1.0 परिचय
भारत सरकार एक वाइब्रेंट अक्षय ऊर्जा कार्यक्रम चला रही है जिसका उद्देश्य ऊर्जा सुरक्षा, ऊर्जा की उपलब्धता और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में कार्बन फूटप्रिंट्स को कम करना है। यह भारत के 2015 के पेरिस समझौते के तहत ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन की तीव्रता को 2005 के स्तर से 33 से 35 प्रतिशत नीचे करने, और 2030 तक गैर-जीवाश्म स्रोतों से 40 प्रतिशत विद्युत ऊर्जा क्षमता हासिल करने के मकसद से किया गया है। उत्तरोत्तर घटती लागत के साथ बेहतर दक्षता और विश्वसनीयता के साथ अक्षय ऊर्जा अब अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में ऊर्जा की जरूरतों को पूरा करने के लिए एक आकर्षक विकल्प बन चुकी है। हालांकि, अक्षय ऊर्जा प्रौद्योगिकी अब भी तकनीकी परिपक्वता और लागत प्रतिस्पर्धा के मामले में विकसित हो रही है, और बाजार से संबंधित कई आर्थिक और सामाजिक बाधाओं का सामना कर रही है।
उपर्युक्त बातों और कम कार्बन सघन अर्थव्यवस्था वाले एक स्वस्थ ग्रह के लिए अपनी प्रतिबद्धता को देखते हुए हमने 2015 में फैसला किया था कि वर्ष 2022 तक 175 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा क्षमता विकसित की जाएगी। इसमें सौर से 100 गीगावॉट, हवा से 60 गीगावॉट, बायोमास से 10 गीगावॉट और छोटे हाइड्रो पावर से 5 गीगावॉट शामिल हैं। अच्छी बात यह है कि इन महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को पूरा करने के साथ, भारत कई विकसित देशों को पीछे छोड़ते हुए दुनिया के सबसे बड़े हरित ऊर्जा उत्पादकों में से एक बन जाएगा।
2.0 उपलब्धि
31 अक्टूबर 2020 तक भारत की कुल नवीकरणीय ऊर्जा स्थापित क्षमता (25 मेगावाट से ऊपर की पनबिजली को छोड़कर) 89.63 गीगावॉट तक पहुंच गई थी। पिछले 6 वर्षों में भारत ने सभी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच अक्षय ऊर्जा क्षमता में वृद्धि की सबसे तेज दर देखी है। भारत की अक्षय ऊर्जा क्षमता 2.5 गुना की दर बढ़ रही है और वहीं सौर ऊर्जा 13 गुना से अधिक की दर से बढ़ रही है। नवीकरणीय ऊर्जा अब देश की स्थापित बिजली क्षमता का 24 फीसदी और विद्युत ऊर्जा उत्पादन का करीब 11.62 प्रतिशत है। यदि इसमें बड़े हाइड्रो को शामिल किया जाता है तो विद्युत ऊर्जी की क्षमता में नवीकरणीय ऊर्जा का हिस्सा 36 प्रतिशत से अधिक और विद्युत ऊर्जा उत्पादन का 26 प्रतिशत से अधिक होगा। बताते चलें कि लगभग 49.59 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा की क्षमता विकसित की जा रही है जबकि अतिरिक्त 27.41 गीगावॉट क्षमता का टेंडर किया गया है। यह इसकी कुल क्षमता है जो कि पहले से ही चल रही है और करीब 166.63 गीगावॉट क्षमता की ऊर्जा की योजना पाइप लाइन में है। इसके अलावा लगभग 45 और गीगावॉट की क्षमता की पनबिजली का ढांचा स्थापित किया गया है, जबकि 13 गीगावॉट की क्षमता की पनबिजली को स्थापित किए जाने का काम जारी है। पनबिजली को भी अक्षय ऊर्जा घोषित किया गया है।
