Vice President's Secretariat
Languages should help build bridges of understanding: Vice President
Addresses 16th Annual Convocation of Dakshina Bharat Hindi Prachar Sabha
Posted On:
19 NOV 2017 1:35PM by PIB Delhi
The Vice President of India, Shri M. Venkaiah Naidu has said that language can help good governance because information and knowledge can create an enlightened citizenry. He was addressing the 16th Annual Convocation of Dakshina Bharat Hindi Prachar Sabha, in Hyderabad today. The Deputy Chief Minister of Telangana, Shri Mohammad Mahmood Ali, the Vice President of Dakshina Bharat Hindi Prachar Sabha, Chennai, Shri H. Hanumantappa, the President of Dakshina Bharat Hindi Prachar Sabha, Andhra Pradesh & Telangana, Shri B. Obaiah and other dignitaries were present on the occasion.
The Vice President said that Hindi has played a historic role in the development of India's unity, integrity and linguistic goodwill. For the unification of the nation there is no element more powerful than the language spoken by most of Indians, he added.
The Vice President said that in the year 1936, the office of Dakshina Bharat Hindi Prachar Sabha was established in Vijaywada and as the Presidents of this Sabha, freedom fighters such as Shri Konda Venkapapayya Pantulu, Andhra Kesari Shri Tungturi Prakasham Pantulu, Shri Bejawada Gopalreddy, Swami Ramanand Tirtha did a great work. It is heartening to know that Dakshina Bharat Hindi Prachar Sabha has not only promoted Hindi but also prepared a large number of Hindi teachers, translators and publicists, he added.
The Vice President said that the Dakshina Bharat Hindi Prachar Sabha of Andhra and Telangana is celebrating its 16th Annual Convocation and he reminded the audience of Gandhiji's view that no country is independent in the true sense, until and unless it speaks in its own language.
The Vice President congratulated all the students who received the degrees of Rashtra Bhasha Visharad and Rashtra Bhasha Praveen in Hindi.
Following is the text of Vice President's address in Hindi:
"दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा में आयोजित 16वें राष्ट्रभाषा विषारद एवं राष्ट्रभाषा प्रवीण दीक्षांत समारोह के अध्यक्ष श्री हतुमंतप्पा जी, समकुलपति श्री आर.एफ. नीरलकट्टी जी, विशेष अतिथि श्री कडियम श्रीहरि जी, श्री चिंतल रामचंद्रा रेड्डी जी, अध्यक्ष पी. ओबय्या जी, यलमंदय्या जी, आंध्र तथा तेलंगाना के सचिव श्री सी. एस. होसगौडर जी, प्रधान सचिव श्री एस. जयराज जी और सभा के सभी सदस्यगण व उपाधि प्राप्त करने वाले छात्र-छात्राओं को अभिनंदन करते हुए मैं अत्यंत प्रसन्नता का अनुभव कर रहा हँ।
हिंदी प्रचार सभा पूज्य महात्मा गांधी द्वारा स्थापित राष्ट्रीय महत्व की संस्था है। हिंदी ने भारत की एकता अखंडता और भाषाई सद्भावना के विकास में ऐतिहासिक भूमिका निभाई है। राष्ट्र के एकीकरण के लिए सर्वमान्य भाषा से अधिक बलशाली कोई तत्व नहीं है। वास्तव में दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा की स्थापना इसी महान उद्देश्य की पूर्ति के लिए हुई। तब से लेकर आज तक निरंतर साधानारत है। सभा लंबे समय से भारत की सांस्कृतिक धरोहर और सामाजिक संस्कृति को सुरक्षित रखते हुए हिंदी भाषा के माध्यम से राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षा और शिक्षण के दायित्व को बखूबी निभाने में निरंतर कार्यरत हैं।
