कृषि एवं किसान कल्‍याण मंत्रालय

वर्षांत समीक्षा 2018: कृषि, सहकारिता एवं किसान कल्याण मंत्रालय


वर्ष 2018 के दौरान कृषि, सहकारिता एवं किसान कल्याण विभाग की निम्न प्रमुख विशिष्टताएं रही हैं

प्रथम अग्रिम अनुमानों के अनुसार 2018-19 में प्रमुख कृषि उत्पादों का उत्पादन परिदृश्य

Posted On: 26 DEC 2018 2:16PM by PIB Delhi

कृषि, सहकारिता एवं किसान कल्याण विभाग (डीएसी एंड एफडबल्यू) देश में खाद्यान्न के उत्पादन का वार्षिक लक्ष्य नियत करता है । वर्ष 2018-19 के लिये खाद्यान्न के उत्पादन का वार्षिक लक्ष्य 290.25 मिलियन टन नियत किया गया है । देश में 2017-18 के लिये खाद्यान्न के उत्पादन का आकलन 284.83 मिलियन टन (चौथे अग्रिम अनुमान के अनुसार) है जो एक रिकॉर्ड है ।

भारत मौसम विभाग (आईएमडी) के अनुसार दक्षिण-पश्चिम मॉनसून ऋतु (जून से सितम्बर 2018) के दौरान देश में वर्षा सामान्य (-9%) रही । 

 

2017-19 में प्रमुख रबी की फसलों का उत्पादन परिदृश्य (चौथे अग्रिम अनुमान के अनुसार)

वर्ष 2017-18 के लिये चौथे अग्रिम अनुमान के अनुसार देश में रबी की कुल फसल का अनुमान 144.10 मिलियन टन है जो 2016-17 में रबी की फसलों के प्राप्त किये गए पूर्व के रिकॉर्ड उत्पादन 136.78 मिलियन टन से 7.32 मिलियन टन अधिक है ।

1.  2017-18 के दौरान रबी की फसलों का उत्पादन पिछले पांच वर्षों (2012-13 से 2016-17) के औसत खाद्यान्न उत्पादन से 13.58 मिलियन टन अधिक है ।

2.  2017-18 में रबी चावल के कुल उत्पादन का अनुमान रिकॉर्ड 15.41 मिलियन टन है । रबी चावल का उत्पादन 2016-17 के दौरान 13.40 मिलियन टन के उत्पादन से 2.01 मिलियन टन बढ़ गया है । यह पिछले पांच वर्ष के औसत उत्पादन 13.70 मिलियन टन से भी 1.71 मिलियन टन अधिक है । 

3.  गेहूं का उत्पादन, जिसका आकलन रिकॉर्ड 99.70 मिलियन टन है, भी 2016-17 के दौरान प्राप्त 98.51 मिलियन टन गेहूं उत्पादन की तुलना में 1.19 मिलियन टन अधिक है । इसके अतिरिक्त 2017-18 के दौरान गेहूं का उत्पादन 93.34 मिलियन टन के औसत गेहूं उत्पादन से 6.36 मिलियन टन अधिक है ।

4.  रबी पौष्टिकदानेदार अनाज का प्राक्कलित रिकॉर्ड उत्पादन  13.10 मिलियन टन है जो कि औसत उत्पादन से 1.91 मिलियन टन अधिक है । इसके अतिरिक्त यह 2016-17 में हासिल 11.33 मिलियन टन उत्पादन से भी 1.77 मिलियन टन अधिक है ।

5.  वर्ष 2017-18 के दौरान रबी दालों का कुल प्राक्कलित रिकॉर्ड उत्पादन 15.89 मिलियन टन है जो कि पिछले वर्ष के 13.55 मिलियन टन के उत्पादन से 2.34 मिलियन टन अधिक है । इतना ही नहीं 2017-18 में रबी दालों का उत्पादन पिछले पांच वर्ष के औसत उत्पादन 12.29 मिलियन टन से 3.60 मिलियन टन अधिक है ।

6.  देश में वर्ष 2017-18 के दौरान कुल रबी तिलहन का प्राक्कलित उत्पादन 10.31 मिलियन टन है जो कि 2016-17 के दौरान हुए 9.76 मिलियन टन उत्पादन से थोड़ा अधिक 0.55 मिलियन टन है । यद्यपि 2017-18 में रबी तिलहन का उत्पादन औसत रबी तिलहन उत्पादन (2012-13 से 2016-17) से 0.92 मिलियन टन अधिक है ।

 

प्रथम अग्रिम अनुमान के अनुसार वर्ष 2018-19 में प्रमुख कृषि फसलों का उत्पादन परिदृश्य  

देश में 2018 के दौरान खरीफ खाद्यान्न का उत्पादन 2017 के दौरान खरीफ खाद्यान्न के 140.73 मिलियन टन (चौथा अग्रिम अनुमान) उत्पादन की तुलना में 141.59 मिलियन टन (प्रथम अग्रिम अनुमान) प्राक्कलित किया गया है, जो कि 0.86 मिलियन टन अधिक है । इसके अतिरिक्त खरीफ खाद्यान्न का उत्पादन पिछले पांच वर्षों (2012-13 से 2016-17) के 129.65 मिलियन टन औसत उत्पादन से 11.94 मिलियन टन अधिक है ।    

1.  खरीफ चावल का कुल प्राक्कलित उत्पादन 99.24 मिलियन टन है । यह पिछले वर्ष के 97.50 मिलियन टन उत्पादन से 1.74 मिलियन टन अधिक है । इसके अतिरिक्त पिछले पांच वर्षों के दौरान खरीफ चावल के औसत उत्पादन से 6.64 मिलियन टन अधिक है ।

2.  देश में पौष्टिक/ दानेदार अनाज का कुल उत्पादन 2017-18 में हुए 33.89 मिलियन टन के कुल उत्पादन से घट कर 33.13 मिलियन टन हो गया है । मक्का का उत्पादन 21.47 मिलियन टन होने की आशा है जो कि पिछले वर्ष के 20.24 मिलियन टन उत्पादन से 1.23 मिलियन टन अधिक है । इतना ही नहीं पिछले पांच वर्षों के दौरान हुए मक्का उत्पादन से 4.40 मिलियन टन अधिक है

3.  खरीफ दालों का कुल प्राक्कलित उत्पादन 9.22 मिलियन टन है जो कि पिछले वर्ष के कुल 9.34 मिलियन टन उत्पादन से 0.12 मिलियन टन कम है । यद्यपि खरीफ फसलों का प्राक्कलित उत्पादन पिछले पांच वर्षों के औसत उत्पादन से 2.67 मिलियन टन अधिक है ।    

4.  देश में खरीफ तिलहन का कुल प्राक्कलित उत्पादन 2017-18 के दौरान 21.00 मिलियन टन उत्पादन की तुलना में 22.19 मिलियन टन है, यानी 1.19 मिलियन टन की बढ़ोतरी है । साथ ही यह उत्पादन पिछले पांच वर्षों के औसत उत्पादन से 2.02 मिलियन टन अधिक है । 

5.  ईख का प्राक्कलित उत्पादन 383.89 मिलियन टन है जो कि पिछले वर्ष के 376.90 मिलियन टन के उत्पादन से 6.99 मिलियन टन अधिक है । साथ ही यह उत्पादन पिछले पांच वर्षों के दौरान हुए औसत उत्पादन से 41.85 मिलियन टन अधिक है ।

6.  कपास का प्राक्कलित उत्पादन 32.48 मिलियन गठ्ठे (प्रत्येक गठ्ठा 170 किलोग्राम का) है एवं पटसन व मेस्ता का उत्पादन 10.17 मिलियन टन गठ्ठे (प्रत्येक गठ्ठा 180 किलोग्राम का) है ।

किसानों की आय दोगुनी करना

सरकार ने वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य निर्धारित किया है । सरकार ने किसानों की आय दोगुनी करने से जुड़े विषयों की जांच करने एवं वर्ष 2022 तक सच्चे अर्थों में किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य प्राप्त करने की रणनीति तैयार करने की अनुशंसा करने के लिये राष्ट्रीय वर्षा सिंचित क्षेत्र प्राधिकरण(नेशनल रेनफेड एरिया अथॉरिटी), कृषि, सहकारिता एवं किसान कल्याण विभाग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी की अध्यक्षता में एक अंतर्मंत्रालयी समिति का गठन किया है । 

समिति ने आय में वृद्धि के सात स्रोतों की पहचान की है यथा, फसल एवं पशुधन उत्पादकता में बढ़ोतरी; संसाधन उपयोग में दक्षता अथवा उत्पादन में लगी लागत में बचत; फसल गहनता में वृद्धि; उच्च मूल्य वाली फसलों की ओर बहुरूपता; किसानों द्वारा प्राप्त वास्तविक मूल्य में बढ़ोतरी; एवं कषि क्षेत्र से ग़ैर-कृषि क्षेत्र पेशों में परिवर्तन । समिति कृषि में एवं कृषि के लिये निवेश की दिशा में भी विचार कर रही है, मसलन कृषि-ग्रामीण सड़कों में सार्वजनिक निवेश में वृद्धि, ग्रामीण विद्युत, सिंचाई; कृषि क्षेत्र में व्यापारिक घरानों का निवेश समर्थ/सक्षम बनाने के लिये नीतिगत सहारा ।

सरकार मात्र लक्षित उत्पादन की प्राप्ति से इतर आय-केंद्रिकता पर ध्यान देकर कृषि क्षेत्र का पुनः अभिमुखीकरण कर रही है । आय-केंद्रिकता किसानी से उच्चतर लाभ कमाने का विचार रख उच्च उत्पादकता की प्राप्ति, खेती में लगने वाली लागत में कमी एवं पैदावार के लाभकारी मूल्य पर ज़ोर देती है ।    

उपरोक्त रणनीतियों में से प्रत्येक पर पहले ही अनेक कदम उठा लिये गए हैं जिनमें यह सम्मिलित हैं:

 (i) प्रदेश सरकारों के माध्यम से कृषि विपणन व्यवस्था में संशोधन कर बाज़ार सुधारों की शुरुआत करना ।

(ii) मॉडल संविदा कृषि अधिनियम लागू कर प्रदेश सरकारों के माध्यम से संविदा कृषि को प्रोत्साहन देना ।

(iii)22,000 ग्रामीण हाटों का उन्नयन किया जाना है जिससे वह एकत्रीकरण केंद्र के साथ ही किसानों से कृषि उत्पादों की सीधी खरीद का केंद्र बन पाएं ।   

(iv) किसानों को खरीद-फरोख़्त के लिये एक ऑनलाइन मंच उपलब्ध कराने के लिये राष्ट्रीय कृषि बाज़ार (इ-एनएएम) की शुरुआत ।

(v)  किसानों के लिये मृदा स्वास्थ्य कार्ड वितरण की फ्लैगशिप योजना का क्रियान्वयन ताकि उर्वरकों का आधिकाधिक उपयोग सुनिश्चित किया जा सके । अभी तक दो चक्रों में 15 करोड़ से अधिक मृदा स्वास्थ्य कार्ड बांट दिये गए हैं ।

(vi)  “न्यूनतम जल अधिकतम फसल (पर ड्रॉप मोर क्रॉप)” की पहल जिसके अंतर्गत जल के आधिकाधिक इस्तेमाल हेतु टपक सिंचाई/ छिड़काव को प्रोत्साहन दिया जा रहा है ।

(vii) “परम्परागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई)” जिसके अंतर्गत जैविक खेती को प्रोत्साहन दिया जा रहा है । उत्तर पूर्व को जैविक खेती के बड़े केंद्र के रूप में विकसित किया जा रहा है ।

(viii) एक नवीन किसान-मित्रतापूर्ण “प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाइ)” की शुरुआत की गई है । इस योजना के अंतर्गत बीज बोने से पहले से लेकर फसल कटाई तक अनेक प्रकार के जोखिम कवर किये जाते हैं एवं किसानों को बहुत सामान्य प्रीमियम का भुगतान करना होता है ।