इस तरह इस प्रयास ने स्थापित और पाइपलाइन परियोजनाओं को लेकर कुल नवीकरणीय ऊर्जा पोर्टफोलियो को 221 गीगावॉट तक पहुंचा दिया है। 25 मेगावाट से अधिक नवीकरण ऊर्जी की क्षमता का क्षेत्रवार विवरण निम्नानुसार है जिसमें बड़े पनबिजली परियोजना शामिल नहीं है:
क्षेत्र
|
स्थापित क्षमता (गीगावॉट)
|
कार्यान्वयन जारी (गीगावॉट)
|
टेंडर (गीगावॉट)
|
कुल स्थापित/ पाइपलाइन (गीगॉट)
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सौर ऊर्जा
|
36.32
|
37.10
|
21.21
|
94.63
|
पवन ऊर्जा
|
38.26
|
8.99
|
0.00
|
47.25
|
जैव ऊर्जा
|
10.31
|
0.00
|
0.00
|
10.31
|
छोटा हाइड्रो
|
4.74
|
0.46
|
0.00
|
5.20
|
पवन सौर हाइब्रिड
|
0
|
1.44
|
1.20
|
2.64
|
राउंड द क्लॉक (आरटीसी) पावर
|
0
|
1.60
|
5.00
|
6.60
|
कुल
|
89.63
|
49.59
|
27.41
|
166.63
|
4.0 नीतियां/बड़ी पहल /योजनाएं/नवीनकरणीय को आगे बढ़ाने के कार्यक्रम
4.1 प्रमुख कार्यक्रम और योजनाएं:
4.1.1 नेशनल सोलर मिशन (एनएसएम)
सौर ऊर्जा का उपयोग करना भारत की नवीकरणीय ऊर्जा रणनीति का एक प्रमुख घटक है। भारत के अधिकांश हिस्सों में प्रचुर मात्रा में सौर विकिरण मिलती हैं और देश में लगभग 750 गीगावॉट सौर ऊर्जा की अनुमानित क्षमता है। जनवरी 2010 में देश भर में सौर प्रौद्योगिकी प्रसार के लिए नीतिगत शर्तों को जल्द से जल्द बनाकर सौर ऊर्जा में भारत को एक वैश्विक नेता के रूप में स्थापित करने के उद्देश्य से नेशनल सोलर मिशन की शुरुआत की गई थी।
नेशनल सोलर मिशन का शुरुआती लक्ष्य 2022 तक 20 गीगावॉट सौर ऊर्जा स्थापित करना था। इसे 2015 की शुरुआत में 100 गीगावॉट तक बढ़ा दिया गया था। मिशन के तहत कई सुगम्य कार्यक्रम और योजनाओं ने वर्ष 2010-11 में 25 मेगावॉट और 31 अक्टूबर 2020 तक लगभग 36.32 गीगावॉट की ऊर्जा क्षमता को स्थापित किया गया था। इसके अतिरिक्त अभी 58.31 गीगावॉट सौर ऊर्जा क्षमता को स्थापित करने के लिए निविदा प्रक्रिया जारी है।
- प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्तम महाभियान (पीएम-केयूएसयूएम):
प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्तम महाभियान (पीएम-कुसुम) योजना एक महत्वाकांक्षी योजना है जिसमें किसानों को पानी और ऊर्जा सुरक्षा प्रदान करने और अन्नदता को ऊर्जादता बनाकर उनकी आय बढ़ाने के लिए तीन घटक शामिल हैं। 2020-21 के बजट के दौरान योजना के विस्तार के तहत 17.5 लाख से 20 लाख पंप और ग्रिड से जुड़े पंपों के सोलराइजेशन की संख्या को 10 लाख से बढ़ाकर 15 लाख करने की योजना के तहत कवर किए गए सोलर पंपों की संख्या बढ़ाने की घोषणा की गई। इस योजना के तहत लक्षित सौर क्षमता के विस्तार के साथ पहले के 25.8 गीगावॉट से बढ़कर 30.8 गीगावॉट हो गया है। कोविड-19 के कारण वर्ष की पहली छमाही के दौरान इसका कार्यान्वयन थोड़ा धीमा था, हालांकि अगस्त 2020 से इसमें प्रगति हुई है। पहले वर्ष के योजना में फीडर स्तर के सौरकरण के प्रावधान शामिल किए जा रहे हैं। पीएम-केएसवाई और एग्रीकल्चर इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड के साथ स्कीम का कन्वर्जेंस भी प्रदान किया गया है। फंड की उपलब्धता के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक ने इस योजना के तीन घटकों को प्राथमिकता क्षेत्र ऋणदाता दिशानिर्देशों के तहत शामिल किया। 2020-21 के दौरान 5000 मेगावाट के छोटे सौर ऊर्जा संयंत्रों, 7 लाख स्टैंडअलोन सौर पंपों और 4 लाख ग्रिड से जुड़े पंपों के सोलराइजेशन को मंजूरी का लक्ष्य रखा गया है।
