उप राष्ट्रपति सचिवालय

उपराष्‍ट्रपति ने गैर-संचारी रोगों में वृद्धि पर जताई चिंता



जीवनशैली संबंधी बीमारियों के खतरों के बारे में लोगों को बताने का डॉक्‍टरों से आग्रह

बच्चों को शारीरिक रूप से सक्रिय बनाने के लिए उन्हें खेलों में शामिल करें: उपराष्‍ट्रपति

चिकित्‍सकों को तीन वर्ष तक ग्रामीण क्षेत्रों में सेवाएं देने के लिए कहें

नेशनल इंटरवेंशनल काउंसिल की वार्षिक बैठक को संबोधित किया

Posted On: 05 APR 2019 5:17PM by PIB Delhi

भारत के उपराष्‍ट्रपति श्री एम वेंकैया नायडू ने गैर-संचारी रोगों वृद्धि को 'काफी चिंताजनक प्रवृत्ति' करार देते हुए चिकित्‍सा बिरादरी से आह्वान किया कि वे शिथिल जीवन शैली के खतरों के बारे में लोगों को आगाह करें।

उपराष्‍ट्रपति ने उत्‍तर प्रदेश के लखनऊ में आज संजय गांधी पोस्टग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एसजीपीजीआईएमएस) में कार्डियोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया की राष्ट्रीय इंटरवेंशनल काउंसिल (एनआईसी) की वार्षिक बैठक को संबोधित किया। उन्‍होंने इंडिया काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) की 2017 की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि गैर-संचारी रोगों का बोझ 1990 से 2016 के बीच 30 प्रतिशत से बढ़कर 55 प्रतिशत हो गया जबकि समान अवधि में संचारी रोगों का बोझ 61 प्रतिशत से घटकर 33 प्रतिशत रह गया।

उपराष्‍ट्रपति ने तनाव के उच्च स्तर, मधुमेह, रक्तचाप, धूम्रपान, शराब का अत्यधिक सेवन, व्यायाम की कमी और पर्याप्‍त नींद में कमी के कारण हृदय रोगों में वृद्धि हो रही है। उन्‍होंने कहा कि कम उम्र में होने वाले दिल के दौरे की रोकथाम के लिए जीवन शैली में बदलाव लाने की आवश्‍यकता है।

श्री नायडू ने कहा कि निस्‍संदेह यह साबित हो चुका है कि सप्ताह में पांच दिन नियमित रूप से मध्यम तीव्रता वाले एरोबिक व्यायाम जैसे तेज चलना, साइकिल चलाना, जॉगिंग और तैराकी करने से हृदय रोग की संभावना को घटाने में मदद मिलेगी।

यह देखते हुए कि भारत ऐतिहासिक तौर पर अब तक का सबसे बड़ा जनसांख्यिकीय लाभांश हासिल करने के लिए तैयार है, उन्होंने कहा कि समावेशी एवं सतत विकास के अपने सपने को साकार करने और दुनिया में नेतृत्व के लिए अपने सही स्थान हासिल करने के लिए स्वस्थ और चुस्त युवाओं की आवश्‍यकता है। उन्होंने जोर देकर कहा कि बच्चों को शारीरिक रूप से सक्रिय होने और एनसीडी से बचने के लिए स्कूली दिनों से ही खेलों में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।

युवाओं के बीच जंक फूड के प्रति बढ़ते आकर्षण का जिक्र करते हुए उन्होंने युवाओं को जंक फूड न खाने की सलाह दी क्योंकि यह उनके स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह है और यह उनके जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित कर रहा है। श्री नायडू ने कहा कि बीमारियों की रोकथाम और शुरुआती चरणों में ही उनका पता लगाने पर देश को अधिक संसाधन लगाने चाहिए। उन्होंने लोगों में हृदय रोग के जोखिम संबंधी कारकों की पहचान करने और उनकी रोकथाम के लिए उपाय करने के लिए बड़े पैमाने पर जांच अभियान शुरू करने का आह्वान किया।

हृदय रोग के खिलाफ हमारी लड़ाई में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की महत्‍वपूर्ण भूमिका को उजागर करते हुए उपराष्ट्रपति ने जोर देकर कहा कि पीएचसी को एक दमदार, जवाबदेह और उपकरणों से पूरी तरह सुसज्जित संस्‍थानों के नेटवर्क में बदलना महत्‍वपूर्ण है।