(ix) “हर मेड़ पर पेड़” योजना के अंतर्गत किसानों की आय के न्यूनतापूरण, जोखिम प्रबंधन में बेहतरी एवं एकीकृत कृषि प्रणाली के महत्वपूर्ण घटक के रूप में जलवायु समायोज्य कृषि के लिये कृषि-वानिकी को प्रोत्साहन दिया जा रहा है ।

(x) वृक्षों की परिभाषा से बांस को हटाने के लिये भारतीय वन अधिनियम, 1927 में संशोधन किया गया था । इसके बाद से वन क्षेत्र के बाहर लगे बांस का पेड़ पर काटने एवं पारवहन संबंधी नियमन लागू नहीं होंगे । इसके स्वाभाविक परिणाम के तौर पर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के कदम के रूप में किसान (उत्पादक) को बाज़ार (उद्योग) से जोड़कर बांस की मूल्य श्रृंखला के विकास के लिये पुनर्संरचित राष्ट्रीय बांस मिशन का शुभारंभ किया गया । 

(x) प्रधानमंत्री आशा योजना की शुरुआत जो कि तिलहन, दालों एवं खोपरा के लिये किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) सुनिश्चित करवाएगी ।

(xi) कुछ निश्चित फसलों के लिये सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य अधिसूचित किया है । किसानों की आय में बड़ा इज़ाफा करते हुए सरकार ने 2018-19 के लिये सभी खरीफ एवं रबी की फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में उत्पादन में लगी लागत से न्यूनतम 150% अधिक स्तर पर बढ़ोतरी को अनुमति प्रदान कर दी है ।

(xii) एकीकृत बागवानी विकास मिशन (एमआईडीएच) के अंतर्गत फसलों की उत्पादकता में परागण के माध्यम से वृद्धि करने एवं किसानों की आय के अतिरिक्त स्रोत के रूप में शहद उत्पादन में बढ़ोतरी के लिये मधुमक्खी पालन को प्रोत्साहन दिया गया है । 

(xiii)दुधारू पशुओं की उत्पादकता में वृद्धि एवं दुग्ध उत्पादन में बढ़ोतरी तथा किसानों के लिये दुग्ध उत्पादन को अधिक लाभकारी बनाने के लिये राष्ट्रीय गोकुल मिशन क्रियान्वित किया गया है ।

(xiv) पशुधन की उत्पादकता बढ़ाने एवं उनके जेनेटिक विकास के लिये राष्ट्रीय पशुधन मिशन कार्यान्वित किया गया है ।

(xv) भविष्य में मत्स्यपालन क्षेत्र में उच्च संभावनाओं को देखते हुए मुख्य रूप से अंतर्देशीय एवं सामुद्रिक दोनों स्थानों पर मत्स्य उत्पादन पर ध्यान देती बहुआयामी गतिविधियों के साथ एक नीली क्रांति का क्रियान्वयन किया जा रहा है ।   

(xvi) जलवायु परिवर्तन पर प्रधानमंत्री की राष्ट्रीय कार्ययोजना के अंतर्गत आठ में से एकमिशन राष्ट्रीय संधारणीय कृषि मिशन (एनएमएसए) का संचालन कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा किया जा रहा है । जलवायु परिवर्तन द्वारा प्रस्तुत चुनौतियों के दृष्टिकोण से कृषि एवं संबंधित क्षेत्र की तैयारियों में वृद्धि के लिये 2018-2030 के लिये परिशोधित रणनीति दस्तावेज तैयार किया गया था ।

उत्पादकता में बढ़ोतरी के ज़रिये उच्चतर उत्पादनः

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन

·         खाद्यान्न फसलों (चावल, गेहूं, दालें, दानेदार अनाज एवं पौष्टिक अनाज) के उत्पादन एवं उत्पादकता में बढ़ोतरी के लिये राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन क्षेत्र में विस्तार एवं उत्पादकता में वृद्धि कर, वैयक्तिक खेत स्तर पर मिट्टी की उर्वरता एवं उत्पादकता का पुनर्स्थापन कर तथा किसानों में विश्वास बहाली की स्थापना के लिये खेत स्तर पर अर्थव्यवस्था की बेहतरी के माध्यम से देश के 29 राज्यों के 638 ज़िलों में कार्यान्वित किया जा रहा है ।

·         वर्ष 2018-19 से ही राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अभियान-पौष्टिक अनाज को 14 प्रदेशों के 202 ज़िलों (10 राज्यों के 88 ज़िलों में ज्वार, 9 राज्यों के 88 ज़िलों में बाजरा, 8 राज्यों के 44 ज़िलों में रागी एवं 7 राज्यों के 43 ज़िलों में अन्य मोटा अनाज) में कार्यान्वित किया जा रहा है । देश के 237 ज़िलों में मक्का एवं 39 ज़िलों में जौ का क्रियान्वयन किया जा रहा है । उत्तर पूर्वी राज्यों, जम्मू एवं कश्मीर तथा हिमाचल प्रदेश ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अभियान पौष्टिक अनाज कार्यक्रम के क्रियान्वयन में लचीलापन रखा है ।

·         रबी की फसल/ गर्मी 2018-19 के दौरान दालों के लिये अतिरिक्त क्षेत्र कवरेज का कार्यक्रम 288.83 करोड़ रुपये (भारत सरकार का भाग) के आवंटन से रबी/ ग्रीष्म ऋतु में क्षेत्र विस्तार के माध्यम से दालों का उत्पादन बढ़ाने के लिये शुरू किया गया है । पंद्रह राज्यों में उक्त कार्यक्रम के क्रियान्वयन के लिये अतिरिक्त आवंटन की व्यवस्था की गई है ।

·         लक्ष्य के अनुसार राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अभियान ने वर्ष 2017-18 के दौरान चावल, गेहूं, दालों एवं पौष्टिक व दानेदार अनाज के बंपर उत्पादन को हासिल किया है (चौथे अग्रिम अनुमान के अनुसार), चावल, गेहूं, दालों एवं पौष्टिक व दानेदार अनाज का उत्पादन क्रमशः 112.91 मिलियन टन, 99.70 मिलियन टन, 25.23 मिलियन टन एवं 46.99 मिलियन टन के स्तर पर प्राप्त किया गया है । वर्ष 2017-18 के दौरान कुल खाद्यान्न उत्पादन 284.83 मिलियन टन हासिल किया गया है जो पिछले वर्ष की तुलना में अधिक है ।

2016-17 के बाद दालों के उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि के लिये उठाए गए नये कदमः

·         दालों के लिये राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अभियान के अंतर्गत दालों के प्रजनक बीज उत्पादन को प्रारंभ किया गया ।

·         भारतीय दाल अनुसंधान संस्थान, कानपुर एवं इसके केंद्रों के माध्यम से भारत में दालों के स्वदेशी उत्पादन के प्रमाणित बीजों में वृद्धि करने के लिये 150 बड़े बीज केंद्रों को क्रियान्वित किया जा रहा है ।

·         किसानों को दाम वसूले बिना दालों के बीजों के विभिन्न प्रकार मिनिकिट्स, जो 10 वर्ष से पुराने न हों, की आपूर्ति । 

·         प्रदेश सरकारों के अतिरिक्त भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर)/ कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके)/ प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय (एसएयू) भी दालों की प्रणालियों पर संवर्द्धित आधुनिकतम पैकेज पर प्रदर्शनों का संचालन कर रहे हैं ।

·         राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अभियान (एनएफएसएम) के अंतर्गत प्रदेश सरकारों के माध्यम से दालों के श्रेष्ठ बीजों के उत्पादन के लिये 15% आवंटन निर्धारित किया गया है ।

·         दालों के मूल्य में उतार-चढ़ाव को नियंत्रित करने के लिये सरकार ने दालों का एक बफर-स्टॉक तैयार करने का निर्णय लिया है ।

2018-19 के बाद पौष्टिक अनाज का उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि के लिये उठाए गए नये कदमः-

·         पौष्टिक अनाज का प्रजनक बीज उत्पादन

·         विशाल बीज केंद्रों की स्थापना

·         प्रमाणित बीज उत्पादन

·         बीजों हेतु मिनिकिट्स का आवंटन

·         सुदृढ़ीकरण/ उत्कृष्टता केंद्र की स्थापना

·         पौष्टिक-अनाज का प्रचार

अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्षः-

संयुक्त राष्ट्र द्वारा अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष मनाने के भारत के प्रस्ताव का 2023 के लिये खाद्य एवं कृषि परिषद (एफएओ) ने समर्थन किया ।

कृषि विस्तार 

  1. कृषि क्लिनिक एवं कृषि व्यापार केंद्र (एसीएबीएस)

प्रशिक्षित उम्मीदवार                                    2393

स्थापित किये गए उपक्रम                              433

प्रशिक्षण पा रहे अभ्यर्थी        1063

2.  कौशल विकासः 2018-19 के दौरान 15.46 करोड़ रुपये के बजट प्रावधान से 17560 ग्रामीण युवाओं के कौशल प्रशिक्षण के लिये 882 कौशल विकास पाठ्यक्रमों की योजना तैयार की गई ।

3.  मास मीडिया सपोर्ट टू एग्री एक्सटेंशन (एमएमएसएइ): कृषि एवं संबंधित क्षेत्र पर दिनांक 1 अप्रैल 2018 से 30 नवम्बर 2018 तक 19105 कार्यक्रम डीडी किसान, डीडी के क्षेत्रीय केंद्रों एवं ऑल इण्डिया रेडियो के 97 एफएम केंद्र के माध्यम से प्रसारित हो चुके हैं ।

4.  विस्तार सुधार (इआर): कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंधन एजेंसी (एटीएमए) योजनाके अंतर्गत उपलब्धियां निम्न हैं:

 

गतिविधि

संख्या

कार्यक्षेत्र का दौरा (किसानों की संख्या)

270497

प्रशिक्षण (किसानों की संख्या)

1409935

प्रदर्शन (किसानों की संख्या)

268745

किसान मेला (किसानों की संख्या)

562060

एफआईजी (समूहों की संख्या)

11029

कृषक स्कूलों की संख्या

8289

 

कृषि उन्नति मेला

·         एक राष्ट्रीय स्तर का तृतीय कृषि उन्नति मेला कृषि, सहकारिता एवं किसान कल्याण विभाग (डीएसी एंड एफडबल्यू) द्वारा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) तथा कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार के पशुपालन, डेयरी एवं मत्स्यपालन विभाग के साथ संयुक्त रूप से दिनांक 16-18 मार्च, 2018 को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई), मेला मैदान, पूसा कैम्पस, नयी दिल्ली में आयोजित किया गया । 

·         भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग महासंघ (फिक्की) को इ-निविदा प्रक्रिया के माध्यम से परियोजना प्रबंधन एजेंसी के रूप में कृषि उन्नति मेला, 2018 आयोजित करने के लिये चयनित किया गया ।

·         भारत के आदरणीय प्रधानमंत्री महोदय ने दिनांक 17.03.2018 को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, मेला मैदान पूसा, नयी दिल्ली में कृषि उन्नति मेले का दौरा किया ।  उन्होंने थीम पैवेलियन एवं जैविक महाकुम्भ का दौरा किया । साथ ही 25 विज्ञान केंद्रों की आधारशिला रखी । उन्होंने जैविक उत्पादों के लिये एक इ-मार्केट पोर्टल का उद्घाटन भी किया । उन्होंने कृषि कर्मण पुरस्कार एवं पंडित दीनदयाल उपाध्याय कृषि प्रोत्साहन पुरस्कार भी प्रदान किये । प्रधानमंत्री ने स्वतंत्रता के बाद किसानों की उपलब्धियों के लिये उनके जीवट एवं परिश्रम की प्रशंसा की एवं आगे कहा कि आज कृषि क्षेत्र में महत्वपूर्ण चुनौतियां हैं जो किसानों की आय को घटाती हैं तथा उनके घाटे और व्यय में बढ़ोतरी करती हैं । सरकार इन चुनौतियों से निपटने के लिये एक समग्र दृष्टिकोण से कार्य कर रही है । प्रधानमंत्री ने कहा कि उनका उद्देश्य किसानों की आय को दोगुना करना और उनके जीवन को सरल बनाना है ।