नवंबर, 2020 में, एमएनआरई ने पहले वर्ष के दौरान योजना के कार्यान्वयन से मिले अनुभव के आधार पर प्रधानमंत्री किसान ऊजा सुरक्षा अभियान उत्थान महाभियान (पीएम-कुसुम) योजना में संशोधन/ दिशानिर्देशों को संशोधित किया गया था। चरागाह और दलदली भूमि के स्वामित्व वाले किसानों को शामिल करके योजना का दायरा बढ़ाया गया है। सौर संयंत्र का आकार कम कर दिया गया है ताकि छोटे किसान इसमें हिस्सेदारी कर सकें और पूर्णता अवधि नौ से बारह महीने तक बढ़ सके। इसके अलावा, उत्पादन में कमी के लिए जुर्माने के प्रावधान को हटा दिया गया है। किसानों के साथ सिंचाई प्रणाली आधारित उसी एमएनआरई आदेश के अनुसार, केंद्रीय वित्तीय भत्ता (सीएफए) को सौर उपयोगकर्ता संघों (डब्ल्यूयूएएस)/ किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) / प्राथमिक कृषि साख समितियों (पीएसीएस) द्वारा या क्लस्टर के लिए उपयोग किए जाने वाले सौर पंपों के लिए अनुमति दी जाएगी।
- ऑफ-ग्रिड सौर पीवी एप्लिकेशन फेज III: सोलर स्ट्रीट लाइट्स, सोलर स्टडी लैम्प्स और सोलर पावर पैक्स के लिए ऑफ-ग्रिड सोलर पीवी एप्लीकेशन प्रोग्राम के फेज-3 का कार्यान्वयन पूर्वोत्तर राज्यों के लिए 2020 में बढ़ाया गया था। योजना के तहत 1.74 लाख सौर स्ट्रीट लाइट, 13.5 लाख सौर स्टडी लैंप और 4 मेगावाट क्षमता वाले सौर ऊर्जा पैक स्वीकृत है। इसे लेकर राज्य नोडल एजेंसियों का कार्यान्वयन के विभिन्न चरणों में है। एसएनए रिपोर्ट के मुताबिक अक्टूबर 2020 तक लगभग 30000 सोलर स्ट्रीट लाइटें स्थापित की गईं, 2.13 लाख सोलर स्टडी लैंप वितरित किए गए और 1.5 मेगावाट सौर ऊर्जा पैक स्थापित किए गए।
- अटल ज्योति योजना (अजय) चरण-II: अटल ज्योति योजना के दूसरे चरण के तहत सोलर स्ट्रीट लाइट लगाने के लिए एमपीलैड से 25 फीसदी धनराशि का योगदान दिया जाना था। लेकिन फिलहाल सरकार ने 1 अप्रैल 2020 से अगले दो साल के लिए 2020-21 और 2021-22 तक इस फंड को रोकने का फैसला किया। हालांकि, मार्च 2020 तक इस योजना के तहत स्वीकृत 1.5 लाख सौर स्ट्रीट लाइटों को लगा दिया गया था और अक्टूबर 2020 तक लगभग 0.84 लाख सोलर स्ट्रीट लाइटें लगा दी गईं और शेष को मार्च 2021 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है।
- रूफ टॉप प्रोग्राम फेज-II: वर्ष 2021-22 तक 40 गीगावॉट स्थापित क्षमता के लक्ष्य के साथ सोलर रूफ टॉप सिस्टम को त्वरित तौर पर लगाने के लिए रूफ टॉप सोलर प्रोग्राम फेज-2 का भी क्रियान्वयन जारी है। यह योजना आवासीय क्षेत्र के लिए 4 गीगावॉट की सोलर रूफ टॉप क्षमता के लिए वित्तीय प्रोत्साहन मुहैया करती है और पिछले वर्ष की तुलना में उपलब्धि के लिए डिस्ट्रीब्यूशन कंपनियों को प्रोत्साहित करने का प्रावधान है। घरेलू रूप से निर्मित सौर सेल्स और मॉड्यूल के आवासीय क्षेत्र उपयोग के लिए अनिवार्य कर दिया गया है। इस योजना से भारत में सौर सेल और मॉड्यूल निर्माण क्षमता को जोड़ने के लिए उत्प्रेरक के रूप में कार्य करने की उम्मीद है। अब तक, देश में कुल 4.4 गीगावॉट सोलर रूफ टॉप प्रोजेक्ट लगाए जा चुके हैं।
