उप राष्ट्रपति सचिवालय
राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस समारोह, 2024, नई दिल्ली में उपराष्ट्रपति के संबोधन का मूलपाठ (अंश)
Posted On:
14 DEC 2024 5:37PM by PIB Delhi
जलवायु परिवर्तन, संकट । यह भयावह समस्या सामाजिक बाधाओं को मिटा देती है। अमीर अथवा गरीब, शहरी अथवा ग्रामीण। अब या तो हमें एक साथ मिलकर काम करना होगा या फिर हम एक साथ नष्ट हो जाएंगे। जब हमने कोविड का सामना किया, तो मैंने सोचा कि कोविड एक भेदभाव रहित चुनौती है। इसने सभी धनी, संभ्रांत और शक्तिशाली लोगों के साथ-साथ मेरे जैसे सामान्य लोगों को भी प्रभावित किया। लेकिन चुनौती का सामना एकजुटता से, सामंजस्यपूर्ण ढंग से, एक साथ मिलकर किया गया।
हमें तत्काल, निर्णायक और सुधारात्मक कार्रवाई, औद्योगिक परिवर्तन के लिए सरकारी अधिदेश और नागरिकों की मौलिक प्रतिबद्धता की आवश्यकता है।
हमारे पास हजारों वर्षों के सभ्यतागत लोकाचार हैं, हमारे वेद, पुराण, हमारे महाकाव्य महाभारत, रामायण और गीता का ज्ञान है, यदि हम इन अथाह संसाधनों पर गौर करें, तो इनसे हमें वास्तविक प्रेरणा मिलती है कि संरक्षण हमेशा से एक महत्वपूर्ण कारक, जीवन का एक पहलू रहा है।
हमारे प्राचीन ज्ञान ने इस संकट को पहले ही भांप लिया था,पर्यावरण के सामंजस्य की प्रार्थना के रूप में शांति पाठ, अब दर्शन मात्र नहीं रह गया है, इसे कार्रवाई में परिवर्तित किया जाना चाहिए। अपने अस्तित्व के लिए हमारी हताश पुकार ‘द्यौः शान्ति:, पृथ्वी शांति:' में समाहित है।
हमें आकाश में शांति चाहिए, हमें धरती पर शांति चाहिए और जब तक अस्तित्व के लिए सकारात्मक इकोसिस्टम नहीं होगा, तब तक हम शांति या सद्भाव या शांतचित्तता नहीं पा सकते।
हमारा सभ्यतागत ज्ञान एक विरासत है, और मैं कहूंगा कि यह एक तरह से इस जलवायु संबंधी आपातकाल के लिए उत्तरजीविता नियमावली है, विश्वकोश है।
प्रकृति के प्रति भारतीय संस्कृति का पवित्र दृष्टिकोण जीवन जीने का एक तरीका है, जो पर्यावरण के विनाश को रोकेगा। हमारी धार्मिक गतिविधियों पर गौर कीजिए, हमारे श्लोकों पर गौर कीजिए, हमारी पूजा की पद्धति पर गौर कीजिए। हम हमेशा से प्रकृति का पोषण करते आए हैं, प्रकृति की पूजा करते आए हैं। हम इन गतिविधियों के माध्यम से प्रकृति का पोषण और उसका पुष्पित-पल्लवित होना सुनिश्चित करते आए हैं।
और इसीलिए ऐसी स्थिति में प्रधानमंत्री ने ‘एक पेड़ मां के नाम’ का आह्वान किया, जो अब एक जन आंदोलन का रूप ले चुका है। इसे साधारण तरीके से प्रारंभ किया गया, मैं आपको बता सकता हूं कि यह एक जनांदोलन है। इस दिन हमें आवश्यक रूप से यह संकल्प लेना चाहिए। हम में से प्रत्येक को कम से कम ‘एक पेड़ मां के नाम’ का संकल्प लेना चाहिए।
हमारी वित्तीय ताकत, हमारी विश्वास संबंधी शक्ति, प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग, ऊर्जा के उपयोग के लिए निर्णायक कारक नहीं हो सकती। यदि लोगों को लगता है कि मैं इसे वहन कर सकता हूं, तो मैं चाहता हूं कि वे अपने विचारों पर फिर से मंथन करें, यह केवल आपका नहीं है। यह पूरी मानवता के लिए सामूहिक प्रयास है और इसलिए, हमारा यह दायित्व है कि संसाधनों का इष्टतम उपयोग हो, ऊर्जा का इष्टतम उपयोग हो।