·         मेले का उद्देश्य कृषि क्षेत्र में आधुनिक तकनीकी विकास के प्रति जागरूकता पैदा करना एवं कृषक समुदाय से इस बारे में प्रतिपुष्टि प्राप्त करना है जिससे संस्थान की भविष्य की शोध रणनीति तैयार हो पाए ।

·         मेले का मुख्य आकर्षण 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लिये थीम पैवेलियन, सूक्ष्म सिंचाई का सीधा प्रदर्शन, बेकार जल का उपयोग और पशुपालन एवं मत्स्यपालन था । 

·         मेले में केंद्र एवं राज्य सरकारों, विभिन्न संस्थाओं इत्यादि द्वारा 600 से अधिक स्टाल लगाई गई थी ।

·         जैविक महाकुम्भ पैवेलियन का विशेष आकर्षण जैविक तरीक़ों के माध्यम से नवीन फसल कटाई तकनीकें एवं उनका सफल क्रियान्वयन था । सहकारिता को प्रोत्साहन देने के लिये एक सहकार सम्मेलन भी आयोजित किया गया था । इसके अतिरिक्त महत्वपूर्ण विषयों पर 9 कृषक-वैज्ञानिक वार्ताएं (प्रतिदिन तीन) भी आयोजित की गई थी ।

·         विभिन्न प्रदेशों से लगभग 26000 किसानों ने कृषि उन्नति मेला, 2018 का दौरा किया जिनमें 17000 किसान कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंधन एजेंसी (एटीएमए) से, 5000 किसान कृषि विज्ञान केंद्रों (केवीके) से एवं 4000 किसान भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) से थे । मेले में कृषि विज्ञान केंद्रों (केवीके), प्रदेश कृषि विश्वविद्यालयों (एसएयू), प्रदेश कृषि/ उद्यानिकी विभागों, उद्यमियों, कृषि कार्य में संलग्न निजी संस्थाओं ने भी भाग लिया ।         

·         थीम पैवेलियन के माध्यम से किसानों की आय में वृद्धि करने के तरीक़े जैसे सूक्ष्म सिंचाई, नीम लेपित यूरिया, मृदा स्वास्थ्य कार्ड, कम उर्वरक के उपयोग से लागत में कमी, फसल बीमा योजना की प्रभावशीलता एवं आय अर्जन के नवीन आयाम जैसे पशुपालन, मधुमक्खी पालन, मुर्गीपालन भी मेले में प्रदर्शित किये गए । एक प्रदर्शन के माध्यम से किसान इस मेले में वास्तविक कृषि कर्म के साक्षी बने ।

मेले की मुख्य विशिष्टताएं :

·         600 से अधिक स्टॉल

·         आधुनिकतम कृषि एवं संबंधित क्षेत्र की तकनीकों का प्रदर्शन

·         सूक्ष्म सिंचाई, बेकार पानी का उपयोग, पशुपालन एवं मत्स्यपालन इत्यादि

·         सेमिनार एवं सम्मेलन

·         विषय पैवेलियनः वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुना करना

·         जैविक महाकुम्भ- जैविक खेती पर

·         सहकार सम्मेलन

·         प्राप्त जानकारी के लिये पैवेलियन (बीज, उर्वरक, कीटनाशी आपूर्ति एजेंसियां)

·         उद्यान विद्या (बागवानी) / दुग्धशाला/ पशुपालन, मत्स्यपालन

·         भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर)/ भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई)

·         कपड़ा मंत्रालय, उद्योग एवं खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय, वाणिज्य मंत्रालय तथा उत्तर पूर्व परिषद

महिला किसान दिवस का उत्सव

·         राष्ट्रीय कृषि विज्ञान परिसर (एनएएस) में अक्टूबर 14-15, 2018 के दौरान अनेक साझेदारों जैसे महिला किसान, ग़ैर सरकारी संस्थाओं, महिला उद्यमियों, शिक्षा क्षेत्र से जुड़े विद्वानों, शोधार्थियों/वैज्ञानिकों, कृषक संस्थाओं, बैंक क्षेत्र के प्रतिनिधियों, उद्योगों इत्यादि की भागीदारी से महिला किसान दिवस का आयोजन किया गया । कुल मिलाकर इस कार्यक्रम में 450 लोगों ने भाग लिया । कार्यक्रम में कृषि क्षेत्र में महिला कृषकों से संबंधित विषयों व प्रतिबंधों को समझने एवं उनका समाधान करने, पशुपालन, दुग्धशाला विज्ञान, मत्स्य पालन एवं अन्य कृषकेतर गतिविधियों पर एवं किसानों की संस्थागत ऋण एवं लघु वित्त तक पहुंच बनाने तथा कृषि-उपक्रमों का निर्माण करने पर ध्यान दिया गया ।

·         महिला किसान दिवस के दौरान देश भर से कुल 44 प्रगतिशील महिला किसानों, प्रति राज्य दो महिला किसान- एक महिला कृषि क्षेत्र से एवं दूसरी इससे संबंधित क्षेत्र से, का उनके प्रदेशों द्वारा प्रस्तुत प्रविष्टियों के आधार पर सम्मान किया गया ।

·         आने वाली महिला किसानों के फायदे के लिये एक प्रदर्शनी का आयोजन भी किया गया ।

कृषि- 2022-- किसानों की दोगुनी आय पर राष्ट्रीय सम्मेलन

कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने “कृषि- 2022—किसानों की दोगुनी आय” शीर्षक के अंतर्गत दिनांक 19 एवं 20 फरवरी, 2018 को राष्ट्रीय कृषि विज्ञान परिसर (एनएएससी), पूसा, नयी दिल्ली में एक दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया । यह सम्मेलन किसान कल्याण से संबंधित विभिन्न महत्वपूर्ण विषयों की पहचान करने एवं उनका समुचित समाधान खोजने के दृष्टिकोण से सम्माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की सलाह पर आयोजित किया गया । दिनांक 20 फरवरी, 2018 को आदरणीय प्रधानमंत्री ने ज़ोर देकर कहा कि किसानों को सशक्त बनाने हेतु एक नयी संस्कृति विकसित करने के प्रयास किये जा रहे हैं । मुख्य रूप से चार महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर ध्यान हैः कृषक खरीद की लागत कम करना, पैदावार का न्यायोचित मूल्य सुनिश्चित करना, अपव्यय में कमी लाना, एवं आय के अन्य स्रोतों का निर्माण करना ।    

आदरणीय मंत्री श्री राधामोहन सिंह ने दिनांक 19 फरवरी, 2018 को सम्मेलन का उद्घाटन किया एवं ज़ोर दिया कि सरकार कृषि संबंधी नीतियों एवं कार्यक्रमों को आय केंद्रित बनाने के प्रति उत्सुक है । सम्मेलन में किसानों, कृषक संस्थाओं, वैज्ञानिकों, अर्थशास्त्रियों, शिक्षा क्षेत्र की हस्तियों, उद्योग जगत के विशेषज्ञों, पेशेवर संगठनों, ग़ैर सरकारी संस्थाओं एवं नीति निर्माताओं समेत लगभग 300 चयनित हिस्सेदारों ने भाग लिया । सम्मेलन के दौरान चार प्रमुख विषयों जैसे उच्चतर एवं टिकाऊ कृषक आय के लिये कृषि नीति एवं सुधार; व्यवसाय नीति एवं निर्यात प्रोत्साहन; विपणन,कृषि रसद एवं कृषि मूल्य प्रणाली; विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, कृषि क्षेत्र में सूचना-संचार प्रौद्योगिकी व स्टार्ट अप; संधारणीय एवं न्यायसंगत विकास तथा सेवाओं का प्रभावी वितरण; किसानों के लियेपूंजी निवेश तथा सांस्थानिक ऋण; पशुधन एवं दुग्धशाला, विकास के संवाहक के रूप में मुर्गी एवं मत्स्यपालन को प्रोत्साहन पर चर्चा की गई ।

एकीकृत बागवानी विकास मिशन (एमआईडीएच)

·         क्षेत्र विस्तारः- निर्धारित बागवानी फसल का अतिरिक्त 76015 हैक्टेयर का निर्धारित क्षेत्र कवर किया गया है

·         कायाकल्पः- पुराने एवं जीर्ण बाग़ों का 5060 हैक्टेयर के क्षेत्र का कायाकल्प किया गया है ।

·         जैविक खेतीः- 200 हैक्टेयर का क्षेत्र कवर किया गया है ।

·         समेकित कीटनाशी/ पोषण प्रबंधनः- आईपीएम/ आईनएम के अंतर्गत 33684 हैक्टेयर का क्षेत्र कवर किया गया है ।

·         संरक्षित खेतीः- संरक्षित खेती के अंतर्गत 22137 हैक्टेयर का क्षेत्र कवर किया गया है ।

·         जल संसाधनः- 1814 जल संचयन संरचनाओं का निर्माण किया गया है ।

·         मधुमक्खी पालनः छत्तों समेत 29102 मधुमक्खी कॉलोनियों का वितरण किया गया है ।

·         बागवानी यंत्रीकरणः- 9343 बागवानी यंत्रीकरण उपकरणों का वितरण किया गया है ।

·         फसल कटाई प्रबंधन अवसंरचनाएं :- 3437 फसल कटाई इकाईयों की स्थापना की गई है ।

·         बाज़ार अवसंरचनाः- 215 बाज़ार अवसंरचनाओं की स्थापना की गई है ।

·         किसानों का प्रशिक्षणः- मानव संसाधन विकास के अंतर्गत 98271 किसानों को विभिन्न उद्यान विद्या संबंधी गतिविधियों के लिये प्रशिक्षण दिया गया है ।

·         केरल प्रदेश को 56.03 करोड़ रुपये (केंद्र सरकार का भाग) का विशेष पैकेज प्रदान किया गया है ।

·         2019 में चीन के बीजिंग में होने वाली अंतर्राष्ट्रीय एक्सपो में भारत का सिविल कार्य पूरा कर लिया गया है ।

·         भारत-इज़राइल सहयोग के अंतर्गत 30 उत्कृष्टता के केंद्रों को स्वीकृति दी गई है, जिनमें से 4 का इस वर्ष उद्घाटन कर दिया गया है ।

सूचना प्रौद्योगिकी

·         इस विभाग के एम-किसान पोर्टल पर कृषि संबंधी सलाह प्राप्त करने वाले पंजीकृत किसानों की संख्या 31-12-2017 की 24162069 से बढ़ कर दिनांक 14-12-2018 तक 49360436 हो गई है ।

·         किसान सुविधा एप के डाउनलोड की संख्या 31-12-2017 के 294255 से बढ़ कर दिनांक 14-12-2018 तक 901192 हो गई है ।

·         इस वर्ष के दौरान किसान सुविधा मोबाइल एप में 4 नयी सेवाएं जोड़ी गई हैं, जिससे एप पर मिलने वाली सेवाओं की संख्या 10 हो गई है ।

राष्ट्रीय कृषि विकास योजना- रफ़्तार के अंतर्गत नवाचार एवं कृषि-उद्यमिता

राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) कृषि एवं संबंधित क्षेत्रों में अवसंरचना के सुदृढ़ीकरण का उद्देश्य रख कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार की एक महत्वपूर्ण योजना है । वित्तीय सहायता प्रदान कर एवं कृषि के उद्भवन पारितंत्र को पोषण देकर कृषि-उद्यमिता तथा कृषि-व्यापार को प्रोत्साहन देने के लिये 2018-19 में पुनर्निर्मित योजना में प्रशासकीय कार्यों के लिये 2% के कुल परिव्यय समेत 10% वार्षिक परिव्यय के साथ एक नये घटक राष्ट्रीय कृषि विकास योजना-रफ़्तार की शुरुआत की गई है।

