पाठ्यक्रम से बाहर रही मातृभाषा को उसमें शामिल करने की गुंजाइश नज़र आती है। उन्होंने जोर दिया कि विशेष तौर से पठन-पाठन के संसाधनों का विकास करने के उद्देश्य से भाषा संस्थानों और उच्च शिक्षा संस्थानों को पूर्ण समन्वय कायम करना चाहिए।

   प्रोफेसर अन्विता अब्बी ने कहा कि हर भाषा अपने आप मे अनूठी है और वह अपने साथ एक समुदाय का प्रत्यक्ष बोध और ज्ञान समेटे रहती है और इस तरह की बहुत सारी भाषाएं भारत में सदियों से बची हुई हैं। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के हवाले से कहा कि हर पंद्रह दिन पर एक भाषा मर जाती है और किसी एक भाषा या मातृभाषा को खोने का अर्थ है उसके ज्ञान भंडार से और उस भाषा के साथ आने वाले अनूठे तौर तरीकों से वंचित हो जाना। उन्होंने सुझाव दिया कि भारतीय भाषाओं का एक मूल व्याकरण तैयार किया जा सकता है और भारतीय लिपियों के एक राष्ट्रीय आयोग की स्थापना की जा सकती है। उन्होंने इस बात को भी रेखांकित किया कि भाषाओं विशेष तौर से मातृभाषा के पठन-पाठन को शुरूआती स्तर से ही प्रारंभ किए जाने की जरूरत है क्योंकि वह पारिस्थितिकी या देसी ज्ञान को सिखाने समझाने में आसान है। हिंदी के संदर्भ में, उन्होंने कहा कि एनईपी में उसे किसी पर थोपा नहीं गया है बल्कि उसके पठन-पाठन का सुझाव दिया गया है। हिंदी की स्वीकार्यता का अलग ही स्तर है। यह देशभर में संपर्क को गति देती है। हिंदी के साहित्यिक रूप का बेशक नहीं लेकिन उसके किसी न किसी रूप का पठन पाठन कराया जाना चाहिए। अंग्रेजी के संदर्भ में उन्होंने कहा कि अंग्रेजी अब भारत में विदेशी भाषा नहीं रह गई है। उन्होंने सुझाव दिया कि एनईपी 2020 के लागू किए जाने के बाद बनने वाली नई शिक्षा व्यवस्था को सुचारू बनाने के लिए परस्पर बहुभाषाई कोश तैयार किए जा सकते हैं। 

    प्रोफेसर जी यू राव ने भारत ने भाषा संबंधी तकनीकी के समूचे परिदृश्य की चर्चा की । उन्होंने भारतीय भाषाओं की वैब उपस्थिति में क्रमशः आ रही वृद्धि को दर्शाया और अनुमान व्यक्त किया कि जिन्हें हम छोटी-छोटी भाषाएं मानते हैं वे अपने से बड़ी मानी जाने वाली भाषाओं से आगे निकल जाएंगी। उन्होंने भारत के विभिन्न संस्थानों और विश्वविद्यालयों द्वारा भारतीय भाषाओं के संबंध में किए गए भाषा शास्त्र और शिल्प संबंधी कार्यों का वर्णन किया और इन क्षेत्रों में अधिक भागीदारी और अधिक निवेश किए जाने को प्रोत्साहित किया। उन्होंने भारतीय भाषाओं के एक डिजिटल कौरपोरा के विकास के प्रयास किए जाने की चर्चा की और भारतीय भाषाओं में मोबाइल तकनीक विकसित करने की जरूरत बताई। उन्होंने भारतीय भाषाओं में और उनके लिए तकनीक विकसित करने की जरूरत पर भी ज़ोर दिया।

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