V. सोलर पार्क योजना: बड़े पैमाने पर ग्रिड से जुड़े सौर ऊर्जा परियोजनाओं के लिए मार्च 2022 तक 40 गीगावॉट क्षमता के लक्ष्य के साथ “सोलर पार्क और अल्ट्रा मेगा सोलर पावर प्रोजेक्ट्स के विकास” के लिए एक योजना लागू की जा रही है। सौर पार्क सभी तरह के क्लीयरेंस के साथ भूमि, बिजली निकासी की सुविधा, सड़क संपर्क, पानी की सुविधा आदि जैसे आवश्यक बुनियादी ढांचे की सुविधा प्रदान करके प्लग एंड प्ले मॉडल के साथ सौर ऊर्जा डेवलपर्स प्रदान करते हैं। अब तक 40 सौर पार्क्स को 15 राज्यों में 26.3 गीगावॉट की कुल क्षमता के साथ मंजूरी दी गई है। इन पार्क्स में लगभग 8 गीगावॉट की कुल क्षमता की सौर ऊर्जा परियोजनाओं को पहले ही चालू कर दिया गया है।
VI. सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम (सीपीएसयू) योजना: घरेलू सेल और मॉड्यूल के साथ सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों द्वारा 12 गीगावॉट ग्रिड-कनेक्टेड सोलर पीवी पावर प्रोजेक्ट स्थापित करने की एक योजना लागू की जा रही है। इस योजना के तहत वायबिलिटी गैप फंडिंग सहायता मुहैया कराई जाती है। सौर क्षमता को जोड़ने के अलावा यह योजना घरेलू स्तर पर निर्मित सौर सेल्स या मॉड्यूलों की मांग भी पैदा करेगी और इस प्रकार घरेलू विनिर्माण में मदद करेगी।
4.1.2 पवन ऊर्जा
भारत की पवन ऊर्जा क्षमता 695 गीगावॉट है जिसकी ऊंचाई 120 मीटर है। पवन ऊर्जा स्थापित क्षमता पिछले साढ़े छह वर्षों के दौरान 1.8 गुना बढ़कर 38.26 गीगावॉट (31 अक्टूबर 2020 तक) हो गई है और भारत में अब दुनिया की चौथी सबसे बड़ी पवन ऊर्जा क्षमता है। पवन ऊर्जा क्षेत्र में स्वदेशी पवन ऊर्जा उद्योग द्वारा एक मजबूत परियोजना पारिस्थितिकी तंत्र, संचालन क्षमताओं और लगभग 10 गीगावॉट प्रति वर्ष के विनिर्माण आधार के साथ किया जाता है। मंत्रालय भारत के समुद्र तट के साथ अपतटीय पवन ऊर्जा की क्षमता का दोहन करने के लिए रणनीति और रोडमैप विकसित कर रहा है।
- 2500 मेगावॉट आईएसटीएस से जुड़ी परियोजनाओं से ब्लेंडेड पवन ऊर्जा की खरीद के लिए योजना
योजना का उद्देश्य 2500 मेगावाट आईएसटीएस ग्रिड कनेक्टेड पवन ऊर्जा परियोजनाओं से बिजली की खरीद के लिए एक ढांचा प्रदान करना है। इसमें 20 फीसदी तक सौर पीवी पावर के साथ बोली लगाने की एक पारदर्शी प्रक्रिया है। योजना के कार्यान्वयन के लिए सोलर एनर्जी कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (एसईसीआई) नोडल एजेंसी है। इसमें भुगतान सुरक्षा तंत्र, कमीशन अनुसूची, बिजली बंद करने की बाध्यता, बिजली खरीद समझौते आदि के प्रावधान हैं। सोलर एनर्जी कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड ने इस योजना के तहत 2.99-3.00 रुपये प्रति यूनिट की दर से 970 मेगावाट की परियोजना मुहैया कराई है।
- ग्रिड कनेक्टेड विंड सोलर हाइब्रिड प्रोजेक्ट्स से बिजली की खरीद के लिए टैरिफ आधारित प्रतिस्पर्धी बोली प्रक्रिया के लिए दिशानिर्देश