वर्ष 1936 में दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा का कार्यालय विजयवाड़ा में स्थापित हुआ और इस सभा के अध्यक्ष के रूप में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कोंडा वेंकटप्पय्या पंतुलू, आंध्र केसरी श्री टंगटूरि प्रकाशम पंतुलु, श्री बेजवाड गोपालरेड्डी, स्वामी रामानंद तीर्थ आदि ने महान कार्य किये। आज इस संस्था से प्रत्येक वर्ष दो लाख से भी अधिक छात्रों को हिंदी परीक्षा का देने सुनहरा मौका प्राप्त हो रहा है। जिससे लाखों छात्र लाभान्वित हो रहे हैं।
हिंदी धीरे-धीरे शक्ति संचय कर रही है दक्षिण में भारत हिंदी प्रचार सभा द्वारा हिंदी का शंखनाद पूरे देश में गूंज रहा है। यह जानकर हर्ष हो रहा है कि हिंदी प्रचार सभा ने हिंदी का प्रचार-प्रसार ही नहीं किया बल्कि बड़ी संख्या में हिंदी अध्यापकों, अनुवादकों एवं प्रचारकों को तैयार किया है। हिंदी की रोशनी दक्षिण के हर कोने को आलोकित कर रही है।
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा की यह उपलब्धि निस्संदेह प्रशंसनीय है। राष्ट्रीय भावना के संदर्भ में हिंदी और अंग्रेजी के बीच टकराव की बात कुछ हद तक समझी भी जा सकती है। किंतु अन्य प्रादेशिक भाषाओं और हिंदी के बीच टकराव नहीं बल्कि सहयोग की भावना बननी चाहिए, जिसके कारण सभी भाषाएँ एक दूसरे का सहयोग करते हुए समृद्धशाली हो। दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा गैर हिंदी भाषा भाषियों के बीच हिंदी को लोकप्रिय बनाने का कार्य स्वेच्छा से कर रही है। विश्व के इतिहास को देखा जाये, तो एक बात स्पष्ट हो जाती है कि अच्छे शासन के लिए सदैव शासक और शासित के बीच मधुर संबंधों की आवश्यकता है। दोनों के बीच यह संबंध भाषा के द्वारा स्थापित होता है। हिंदी समझने वाले व्यक्ति हमारे देश में बहुत ज्यादा हैं। इसलिए जनमानस तक पहुंचने के लिए हिंदी एक सशक्त माध्यम है।
आज दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा आंध्र एवं तेलंगाना राज्य स्तर का 16वाँ विशारद पदवी दान समारोह है तथा स्वयं को आप सब के बीच पाकर मुझे हार्दिक प्रसन्नता हो रही है। इस जगह पर खडे होकर मुझे बापूजी की वो पंक्तियाँ याद आ रही है जिसमें उन्होंने कहा था कि कोई भी देश सच्चे अर्थों में तब तक स्वतंत्र नहीं हे, तब तक वह अपनी भाषा में नहीं बोलता है। भारत के विभिन्न राज्यों की भाषा वहां की राजभाषा भले ही रहें, किंतु राष्ट्र और राष्ट्रीयता के परिप्रेक्ष्य में केवल हिंदी आधारशिला है।
भारत की राजभाषा हिंदी में राष्ट्रभाषा विशारद एवं राष्ट्रभाषा प्रवीण होकर उपाधि प्राप्त करने आये जो छात्र-छात्राएं यहां उपस्थित हैं उन्हें मैं शत-शत बधाइयाँ देता हूं। सभा के उद्देश्य में आपका उद्देश्य निहित हो यही मेरी शुभकामना है।
अंत में इस पुनीत अवसर पर मैं, उन सभी को स्मरण करना चाहूँगा जिन्होंने दक्षिण भारत में हिंदी के प्रचार-प्रसार को प्रारंभ कर उसे आज की इस समृद्ध स्थितियों तक पहुंचाने में अभूतपूर्व योगदान दिया है।
मैं एक बार पुन: उपधिधारी छात्र-छात्राओं को शुभकामनाएँ देते हुए उनके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूं।
जय हिंद।"
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KSD/BK
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