Vice President's Secretariat
Text of Vice-President’s address at the Inauguration of ‘Constitution Awareness Year’ at SB College of Art and Commerce at Sambhajinagar, Maharashtra (Excerpts)
Posted On:
22 FEB 2025 10:10PM by PIB Delhi
हमारे संविधान के निर्माता तपस्वी लोग थे, राष्ट्रभावना से ओत-प्रोत थे और आज़ादी प्राप्त करने के लिए लालायित थे। उनके मन में एक सपना था कि जब भारत गुलामी की ज़ंजीर तोड़े, तो आज़ाद भारत को एक ऐसा संविधान मिले जो सभी की आकांक्षाओं को पूरा करे।
करीब तीन साल तक—अर्थात् 2 साल, 11 महीने और कुछ दिन—उन्होंने तपस्या और लगन के साथ संविधान सभा में कार्य किया और 18 सभाएँ की। For little less than three years, they met over 18 sessions. उनके सामने बड़ी चुनौतियाँ थीं, विवादित प्रश्न थे। They faced some of the most divisive and contentious issues. उनका समाधान आसान नहीं था, पर वे तपस्वी लोग थे, राष्ट्रभावना से ओत-प्रोत थे।
कभी टकराव की नहीं सोची, सामंजस्य का रास्ता अपनाया, संवाद का रास्ता अपनाया और भारतीय संस्कृति का जो मूल सिद्धांत हैं— ‘अनंतवाद’ की एक-दूसरे की बात सुनो, एक-दूसरे की बात समझो। इसमे अटूट विश्वास मत रखो कि आपका विचार ही सही विचार है; दूसरे का विचार भी सही हो सकता है।
They resolved all contentious issues through dialogue, debate, discussion, and deliberation.. उन्होंने हमारे समक्ष एक उदाहरण प्रस्तुत किया कि एक शानदार संविधान देते हुए उन्होंने कभी संविधान सभा को अपवित्र नहीं किया। प्रजातांत्रिक व्यवस्था की प्रतिष्ठा को कभी गिरने नहीं दिया। कभी कोई व्यवधान नहीं हुआ; शालीनता बनी रही। नारेबाजी नहीं हुई, बहिष्कार नहीं हुआ। वे अपने धर्म से, राष्ट्रधर्म से, कभी विचलित नहीं हुए। The Constituent Assembly debates were marked by thoughtful discussion, sublime deliberation, meaningful dialogue, and a very high degree of debate. There was no intervention, disruption, disturbance, shouting, showing of placards, or boycott.
आज का परिदृश्य जब देखता हूं, तो मेरे मन में चिंता उत्पन्न होती है। आप और हम सबको चिंतन की आवश्यकता है, मंथन की आवश्यकता है। हम प्रजातांत्रिक व्यवस्था के सबसे बड़े मंदिरों को इस प्रकार से कैसे ध्वस्त करने के बारे में सोच सकते हैं?
मैं मानकर चलता हूँ कि जब ऐसा अभियान होगा, तो हर नागरिक के मन में एक भावना आएगी। जब मैं अपने प्रतिनिधि को विधानसभा, विधान परिषद या लोकसभा-राज्यसभा में भेजता हूँ, तो मेरे मन में एक विचार होता है, उसे वोट देते समय, कि वह संविधान निर्माताओं की आत्मा को दुखी नहीं करेगा; वह देश
के हित में सोचेगा, राजनीति से ऊपर उठेगा, व्यक्तिगत हित को दरकिनार कर देगा और अपने दायित्व से—अपने मूल दायित्व से कभी नहीं हटेगा।
आज आप और हम सबको चिंतन की आवश्यकता है। हमें अपने प्रतिनिधियों का आकलन करना चाहिए और उनसे प्रश्न पूछना चाहिए—सदन की गरिमा पर कुठाराघात क्यों हो रहा है? Why should we sacrilege temples of democracy? They must be thriving places of debate and discussion. आखिर, हर समस्या का समाधान तो अंत में बातचीत से ही निकलता है।
मेरे सामने एक बड़ी चुनौती और है। यदि हमारे सदन और हमारी विधानसभाएँ सुचारू रूप से नहीं चलेंगी, तो लोगों के पास कोई रास्ता नहीं है कि समस्याओं का मंथन कहाँ हो।