इसका उद्देश्य बोली की एक पारदर्शी प्रक्रिया के माध्यम से आईएसटीएस ग्रिड कनेक्टेड विंड-सोलर हाइब्रिड पावर प्रोजेक्ट्स से बिजली की खरीद के लिए एक रूपरेखा मुहैया करना है। व्यक्तिगत स्तर पर एक साइट पर परियोजना का न्यूनतम आकार 50 मेगावॉट है और एक बोलीदाता 50 मेगावॉट से कम की बोली नहीं लगा सकता है। एक स्रोत (पवन या सौर) से रेटेड बिजली की क्षमता कुल अनुबंधित क्षमता का कम से कम 33% होगी। इसमें भुगतान सुरक्षा तंत्र, कमीशन शेड्यूल, बिजली बंद करने की बाध्यता, बिजली खरीद समझौते आदि के प्रावधान हैं। यहां भी योजना के कार्यान्वयन के लिए सोलर एनर्जी कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (एसईसीआई) नोडल एजेंसी है।
4.1.3 बिजली उत्पादन के लिए अन्य नवीकरण
मंत्रालय चीनी मिलों और अन्य उद्योगों में बायोमास-आधारित को-जेनेरेशन का समर्थन करने के लिए एक योजना लागू कर रहा है। इसका फोकस क्षेत्र शहरी, औद्योगिक और कृषि अपशिष्ट अथवा अवशेषों से ऊर्जा उत्पादन है। 31 अक्टूबर 2020 तक ग्रिड से जुड़े बायोमास बिजली परियोजनाओं की स्थापित क्षमता लगभग 10.15 गीगावॉट थी, ऊर्जा परियोजनाओं की क्षमता 168.64 मेगावॉट (ग्रिड कनेक्टेड) और 204.73 मेगावॉट (ऑफ ग्रिड) और 1133 छोटी से लेकर करीब 874 गीगावॉट तक छोटी क्षमता वाली पनबिजली परियोजनाएं चालू थीं।
4.1.4 ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर
अक्षय ऊर्जा की सुविधा और भविष्य की आवश्यकताओं के लिए ग्रिड को फिर से शुरू करने के लिए ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर (जीईसी) परियोजनाओं को शुरू किया गया है। योजना का पहला घटक 3200 सर्किट किलोमीटर (किमी) ट्रांसमिशन लाइनों और 17,000 मेगावॉट क्षमता वाले सब-स्टेशनों की लक्ष्य क्षमता के साथ अंतर-राज्यीय जीईसी मार्च 2020 में पूरा हुआ था। दूसरे घटक- 9700 किलोमीटर ट्रांसमिशन लाइनों और 22,600 मेगावॉट क्षमता वाले सब-स्टेशनों की लक्ष्य क्षमता के साथ अंतरराज्यीय जीईसी के मई 2021 तक पूरा होने की उम्मीद है। फिलहाल संस्थानों, संसाधनों और प्रोटोकॉल को मजबूत करने और ग्रिड इन्फ्रास्ट्रक्चर में विवेकपूर्ण तरीके से निवेश करने पर पूरा प्रयास केंद्रित हैं। कुल 7175 किमी की ट्रांसमिशन लाइनों का निर्माण किया गया है और 7825 मेगावॉट की कुल क्षमता के सबस्टेशनों का चार्ज किया गया है।
4.2 नीतियां और पहल:
भारत ने लक्ष्य हासिल करने के लिए सुगमतापूर्ण नीतियों और कार्यक्रमों को लागू करने को लेकर सिस्टमेटिक तरीके से काम किया है। कई विविध नीतियों की वजह से सफलता मिली है जैसे कि:-
- अखिल भारतीय स्तर पर अक्षय ऊर्जा बाजार बनाने और उच्च नवीकरणीय संसाधन संभावित क्षेत्रों में नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं की स्थापना को प्रोत्साहित करने के लिए सितंबर 2016 में अंतर राज्यीय ट्रांसमिशन सिस्टम शुल्क की माफी और बिजली की बिक्री को लेकर सौर और पवन ऊर्जा परियोजनाओं को अधिसूचित किया गया था। यह रियायत 30 जून 2023 तक चालू होने वाली परियोजनाओं के लिए बढ़ा दी गई है।
