उप राष्ट्रपति सचिवालय
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मुंबई स्थित आईसीएआर-सीआईआरसीओटी के स्थापना दिवस के शताब्दी समारोह में उपराष्ट्रपति के संबोधन का मूल पाठ (अंश)

Posted On: 03 DEC 2024 7:47PM by PIB Delhi

आज का दिन हमारे लिए बहुत सोचने का है, चिंतन का है, मंथन का है। इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च, इसकी एक संस्था ने 100 साल पूरे किए। इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च पूरे देश में फैली हुई है। 180 से ज्यादा संस्थाएं हैं, कृषि के हर क्षेत्र को प्रभावित करने वाली है। लंबे समय से कार्यरत हैं, कृषि से जुड़ा हुआ, किसान से जुड़ा हुआ, ऐग्रो इकोनॉमी से जुड़ा हुआ कोई भी पहलू अछूता नहीं रहा।

यह बहुत आसान है कि हम अपनी उपलब्धियों पर गर्व कर सकते हैं। प्रशंसा पाना बहुत सुविधाजनक है, लेकिन यह आत्मनिरीक्षण का अवसर है।

यह ऑडिटिंग का अवसर है, यह सेल्फ रियलाइजेश की ऑडिटिंग का अवसर है, यह रणनीति को लागू करने का अवसर है। आपने कितनी ही बात कर ली आज के दिन ही ग्रामीण व्यवस्था, आज किसान परेशान है, पीड़ित है, आंदोलित है।

यदि अगर संस्थाएं जीवंत होती, योगदान करती यह हालात कभी नहीं आते। यह आप और हमारे सामने प्रश्न हैं। 1.4 अरब की आबादी वाले देश में ऐसी संस्थाओं का एक नेटवर्क है जो देश के कोने-कोने में फैला हुआ है, और कृषि विज्ञान की हर गतिविधि को कवर करता है। हो क्या रहा है? किसान का परिदृश्य बदल गया है क्या? किसान तक पहुंच रही है क्या बात है? इससे अधिक  अलग-थलग स्थिति नहीं हो सकती है।

मुझे आशा की किरण नज़र आ रही है। एक अनुभवी व्यक्ति आज के दिन भारत का कृषि मंत्री है। शिवराज जी, आपके सामने चुनौती है किसान कल्याण की, ग्रामीण विकास की।

जब आप बात करते हैं विकसित भारत की, विकसित भारत का रास्ता किसान के दिल से निकलता है, यह हमें कभी नहीं भूलना चाहिए।

किसान यदि आज के दिन आंदोलित हैं, उस आंदोलन का आकलन सीमित रूप से करना बहुत बड़ी गलतफहमी और भूल होगी। जो किसान सड़क पर नहीं है, वह भी आज के दिन चिंतित हैं, आज के दिन परेशान है। भारतीय अर्थव्यवस्था जो आज ऊंचाई पर है, पांचवीं महाशक्ति है, हम दुनिया में तीसरी बनने वाले हैं, पर एक बात याद रखिये, भारत को विकसित राष्ट्र का दर्जा मिलना है तो हर व्यक्ति की आय को आठ गुना करना है। उस आठ गुना करने में सबसे बड़ा योगदान ग्रामीण अर्थव्यवस्था का है, किसान कल्याण का है।

किसान के लिए जितना किया जाए कम है। जितना किसान के लिए करो उसका असर देश पर पड़ेगा, सकारात्मक रूप से पड़ेगा। जब संस्थाओं को देखता हूं और पाता हूं कि इनका असर कहां पर है।

अगर हम स्वयं ऑडिट नहीं करेंगे, तो कौन करेगा? हम अपने कार्यों को औपचारिकता तक सीमित नहीं रख सकते। हमें अंदर झांकने की आवश्यक्ता है कि अब तक हम ऐसा क्यों नहीं कर पाए। क्या दुनिया में कृषि का विकास नहीं हो रहा है। तकनीकें नहीं आ रही है? यह सोचने की बात है।

मैंने 2 दिन पहले मेरी चिंता व्यक्त की थी कि किसान आंदोलित हैं। मैंने किसान भाइयों से आह्वान किया था कि हमें निपटारे की ओर बढ़ना चाहिए।

भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने दुनिया को एक संदेश दिया कि मसला कितना भी बड़ा हो, विवाद कितना भी गंभीर हो, उसका समाधान बातचीत से है और विश्व स्तर पर स्तर पर कूटनीति से है। हम अपनों से नहीं लड़ सकते, हम अपनों को नहीं इस हालत में डाल सकते कि वो कब तक लड़ेंगे। हम यह विचारधारा नहीं रख सकते कि उनका पड़ाव सीमित रहेगा, अपने आप थक जाएंगे। अरे भारत की आत्मा को परेशान थोड़ी ना करना है, दिल को चोटिल थोड़ी ना करना है।

मैं महानिदेशक से आग्रह करूंगा और माननीय मंत्री जी से अनुरोध करूंगा कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, इसके सभी संबद्ध संस्थान, विश्वविद्यालय, अनुसंधान केन्द्रों को किसानों के लिए आर्थिक समृद्धि लाने की स्थिति बनाने के लिए पूरी ताकत से काम करना चाहिए।

मैंने जब आह्वान किया तो मुझे अच्छा लगा कि एक प्रतिक्रिया आई है। प्रतिक्रिया आई है माननीय जगजीत सिंह डल्लेवाल से। संयमित भाषा है, संजीव जी की भाषा है। उन्होंने पहले जो मैंने कहा उस पर अपना ध्यान केंद्रित किया वह जिन संस्थाओं से जुड़े हुए हैं एसकेएम और केएमएम वह आंदोलित हैं। उन्होंने मेरी भावना को समझा और फिर माननीय कृषि मंत्री जी उन्होंने कहा क्या हैं, उनका संदेश क्या है मेरे लिए? उनका संदेश है कि किसान के साथ जो वादा किया वो पूरा क्यों नहीं हुआ?

आप के लिए चुनौती है जब कोई भी सरकार वादा करती है और वह वादा किसान से जुड़ा हुआ है तब हमें कभी कोई कसर नहीं रखनी चाहिए। किसान हमारे लिए आदरणीय है, प्रातः स्मरणीय हैं, सदैव वंदनीय है। मैं खुद कृषक पुत्र हूं, मैं जानता हूं किसान क्या कुछ नहीं झेलता है, और हमारा अन्नदाता है।

क्या इस देश में, 75 साल के बाद इतनी बड़ी-बड़ी संस्थाएं हमने निर्मित की हैं और किसान आज भी अपने उत्पाद की कीमत के लिए तरस रहा है। कृषि उत्पाद कितना बड़ा व्यापार है। मैं चुनौतीपूर्ण प्रश्न करता हूं, आपकी संस्थाओं ने किसान को उसमें जोड़ने के लिए क्या किया। किसान को कृषि से जोड़ते, उसकी मार्केटिंग से जोड़ते, एक बदलाव आता, क्यों ऐसा नहीं हुआ। सोचने का प्रश्न है, सौ साल हो गए तब तो ज़रूर सोचने का है। मैंने कई बार कहा है, ध्यान केंद्रित किया है, हमारा किसान अपने प्रोड़ेक्ट के अंदर वैल्यू एड क्यों नहीं करें। कृषि मंत्री जी, आप और आपके मंत्रालय, उन्हें एक ही स्तर पर मिलकर काम करना चाहिए। किसानों को अपने उत्पाद का मूल्य संवर्धन करने के लिए कृषि भूमि पर सूक्ष्म और मध्यम स्तर के उद्योग लगाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

आज के दिन किसान का एक ही काम रख दिया, इतने सीमित दायरे में कर दिया कि आप खेत के अंदर अन्न पैदा करो फिर उसको सही कीमत पर बेचने के लिए सोचते रहो।

मैं यह नहीं समझ पा रहा हूं कि हम अर्थशास्त्रियों, थिंक टैंकों के साथ परामर्श करके ऐसा फार्मूला क्यों नहीं बना सकते जो हमारे किसानों को लाभ पहुंचाए।

अरे, हम तो लाभ की बजाय जो बकाया है उसको नहीं दे रहे। हम उसको देने में भी कंजूसी कर रहे हैं, जो वादा किया गया है, और मुझे समझ में नहीं आ रहा है वार्ता क्यों नहीं हो रही है किसान से?

