आर्थिक मामलों की मंत्रिमण्‍डलीय समिति (सीसीईए)

कैबिनेट ने क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के पुनर्पूंजीकरण को मंजूरी दी  


क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के ‘पूंजी-जोखिम भारित परिसंपत्ति अनुपात’ को बेहतर करना मुख्‍य उद्देश्‍य

Posted On: 25 MAR 2020 3:44PM by PIB Delhi

    प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों पर कैबिनेट समिति (सीसीईए) ने 2019-20 के बाद एक और वर्ष के लिए यानी 2020-21 तक आरआरबी को न्यूनतम नियामकीय पूंजी प्रदान कर क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (आरआरबी) के पुनर्पूंजीकरण की प्रक्रिया को जारी रखने को अपनी स्वीकृति दे दी है। इसके तहत उन आरआरबी को न्यूनतम नियामकीय पूंजी दी जाएगी जो 9% के पूंजी-जोखिम भारित परिसंपत्ति अनुपात (सीआरएआर) को बनाए रखने में असमर्थ हैं, जैसा कि भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा निर्दिष्‍ट नियामकीय मानदंडों में उल्‍लेख किया गया है। 

    सीसीईए ने आरआरबी के पुनर्पूंजीकरण की योजना के लिए केंद्र सरकार के हिस्से के रूप में 670 करोड़ रुपये (यानी 1340 करोड़ रुपये के कुल पुनर्पूंजीकरण सहयोग का 50%) का उपयोग करने को भी मंजूरी दे दी है। हालांकि, इसमें यह शर्त होगी कि प्रायोजक बैंकों द्वारा समानुपातिक हिस्सेदारी को जारी करने पर ही केंद्र सरकार का हिस्सा जारी किया जाएगा।

लाभ

बेहतर सीआरएआर वाले वित्‍तीय दृष्टि से सुदृढ़ क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक दरअसल ग्रामीण क्षेत्रों में ऋण संबंधी जरूरतों को पूरा करने में सक्षम होंगे।

आरबीआई के दिशा-निर्देशों के अनुसार, आरआरबी को अपने कुल ऋण का 75% ‘पीएसएल (प्राथमिकता वाले क्षेत्रों को ऋण देना) के तहत प्रदान करना पड़ता है। आरआरबी  मुख्यत: छोटे एवं सीमांत किसानों, सूक्ष्म व लघु उद्यमों, ग्रामीण कारीगरों और समाज के कमजोर वर्गों पर फोकस करते हुए कृषि क्षेत्र और ग्रामीण क्षेत्रों की कर्ज तथा बैंकिंग संबंधी आवश्यकताओं को पूरा कर रहे हैं। इसके अलावा, आरआरबी ग्रामीण क्षेत्रों के सूक्ष्म/लघु उद्यमों और छोटे उद्यमियों को भी ऋण देते हैं। सीआरएआर बढ़ाने के लिए पुनर्पूंजीकरण या नई पूंजी संबंधी सहयोग मिलने पर आरआरबी अपने पीएसएल लक्ष्य के तहत उधारकर्ताओं की इन श्रेणियों को निरंतर ऋण देने में समर्थ साबित होंगे, अत: वे ग्रामीण आजीविकाओं के लिए निरंतर सहयोग देना जारी रखेंगे।

पृष्‍ठभूमि:

आरआरबी के पूंजी-जोखिम भारित परिसंपत्ति अनुपात (सीआरएआर) के लिए प्रकटीकरण मानदंडों को मार्च 2008 से लागू करने संबंधी आरबीआई के निर्णय को ध्‍यान में रखते हुए डॉ. के.सी. चक्रबर्ती की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया था।

समिति की सिफारिशों के आधार परआरआरबी के पुनर्पूंजीकरण की योजना को कैबिनेट ने 10 फरवरी, 2011 को आयोजित अपनी बैठक में मंजूरी दी थी, ताकि विशेषकर पूर्वोत्‍तर क्षेत्र और पूर्वी क्षेत्र में कमजोर आरआरबी की आवश्यकता को पूरा करने के लिए आकस्मिक निधि के रूप में 700 करोड़ रुपये की अतिरिक्त राशि के साथ 40 आरआरबी को 2,200 करोड़ रुपये की पुनर्पूंजीकरण सहायता प्रदान की जा सके। अत: हर साल 31 मार्च को आरआरबी के सीआरएआर की जो स्थिति होती है उसके आधार पर ही राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) उन आरआरबी की पहचान करता है, जिन्हें 9% के अनिवार्य सीआरएआर को बनाए रखने के लिए पुनर्पूंजीकरण संबंधी सहायता की आवश्यकता होती है।

वर्ष 2011 के बाद  2,900 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता के साथ आरआरबी के पुनर्पूंजीकरण की योजना को चरणबद्ध ढंग से वर्ष 2019-20 तक बढ़ाया गया, जिसमें भारत सरकार की 1,450 करोड़ रुपये की 50% हिस्सेदारी शामिल थी।  पुनर्पूंजीकरण के लिए भारत सरकार के हिस्से के रूप में स्वीकृत 1,450 करोड़ रुपये में से 1,395.64 करोड़ रुपये की राशि वर्ष 2019-20 में अब तक आरआरबी को जारी की जा चुकी है।

इस अवधि के दौरान सरकार ने आरआरबी को आर्थिक दृष्टि से व्यवहार्य या लाभप्रद और टिकाऊ संस्थान बनाने के लिए भी कई पहल की हैं। आरआरबी को अपने उपरिव्यय को कम करने में सक्षम बनाने, प्रौद्योगिकी के उपयोग को बढ़ाने, पूंजी आधार एवं परिचालन क्षेत्र का विस्‍तार करने और उनकी ऋण राशि में वृद्धि करने के लिए सरकार ने तीन चरणों में आरआरबी के ढांचागत सुदृढ़ीकरण या संयोजन की शुरुआत की है। इसके परिणामस्‍वरूप आरआरबी की संख्या वर्ष 2005 के 196 से घटकर अब केवल 45 रह गई है।

 

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एएम/आरआरएस- 6415


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