- भारत में बिजली उत्पादन सिस्टम को कार्बन रहित बनाने और ऊर्जा सुरक्षा हासिल करने के दीर्घकालिक लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए और जुलाई 2016 में अपनी अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं के अनुसार, सभी राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों के लिए समान रूप से नवीकरणीय खरीद दायित्व वृद्धि प्रक्षेपवक्र को अधिसूचित किया गया था।
- विद्युत अधिनियम, 2003 की धारा 63 के तहत सौर और पवन ऊर्जा की खरीद के लिए प्रतिस्पर्धी बोली दिशानिर्देशों को अधिसूचित किया गया है। ये दिशानिर्देश खरीद प्रक्रिया के मानकीकरण और एकरूपता और विभिन्न हितधारकों के बीच एक जोखिम-साझाकरण का ढांचा मुहैया कराते हैं। इससे निवेश को प्रोत्साहन मिलता है, परियोजनाओं की बैंक क्षमता बढ़ जाती है और लाभ की दिशा में सुधार होता है। ये दिशानिर्देश खरीद प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और निष्पक्षता की सुविधा मुहैया करते हैं जिसके चलते पिछले कुछ वर्षों में सौर और पवन ऊर्जा की कीमतों में भारी गिरावट आई है।
- आवासीय क्षेत्र नीति और विनियामक हस्तक्षेप के माध्यम से सोलर रूफटॉप सिस्टम को वाणिज्यिक, औद्योगिक और सरकारी क्षेत्र में बढ़ावा दिया गया है। उदाहरण के तौर पर बता दें कि आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के मॉडल बिल्डिंग उपनियमों में अनिवार्य सौर प्रावधान और आवासीय क्षेत्र के लिए केंद्रीय वित्तीय सहायता और डिस्कॉम को उपलब्धि आधारित प्रोत्साहन के अलावा बैंकों / वित्तीय संस्थाओं के माध्यम से रियायती फंडिंग की व्यवस्था है। इसके अतिरिक्त कुछ राज्यों ने कुछ भूखंड क्षेत्र, कनेक्टेड लोड से ऊपर की इमारतों के लिए अनिवार्य तौर पर सोलर लगाने का प्रावधान भी किया है।
- विदेशी निवेशक वित्तीय और तकनीकी सहयोग, अक्षय ऊर्जा-आधारित बिजली उत्पादन परियोजनाओं की स्थापना के लिए एक भारतीय भागीदार के साथ संयुक्त उद्यम के जरिये इस दिशा में कदम रख सकते हैं। इक्विटी के रूप में 100 प्रतिशत तक विदेशी निवेश स्वतः अनुमोदन के लिए योग्य माने जाते हैं।
- भुगतान सुरक्षा सुनिश्चित करने और स्वतंत्र बिजली उत्पादकों को भुगतान में देरी से संबंधित जोखिमों से निपटने, निवेशकों में भरोसा पैदा करने को लेकर डिस्कॉम को लेटर ऑफ क्रेडिट (एलसी) जारी करने को अनिवार्य किया गया है;
- गुणवत्ता आश्वासन के लिए, सौर फोटोवोल्टिक प्रणालियों, उपकरणों के मानकों को अधिसूचित किया गया है।
- नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं को 30 करोड़ रुपये की सीमा तक ऋण के लिए प्राथमिकता क्षेत्र का दर्जा प्रदान किया गया है।
- केंद्र सरकार से सब्सिडी के प्रावधान के माध्यम से ऑफ-ग्रिड एप्लिकेशन्स को बढ़ावा दिया जाता है।