यह उल्लेख करते हुए कि देश भर में स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच के लिहाज से देश ने काफी प्रगति की है, श्री नायडू ने कहा कि 1951 में जन्‍म के समय जीवन प्रत्‍याशा करीब 37 वर्ष थी जो बढ़कर 2011-2015 में करीब 68.3 वर्ष हो गई। यह आजादी के बाद सार्वजनिक स्‍वास्‍थ्‍य क्षेत्र में सबसे अधिक उल्लेखनीय उपलब्धि रही है।

उपराष्ट्रपति ने चिकित्सा छात्रों को भी सलाह दी कि वे नया कार्यभार ग्रहण करने से पहले कम से कम तीन वर्षों तक ग्रामीण क्षेत्र के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में अपनी सेवाएं प्रदान करें। यह बताते हुए कि भारत को आरएंडडी में अधिक संसाधनों का निवेश अवश्‍य करना चाहिए, उन्होंने कहा कि चिकित्सा विज्ञान में अकल्पनीय प्रगति हो रही है। उन्होंने कहा, 'मशीन लर्निंग एवं ऑग्‍मेंटेड रियलिटी सहित साइबरनेटिक्स और कृत्रिम बुद्धिमत्‍ता (एआई) जैसी उथल-पुथल मचाने वाली नई प्रौद्योगिकी में अत्याधुनिक अनुसंधान से चिकित्सा विज्ञान के प्रतिमान बदल रहे हैं।'

उपराष्ट्रपति ने गुणवत्ता, पहुंच और किफायत के लिहाज से हमारे स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार लाने का आह्वान करते हुए कहा, 'हालांकि हमारी स्वास्थ्य सेवाएं दुनिया भर में सबसे सस्ती हैं लेकिन जीवन रक्षक दवाओं और प्रक्रियाओं में से कुछ अभी भी आम आदमी की पहुंच से बाहर हैं। स्वास्थ्य क्षेत्रों के सभी हितधारकों को बेहतर तालमेल से काम करने की आवश्यकता है ताकि आम लोगों के लिए स्‍वास्‍थ्‍य सेवाएं सस्ती और सुलभ हो सकें।'  

उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारत को अन्य देशों के लिए गुणवत्तापूर्ण एवं सस्ती स्वास्थ्य सेवाओं के लिए एक आदर्श देश के रूप में काम करना चाहिए। उन्होंने कहा, 'मुझे इसमें कोई संदेह नहीं दिखता कि हमारे पास इस लक्ष्य को हासिल करने की क्षमता मौजूद है।'

इस अवसर पर उत्तर प्रदेश के राज्यपाल श्री राम नाईक, संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के निदेशक डॉ. राकेश कपूर, कार्डियोलॉजिकल सोसायटी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष (चयनित) डॉ. एमके दास एवं अन्य गणमान्य उपस्थित थे।   

 

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उपराष्‍ट्रपति के संबोधन का मूल पाठ निम्‍नलिखित है:

मैं भारत की कार्डियोलाजी सोसायटी की नेशनल इंटरवेंशन काउंसिल की सालाना बैठक का उद्घाटन करते हुए प्रसन्नता अनुभव कर रहा हूं। लखनऊ के प्रतिष्ठित एसजीपीजीआईएमएस में 5 से 7 अप्रैल, 2019 तक चलने वाली यह बैठक कार्डियोलाजी सोसायटी ऑफ इंडिया के उत्तर प्रदेश प्रभाग द्वारा आयोजित की जा रही है।

मुझे यह जानकर विशेष हर्ष है कि इस अवसर पर देश-विदेश के विशेषज्ञ केवल व्याख्यान देंगे और अपने अनुभव साझा करेंगे बल्कि एसजीपीजीआईएमएस सहित देश-विदेश में विभिन्न स्थानों से भी वास्तविक शल्य प्रक्रिया का प्रसारण होगा। मुझे बताया गया है कि देश-विदेश के लगभग 1,500 विशेषज्ञ इस आयोजन में भाग ले रहे हैं जो अपने अनुभव का लाभ साझा करेंगे।

कार्डियोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया की नेशनल इंटरवेंशनल काउंसिल (एनआईसी) की वार्षिक बैठक का उद्घाटन करते हुए मुझे काफी खुशी हो रही है। इसका आयोजन 5 से 7 अप्रैल, 2019 के बीच लखनऊ के प्रतिष्ठित संजय गांधी पोस्‍टग्रैजुएट इंस्‍टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एसजीपीजीआईएमएस) में कार्डियोलॉजिकल सोसायटी ऑफ इंडिया के उत्तर प्रदेश राज्य इकाई के तत्वावधान में किया गया है। 