इधर, मेरा सभी से आह्वान है। जन प्रतिनिधियों से विशेष आग्रह है कि वे संविधान की मूल भावना का आदर करें, अपने कर्तव्य का निष्ठापूर्वक पालन करें, संविधान को सर्वोपरि रखें, राष्ट्रवाद को अपना धर्म समझें और भारतीयता को अपनी पहचान बनाएं। आपको मैं दो बातें खास तौर से बताना चाहता हूँ। संविधान दिवस बनाने का निर्णय लिया गया। यह निर्णय करीब दस साल पहले लिया गया। ताकि याद रहे, हमारे नवयुवकों को नवयुवतियों को कि आज़ादी आसानी से नहीं मिली थी।
People made their supreme sacrifice to give us freedom. संविधान दिवस 26 नवंबर को हर वर्ष 2015 से मनाया जाता है। यह हमें याद दिलाता है कि जो हमारे मौलिक अधिकार हैं, जो हमारी प्रजातांत्रिक व्यवस्था है- जहाँ चुनाव होते हैं, जहाँ नागरिक को मत का अधिकार है, उसका मत प्रभावी हैं और वही मत शासन को तय करता है- उसके प्रति सजग रहें और ऐसा इसलिए भी ज़रूरी है कि एक कालखंड आया था—the darkest hour of Indian democracy— भारतीय प्रजातंत्र का सबसे काला अध्याय, 25 जून 1975 को, आधी रात में देश में आपातकाल लगा दिया. तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमति इंदिरा गांधी ने अपने को सत्ता में रखने के लिए, सत्ता से अलग नहीं हटने के लिए और न्यायालय के आदेश का आदर न करने के लिए आपातकाल लगाया। उनकी तानाशाही प्रवृति सामने आ गई. लाखों लोगों को जेल में डाल दिया गया।
आज के नवयुवक नवयुवतियों को पता नहीं है। उन लोगों को कालकोठरी में ठूँस दिया गया, जिन्होंने बाद में देश का नेतृत्व किया।
लोकतांत्रिक व्यवस्था में तानाशाही का कोई स्थान नहीं है। राज वही सरकार कर सकती है, जो चुनी हुई सरकार हो, और चुनाव की पवित्रता को कायम रखना हमारी सबसे बड़ी आवश्यकता है।
जब यह काला अध्याय शुरू हुआ, न्यायपालिका के दरवाजे मौलिक अधिकारों के लिए बंद हो गए। देश के नौ उच्च न्यायालयों ने—Nine High Courts of the country, in one voice, said—fundamental rights cannot be put hold during emergency. नौ राज्यों में नौ उच्च न्यायालयों का निर्णय था कि चाहे आपातकाल लग जाए, संविधान के तहत जो मौलिक अधिकार मिले हैं, उनको तिलांजलि नहीं दी जा सकती और जिसको गिरफ्तार किया है, उसको न्यायालय की शरण लेने का अधिकार है। पर वह काला अध्याय... Emergency के साथ उसकी काली छाया भारत की सबसे बड़ी अदालत—सुप्रीम कोर्ट—पर भी पड़ गई। सुप्रीम कोर्ट ने नौ उच्च न्यायालयों के निर्णय को पलट दिया और यह निर्णय दिया कि आपातकाल के दौरान किसी को कोई अधिकार नहीं है, यहाँ तक कि न्यायालय के दरवाजे खटखटाने तक का भी नहीं।
और यहाँ तक कह दिया गया कि आपातकाल कब तक चलेगा, यह सरकार तय करेगी। तानाशाही का राज अपनी पराकाष्ठा पर था।
मैंने राज्यसभा में कहा कि जिस संविधान के ऊपर बाबा साहब अंबेडकर ने दस्तखत किए हैं, राजेंद्र प्रसाद जी ने दस्तखत किए हैं, संविधान सभा के तपस्वी सदस्यों ने दस्तखत किए हैं, वो ही असली संविधान है और उस संविधान में 22 चलचित्र हैं- सत्यमेव जयते, हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की जो सील थी बुल की, वह है। मौलिक अधिकारों का जो भाग है, उसमें एक दर्शन दिया गया है- धर्म की जीत, अधर्म की हार और संकेत आया है रामायण से- मां सीता, भगवान राम, लक्ष्मण के साथ अयोध्या आ रहे हैं, अधर्म पर विजय प्राप्त कर, धर्म का प्रकाश लेकर। यह मौलिक अधिकारों के अध्याय के ऊपर अंकित है। जो शासन के नीति निर्देशक तत्व हैं, तो उसमें भगवान श्री कृष्ण हैं, वो कुरुक्षेत्र में अर्जुन को अपना उपदेश दे रहे हैं। उसी में, जब चुनाव की बात आती है, तो संविधान निर्माताओं की