- घरेलू विनिर्माण इको-सिस्टम को मजबूत और विस्तारित करने के लिए प्रयास किए गए हैं। पीएम-कुसुम, सोलर रूफटॉप और सीपीएसयू जैसी योजनाओं में घरेलू सामग्री की आवश्यकता की पूर्व शर्त है। इसका मकसद सीधे 36 गीगावॉट सौर पीवी (सेल्स और मॉड्यूल) से अधिक की घरेलू मांग पैदा करना है। आयातित सौर पीवी सेल्स और मॉड्यूल के प्रसार पर अंकुश लगाने के लिए 30 जुलाई 2018 से दो साल के लिए एक सुरक्षा शुल्क लगाया गया था। इसे 30 जुलाई, 2020 से 29 जनवरी, 2021 के दौरान आयात के लिए 14.90 प्रतिशत की दर से एक और वर्ष के लिए बढ़ाया गया था; और 30 जनवरी, 2021 से 29 जुलाई, 2021 के दौरान आयात के लिए 14.50 प्रतिशत की दर के साथ आगे बढ़ाया गया है। एक बढ़ी हुई बेसिक सीमा शुल्क और घरेलू सौर पीवी विनिर्माण के लिए वित्तीय प्रोत्साहन के विचार की भी परिकल्पना की गई है।
5.0 मुद्दे और आगे की चुनौतियां
नवीनीकरण की दिशा में बढ़ने को लेकर भारत बड़ी चुनौतियों का सामना कर रहा है। इनमें से कुछ नीचे सूचीबद्ध हैं-
5.1 प्रतिस्पर्धी शर्तों पर आवश्यक वित्त और निवेश: बड़े लक्ष्यों को हासिल करने के लिए वित्त की व्यवस्था करने को लेकर बैंकिंग क्षेत्र को तैयार करना, कम-ब्याज दर की खोज करना, दीर्घकालिक अंतरराष्ट्रीय फंडिंग, और जोखिम कम करने के लिए एक उपयुक्त तंत्र विकसित करना या तकनीकी और वित्तीय दोनों बाधाओं को रेखांकित करना सहित कई प्रमुख चुनौतियां हैं। निवेश जोखिमों को कम करने और अनुमोदन प्रक्रियाओं को आसान बनाने के लिए चल रहे प्रयासों को भी मजबूत करने की आवश्यकता है।
5.2 भूमि अधिग्रहण: अक्षय ऊर्जा विकास में भूमि अधिग्रहण प्रमुख चुनौतियों में से एक है। अक्षय ऊर्जा की क्षमता के साथ भूमि की पहचान, इसका रूपांतरण (यदि आवश्यक हो), भूमि सीलिंग एक्ट से मंजूरी, भूमि पट्टे के किराये पर निर्णय, राजस्व विभाग से मंजूरी और ऐसी अन्य मंजूरी में समय लगता है। राज्य सरकारों को अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं के लिए भूमि के अधिग्रहण में एक प्रमुख भूमिका निभानी है।
5.3 देश में एक नवाचार और विनिर्माण पर्यावरण-प्रणाली तैयार करनी है;
5.4 ग्रिड के साथ नवीनीकरण के बड़े हिस्से को आर्थिक रूप से एकीकृत करना;
5.5 नवीनीकरण से फर्म और बिजली की त्वरित आपूर्ति को सक्षम बनाना है;
5.6 इन क्षेत्रों को कार्बन रहित करने के लिए हार्डवेब में नवीकरण की पहुंच को सक्षम करना होगा।
6.0 कोविड-19 का प्रभाव
6.1 कोविड-19 महामारी की वजह से कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। इससे अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं का विकास और इसकी कमीशनिंग की गति प्रभावित हुई है। हालांकि इन चुनौतियों से तेजी से निपटना था। नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन संयंत्रों के संचालन को एक आवश्यक सेवा के रूप में घोषित किया गया था, और लॉकडाउन को विभिन्न नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं को समय से मंजूरी देने के लिए एक नीति के तौर पर इस्तेमाल किया गया। महामारी और लॉकडाउन के बावजूद भी नई परियोजनाओं के लिए बोली प्रक्रिया जारी रही।
6.2 कामकाज में सहूलियत के लिए कोविड के दौरान निम्नलिखित प्रमुख उपाय किए गए:-
6.2.1 कोविड-19 के असर को कम करने, अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं को समय विस्तार देने और कार्य पूरा होने के लिए बैंक गारंटी जारी रखने के लिए निर्देश जारी किए गए;