मुझे यह जानकर खुशी हुई कि कार्डियोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया 1948 में अपनी स्थापना के समय से ही आम भारतीयों के लिए स्वस्थ दिल सुनिश्चित करने के लिए अथक प्रयास कर रही है। वास्तव में यह उल्लेखनीय है कि यह बिरादरी देश भर में 5,000 से अधिक कार्डियोलॉजिस्ट के प्रशिक्षण, ज्ञान के आदान-प्रदान और कौशल विकास के जरिये एक स्वस्थ राष्ट्र बनाने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है।

मुझे बताया गया है कि सोसाइटी के पास विभिन्न सब-स्‍पेशिएलिटी काउंसिल हैं जो विभिन्न प्रकार के हृदय रोगों और उनके उपचार प्रोटोकॉल पर नजर रखते हैं जिनमें नेशनल इंटरवेंशनल काउंसिल (एनआईसी) प्रमुख है। मुझे यह जानकर खुशी हुई है कि एनआईसी नई इंटरवेंशनल तकनीकों पर ध्यान केंद्रित करता है जो मरीज को पारंपरिक हृदयरोग उपचार प्रक्रियाओं के तहत स्‍वास्‍थ्‍य लाभ की लंबी अवधि के विपरीत जल्द स्वस्थ होने में मदद कर सकती है।

मुझे बताया गया है कि एनआईसी 2019 इस परिषद की वार्षिक बैठक है। मुझे यह जानकर खुशी हुई है कि प्रोफेसर डॉ. गोयल के नेतृत्‍व में एसजीपीजीआईएमएस का हृदयरोग विज्ञान विभाग देश के प्रमुख स्‍नातकोत्‍तर चिकित्‍सा अनुसंधान केंद्रों में शामिल है।

मुझे यह जानकर खुशी हुई कि इस बैठक में वैश्विक एवं भारतीय विशेषज्ञ शामिल विभिन्न विषयों पर बोलने जा रहे हैं और वे विदेश से तथा एसजीपीजीआईएमएस सहित भारत के विभिन्न केंद्रों से इंटरवेंशनल प्रक्रियाओं का लाइव प्रदर्शन करने जा रहे हैं। वास्‍तव में यह सम्मेलन दुनिया के विभिन्न हिस्सों से करीब 1,500 प्रतिनिधियों की भागीदारी का गवाह बनने जा रहा है।   

मुझे उम्मीद है कि यह सम्‍मेलन स्‍वास्‍थ्‍य सेवा क्षेत्र में नई चुनौतियों का सामना करने और उनके मरीजों को सस्ती दरों पर बेहतरीन चिकित्‍सा उपलब्‍ध कराने के लिए हृदय रोग विशेषज्ञों को बेहतर तैयारी करने में मददगार साबित होगा।

आज मेरे सामने बैठे चिकित्‍सा बिरादरी के सम्‍मानित सदस्‍यों, मैं आपकी महान राष्‍ट्र सेवा के लिए आपको बधाई देता हूं।

भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र ने आजादी के बाद से अब तक कई महत्वपूर्ण पड़ाव हासिल किए हैं। स्वतंत्रता के बाद सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में भारत की सबसे बड़ी उपलब्धि जन्म के समय जीवन प्रत्याशा में वृद्धि रही है जो 1951 में 37 वर्ष से बढ़कर 2011-15 में लगभग 68.3 वर्ष हो चुकी है। हालांकि जीवन प्रत्याशा में वृद्धि के साथ-साथ गैर-संचारी रोगों में वृद्धि ने जीवन की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है।

शिशु मृत्यु दर और मातृ मृत्यु दर में उल्‍लेखनीय कमी आई है। छोटी चेचक एवं पोलियो जैसी बीमारियां मिट चुकी हैं और कुष्ठ रोग लगभग समाप्त हो चुका है। आज देश यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज हासिल करने की आकांक्षा रखता है।  

हमने देश भर में स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच में व्यापक सुधार किया है, व्यापक स्वास्थ्य शिक्षा एवं जागरूकता अभियान चलाए हैं, बड़े पैमाने पर स्वच्छता अभियान चलाया है, भारत में सरकारी एवं निजी अस्पतालों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है और टीकाकरण में काफी सुधार हुआ है। हम कई महामारियों से सुरक्षित बचे हैं और कई सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्‍याओं को सफलतापूर्वक दूर किया है। 