सोच परिकाष्ठा पर पहुँच जाती है। चुनाव का मतलब - मजबूत संचालन, पारदर्शी संचालन। उस भाग में छत्रपति महाराज शिवाजी का चित्र है। छत्रपति महाराज शिवाजी, मैंने सदन में सभापति की हैसियत से कहा कि हमारा संविधान वही संविधान है, जिसमें ये चलचित्र होंगे, क्योंकि ये 5000 वर्षों की सांस्कृतिक विरासत को दर्शाते हैं और हमें हमारी संस्कृति का बोध कराते हैं और संविधान में बदलाव का अधिकार, मैं इसे पुरजोर तरीके से कहता हूँ, सिर्फ भारतीय संसद को है और कुछ परिस्थितियों में संसद के साथ-साथ विधान सभाओं को भी है। इसका मूल कारण है, मौलिक आधार है, कि जनता का फैसला, जनता की मंशा, चुनाव के माध्यम से परिलक्षित होती है। लोकसभा, राज्यसभा और विधानसभाओं के अलावा संविधान में बदलाव करने का अधिकार किसी अन्य संस्था को नहीं है, किसी भी संस्था को नहीं है। न्याय पालिका को भी संविधान में बदलाव करने का अधिकार नहीं है। संविधान निर्माताओं ने न्यायपालिका को यह अधिकार नहीं दिया कि वो संविधान में किसी प्रकार का बदलाव कर सके या संविधान में कोई बदलाव संसद ने किया हो उस पर अपना निर्णय दे सके। संविधान निर्माताओं ने जो हमें संविधान दिया उसमें एक ही अधिकार नयायपालिका को दिया है कि कभी यदि कोई आवश्यकता व्याख्या करने की आए, जहां अस्पष्टता है, शब्दों का कोई हेर-फेर है, तो उस पर न्यायालय अपना मत दे सकता है।
The Supreme Court has been endowed by the Constitution only with one right to interpret the Constitution और वो अधिकार दिया गया था, तब सुप्रीम कोर्ट में सदस्यों की संख्या 8 थी और भारत के संविधान के अनुच्छेद 145 में वो अधिकार 5 judges को दिया गया था, मतलब आठ में से पाँच. And that right was given to interpret the Constitution. Interpretation takes place when something is interpretable. But by way of interpretation, there can neither be addition, substitution, reinterpretation, nor explanation.
और यह हिदायत राज्यसभा से दी गई है कि भारत के हर नागरिक को उसी संविधान का बोध हो, जो संविधान निर्माताओं ने दिया है—उन चल चित्रों के साथ। उसमें वही समाहित हो, जो भारतीय संसद से उपजा हो और जिस पर महामहिम राष्ट्रपति ने दस्तखत किए हों, आपसे गुजारिश करूंगा। देश के सामने एक बड़ा संकट आ रहा है। संविधान हमें प्रजातांत्रिक व्यवस्था देता है। चुनौतियों के बावजूद हमारे यहां प्रजातंत्र फल-फूल रहा है, पर हाल के कुछ घटनाक्रम हमारे सामने आए हैं, जो बड़ी चिंताएं पैदा करते हैं। धनबल का उपयोग करते हुए, बाहर से धन प्राप्त कर, प्रजातांत्रिक व्यवस्था को अपवित्र कर, लोगों के मतानुसार निर्णय न होकर, अपनी मनमर्जी का निर्णय कराया जाए—मतलब, मनमर्जी के व्यक्ति को चुनाव जिताया जाए—यह बहुत भयानक खेल है। यह प्रजातांत्रिक भावना और प्रजातंत्र की आत्मा के ऊपर कुठाराघात है, जो किसी भी तरीके से बर्दाश्त के काबिल नहीं है और इसीलिए, श्री सरस्वती भवन शिक्षण संस्थान ने संविधान जागरूकता अभियान जो शुरू किया है, इसको मैं सामरिक सार्थकता से जोड़ता हूँ।
हर भारतीय का कर्तव्य है कि राष्ट्रवाद से ओत-प्रोत हो, भारतीयता को अपनी पहचान बनाए, और जहां भी राष्ट्रवाद पर चुनौती आती है, उसे अपना सबसे बड़ा धर्म समझे। राजनीति से ऊपर उठकर, व्यक्तिगत हित को तिलांजलि देकर, अपना कर्तव्य निर्वहन करे।
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JK/RC/SM
(Release ID: 2105608)
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