इस संदर्भ में कृषि, सहकारिता एवं किसान कल्याण विभाग (डीएसी एंड एफडबल्यू)ने योजना के प्रभावी एवं बाधारहित क्रियान्वयन पर सलाह संबंधी सहायता प्रदान करने, रफ्तार-कृषि व्यापार उद्भवकों से संबंधित विषयों को सहारा देने एवं अन्य संबंधित मामलों के लिये  पांच ज्ञान साझेदारों (केपी)-  राष्ट्रीय कृषि विस्तार प्रबंध संस्थान (मैनेज), हैदराबाद, राष्ट्रीय कृषि विपणन संस्थान (एनआईएएम), जयपुर, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई), पूसा, कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय, धारवाड़, कर्नाटक एवं असम कृषि विश्वविद्यालय, जोरहाट की नियुक्ति की है ।

इस योजना के अंतर्गत नये कृषि व्यापार उद्भवक स्थापित किये जाएंगे, साथ ही मौजूदा कृषि व्यापार उद्भवकों को आवश्यकता के आधार पर अवसंरचना, उपकरण एवं जनशक्ति उपलब्ध कराकर राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई)- रफ्तार कृषि व्यापार उद्भवकों की तरह सुदृढ़ बनाया जाएगा । यह रफ्तार कृषि व्यापार उद्भवक बदले में कृषि व्यवसायिकों से व्यापार जीवन चक्र के विभिन्न चरणों में आवेदन पत्र आमंत्रित कराएंगे तथा कृषि एवं संबंधित क्षेत्रों में नवाचार का सृजन करने के अवसर प्रदान करेंगे ।

खेती की लागत में कमीः

कृषि यंत्रीकरण- फसल अवशेष प्रबंधन योजना

1.  बजट 2018 में की गई घोषणा के अनुसार 2018-19 से लेकर 2019-20 की अवधि  तक केंद्रीय निधि से कुल 1151.80 करोड़ रुपये की धनराशि (2018-19 में 591.65 करोड़ रुपये तथा 2019-20 में 560.15 करोड़ रुपये) से ‘पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश एवं राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) दिल्ली में फसल अवशेषों के यथास्थान प्रबंधन हेतु कृषि यंत्रीकरण प्रोत्साहन’ नाम की एक नयी केंद्रीय क्षेत्र योजना का शुभारंभ किया गया है ।

2.  योजना में निम्न घटक शामिल होंगे (100% केंद्र का भाग)

 

1.  यथास्थान फसल अवशेष प्रबंधन मशीनरी की कस्टम हायरिंग के लिये खेत मशीनरी बैंकों की स्थापना- किसानों की सहकारी समितियों, एफपीओ, स्वयं सहायता समूहों, पंजीकृत किसान सोसाइटी/ किसान समूहों, निजी उद्यमियों, महिला किसानों के समूहों या स्वयं सहायता समूहों को यथास्थान फसल अवशेष प्रबंधन मशीनरी की कस्टम हायरिंग के लिये खेत मशीनरी बैंकों की स्थापना हेतु परियोजना की लागत की 80% वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है ।

2.  फसल अवशेषों के यथास्थान प्रबंधन हेतु कृषि मशीनरी एवं उपकरणों का अधिग्रहण करने के लिये किसानों को वित्तीय सहायता- फसल अवशेष प्रबंधन हेतु मशीनरी खरीदने के लिये किसानों को वैयक्तिक आधार पर मशीनरी/ उपकरण की 50% लागत की वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है ।

3.  फसल अवशेषों के यथास्थान प्रबंधन पर जागरूकता के लिये सूचना, शिक्षा एवं संचार- सूचना, शिक्षा एवं संचार (आईसीटी) से संबंधित गतिविधियों के संचालन के लिये राज्य सरकारों, कृषि विज्ञान केंद्रों (केवीके), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) संस्थानों, केंद्र सरकार के संस्थानों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों इत्यादि को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई जाती है ।

3.  योजना की उपलब्धियां

प्रदेश/ एजेंसी

धनराशि (करोड़ रुपये में)

व्यय (करोड़ रुपये में)

मशीनों का अधिग्रहण (संख्या)

कस्टम हायरिंग केंद्र की स्थापना

 

लक्ष्य

 

उपलब्धि

 

लक्ष्य

 

उपलब्धि

पंजाब

269.38

257.00

8309

12348

5288

3950

हरियाणा

137.84

121.86

3718

3548

1230

1188

उत्तर प्रदेश

148.60

117.00

19164

16453

1015

2344

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) एवं अन्य एजेंसियां

28.51

25.50

560

528

--

0

कुल

584.33

521.36

31751

32877

7533

7482

 

4.  कृषि, सहकारिता एवं किसान कल्याण विभाग (डीएसी एंड एफडबल्यू) सचिव राज्य स्तरीय एवं ज़िला स्तरीय अधिकारियों के साथ वीडियो कॉफ्रेंसिंग के माध्यम से नियमित रूप से प्रगति की निगरानी कर रहे हैं, साथ ही योजना के अंतर्गत ज्वलंत मुद्दों की निगरानी भी कर रहे हैं । यह वीडियो कॉफ्रेंसिंग दिनांक 11.10.2018, 17.10.2018, 25.10.2018, 01.11.2018 एवं 12.11. 2018, 20.11.2018, 28.11.2018 और 18.12. 2018 को आयोजित हुई हैं ।  

5.  योजना की प्रगति की निगरानी सचिव (कृषि, अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग) तथा महानिदेशक (भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद) की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय निगरानी समिति द्वारा भी की जा रही है । इसकी बैठकें दिनांक 02.08.2018, 20.09.2018, 26.10.2018 एवं 15.11.2018 को आयोजित हुई हैं ।

 

मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन

मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन (एसएचएम) दरअसल राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (एनएमएसए)  के अंतर्गत आने वाले कई घटकों में से एक है। एसएचएम का उद्देश्‍य जैविक खादों और जैव उर्वरकों के इस्‍तेमाल के साथ-साथ द्वितीयक एवं सूक्ष्म पोषक तत्वों सहित रासायनिक उर्वरकों के विवेकपूर्ण उपयोग के जरिए एकीकृत पोषक तत्‍व प्रबंधन (आईएनएम) को बढ़ावा देना है। इसके मुख्‍य लक्ष्‍य ये हैं: मृदा का स्‍वास्‍थ्‍य एवं इसकी उत्‍पादकता बेहतर करना, मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने हेतु किसानों को मृदा परीक्षण आधारित सिफारिशें सुलभ कराने के लिए मिट्टी एवं उर्वरक परीक्षण सुविधाओं को मजबूत करना; उर्वरक नियंत्रण आदेश, 1985 के तहत उर्वरकों, जैव उर्वरकों और जैविक उर्वरकों की गुणवत्ता नियंत्रण आवश्यकताएं सुनिश्चित करना; प्रशिक्षण और समुचित प्रदर्शनों के जरिए मृदा परीक्षण प्रयोगशालाओं के कर्मचारियों,विस्तार कर्मचारियों और किसानों के कौशल एवं ज्ञान का उन्नयन करना, जैविक खेती से जुड़ी प्रथाओं को बढ़ावा देना, इत्‍यादि।

इस योजना के तहत 6 स्थिर मृदा परीक्षण प्रयोगशालाओं (एसटीएल), 6 मोबाइल मृदा परीक्षण प्रयोगशालाओं, 1561 ग्रामीण मृदा परीक्षण प्रयोगशालाओं, 139 एसटीएल के सुदृढ़ीकरण, 2 उर्वरक गुणवत्ता नियंत्रण प्रयोगशालाओं (एफक्‍यूसीएल) की स्थापना और 21 एफक्‍यूसीएल के सुदृढ़ीकरण के लिए 7168.00 लाख रुपये की राशि राज्यों को जारी की गई।

 

मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना

देश में सभी किसानों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड प्रदान करने के लिए ‘मृदा स्वास्थ्य कार्ड’ योजना फरवरी 2015 से ही लागू की जा रही है। मृदा स्वास्थ्य कार्ड किसानों को उनकी मिट्टी में निहित पोषक तत्‍वों के बारे में जानकारी प्रदान करेगा और इसके साथ ही मृदा के स्वास्थ्य एवं इसकी उर्वरता बेहतर करने के लिए आवश्‍यक पोषक तत्वों की उचित खुराक के बारे में सिफारिश भी पेश करेगा। देश में सभी भूमि जोतों के लिए हर दो वर्षों में मृदा स्वास्थ्य कार्ड जारी किया जाएगा।   

योजना के तहत वर्ष के दौरान 18769.73 लाख रुपये राज्यों को जारी किए गए।  योजना के द्वितीय चक्र (2017-18 से लेकर 2018-19 तक)  के दौरान मृदा के 255.48 लाख नमूने एकत्र किए गए, मृदाके 202.34 लाख नमूनों का परीक्षण किया गया और 687.59 लाख मृदा स्वास्थ्य कार्ड किसानों को वितरित किए गए।  

परंपरागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई)

  1. परंपरागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई) वर्ष 2015 से वर्ष 2017 के बीच केंद्र प्रायोजित कार्यक्रम (सीएसपी) के रूप में शुरू की गई प्रथम व्यापक योजना है, जिसे अब अगले 3 वर्षों के लिए संशोधित किया गया है। यह योजना पूर्वोत्‍तर राज्यों और जम्‍मू-कश्‍मीर, हिमाचल प्रदेश एवं उत्तराखंड के पहाड़ी राज्यों में 90:10 (भारत सरकारराज्य सरकारके अनुपात वाली वित्त पोषण व्‍यवस्‍था, केंद्र शासित प्रदेशों में 100 प्रतिशत की वित्त पोषण व्‍यवस्‍था और देश के शेष राज्यों में 60:40 के अनुपात वाली वित्त पोषण व्‍यवस्‍था के साथ लागू की गई है। इस योजना के नए दिशा-निर्देशों को वेबसाइट www.agricoop.nic.in पर अपलोड किया गया है। 
  2.  ‘पीकेवीवाई’ योजना को प्रत्येक क्लस्टर में 500-1000 हेक्टेयर क्षेत्र के लिए प्रति हेक्टेयर के आधार पर राज्य सरकार द्वारा कार्यान्वित किया जाता है। इसके तहत किसानों के एक ऐसे समूह पर ध्‍यान केंद्रित किया जाता है जिसके पास यथासंभव किसी गांव के भीतर आपस में स्‍पर्श करने वाला कुल मिलाकर 20 हेक्टेयर का क्षेत्र है। किसी भी समूह के अंतर्गत आने वाला किसान अधिकतम 2 हेक्टेयर तक लाभ उठा सकता है और सहायता राशि की सीमा 50, 000 रुपये प्रति हेक्‍टेयर है जिनमें से 62 प्रतिशत यानी 31,000 रुपये किसी भी किसान को जैविक रूपांतरण, जैविक संबंधी कच्‍चे माल, कृषि संबंधी कच्‍चे माल, उत्पादन से जुड़े बुनियादी ढांचे इत्‍यादि के लिए प्रोत्साहनों के रूप में दिए जाते हैं।  इसे 3 वर्षों की रूपांतरण अवधि के दौरान सीधे  डीबीटी के जरिए प्रदान किया जाएगा। लगभग लाख हेक्टेयर क्षेत्र के लक्ष्य को आने वाले वर्षों में कवर किया जाना प्रस्तावित है जो पिछले तीन वर्षों में कवर किए गए क्षेत्र का दोगुना है।  
  3.  कुल मिलाकर 20,000 (प्रत्येक 20 हेक्टेयरनए क्‍लस्‍टर राज्यों को आवंटित किए गए।
  4. वर्ष 2018-19 के दौरान जारी की गई कुल धनराशि 3.27 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में 16,333 क्‍लस्‍टरों (प्रत्येक 20 हेक्टेयरके लिए 204.33 करोड़ रुपये है।
  5. पीजीएस इंडिया की ताजा स्थिति निम्नानुसार है:
  1. पंजीकृत क्षेत्रीय परिषदों की संख्या                                325  
  2. पंजीकृत स्थानीय समूहों की संख्या                                 11705  
  3. ऑनलाइन पंजीकृत/लाभान्वित किसानों की संख्या     -           328091  (लगभग)

पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए जैविक मूल्य श्रृंखला विकास  मिशन (एमओवीसीडीएनईआर)

देश के पूर्वोत्तर क्षेत्र में जैविक खेती की अपार संभावनाओं को ध्‍यान में रखते हुए कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने वर्ष 2015-16 से वर्ष 2017-18 तक की अवधि के दौरान अरुणाचल प्रदेश, असम,मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड, सिक्किम और त्रिपुरा में कार्यान्वयन के लिए ‘पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए जैविक मूल्य श्रृंखला विकास मिशन (एमओवीसीडीएनईआर)’  नामक एक केंद्रीय क्षेत्र योजना शुरू की है। इस योजना का उद्देश्य उपभोक्ताओं के साथ उत्पादकों को जोड़ने के लिए मूल्य श्रृंखला (वैल्‍यू चेनमोड में प्रमाणित जैविक उत्पादन की व्‍यवस्‍था का विकास करना और संग्रह, एकत्रीकरण, प्रसंस्करण,विपणन एवं ब्रांड निर्माण पहल के लिए कच्‍चे माल से लेकर बीजों, प्रमाणीकरण और सुविधाओं के निर्माण तक की संपूर्ण मूल्य श्रृंखला के विकास में सहयोग प्रदान करना है। इस योजना को तीन वर्षों के लिए 400 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ अनुमोदित किया गया था।

क्लस्टरों के विकास, खेतों में या किसी अन्‍य स्‍थान पर कृषि से जुड़े कच्‍चे माल के उत्‍पादन, बीजों/रोपण सामग्री की आपूर्ति, कार्यात्मक बुनियादी ढांचे की स्थापना, एकीकृत प्रसंस्करण इकाई की स्थापना, प्रशीतित ढुलाई, शीतलन-पूर्व/कोल्ड स्टोर चैम्बर, ब्रांडिंग, लेबलिंग एवं पैकेजिंग, किसी स्‍थान को किराये पर लेने, मार्गदर्शन करने, किसी तीसरे पक्ष (थर्ड पार्टी) के जरिए जैविक प्रमाणीकरण, किसानों/प्रोसेसरों को जुटाने, इत्‍यादि के लिए सहायता प्रदान की जाती है। इस योजना के तहत 2015-16 से लेकर 2017-18 तक के तीन वर्षों की अवधि के दौरान देश के पूर्वोत्‍तर क्षेत्र में 50,000 हेक्टेयर क्षेत्र को जैविक खेती के दायरे में लाने का लक्ष्य रखा गया है।

एमओवीसीडीएनईआर के प्रमुख घटक:

  1. मूल्य श्रृंखला का उत्‍पादन
  2. मूल्य श्रृंखला का प्रसंस्‍करण
  3. मूल्य श्रृंखला का विपणन
  4. मूल्य श्रृंखला से जु़ड़ी सहायक एजेंसियां

एमओवीसीडीएनईआर योजना की वास्‍तविक एवं वित्तीय प्रगति रिपोर्ट

धनराशि जारी:

  1. वर्ष 2015-16 के दौरान 112.11 करोड़ रुपये की राशि जारी की गई है।
  2. वर्ष 2016-17 के दौरान 47.63 करोड़ रुपये की रकम जारी की गई है।
  3.  वर्ष 2017-18 के दौरान 66.22 करोड़ रुपये की राशि जारी की गई है।
  4.  चालू वित्त वर्ष 2018-19 में आठ राज्यों को 126.25 करोड़ रुपये की रकम जारी की गई है।

 बीवास्तविक प्रगति:

‘एमओवीसीडीएनईआर’ का प्रथम चरण - 50000 हेक्टेयर क्षेत्र के लक्ष्य के सापेक्ष 45918 हेक्टेयर क्षेत्र को जैविक खेती के दायरे में लाया गया। सभी 100 एफपीसी हासिल कर लिए गए हैं2500एफआईजी के लक्ष्य के सापेक्ष 2469 एफआईजी का गठन किया गया है, और 48948 किसानों को जुटाया जाता है। ‘एमओवीसीडीएनईआर’ का दूसरा चरण 50000 हेक्टेयर क्षेत्र के लक्ष्य के सापेक्ष20103 हेक्टेयर क्षेत्र को जैविक खेती के अंतर्गत लाया गया। 2500 एफआईजी के लक्ष्य के सापेक्ष 876 एफआईजी का गठन किया गया है और 19924 किसानों को जुटाया जाता है।

सीविपणन की दिशा में प्रगति:

विभिन्न ब्रांड पहले से ही राज्य स्तर पर विकसित हैं -:

क्र.सं.

राज्‍य का नाम

ब्रांड नाम/ट्रेडमार्क

1

अरुणाचल प्रदेश

जैविक अरुणाचल

2

मणिपुर

जैविक मणिपुर

3

मिजोरम

मिशन जैविक मिजोरम

4

नगालैंड

नगा जैविक

5

सिक्किम

सिक्किम जैविक मिशन

6

त्रिपुरा

त्रिपुरा जैविक (प्रक्रियाधीन)

7

असम

जैविक असम

 

  • सिक्किम राज्य सहकारी आपूर्ति एवं विपणन संघ लिमिटेड और केंद्रीय भंडार की ओर से जैविक स्टोर।
  • दिल्ली हाट, आईएनए, नई दिल्ली में जैविक खुदरा बिक्री केंद्र (रिटेल आउटलेटसह रेस्त्रां खोला और पूर्वोत्तर क्षेत्रीय कृषि विपणन निगम लिमिटेड (एनईआरएएमएसी) के माध्यम से कार्यान्वित किया।  
  • प्रदर्शनियों और व्यापार मेलों में भागीदारी
  • क्रेता-विक्रेता बैठकें, कार्यशालाएं, वीडियो, फोटो और प्रचार सामग्री
  • गतिविधियों और माईगव के साथ प्रतिस्‍पर्धा
  • एनईआरएएमएसी और नैफेड जैविक उत्पादों/ब्रांडेड जैविक उत्पादों के विपणन में मार्गदर्शन कर रहे हैं।

 प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई)– प्रति बूंद अधिक फसल

कृषि, सहकारिता और किसान कल्याण विभाग प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई) के ‘प्रति बूंद अधिक फसल’ घटक को लागू कर रहा है, जो देश में वर्ष 2015-16 से ही चालू है। पीएमकेएसवाई (प्रति बूंद अधिक फसल) के तहत मुख्य रूप से सटीक/सूक्ष्म सिंचाई के जरिए खेतों में जल उपयोग की दक्षता पर फोकस किया जाता है। उपलब्ध जल संसाधनों के उपयोग को अनुकूल बनाने के लिए सटीक सिंचाई (ड्रिप एवं स्प्रिंकलर या छिड़काव सिंचाई प्रणालीऔर खेतों में बेहतर जल प्रबंधन के तौर-तरीकों को बढ़ावा देने के अलावा  यह घटक स्रोत के सृजन के पूरक के तौर पर काम करते हुए अन्य ठोस उपायों (ओआई) के रूप में सूक्ष्म स्तर के जल भंडारण या जल संरक्षण/प्रबंधन गतिविधियों में भी सहयोग देता है।  

·         2018-19 के लिए आवंटन4000 करोड़ रुपये (बजट अनुमान)

·         अब तक जारी की गई धनराशि : 1978.26 करोड रुपये

·         उपलब्धिअब तक लगभग 6.1 लाख हेक्‍टेयर

सूक्ष्‍म सिंचाई कोष

      कृषि क्षेत्र में पानी के इस्‍तेमाल की कुशलता को बढ़ाने के उद्देश्‍य को हासिल करने और अपेक्षित विकास के लिए, वित्‍त मंत्री ने 2017-18 के केन्‍द्रीय बजट में नाबार्ड में एक समर्पित कोष स्‍थापित करने की घोषणा की, जिसे ‘सूक्ष्‍म सिंचाई कोष’ (एमआईएफनाम दिया गया, जिसके लिए आरंभ में 5000 करोड़ रुपये की राशि रखी गई है।

      आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडल समिति ने 16 मई, 2018 को हुई अपनी बैठक में समर्पित सूक्ष्‍म सिंचाई कोष को मंजूरी दे दी, जिसे 5000 करोड़ रुपये (2018-19 के लिए 2000 करोड़ रुपये और 2019-20 के लिए 3000 करोड़ रुपयेकी आरंभिक धनराशि से नाबार्ड के साथ स्‍थापित किया गया है, ताकि सूक्ष्‍म सिंचाई में सार्वजनिक और निजी निवेश को प्रोत्‍साहित किया जा सके।

      इस कोष का मुख्‍य उद्देश्‍य विशेष और नवोन्‍मेष परियोजनाओं को हाथ में लेकर सूक्ष्‍म सिंचाई के विस्‍तार के लिए संसाधन जुटाने में राज्‍यों की मदद करना है तथा साथ ही किसानों को सूक्ष्‍म सिंचाई प्रणाली लगाने के लिए प्रोत्‍साहित करने के उद्देश्‍य से प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाईके घटक ‘प्रति बूंद अधिक फसल’ (पीडीएमसीके अंतर्गत उपलब्‍ध प्रावधानों से सूक्ष्‍म सिंचाई को प्रोत्‍साहित करना है।

वर्षा वाले क्षेत्र के विकास का कार्यक्रम  

   निरंतर कृषि के राष्‍ट्रीय मिशन (एनएमएसएके अंतर्गत वर्षा वाले क्षेत्र के विकास (आरएडीकार्यक्रम में समन्वित कृषि प्रणाली पर विशेष ध्‍यान दिया गया है, ताकि उत्‍पादकता को बढ़ाया जा सके तथा जलवायु की भिन्‍नता से जुड़े खतरों को कम किया जा सके। इस व्‍यवस्‍था के अंतर्गत फसलें//फसल प्रणाली बागवानी, मवेशियों, मत्‍स्‍य पालन, कृषि वानिकी, मधुमक्‍खी पालन आदि जैसी गतिविधियां जुड़ी हैं, ताकि किसान पर सूखे, बाढ़ अथवा मौसम की अन्‍य प्रकार की मार से पड़ने वाले प्रभाव को कम किया जा सके ताकि फसल को नुकसान के दौरान उन्‍हें सहायक गतिविधियों से आमदनी के अवसर मिल सकें।

·         2018-19 के लिए आवंटन 234 करोड़ रुपये (बीई)

·         राज्‍यों को आवंटित राशि के संबंध में 148.09 करोड़ रुपये की राशि जारी की गई।

·         विभिन्‍न समन्वित कृषि प्रणालियों के अंतर्गत करीब 34000 हेक्‍टेयर क्षेत्र प्राप्‍त किया गया, जो मौसम में बदलाव के लिए लम्‍बे समय तक चल सकने वाला है।

लाभकारी आमदनी सुनिश्चित करना

न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य को बढ़ानाउत्‍पादन की लागत का 150 प्रतिशत एमएसपी घोषित।

    2018-19 के केन्‍द्रीय बजट में न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य उत्‍पादन की लागत के डेढ़ गुना स्‍तर पर रखने के लिए पूर्व निर्धारित सिद्धांत की घोषणा की गई। तदनुसार सरकार ने 2018-19 के मौसम के लिए उत्‍पादन की लागत के कम से कम 50 प्रतिशत मुनाफे के साथ सभी अधिसूचित खरीफ, रबी और अन्‍य व्‍यावसायिक फसलों के लिए न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य (एमएसपीबढ़ा दिया। सरकार का यह फैसला ऐतिहासिक फैसला था, क्‍योंकि अनिवार्य फसलों के लिए पहली बार उत्‍पादन लागत का 50 प्रतिशत लाभ प्रदान किया जा रहा है। वर्ष 2017-18 और 2018-19 के लिए न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य,लागत और लागत पर प्रतिशत लाभ का विवरण नीचे दिया गया है : -

लागत*, न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य (एमएवपीऔर लागत पर प्रतिशत लाभ

                                                                                        (रुपये प्रति क्विंटल)                   

क्र.सं.