ये सब उपलब्धियां भारत जैसे अत्यधिक आबादी वाले और संसाधन की कमी वाले देश में संभव नहीं थीं। यह आपके जैसे प्रतिबद्ध डॉक्टरों एवं स्वास्थ्य पेशेवरों की निस्वार्थ एवं समर्पित सेवा के बिना संभव नहीं था।

मेरे प्‍यारे भाइयों और बहनों,

यह अत्‍यंत चिंता की बात है कि भारत महामारी विज्ञान में बदलाव के दौर से गुजर रहा है। यहां गैर-संचारी रोग बढ़ रहे हैं। भारतीय चिकित्‍सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) की 2017 की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि संचारी रोगों के कारण रोग का बोझ 1990 और 2016 के बीच 61 प्रतिशत से घटकर 33 प्रतिशत रह गया जबकि समान अवधि में गैर-संचारी रोगों के कारण रोग का बोझ 30 प्रतिशत से बढ़कर 55 प्रतिशत हो गया। यह एक काफी चिंताजनक रुझान है।

 

हृदय रोग के कारण दुनिया भर में कथित तौर पर लगभग 1.7 करोड़ लोगों की मृत्‍यु हो चुकी है। भारत में हृदय रोग के कारण मृत्यु दर में 1990 से 2016 बीच 34 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इससे भी अधिक चिंता की बात यह है कि हमारे देश में 40 प्रतिशत दिल के मरीजों की उम्र 55 वर्ष से कम है। एक अनुमान के अनुसार, दिल के दौरे के कारण मरने वाले लगभग 25 प्रतिशत लोगों की उम्र 35 वर्ष से कम है।

 

मैं समझता हूं कि धूम्रपान, शराब का अत्यधिक सेवन, व्यायाम एवं पर्याप्‍त नींद की के कारण अत्‍यधिक तनाव, मधुमेह और रक्तचाप में वृद्धि जैसे कारक हृदय रोग की आशंका को काफी बढ़ाते हैं। इसलिए दिल के दौरे की शुरुआती रोकथाम के लिए जीवन शैली में बदलाव लाने की आवश्‍यकता है।

 

मैं यहां मौजूद सभी डॉक्टरों एवं स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों से आग्रह करता हूं कि वे लोगों को उनकी शिथिल जीवन शैली में बदलाव के लिए प्रेरित करें। निस्‍संदेह यह साबित हो चुका है कि सप्ताह में पांच दिन नियमित रूप से मध्यम तीव्रता वाले एरोबिक व्यायाम जैसे तेज चलना, साइकिल चलाना, जॉगिंग और तैराकी करने से हृदय रोग की संभावना को घटाने में मदद मिलेगी।

 

दुनिया अब योग को शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक स्वास्थ्य और तंदुरुस्‍ती हासिल करने का एक प्रमुख साधन मान रही है। यह तनाव प्रबंधन का एक उत्कृष्ट तकनीक है और यह कई बीमारियों, विशेष तौर पर जीवन शैली से संबंधित बीमारियों के लिए एक प्रभावी उपचार है। हमें अपने बच्चों को शारीरिक रूप से सक्रिय होने और खेलों में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।

 

खेलो इंडिया, जिसका उद्देश्‍य एक स्‍वस्‍थ समाज एवं मजबूत राष्‍ट्र के निर्माण के लिए स्‍वस्‍थ एवं तंदुरुस्‍त लोग तैयार करना है, जैसी सरकार की पहल हमारे बच्‍चों की तंदुरुस्‍ती और उनके स्‍वास्‍थ्‍य को बढ़ावा देने के लिए एक लंबा सफर तय करेगी। हमें भी अपने बच्चों को अत्‍यधिक हानिकारक ट्रांस-वसा वाले जंक फूड के बजाय स्‍वास्‍थ्‍यवर्द्धक भोजन करने के लिए अवश्‍य प्रोत्साहित करना चाहिए।

 