प्रधानमंत्री जी का दुनिया को संदेश है, जटिल समस्याओं का निराकरण वार्ता से होता है। किसान से वार्ता अविलंब होनी चाहिए और हमें सबको जानकारी होनी चाहिए, क्या किसान से कोई वादा किया गया था? माननीय कृषि मंत्री जी, आपसे पहले जो कृषि मंत्री जी थे, क्या उन्होंने लिखित में कोई वादा किया था? यदि अगर वादा किया था तो उसका क्या हुआ?

मैंने बहुत अर्थशास्त्रियों से बात की है, ध्यान चिंतन किये हैं। हमारा मन सकारात्मक होना चाहिए, रुकावट पैदा करने वाला नहीं होना चाहिए कि किसान को यह कीमत दे देंगे तो इसके दुष्परिणाम होंगे। किसान को जो भी कीमत देंगे, उसका पांच गुना देश को मिलेगा, इसमें कोई दो राय नहीं है।

हमें अपनी प्राथमिकताएं निर्धारित करनी होंगी, हमें ध्यान रखना पड़ेगा, मुझे बहुत खेद है। लेकिन मुझे दिशात्मक दृष्टिकोण का अभाव दिखाई देता है।

क्या हम किसान और सरकार के बीच कोई सीमा रेखा खींच सकते हैं?

जिनको लगाना हैं गले, उनको दुत्कारा नहीं जा सकता है। मेरे कठोर शब्द हैं, पर कई बार बीमारी के लिए इलाज के लिए कड़वी दवाई पीनी पड़ती है।

मैं सभी से देश में आह्वान करूंगा, किसान बंधु को आह्वान करूंगा, मेरी बात सुने, मेरी बात समझें, आप अर्थव्यवस्था की धुरी हैं, राजनीति को प्रभावित करते हैं, भारत की विकास यात्रा के आप महत्वपूर्ण अंग हैं, सामाजिक समरसता की आप मिसाल हैं।

आपको भी बात-चीत के लिए आगे आना चाहिये। पर मुझे माननीय कृषि मंत्री जी थोड़ी पीड़ा है। मेरे चिन्तन और चिन्ता का विषय है। अब तक ये पहल क्यों नहीं हुई। आप कृषि कल्याण ग्रामीण विकास के मंत्री हैं। मुझे याद आती है सरदार पटेल की, उनका जो उतरदायित्व था, देश में एकता करने का, कैसे उन्होंने बखूबी किया? ऐसी चुनौती आज आपके सामने है, इसको भारत की एकता से कम मत मानिये।

और यह आकलन बहुत सीमित है, संकीर्ण है कि किसान आंदोलन का मतलब सिर्फ उतना हैं जो लोग सड़क पर है, नहीं। किसान का बेटा आज अधिकारी हैं, किसान का बेटा सरकारी कर्मचारी हैं। अरे, इस देश के अंदर लाल बहादुर शास्त्री जी ने क्यों कहा- जय जवान, जय किसान। उस जय किसान के साथ हमारा रवैया वैसा ही होना चाहिए, जो लाल बहादुर शास्त्री की कल्पना थी।

और उसके अंदर क्या जोड़ा गया? माननीय अटल बिहारी वाजपेयी जी ने- जय जवान, जय किसान, जय अनुसंधान।

और वर्तमान प्रधानमंत्री जी ने दूरदर्शिता दिखाते हुए इसको प्रकाष्ठा पर ले गए- जय जवान, जय किसान, जय अनुसंधान, जय विज्ञान।

ये समय कष्टदायक है, मेरे लिए क्योंकि मैं राष्ट्रधर्म से ओत-प्रोत हूं।

पहली बार मैंने भारत को बदलते हुए देखा है। पहली बार मैं महसूस कर रहा हूं कि विकसित भारत हमारा सपना नहीं लक्ष्य है। दुनिया में भारत कभी इतनी बुलंदी पर नहीं था। दुनिया में हमारी साख पहले कभी इतनी नहीं थी।

जब ऐसा हो रहा है तो मेरा किसान परेशान क्यों है? क्यों पीड़ित है? किसान संकट में क्यों है?