खरीफ फसलें

एमएसपी(2017-18)

एमएसपी(2018-19)

1

धान (साधारण)

1550

1750

2

ज्‍वार (हाइब्रिड)

1700

2430

3

बाजरा

1425

1950

4

मक्‍का

1425

1700

5

रागी

1900

2897

6

अरहर (तुअर)

5450

5675

7

मूंग

5575

6975

8

उड़द

5400

5600

9

कपास (औसत मुख्‍य उपज)

4020

5150

10

छिलके में मूंगफली

4450

4890

11

सूरजमुखी का बीज

4100

5388

12

सोयाबीन

3050

3399

13

तिल

5300

6249

14

रामतिल

4050

5877

 

रबी फसलें

 

 

1

गेहूं

1735

1840

2

जौ

1410

1440

3

चना

4400

4620

4

मसूर (लेंटिल)

4250

4475

5

रेपसीड/सरसों

4000

4200

6

कुसुम

4100

4945

 

अन्‍य फसलें

 

 

1

खोपरा (गाहना)

6500

7511

2

कपास

3500

3700

3

गन्‍ना #

255

275

इसमें लागत का भुगतान शामिल है जैसे भाड़े का मानव श्रमबैलों से श्रम/मशीन से किये जाने वाले श्रम पर व्‍ययपट्टे की जमीन के भुगतान के लिए किरायाबीजोंउर्वरकोंखादसिंचाई शुल्‍क,वस्‍तुओं और कृषि भवनों का अवमूल्‍यनकार्यशील पूंजी पर ब्‍याजपम्‍पसेट चलाने के लिए डीजल/बिजली आदि जैसी निवेश सामग्री के इस्‍तेमाल पर हुए व्‍ययमिश्रित खर्च और परिवार के श्रम का अंतर्निहित मूल्‍य।

उचित और लाभकारी मूल्‍य (एफआरपी)

प्रधानमंत्री अन्‍नदाता आय संरक्षण अभियान (पीएम-एएएसएचए)

   मंत्रिमंडल ने नई प्रमुख योजना प्रधानमंत्री अन्‍नदाता आय संरक्षण अभियान (पीएम-एएएसएचएको मंजूरी दी।

    पीएम आशा किसानों को न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य प्रदान करना सुनिश्चित करेगी यह अन्‍नदाता के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

  किसान के हित में की गई सरकार की पहलों को आगे बढ़ाते हुए और अपनी प्रतिबद्धता तथा अन्‍नदाता के प्रति समर्पण को ध्‍यान में रखते हुए प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी की अध्‍यक्षता में केन्‍द्रीय मंत्रिमंडल ने एक नई योजना प्रधानमंत्री अन्‍नदाता आय संरक्षण अभियान (पीएम-एएएसएचएको मंजूरी दे दी। इस योजना का उद्देश्‍य किसानों को उनके उत्‍पाद के लिए लाभकारी मूल्‍य सुनिश्चित करना है, जिसकी 2018 के केन्‍द्रीय बजट में घोषणा की गई थी।

  किसानों की आमदनी को सुरक्षित करने के लिए सरकार द्वारा उठाया गया यह एक अभूतपूर्व कदम है, जो किसानों के कल्‍याण की दिशा में एक सफल कदम होगा। सरकार उत्‍पादन की लागत के डेढ़ गुना के सिद्धांत का पालन करते हुए खरीफ फसलों का न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य पहले ही बढ़ा चुकी है। उम्‍मीद है कि न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य में वृद्धि राज्‍य सरकारों के साथ समन्‍वय के जरिए तगड़ी खरीद व्‍यवस्‍था से किसानों की आमदनी में बदलेगी।

     

प्रधानमंत्री-अन्‍नदाता आय संरक्षण अभियान (पीएम-आशाके संघटक :

इस नई प्रमुख योजना के अंतर्गत किसानों को लाभकारी मूल्‍य दिलाना सुनिश्चित करने की प्रणाली शामिल है और इसके अंतर्गत समाहित हैं :-

·               मूल्‍य समर्थन योजना (पीएसएस),

·               मूल्य कमी भुगतान योजना (पीडीपीएस

·               निजी ख़रीद और स्टॉक स्कीम की पायलट योजना (पीपीपीएस

धान, गेंहू और पोषक अनाजों/मोटे अनाजों की खरीद के लिए खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग (डीएफपीडीतथा कपास और पटसन की खरीद के लिए वस्‍त्र मंत्रालय की मौजूदा अन्‍य योजनाएं किसानों को इन फसलों के लिए न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य (एमएसपीउपलब्‍ध कराने के लिए जारी रखी जाएंगी।

मंत्रिमंडल ने यह भी तय किया है कि खरीद संबंधी कार्यों में निजी क्षेत्र की साझेदारी का प्रायोगिक परीक्षण करने की जरूरत है, ताकि उससे प्राप्‍त सबक के आधार पर खरीद कार्यों में निजी क्षेत्र की साझेदारी का दायरा बढ़ाया जा सके। इसलिए पीडीपीएस के अलावा, यह फैसला किया गया कि तिलहनों के लिए राज्‍यों के पास निजी स्टॉकिस्ट की साझेदारी वाले चुनिंदा जिले/जिले के एपीएमसी में निजी ख़रीद और स्टॉक योजना (पीपीपीएसपायलट आधार पर लागू करने का विकल्‍प होगा। पायलट जिला/जिले का चुनिंदा एपीएमसी तिलहन की एक या अधिक फसलों को कवर करेगा, जिसके लिए एमएसपी अधिसूचि‍त किया गया है।  यह पीएसएस के समान है, इसलिए इसके तहत अधिसूचित जिंस की वास्‍तविक खरीद शामिल है, यह पायलट जिलों में पीएसएस/पीडीपीएस का विकल्‍प होगी। 

चयनित निजी एजेंसी अधिसूचित मंडियों में अधिसूचित अवधि के दौरान पंजीकृत किसानों से पीपीएसएस दिशा-निर्देशों के अनुरूप एमएसपी पर जिंस की खरीद करेगी, जब भी मंडी के भाव अधिसूचित एमएसपी से कम होंगे और जब भी राज्‍य/केन्‍द्र शासित सरकारों द्वारा मंडी में प्रवेश करने के लिए प्राधिकृत होंगे और अधिसूचित एमएसपी का अधिकतम 15 प्रतिशत तक का सेवा शुल्‍क देय होगा।

व्‍यय :

    मंत्रिमंडल ने 16,550 करोड़ रुपये की अतिरिक्‍त सरकारी गारंटी देने का फैसला किया है। इसके साथ ही कुल राशि 45,550 करोड़ रुपये हो जाएगी।

इसके अलावा, खरीद कार्यों के लिए बजट प्रावधान भी बढ़ा दिया गया है और पीएम-आशा कार्यान्‍वयन के लिए 15,053 करोड़ रूपये मंजूर किये गये है। अब आगे से यह योजना हमारे ‘अन्‍नदाता’ के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता और समर्पण का प्रतिबिंब होगी।

पिछले कुछ वर्षों के दौरान खरीद : 

    वित्‍त वर्ष 2010-14 के दौरान कुल 3500 करोड़ रुपये की खरीद की गई, जबकि वित्‍त वर्ष 2014-18 के दौरान यह दस गुना बढ़कर 34,000 करोड़ रुपये हो गई। वित्‍त वर्ष 2010-14 के दौरान इन कृषि जिंसों की खरीद के लिए मात्र 300 करोड़ रुपये के व्‍यय के साथ 2500 करोड़ रुपये की सरकारी गारंटी उपलब्‍ध कराई गई, जबकि वित्‍त वर्ष 2014-18 के दौरान 1,000 करोड़ रुपये व्‍यय के साथ गारंटी की राशि बढ़ाकर 29,000 करोड़ रूपये कर दी गई।

विवरण :

    भारत सरकार किसी भी मसले को टुकड़ों में हल करने की बजाय समग्र दृष्टिकोण के साथ उसका समाधान करने की दिशा में काम कर रही है। बढ़ता एमएसपी पर्याप्‍त नहीं है और ज्‍यादा महत्‍वपूर्ण बात यह है कि किसानों को घोषित एमएसपी का पूर्ण लाभ मिल सके। इसके लिए सरकार ने महसूस किया कि यदि कृषि उपज मंडी का मूल्‍य एमएसपी से कम है, तो यह अनिवार्य है कि राज्‍य सरकार और केन्‍द्र सरकार उसकी खरीद एमएसपी पर करें या फिर किसी अन्‍य व्‍यवस्‍था के माध्‍यम से किसानों के लिए एमएसपी उपलब्‍ध कराने की दिशा में काम करे। इस दृष्टिकोण के साथ मंत्रिमंडल ने तीन उप-योजनाओं यथामूल्‍य समर्थन योजना (पीएसएस),मूल्य कमी भुगतान योजना (पीडीपीएसऔर निजी ख़रीद और स्टॉक स्कीम की पायलट योजना (पीपीपीएसके साथ  प्रमुख योजना पीएम-आशा को मंजूरी दी है।

मूल्‍य समर्थन प्रणाली (पीएसएसमें दालों, तिलहनों और खोपरा की वा‍स्‍तविक खरीद राज्‍य सरकारों की अग्रसक्रिय भूमिका के साथ केन्‍द्रीय नोडल एजेंसियों के माध्‍यम से की जाएगी। यह भी फैसला किया गया कि राज्‍यों/जिलों में पीएसएस कार्यों का दायित्‍व नेफेड के अलावा, भारतीय खाद्य निगम (एफसीआईद्वारा वहन किया जाएगा। खरीद पर व्‍यय और खरीद के कारण हानि का वहन केन्‍द्र सरकार द्वारा नियमों के अनुसार किया जाएगा।

मूल्य कमी भुगतान योजना (पीडीपीएसके अंतर्गत, सभी तिलहनों को कवर करने का प्रस्‍ताव है, जिसके लिए एमएसपी अधिसूचित किया गया है। एमएसपी तथा बिक्री/मोडल मूल्‍य के बीच के अंतर का सीधा भुगतान पूर्व पंजीकृत किसानों को अधिसूचित मंडियों में नीलामी की पारदर्शी प्रक्रिया के जरिये अपनी उपज बेचने के लिए दिया जाएगा। सारा भुगतान सीधे तौर पर किसान के पंजीकृत बैंक खाते में किया जाएगा। इस योजना में फसलों की वास्‍तविक खरीद शामिल नहीं होगी, क्‍योंकि किसानों को अधिसूचित मंडी में विक्रय करने पर एमएसपी तथा बिक्री/मोडल मूल्‍य के बीच के अंतर का भुगतान हो चुका होगा। पीडीपीएस के लिए केन्‍द्र सरकार का समर्थन नियमों के अनुसार होगा।

किसान हित में सरकार की योजनाएं:

सरकार 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लिए प्रतिबद्ध है। उत्पादन बढ़ानेकृषि लागत को कम करने तथा बाजार संरचना समेत कृषि उत्पाद प्रबंधन पर विशेष जोर दिया गया है। बाजार सुधार के लिए कई पहलों की शुरूआत की गई है। इनमें शामिल हैंमॉडल कृषि उत्पाद और पालतू पशु विपणन अधिनियम 2017 व मॉडल संविदा कृषि और सेवा अधिनियम 2018 । कई राज्यों में इन अनुशंसाओं को लागू करने के लिए अपनी विधानसभाओं में कानून पारित किए हैं।