मैं हरेक व्‍यक्ति को खासकर युवाओं को जंक फूड से पहरेज करने की सलाह देता हूं क्‍योंकि वह उनके स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा रहा है और जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित कर रहा है। हमारे दैनिक आहार में पर्याप्‍त मात्रा में फल-सब्जियां, सोया उत्पाद और कम वसा वाले डेयरी उत्पाद अवश्‍य शामिल होने चाहिए क्‍योंकि ये प्रोटीन से भरपूर होते हैं और इनमें वसा की मात्रा कम होती है। इनमें कोई कोलेस्ट्रॉल नहीं होता और ये कैल्शियम एवं खनिजों से भरपूर होते हैं।

 

भारत आज इतिहास के सबसे बड़े जनसांख्यिकीय लाभांश हासिल करने की ओर अग्रसर है। यह दुनिया के उन राष्ट्रों में से एक है जहां युवाओं की बड़ी आबादी है। भारत को अपने समावेशी एवं सतत विकास के सपने को साकार करने और दुनिया में नेतृत्व के लिए अपना उचित स्‍थान हासिल करने के लिए यह जरूरी है कि क्षमता से भरपूर उसकी युवा आबादी स्वस्थ रहे।

 

इसलिए हमें बीमारी की रोकथाम और शुरुआती अवस्‍था में ही उसका पता लगाने पर संसाधनों का अधिक निवेश करना चाहिए। हमें लोगों के बीच हृदय रोग की आशंका बढ़ाने वाले जोखिम कारकों की पहचान करने और इस बीमारी की प्रगति की रोकथाम के लिए बड़े पैमाने पर जांच अभियान चलाना चाहिए।

हमारे प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को हृदय रोग के खिलाफ हमारी लड़ाई में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।

 

प्‍यारे भाइयों और बहनों,

 

हालांकि हमारी स्वास्थ्य सेवा व्‍यवस्‍था में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, तालुक अस्पताल और जिला अस्पताल ग्रामीण लोगों की स्वास्थ्य जरूरतों को पूरा करते हैं लेकिन ग्रामीण एवं दूरदराज के क्षेत्रों को अत्‍याधुनिक स्‍वास्‍थ्‍य सेवा सुविधाएं मुहैया करना समय की मांग है क्‍योंकि अधिकतर आधुनिक अस्‍पताल शहरी क्षेत्रों में स्थित हैं। हालांकि तेजी से बढ़ती जनसंख्या, विविध इलाकों के साथ विशाल देश, स्थानीय पूर्वाग्रह, अंधविश्वास एवं अशिक्षा जैसे कारकों से भी हमारे प्रयासों में बाधा आ रही है।

 

हालांकि केंद्र और राज्य स्तर पर सरकारों के लिए स्वास्थ्य क्षेत्र प्रमुख प्राथमिकता रही है लेकिन निजी क्षेत्र को भी सरकार के प्रयासों के पूरक के तौर पर काम करने की जरूरत है खासकर शहरी-ग्रामीण विभाजन को कम करने संदर्भ में। निजी क्षेत्र को ग्रामीण क्षेत्रों में आधुनिक एवं सस्ती स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने के लिए परोपकार, प्रतिबद्धता और मिशनरी उत्साह की भावना के साथ काम करना चाहिए।

 

मैं जिन मेडिकल छात्रों से बात करता हूं उन सभी को ग्रामीण क्षेत्र के प्राथमिक स्‍वास्‍थ्‍य सेवा केंद्रों में कम से कम 3 साल सेवाएं देने के लिए प्रोत्‍साहित करता हूं। प्राथमिक स्‍वास्‍थ्‍य सेवा केंद्र रोगियों के साथ संपर्क का पहला पड़ाव है। प्राथमिक स्‍वास्‍थ्‍य सेवा केंद्रों का एक मजबूत, जवाबदेह और उपकरणों से सुसज्जित नेटवर्क रोगों की रोकथाम, शुरुआती पहचान एवं उपचार पर ध्यान केंद्रित करते हुए द्वितीयक एवं तृतीयक स्वास्थ्य सेवा संस्थानों पर बोझ को काफी हल्‍का कर सकता है।

 

मेरे प्‍यारे भाइयों और बहनों,

 

हमें संचारी रोगों के खिलाफ अपनी प्रतिक्रिया के मोर्चे पर भी डगमगाना नहीं चाहिए। हमें चिकित्सा आपात स्थितियों के प्रति अपनी प्रतिक्रिया को दमदार बनाने का प्रयास करना चाहिए और केरल में हाल ही में हुए निप्पा वायरस के प्रकोप जैसी महामारियों से निपटने के लिए  तत्परता बेहतर करनी चाहिए।