पृथ्वी पर हमारे संसाधन अनंत नहीं हैं, वे सीमित हैं। यदि हम इन संसाधनों के अंधाधुंध दोहन में लगे रहे, तो हम अपनी भावी पीढ़ियों को उनके हक से वंचित कर देंगे । शुक्र है कि नवाचार और अनुसंधान ने हमें वैकल्पिक स्रोत, नवीकरणीय स्रोत उपलब्ध कराए हैं। जी-20 में, राष्ट्र ने एक बड़ी पहल की, और यह पहल ऊर्जा के मोर्चे पर थी, लेकिन उससे पहले भी, हम अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन के लिए प्रेरित, उत्प्रेरित कर रहे थे। इसका मुख्यालय राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में है, 100 से अधिक देश इसके सदस्य हैं। अब मैं गांवों में नवीकरणीय ऊर्जा की पहुंच और अनुकूलनशीलता देख रहा हूं।
संविधान ने हमें मौलिक अधिकार दिए हैं, लेकिन उनके साथ ही साथ मौलिक कर्तव्य भी दिए हैं और जब परिवार, समाज, समूह या राष्ट्र के सामने कोई चुनौती आती है, तो हम अपने अधिकारों का महत्व कर देते हैं और कर्तव्यों को प्राथमिकता देते हैं।
मैं अनुच्छेद 51ए की ओर विशेष रूप से आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूं। यह केवल संवैधानिक मार्गदर्शन मात्र नहीं है। यह हमारे जीवन का एक तरीका होना चाहिए। यदि हम उन कर्तव्यों पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तो ऊर्जा संरक्षण उनमें से एक होगा। न्यायसंगत विकास दूसरा होगा और ये चीज़ें, ये कर्तव्य निभाए जाने चाहिए। इनके लिए केवल सकारात्मक मानसिकता और दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन का 1 ट्रिलियन डॉलर का लक्ष्य केवल निवेश मात्र नहीं है। यह हमारे लिए जीवन बीमा है। यह एक सम्मानजनक जीवन का आश्वासन है।
मैं अक्सर सोचता हूं और इसलिए मैंने आईआईटी कानपुर के शिक्षकों और छात्रों से बात की कि पराली जलाने से उत्पन्न होने वाली खतरनाक पर्यावरणीय स्थितियों के कारण राष्ट्रीय राजधानी हर साल कष्ट उठाती है।
हमें नवाचार मोड अपनाना चाहिए, एक व्यवस्थित समाधान खोजना चाहिए, इसे व्यक्तियों पर नहीं छोड़ा जाना चाहिए। कोई प्रणाली विकसित की जानी चाहिए। मुझे आईआईटी कानपुर के निदेशक ने आश्वासन दिया है कि वह इस मामले पर गौर करेंगे। कल्पना कीजिए कि हमारी असावधानी, हमारी लापरवाही हमें अनेक तरह से खतरों में झोंक रही है।
• एक, हमारा स्वास्थ्य
• दूसरा, काम के घंटों का नुकसान
• तीसरा, सामान्य जीवन में व्यवधान और;
• चौथा, हमें अपने बच्चों का ख्याल रखना होगा
हम उन्हें भारी खुराक दे रहे हैं। आप आज स्कूल नहीं जा सकते, क्योंकि प्रदूषण बहुत ज़्यादा है और इसलिए सभी को एकजुट होकर जितना भी संभव हो सके, अपना योगदान देना चाहिए।
राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति अब नीतिगत दस्तावेज़ से कहीं बढ़कर है। पेट्रोलियम पर निर्भरता के लिए यह आपातकालीन प्रतिक्रिया है
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एमजी/केसी/आरके
(Release ID: 2084514)
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