ये बहुत गहराई का मुद्दा है, इसको हल्के में लेने का मतलब है, हम व्यावहारिक नहीं  हैं, हमारी नीति-निर्माण प्रक्रिया सही दिशा में नहीं है। कौन है वो लोग कहते हैं कि अपने किसान को उसके उत्पाद की उचित मूल्य दे देगें तो मुझे समझ में नहीं आता कोई पहाड़ गिरेगा।

वह यह तय नहीं करता कि वह क्या तय कर सकता है।

किसान अकेला है, जो असहाय है, वह तय नहीं करता कि वह क्या फैसला कर सकता है। कृषि मंत्री जी, एक-एक पल आपका भारी है, मेरा आप से आग्रह है, और भारत के संविधान के तहत, दूसरे पद पर विराजमान व्यक्ति आप से अनुरोध कर रहा है कि कृपया करके मुझे बताइये, क्या किसान से वादा किया गया था, और वादा क्या किया गया, वादा क्यों नहीं निभाया और वादा निभाने के लिए हम क्या करें हैं? गत वर्ष भी आंदोलन था, इस वर्ष भी आंदोलन है, कालचक्र घूम रहा है, हम कुछ कर नहीं रहे हैं।

प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों, मैं आपको बता सकता हूं कि मैंने जो कुछ भी कहा है वह मेरी भावनाओं का 5 प्रतिशत है। मैं अपने संवैधानिक पद से बंधा हुआ हूं। मैं अपनी बात पूरी तरह से व्यक्त नहीं कर रहा हूं, लेकिन देश को किसानों और ग्रामीण भारत के साथ पूरा न्याय करने के लिए आगे आना होगा। साथ ही अर्थशास्त्री को भी इसमें शामिल करना होगा।

मैंने सुनी है बातें महंगाई हो जाएगी, एक साधारण सी बात कहता हूं। गेहूं से ब्रेड बनती है, कितनी डिस्पैरिटी है! दूध से आइसक्रीम बनती है, कितनी डिस्पैरिटी है! आखिर थोड़ा बहुत तो ज्ञान हममें होगा, अनुभव का होगा और ज़िंदगी बचपन में, गोबर में पांव रखकर निकाली है खुद उन कष्टों को महसूस किया। आपकी बड़ी-बड़ी योजनाएं कारगर है, जैसे नाम कमाया हैं, भारत आज ख्याति पर है।

हमारे पास 118 यूनिकॉर्न हैं, हमारे पास वैश्विक स्टार्टअप तंत्र है। जो दुनिया की एन्वी है। अरे, इसमें किसान की भागीदारी क्यों नहीं है?

मान कर चलिए आप रास्ता भटक गए हैं। हम उस रास्ते पर गए हैं जो खतरनाक है और मेरी दृढ़ मान्यता है, इसके समाधान की कुंजी प्रधानमंत्री जी दे चुके हैं कि वार्तालाप होना चाहिए। मुझे बड़ा अच्छा लगा जब माननीय जगजीत सिंह ने सार्वजनिक रूप से पहले तो संज्ञान लिया कि मैंने क्या कहा और फ़िर उन्होंने तीन ही बातें कही किसान को एमएसपी गारंटी कानून चाहिए। खुले मन से देखो खुले मन से सोचो, आकलन करो। देने के क्या फायदे हैं, नहीं देने के क्या नुकसान हैं। आप तुरंत पाओगे इसमें नुकसान ही नुकसान है। दूसरा कृषि मंत्री ने लिखित में जो वादा किया उसका क्या हुआ?

और मेरी पीड़ा है कि किसान को, किसान के हितैषी आज चुप हैं, बोलने से कतराते हैं। देश की कोई ताकत किसान की आवाज को कुंठित नहीं कर सकती। एक राष्ट्र को बहुत बड़ी कीमत चुकानी होगी, अगर वह किसान के धैर्य की परीक्षा लेगा।

मित्रों आप लोग बड़े विद्वान हो, आप समाज के समृद्ध लोगों में से एक है। मैं एक अलग तरह से भाषण दे सकता था। मैं आपकी तारीफों के पुल बंधा सकता था, आप कई बार ताली बजाते, पर जिस पद पर मैं हूं, जिस वर्ग से मैं आया हूं, जिस कर्तव्यनिष्ठा से काम कर रहूं हूं, जो मैंने शपथ ली है उसके लिए आवश्यक है, मैं आप लोगों को यह बात कहूं।  दर्दनाक हो, कड़वी हो, कम से कम आज रात को आप सोने से पहले सोचोगे। मैंने रात को तीन घंटे लगाए, मेरी टीम ने लगाए दो सदस्य यहां हैं, कि आखिर इन विजन डॉक्यूमेंट को किसी ने देखा क्या, इतनी संस्थाएं हैं, नाम तक याद नहीं रहता है, वो कुछ कर रही हैं क्या?