किसानों को उनके उत्पाद का सही मूल्य प्राप्त होइसके लिए बाजार के रूपांतरण का प्रयास किया जा रहा है। इनमें शामिल हैंग्रामीण कृषि बाजार (जीआरएएमकी स्थापनाजिससे 22000 खुदरा बाजारों को प्रोत्साहित किया जाएगा-नाम की मदद से कृषि उत्पाद बाजार समिति में प्रतिस्पर्धात्मक और पारदर्शी थोक व्यापार तथा किसान अनुकूल निर्यात नीति।

इसके अतिरिक्त किसानों के हित में विभिन्न कार्यक्रमों को लागू किया गया है जैसेप्रधानमंत्री फसल बीमा योजनाप्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजनापरम्परागत कृषि विकास योजना और मृदा स्वास्थ्य कार्ड का वितरण। कृषि लागत से डेढ़ गुणा न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करने से भी सरकार की किसान हित के प्रति प्रतिबद्धता परिलक्षित होती है।

कृषि उत्पाद विपणन

राष्ट्रीय कृषि बाजार (-नाम)

·         16 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में कुल 585 -नाम बाजारों का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। अभी तक ई-नाम में 115 थोक बाजारों का पंजीकरण हुआ है।

·         वर्तमान की 320 -नाम मंडियों में सफाईछंटाईश्रेणी निर्धारण और पैकेजिंग के लिए तथा 245 -नाम मंडियों में कम्पोस्ट खाद के निर्माण के लिए वित्तीय सहायता को मंजूरी दी गई है।

·         मंडियों में कृषि उत्पादों की सफाईछंटाईश्रेणी निर्धारण और पैकेजिंग तथा कम्पोस्ट खाद निर्माण के लिए 137.33 करोड़ रुपये मंजूर किए गए।

·         आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडल समिति ने 2018-20 के दौरान 415 थोक बाजारों को ई-नाम के साथ जोड़ने की मंजूरी दी है।

 

उद्यम सहायता

·         कृषि आधारित प्रसंस्करण इकाईयों को स्थापित करने के लिए कृषि उद्यमियों को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई जाती है। एसएफएसी ने जनवरी से दिसंबर2018 के दौरान 484 परियोजनाओं के लिए 140.81 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई है। इन इकाईयो की कुल लागत 1631.25 रोड़ रुपये है।

किसान उत्पादक कम्पनियों का गठन

·         जनवरी से दिसंबर2018 के दौरान 22 किसान उत्पादक कम्पनियों का गठन व पंजीकरण हुआ। 22000 किसान इन कम्पनियों से जुड़े हुए हैं। दिसंबर2018 तक 773 कम्पनियों का पंजीकरण हुआ है और 133 कम्पनियां पंजीकरण की प्रक्रिया में है।

ग्रामीण बाजारों को ग्रामीण कृषि बाजारों (जीआरएएमके रूप में उन्नयन और विकास

·         विपणन और निरीक्षण निदेशालय के द्वारा 9477 ग्रामीण हाटों का सर्वेक्षण किया गया। सर्वेक्षण के दौरान अवसंरचना की स्थितिकृषि उत्पाद का प्रकार आदि के संबंध में जानकारी इकट्ठी की गई ताकि ग्रामीण हाटों के उन्नयन व विकास के लिए बेहतर रणनीति बनाई जा सके।

·         ग्रामीण कृषि बाजारों में विपणन सुविधाओं के विकास के लिए वित्त परिव्यय समिति ने 2000 करोड़ रुपये के कृषि बाजार अवसंरचना कोष (एएमआईएफके निर्माण को मंजूरी दी। इस प्रस्ताव को आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति के समक्ष मंजूरी के लिए रखा गया है।

·         ग्रामीण कृषि बाजारों के संचालन के लिए डीएसी एंड एफडब्ल्यू ने दिशा-निर्देशों तैयार किए है। इन संचालन दिशा-निर्देशों को सभी राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों के साथ-साथ ग्रामीण मंत्रालयपंचायती राज्य मंत्रालय और आदिवासी मामलों के मंत्रालय के साथ साझा किया गया है।

कृषि विपणन अवसंरचना (एएमआई)

·         कृषि विपणन अवसंरचना (एएमआईएकीकृत कृषि विपणन योजना का एक हिस्सा है। इसे 22 अक्टूबर2018 से फिर से शुरू किया गया है और यह 2019-20 (14वां वित्त आयोगतक जारी रहेगा।

आदर्श प्रारूप संविदा कृषि अधिनियम

·         संसाधनों के अधिकतम इस्तेमाल और मूल्य तथा बाजार की अनिश्चितता के प्रभाव को कम करने के लिए सरकार ने एक आदर्श प्रारूप अधिनियम तैयार किया है। सरकार ने मई2018 में राज्य/केन्द्र शासित प्रदेश कृषि उत्पाद व पालतू पशु संविदा कृषि और सेवाएं (प्रोत्साहन और सुविधाअधिनियम2018 तैयार किया और इसे राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों को स्वीकृति के लिए प्रेषित किया। इस आदर्श प्रारूप संविदा कृषि अधिनियम में उत्पादन पूर्व से लेकर फसलों की कटाई तक तथा कृषि उत्पादों व पालतू जानवरों के विपणन की सभी गतिविधियों को शामिल किया गया है।

जोखिम को कम करना

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना

योजना को लागू करने के दो वर्षों के अनुभव के आधार पर तथा बेहतर पारदर्शिता जवाबदेही और समय पर भुगतान सुनिश्चित करने के लिए सरकार ने योजना के संचालन दिशा-निर्देशों को व्यापक रूप से संशोधित किया है। ये संशोधित दिशा-निर्देश अक्टूबर2018 अर्थात् रबी 2018-19 से लागू किए गए है। संशोधित दिशा-निर्देशों की प्रमुख विशेषताएं निम्न हैं-

किसान द्वारा किए गए दावों के निपटारे में यदि दस दिनों से ज्यादा का विलम्ब होता है तो ऐसी स्थिति में राज्योंबीमा कम्पनियों तथा बैंकों पर 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से अर्थ दंड का प्रावधान किया गया है।

इसी प्रकार यदि राज्य सरकार सब्सिडी में राज्य का हिस्सा जारी करने में तीन महीनों की देरी करती है तो राज्य सरकार पर 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से अर्थ दंड का प्रावधान किया गया है।

दावा राशि के आकलन के लिए पद्धति में संशोधन किया गया है। सीमा उत्पादन निर्धारण के लिए वर्षों के दौरान सर्वोत्तम उत्पादन के वर्षों पर विचार किया जाएगा।

बीमा के लिए फसल के नाम में बदलाव के लिए समयसीमा बढ़ा दी गई है। पहले निश्चित तारीख से एक महीने पहले तक फसल-नाम पंजीकृत कराना होता था अब निश्चित तारीख के दो दिन पहले तक यह कार्य किया जा सकता है।

व्यक्तिगत दावों की सूचना देने के लिए बीमाकृत किसानों को अधिक समयकिसी हितधारक द्वारा या पोर्टल पर सीधे 72 घंटों के अंदर। पहले की समयसीमा 48 घंटों की थी।

फसल कटाई के बाद ओले से होने वाली हानि को भी बीमे में शामिल किया गया है। गैर-मौसमी वर्षा तथा चक्रवाती वर्षा भी इसमें पहले से शामिल है।

ओलावृष्टिभूस्खलन और जलप्लावन के अतिरिक्त बादल के फटने व आग जैसी स्थानीय आपादाओं को भी शामिल किया गया है।

प्रचार और जागरुकता के लिए एक ब्यौरेवार योजना तैयार की गई है। इसके लिए प्रति कम्पनी प्रति व्यक्ति प्रीमियम की 0.5 प्रतिशत राशि निर्धारित की गई है।

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अंतर्गत सदाबहार बागवानी फसलों (पायलट आधार परको भी शामिल किया गया है।

जोखिम के वर्गीकरण के लिए रिमोट सेंसिंग प्रौद्योगिकी (आरएसटीका उपयोग।

यह योजना अपने कार्यान्वयन के तीसरे वर्ष में है और विभाग ने कड़ी निगरानी व्यवस्था तैयार की है। इसके अंतर्गत सभी हितधारकों जैसे राज्यबीमा कम्पनीबैंक व अन्य एजेंसियों के साथ विषय विशेष को ध्यान में रखते हुए साप्ताहिक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बैठकें आयोजित की जाती है। बैठक में अन्य हितधारकों जैसे प्रौद्योगिकी परामर्शदात्री समिति और राष्ट्रीय निगरानी समिति को भी शामिल किया जाता है ताकि योजना के अंतर्गत दावों का निपटारा जल्द से जल्द किया जा सके।

कृषि ऋण

 

    कृषि हमारी अर्थव्‍यवस्‍था का प्रमुख क्षेत्र है और कृषि उत्‍पाद बढ़ाने में ऋण महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। संस्‍थागत स्रोतों से समुचित, समय आधारित और सस्‍ती दर पर ऋण मिलना छोटे और सीमांत किसानों के लिए खास तौर से बहुत महत्‍व रखता है। अन्‍य घटकों के अलावा ऋण, खेती-किसानी को फायदेमंद बनाने के लिए बहुत आवश्‍यक है। अनुभव से पता चलता है कि सस्‍ती दरों पर वित्‍तीय सेवाओं तक आसान पहुंच के कारण गांवों के गरीबों की खाद्य सुरक्षा, उत्‍पादकता और आय पर सकारात्‍मक प्रभाव पड़ता है।

भारत सरकार ने ऋण के संस्‍थागत स्रोतों तक किसानों की पहुंच में सुधार के लिए कई नीतिगत उपायों को शुरू किया है। इन नीतियों का दौर सभी किसानों को उचित ऋण समर्थन और समय पर ऋण  देने के मद्देनजर ऋण प्रक्रिया को दुरुस्‍त बनाना है। इसके तहत छोटे और सीमांत किसानों तथा समाज के कमजोर वर्गों पर विशेष ध्‍यान दिया जा रहा है, ताकि उन्‍हें आधुनिक प्रौद्योगिकी अपनाने तथा कृषि उत्‍पादन और उत्‍पादकता बढ़ाने के लिए उन्‍नत कृषि तौर-तरीके आजमाने में सुविधा होगी। इन नीतिगत उपायों से संस्‍थागत ऋण की हिस्‍सेदारी में काफी बढ़ोत्‍तरी हुई। हर साल भारत सरकार बजट में कृषि के लिए ऋण प्रक्रिया की घोषणा करती है, जिसे बैंक वित्‍त वर्ष के दौरान हासिल करने का प्रयास करते हैं।

 

बैंक लगातार वार्षिक लक्ष्‍य को पार करते रहे हैं। पिछले वर्षों के दौरान कृषि ऋण प्रवाह के संबंध में लक्ष्‍य और उपलब्‍धि इस प्रकार है:-

 

 (करोड़ रुपये में)

वर्ष

लक्ष्‍य

उपलब्‍धि

2014-15

8,00,000

8,45,328.23

2015-16

8,50,000

9,15,509.92

2016-17

9,00,000

10,65,755.67

2017-18

10,00,000

     11,68,502.83

     कृषि क्षेत्र में उत्‍पादन और उत्‍पादकता में सुधार के लिए पूंजी रचना पर अधिक जोर देने के मद्देनजर साविधिक ऋण के तहत 35 प्रतिशत का उप-लक्ष्‍य रखा गया है। यह वर्ष 2018-19 के संदर्भ में 11,00,000 करोड़ रुपये के कुल कृषि ऋण लक्ष्‍य के दायरे में 3,85,000 करोड़ रुपये निर्धारित किया गया। एजेंसी के संदर्भ में और 2018-19 के लिए उद्देश्‍य के संबंध में कृषि ऋण लक्ष्‍य इस प्रकार हैं:-

