पृथ्‍वी विज्ञान मंत्रालय
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संसदीय प्रश्न: धरती के तापमान में बढ़ोत्तरी

Posted On: 19 DEC 2024 1:22PM by PIB Delhi

पृथ्‍वी विज्ञान मंत्रालय ने धरती के तापमान में वृद्धि पर ध्यान दिया है और क्षेत्रीय जलवायु परिवर्तन के सभी पहलुओं को समाहित करते हुए देश भर में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का आकलन किया है।

इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) के अनुसार,  धरती के दीर्घकालिक औसत तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस सीमा से नीचे रखने के लिए, दुनिया को वर्ष 2050 तक शुद्ध शून्य (नेट जीरो) उत्सर्जन के लक्ष्‍य को करना होगा। जलवायु परिवर्तन की समस्या के लिए जिम्‍मेदार कार्बन डाईआक्‍साइड उत्‍सर्जन में अधिक योगदानकर्ता नहीं होने के बावजूद, भारत ने इस वैश्विक मुद्दे को हल करने के प्रयासों की अपनी उचित भूमिका से अधिक सक्रिय रुख का प्रदर्शन किया है। भारत सरकार विभिन्न कार्यक्रमों और पहलों के माध्यम से जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए अपनी प्रतिबद्धता में दृढ़ है, जिसमें जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (एनएपीसीसी) और जलवायु परिवर्तन पर राज्य कार्य योजना (एसएपीसीसी शामिल है। इन योजनाओं में सौर ऊर्जा, ऊर्जा दक्षता, जल संरक्षण, सतत कृषि, स्वास्थ्य, हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र संरक्षण, सतत आवास विकास, हरित भारत और जलवायु परिवर्तन के लिए ज्ञान जैसे क्षेत्रों में विशिष्ट मिशन शामिल हैं। एनएपीसीसी सभी जलवायु संबंधी सभी कार्यों के लिये एक व्यापक ढाँचे के रूप में कार्य करता है। इसके अतिरिक्त, भारत ने अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन और आपदा-प्रतिरोधी बुनियादी ढांचे के लिए गठबंधन जैसी पहलों के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने में सक्रिय भूमिका निभाई है।

आईपीसीसी आकलन रिपोर्ट 6 (एआर 6) दस्तावेज में कहा गया है कि तापमान में वृद्धि के परिणामस्वरूप पहले से ही मानव और प्राकृतिक प्रणालियों में अधिक परिवर्तन हुआ है, जिसमें सूखा, लू , बाढ़, विषम मौसम, समुद्र के स्तर में वृद्धि और जैव विविधता का नुकसान शामिल है, जो संवेदनशील व्यक्तियों और आबादी के लिए अभूतपूर्व जोखिम पैदा कर रहे हैं। इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन पर मंत्रालय की आकलन रिपोर्ट में कहा गया है कि 1901-2018 के दौरान भारत में सतह के वायु तापमान में लगभग 0.7 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है और वायुमंडलीय नमी में वृद्धि हुई है। उष्णकटिबंधीय हिंद महासागर में समुद्र की सतह का तापमान 1951-2015 से लगभग 1 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया।

ग्लेशियर तापमान परिवर्तन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हैं, और बढ़ता तापमान ग्लेशियरों के पिघलने की दर को बढ़ाएगा।

ग्लेशियरों के पिघलने से मानव जीवन और पर्यावरण पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकते हैं, जैसे पानी की उपलब्धता, समुद्र का बढ़ता स्तर आदि। पिघलने वाले ग्लेशियर शुरू में जल प्रवाह को बढ़ा सकते हैं, लेकिन ग्लेशियर द्रव्यमान कम होने से बाद में पानी की उपलब्धता में कमी आ सकती है, जिससे कृषि, पीने के पानी और लगातार जल स्रोतों पर निर्भर पारिस्थितिक तंत्र प्रभावित हो सकते हैं। ग्लेशियर के पिघलने से बर्फीली तूफानी हवाओं, हिमस्खलन, मलबे का प्रवाह, हिमनदों की झील के फटने से बाढ़ (जीएलओएफ) और निचले क्षेत्रों की ओर विनाशकारी बाढ़ जैसे खतरे भी हो सकते हैं।

भारत सरकार द्वारा वित्तपोषित अनेक भारतीय संस्थान/विश्वविद्यालय/संगठन हिमालय के ग्लेशियरों की स्थिति पर नजर रख रहे हैं और उन्होंने निम्‍न अनुसार त्वरित विषम द्रव्यमान हानि की सूचना दी है

हिंदू कुश हिमालय ग्लेशियरों की औसत वापसी दर 14.9 ± 15.1 मीटर/वर्ष (एम/ए) है, जो सिंधु में 12.7 ± 13.2 मीटर/वर्ष, गंगा में 15.5 ± 14.4 मीटर/वर्ष और ब्रह्मपुत्र नदी घाटियों में 20.2 ± 19.7 मीटर/वर्ष तक भिन्न होती है।

चंद्र बेसिन के लिए नेशनल सेंटर फॉर पोलर एंड ओशन रिसर्च (एनसीपीओआर) द्वारा तैयार ग्लेशियर संबधी सूची से पता चलता है कि पिछले 20 वर्षों के दौरान इसने अपने ग्लेशियल क्षेत्र का लगभग 6 प्रतिशत और 2013-2021 के दौरान 2.4 मीटर पानी के बराबर (एमडब्‍ल्‍यूई) से 9 मीटर तक खो दिया है।

भागा बेसिन के ग्लेशियरों ने 2008-2021 के दौरान 6 एमडब्‍ल्‍यूई से 9 एमडब्‍ल्‍यूई की सीमा में एक विशाल बर्फ द्रव्यमान खो दिया। पिछले दशक के दौरान चन्द्रा बेसिन ग्लेशियरों के पीछे हटने की वार्षिक दर 13 से 33 मी/वर्ष के बीच भिन्न-भिन्न रही है।

गढ़वाल हिमालय में ग्लेशियर ग्लेशियर के पतले होने और सतह प्रवाह वेग पैटर्न में महत्वपूर्ण विविधता दिखाते हैं। भागीरथी बेसिन में डोकरियानी ग्लेशियर के लिए 15-20 मीटर/वर्ष, मंदाकिनी बेसिन में चोराबाड़ी ग्लेशियर के लिए 9-11 मीटर/वर्ष, डुरुंग-ड्रंग में ~12 मीटर/वर्ष और सुरू बेसिन में पेंसिलुंगपा ग्लेशियरों में ~5.6 मीटर/वर्ष वापसी (रिट्रीट) देखी गई है।

केन्द्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी तथा पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ जितेन्द्र सिंह ने आज राज्य सभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में यह जानकारी दी।

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