मुझे आपके साथ यह बात साझा करते हुए खेद है, मैंने ज़मीन भी नापी है- राजस्थान में आपके संस्थाओं में जाकर नापी है। हरियाणा में नापी है, अन्य प्रांतों में भी नापी है। मुझे एक ही चीज मिली हताशा पर मैं निराश होने वाला नहीं हूं। मेरे को उम्मीद है। आज से पाठक साहब कृपया अपने संस्थानों को सक्रिय करें। मैंने आपका भाषण देखा। उसमें आपने बहुत अच्छा किया हमारा स्वागत पर कंटेंट कहां था उसमें पाठक साहब, यह समय दुनिया को यह बताने का है कि हम 100 वर्ष पूरे कर रहे हैं- शताब्दी समारोह! कपास निर्यात के मामले में हम विश्व में कहां हैं, हमारा किसान कहां है?

आप अगर ठान लेते तो किसान के बच्चे उद्यमी बनते, संवर्धन करते गांवों के अंदर। पुरानी संस्कृति याद आती। हम दूर भटक गए हैं।

भारत का कृषि क्षेत्र देश की अर्थव्यवस्था का केंद्र-बिन्दु है। इसकी पहुंच बेजोड़ है तथा आईसीएआर में उत्कृष्ट अनुसंधान संस्थानों की भरमार है, कृपया इस क्षमता का दोहन करें। आपके पास देश भर में फैले 180 से अधिक संस्थान, कृषि विश्वविद्यालय हैं।

आप न केवल सबसे बड़ी राष्ट्रीय कृषि प्रणालियों में से एक हैं, बल्कि आप दुनिया की सबसे बड़ी प्रणाली हैं। और मैंने कहा, मेरी जड़ें ग्रामीण भारत में हैं, मेरी जड़ें खेती में हैं।

यदि अगर इनका विकास नहीं होगा, विकसित भारत@2047 कम से कम किसान के लिए भी आना चाहिए। कृषि क्षेत्र के मुद्दों का समाधान शासन की सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए।

संकट में फंसे किसान और आंदोलनरत किसान, राष्ट्र के समग्र कल्याण के लिए अच्छा संकेत नहीं है।

भारत में अन्य क्षेत्रों की तुलना में गरीबी उन्मूलन पर तीन गुना अधिक प्रभाव उत्पन्न करने की क्षमता है तथा भारत की आधी खपत कृषि प्रसंस्करण और ग्रामीण सेवाओं के माध्यम से पूरी की जा सकती है। हम पता नहीं क्यों नहीं कर पा रहे, देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए। किसान करता क्या है? अन्नदाता है, क्या-क्या बर्दाश्त नहीं करता है खराब मौसम, विभिन्न प्रकार की आपूर्ति और एक समय तो ऐसा था कि किसान को बिजली मिलेगी तो रात को ही मिलेगी।

साथियों, मुझे आपके साथ अपने विचार साझा करते हुए बहुत खुशी हो रही है। मुझे विश्वास है कि इन विचारों को गंभीरता से लिया जाएगा। ये विचार आपके अंतर्मन को झकझोर देंगे। हम सब मिलकर काम करेंगे, ताकि हमारा किसान फले-फूले। आइये, हम अपनी ग्रामीण अर्थव्यवस्था को पोषित करें। आइये, हम किसान को सच्ची श्रद्धांजलि दें। आइये, आज हम संकल्प लें कि हम किसानों की समस्याओं का समाधान निश्चित रूप से करेंगे और किसान की समस्याओं के हल के लिए काहे की चिंता?

यदि अगर किसान से बात करना चिंता का विषय है तो आम आदमी को बहुत चिंतन करना पड़ेगा हम कहां हैं?

इसी भावना के साथ, मैं इस संस्थान और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद से जुड़े संगठनों को शुभकामना देता हूं कि वे अब से किसान को अपना नॉर्थ स्टार बनाएं और जब कभी कठिनाइयां आएं, तो आप हमेशा याद रखिएगा कि जब राष्ट्र कठिनाइयां झेलता है, तो किसान, राष्ट्र के लिए प्रकाश स्तंभ होता है।

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एमजी/केसी/एसके



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