 (करोड़ रुपये में)

एजेंसी

फसल ऋण

साविधिक ऋण

योग

वाणिज्‍यिक बैंक

4,63,000

3,29,000

7,92,000

सहकारी बैंक

1,42,000

23,000

1,65,000

क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक

1,10,000

33,000

1,43,000

योग

7,15,000

3,85,000

11,00,000

  1. ब्‍याज अनुदान योजना

कृषि ऋण की उपलब्‍धता सुनिश्‍चित करने के लिए भारत सरकार ने 2006-07 में ब्‍याज अनुदान योजना शुरू की थी। वर्ष 2017-18 और 2018-19 के लिए भारत सरकार के दिशा-निर्देश के अनुसार हर साल प्रतिशत ब्‍याज अनुदान सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों, निजी क्षेत्र के बैंकों (उनके ग्रामीण और अर्द्ध-शहरी शाखाओं द्वारा दिए गए ऋण के संबंध में), सहकारी बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को दिया जा रहा है। यह इन बैंकों के लाख रुपये तक के अल्‍पकालीन फसल ऋणों के आधार पर उनकी अपनी निधियों पर दिया जा रहा है। यह किसानों को प्रति वर्ष प्रतिशत की बुनियाद पर अल्‍पकालीन ऋण की उपलब्‍धता के संबंध में है।

      उपरोक्‍त के अलावा किसानों को अतिरिक्‍त ब्‍याज अनुदान प्रदान करने के लिए 2009-10 से एक और योजना शुरू की गई। यह योजना वहां लागू होगी, जहां किसानों द्वारा तुरंत ऋण चुकता करने के संबंध में इस समय प्रतिशत ब्‍याज अनुदान को प्रेरक के तौर पर दिया जाता है। यह अनुदान किसानों को अल्‍पकालीन उत्‍पादन ऋण पर उपलब्‍ध कराया जाता है, जो वर्ष में अधिकतम लाख रुपये के आधार पर है। इस तरह तुरंत चुकता करने वाले किसानों को विभिन्‍न बैंकों से प्रतिशत वार्षिक दर पर अल्‍पकालीन फसल ऋण प्राप्‍त हो रहा है।

     किसानों को निराशा में अपनी फसल बेचने से हतोत्‍साहित करने और उन्‍हें अपने उत्‍पादों को गोदामों में रखने पर प्रोत्‍साहित करने के लिए छोटे तथा सीमांत किसानों को ब्‍याज अनुदान का लाभ उपलब्‍ध होगा। यह लाभ उन किसानों को उपलब्‍ध कराया जाएगा, जिनके पास किसान क्रेडिट हो। यह सुविधा फसल कटाई के बाद महीनों तक दी जाएगी। यह उसी दर पर उपलब्‍ध होगा, जिस दर पर भंडारण विकास नियामक प्राधिकरण द्वारा मान्‍यता प्राप्‍त गोदामों में रखे जाने वाले उत्‍पाद के लिए जारी गोदाम रसीद के आधार पर फसल ऋण उपलब्‍ध रहा हो।

    प्राकृतिक आपदा से पीड़ित किसानों को राहत पहुंचाने के लिए वार्षिक प्रतिशत का ब्‍याज अनुदान बैंकों को उपलब्‍ध किया जाएगा। यह अनुदान पुनर्गठित ऋण राशि पर बैंकों को पहले वर्ष के लिए दिया जाएगा। इस पुनर्गठित ऋण पर भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी नीति के अनुसार दूसरे साल से सामान्‍य ब्‍याज दर लगेगी। योजना के तहत पिछले वर्षों और मौजूदा वर्ष के लिए बजट प्रावधान और खर्च का विवरण इस प्रकार है:-

(करोड़ रुपये में)

क्र.सं.

वर्ष

बजट प्रावधान

वार्षिक खर्च

1

2014-15

6,000

6,000

2

2015-16

13,000

13,000

3

2016-17

13,619.13

13,397.13

4

2017-18

15,000

13,045.72

5.

2018-19

15,000

10,554.81 (अद्यतन)

 

III.  प्राकृतिक आपदाओं पर प्रमुख निर्देश

   प्राकृतिक आपदाओं से पैदा होने वाले हालात से निपटने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने एक प्रणाली तैयार की है। उसने बैंकों को ‘प्राकृतिक आपदाओं से पीड़ित क्षेत्रों में बैंकों द्वारा राहत उपाय’ के तहत प्रमुख निर्देश के रूप में दिशा-निर्देश जारी किए हैं। कोई राज्‍य/जिला प्रशासन आपदा घोषित करेगा, ये दिशा-निर्देश अपने-आप लागू हो जाएंगे। समन्‍वय कर्ताओं को यह सुनिश्‍चित करना होगा कि जिला परामर्श समितियों और राज्‍य स्‍तरीय बैंकों कर्मियों की समितियों की बैठक तुरंत बुलाई जाए, ताकि राज्‍य/जिला प्रशासन के सहयोग से बचाव कार्यक्रम के क्रियान्‍वयन की कार्य योजना हरकत में आ जाए। बचाव के संबंध में बैंकों के योगदान के तहत मौजूदा ऋणों के समय को दोबारा निर्धारित किया जाएगा और ताजा ऋण स्‍वीकार किए जाएंगे। बैंकों द्वारा ऋण सहायता हालात के मद्देनजर तय किए जाएंगे तथा इस संबंध में बैंकों की अपनी संचालन क्षमता तथा कर्जदारों की वास्‍तविक जरूरतों का ध्‍यान रखा जाएगा।

बैंकों ने प्राकृतिक आपदाओं के संबंध में वास्‍तविक समय के आधार पर आंकड़े प्राप्‍त करने के लिए एक पोर्टल भी विकसित किया है।

अंतर्राष्‍ट्रीय सहयोग

  1. द्विपक्षीय सहयोग

समझौतादस्‍तावेज पर हस्‍ताक्षर: कृषि और संबंधित क्षेत्र में योगदान के लिए भारत ने 17 फरवरी, 2018 को ईरान तथा 01 अक्‍टूबर, 2018 को उज्‍बेकिस्‍तान के साथ समझौता दस्‍तावेज पर हस्‍ताक्षर किए। मौजूदा समझौता दस्‍तावेजों पर कार्यान्‍वयन के लिए पुर्तगाल, मेडागास्‍कर, डच, पौलेंड, डेनमार्क, फिलीपीन्‍स, नेपाल, रूस और ऑस्‍ट्रेलिया के साथ संयुक्‍त कार्य समूहों ने बैठकें कीं।

  1. भारत-नेपाल सहयोग

नई दिल्‍ली 19 जून, 2018 को भारत के कृषि एवं किसान कल्‍याण मंत्री और नेपाल के कृषि मंत्री की अध्‍यक्षता में ‘कृषि में भारत-नेपाल नई साझेदारी’ की उद्घाटन बैठक आयोजित हुई। सहयोग के चिन्‍हित क्षेत्रों के मद्देनजर जैविक खेती और मृदा स्‍वास्‍थ्‍य कार्ड के विकास में भारत, नेपाल की सहायता कर रहा है। इसके लिए भारत 432.397 लाख रुपये प्रदान कर रहा है। जैविक खेती और प्रमाणीकरण में 20-20 नेपाली भागीदारों को प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रदान किए जाएंगे। इनका आयोजन 15 नवम्‍बर, 2018 से 14 दिसम्‍बर, 2018 तक और 01 फरवरी से मार्च, 2019 तक गाजियाबाद में राष्‍ट्रीय जैविक कृषि केंद्र कर रहा है।

  1. यूएस-एड

20 एशियाई और अफ्रीकी देशों के नागरिकों को प्रशिक्षण देने के लिए भारत, यूएस-एड के साथ सहयोग कर रहा है। ये देश लाइबेरिया, कीनिया, मलावी, बोत्‍सवाना, डीआर कांगो, घाना, मोजांबीक,रवांडा, सूडान, तंजानिया, अफगानिस्‍तान, कंबोडिया, लाओ पीडियार, मंगोलिया, म्‍यांमार और वियतनाम हैं। अप्रैल से नवम्‍बर, 2018 के दौरान 24 अमेरिका-भारत-अफ्रीका त्रिपक्षीय अंतर्राष्‍ट्रीय प्रशिक्षण कार्यक्रमों का सफलतापूर्वक आयोजन हुआ। इस यूएस-एड द्वारा सहायता प्राप्‍त परियोजना के तहत 20 देशों के 565 अधिकारियों को प्रशिक्षण प्रदान किया गया है।

  1. शंघाई सहयोग संगठन      

अस्‍ताना में आयोजित एक शिखर सम्‍मेलन में जून, 2017 को भारत शंघाई सहयोग संगठन का पूर्ण सदस्‍य बना था। उसके बाद इस मंत्रालय ने 18-19 ितम्‍बर, 2018 के दौरान बिशेक,किर्गिस्‍तान में शंघाई सहयोग संगठन के सदस्‍य देशों के कृषि और कृषि मंत्रियों के स्‍थायी कार्य समूह की बैठक में भाग लिया था। कृषि में सहयोग के मद्देनजर शंघाई सहयोग संगठन सदस्‍य देशों की सरकारों के बीच समझौते के कार्यान्‍वयन पर 2018-19 के लिए सूत्री शंघाई सहयोग संगठन कार्य योजना पर हस्ताक्षर किए गए।

  1. अंतर्राष्‍ट्रीय गतिविधियां

भारत-रूस राजनयिक संबंधों की 70वीं वर्षगांठ: कृषि क्षेत्र में भारत-रूस राजनयिक संबंधों की 70वीं वर्षगांठ 13-14 फरवरी, 2018 के दौरान मनाई गई। इस उपलक्ष्‍य में नई दिल्‍ली में 13 फरवरी,2018 को भारत-रूस कृषि व्‍यापार शिखर सम्‍मेलन का आयोजन हुआ। इसके अलावा 14 फरवरी, 2018 को सूरतगढ़, राजस्‍थान में केंद्रीय राज्‍य फार्म में मुख्‍य समारोह आयोजित किया गया। इस समारोह में रूस के उप कृषि मंत्री श्री सर्गेई ओबेलेत्‍सकी और कृषि एवं किसान कल्‍याण राज्‍य मंत्री श्री गजेंद्र सिंह शेखावत उपस्‍थित हुए।

  1. अंतर्राष्‍ट्रीय गोष्‍ठीकार्यशाला/सम्‍मेलन इत्‍यादि

वर्ष 2017-18 (दिसम्‍बर, 2017 तकके दौरान इस विभाग ने खाद्य एवं कृषि संगठन तथा अन्‍य अंतर्राष्‍ट्रीय संगठनों द्वारा आयोजित कृषि विकास के विभिन्‍न पक्षों के संबंध में 97 अंतर्राष्‍ट्रीय सम्‍मेलनों/बैठकों/गोष्‍ठियों/प्रशिक्षणों इत्‍यादि में हिस्‍सा लिया।

  1. संयुक्‍त राष्‍ट्र के तत्‍वावधान में मोटे अनाज के संबंध में अंतर्राष्‍ट्रीय वर्ष मनाने के लिए भारत सरकार के प्रस्‍ताव को खाद्य एवं कृषि संगठन परिषद ने 2023 के लिए अनुमोदित किया। इसकी अंतिम घोषणा के लिए संयुक्‍त राष्‍ट्र आम सभा को सूचित करने के पहले इस प्रस्‍ताव को जून, 2019 में खाद्य एवं कृषि संगठन सम्‍मेलन में पेश किया जाएगा। 

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आर.के.मीणा/अर्चना/एबी/केपी/जेके/आरआरएस/एकेपी/एसकेपी-वाईबी/डीके/


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