   

हमें खुद को सूक्ष्मजीवों के उन उत्परिवर्तित संस्करणों से निपटने के लिए खुद को तैयार करना होगा जो एंटीबायोटिक्स और दवाओं के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर चुके हैं और जो जलवायु परिवर्तन एवं बढ़ते प्रदूषण के कारण उत्पन्न होंगे।

 

ज्ञान के मार्चे पर भी अपनी रफ्तार बढ़ाने के लिए भारत को अनुसंधान एवं विकास में अधिक से अधिक निवेश करना चाहिए और बीमारियों के उपचार के लिए नए एवं बेहतर व्‍यवस्‍था विकसित करना जारी रखना चाहिए।

 

व्‍यक्ति के जीवनकाल को लम्बा खींचना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि जोड़े गए जीवन के वर्ष गुणवत्‍तापूर्ण अवश्‍य होने चाहिए। इसके लिए हमें चिकित्‍सा विज्ञान के नए क्षेत्रों में भी संभावनाएं तलाशनी चाहिए। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी दुनिया भर में तमाम बाधाओं को तोड़ते हुए नई ऊंचाइयों को छू रहे हैं। भारत को इसमें चूकना नहीं चाहिए।

 

चिकित्‍सा विज्ञान में अकल्पनीय प्रगति की जा रही है। मशीन लर्निंग और ऑग्‍मेंटेड रियलिटी सहित साइबरनेटिक्स एवं कृत्रिम बुद्धिमत्‍ता (एआई) जैसी उथल-पुथल मचाने वाली प्रौद्योगिकी में अत्याधुनिक अनुसंधान चिकित्सा विज्ञान के प्रतिमानों को बदल रहे हैं।

 

मैं डॉक्टरों और चिकित्‍सा पेशेवरों से आग्रह करना चाहूंगा कि वे हिप्पोक्रेटिक शपथ और चिकित्‍सा आचार संहिता के सिद्धांतों का हमेशा पालन करें। हमें तीन मोर्चे- गुणवत्‍ता, पहुंच और किफायत- पर अपने स्वास्थ्य क्षेत्र में निरंतर सुधार करने का प्रयास करना चाहिए।

 

अच्छी गुणवत्ता और सस्ती दवाओं के कारण भारत को दुनिया के दवाखाने के रूप में पहले से ही जाना जाता है। हालांकि हमारी स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं दुनिया में सबसे सस्ती हैं, लेकिन जीवन रक्षक दवाओं और प्रक्रियाओं में से कुछ अभी भी आम आदमी की पहुंच से बाहर हैं। इसलिए स्वास्थ्य क्षेत्र के सभी हितधारकों को बेहतर तालमेल के साथ काम करने की आवश्यकता है ताकि आम आदमी के लिए सस्ती और सुलभ स्‍वास्‍थ्‍य सेवा सुनिश्चित हो सके।

 

भारत को अन्य देशों के लिए गुणवत्तापूर्ण एवं सस्ती स्वास्थ्य सेवाओं के लिए एक आदर्श देश के रूप में काम करना चाहिए। मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि हमारे पास इस लक्ष्य को हासिल करने की क्षमता उपलब्‍ध है।

  

हम स्वास्थ्य बीमा योजना पहले ही लागू कर चुके हैं। यह दुनिया की सबसे बड़ी स्‍वास्‍थ्‍य बीमा योजना है जिसका फायदा लाखों रोगियों को मिल रहा है। लेकिन यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज सुनिश्चित करना समय की आवश्यकता है।

 

हम तब तक आराम नहीं कर सकते जब तक हम अंतिम कुपोषित बच्चे का स्वास्थ्य सुरक्षित नहीं करते और अंतिम क्षय रोगी को ठीक नहीं करते। बिना किसी संसाधन के काम को हाथ में लेने का कोई मतलब नहीं है। लेकिन मुझे भारत के स्वास्थ्य पेशेवरों की क्षमता पर पूरा भरोसा है।

 

मैं एक बार फिर नए विचारों को एकत्रित करने के लिए एक मंच के तौर पर एनआईसी 2019 की परिकल्‍पना करने के लिए कार्डियोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया को बधाई देता हूं। मैं इस सोसायटी और सम्‍मेलन को बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं।

 

धन्‍यवाद

जय हिंद !

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आरके मीणा/एएम/एसकेसी



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