6.2.2 राज्यों को अनुबंधों को बनाए रखने और नवीकरण के लिए सहायक नीतियों में निश्चितता सुनिश्चित करने की सलाह दी गई है;
6.2.3 राज्यों को यह स्पष्ट किया गया है कि लॉकडाउन अवधि के दौरान नवीकरणीय ऊर्जा की स्थिति अपरिवर्तित बनी हुई है, और ग्रिड सुरक्षा कारणों को छोड़कर ऊर्जा निर्माण का काम जारी रहेगा;
6.2.4 सभी प्रकार की गतिविधियों में उपयुक्त राहत / विस्तार प्रदान किया गया जो महामारी से प्रभावित थे।
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- अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए कदम (आत्मनिर्भर भारत नीति)
7.1 घरेलू सामग्री की आवश्यकता (डीसीआर):
सीपीएसयू योजना चरण- II (12 गीगावॉट), पीएम-कुसुम (20.8 गीगावॉट) और ग्रिड से जुड़े रूफटॉप सोलर प्रोग्राम फेज- II (4 गीगावॉट) - 36.8 गीगावॉट की परियोजनाओं में, घरेलू स्तर पर सोलर सेल और मॉड्यूल का उपयोग अनिवार्य है।
7.2 मेक इन इंडिया को प्राथमिकता
घरेलू रूप से निर्मित सौर पीवी सेल्स और मॉड्यूल की खरीद और उपयोग, सरकार या सरकारी संस्थाओं द्वारा खरीद को अनिवार्य कर दिया गया है।
7.3 सोलर पीवी पावर प्लांट के लिए पॉवर परचेज अग्रीमेंट (पीपीए) के साथ भारत में सोलर पीवी मैन्युफैक्चरिंग कैपेसिटी स्थापित करने के लिए मैन्युफैक्चरिंग लिंक्ड टेंडर: 12000 मेगावॉट सोलर पीवी के साथ 3 गीगावॉट सोलर पीवी सेल्स और 3 गीगावॉट सोलर पीवी मॉड्यूल्स की स्थापना। अगले 2 वर्षों में विनिर्माण संयंत्र स्थापित किए जाएंगे।
7.4 29 जुलाई, 2020 से 29 जुलाई, 2021 तक निम्नलिखित दरों पर सौर पीवी सेल्स और मॉड्यूल के आयात पर सुरक्षा शुल्क का विस्तार:
- 30 जुलाई, 2020 से 29 जनवरी, 2021 के दौरान 14.90 फीसदी आयात;
- 30 जनवरी, 2021 से 29 जुलाई, 2021 के दौरान 14.50 फीसदी आयात
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- सौर पीवी सेल्स, सौर पीवी मॉड्यूल और सौर इनवर्टर के आयात पर बेसिक सीमा शुल्क (बीसीडी):
नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने सौर पीवी सेल्स, सौर पीवी मॉड्यूल और सौर इनवर्टर के आयात पर बेसिक सीमा शुल्क (बीसीडी) के चरणबद्ध कार्यान्वयन के लिए वित्त मंत्रालय को एक प्रस्ताव भेजा है।
7.6 नई विनिर्माण पीएलआई योजना:
मंत्रिमंडल ने उच्च दक्षता मॉड्यूल के निर्माण योजना के लिए उत्पादन प्रोत्साहन को मंजूरी दी है। ईएफसी नोट को अंतिम रूप दिया जा रहा है।
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- पवन ऊर्जा क्षेत्र में देश वास्तव में आत्मनिर्बर हैः पवन ऊर्जा क्षेत्र में मजबूत घरेलू विनिर्माण के साथ लगभग 70-80 फीसदी स्वदेशी तौर पर काम किया जा रहा है। इस क्षेत्र के सभी प्रमुख वैश्विक दिग्गजों ने 17 विभिन्न कंपनियों द्वारा पवन टर्बाइनों के 40 से अधिक विभिन्न मॉडलों का निर्माण, (i) विदेशी कंपनियों की अनुषंगी उत्पादन (ii) सहायक कंपनियों के तहत संयुक्त उपक्रमों, और (iii) भारतीय कंपनियों द्वारा अपनी तकनीक के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज की है। मशीन यूनिट्स का आकार 3.00 मेगावाट हो गया है। देश में पवन टरबाइनों की वर्तमान वार्षिक उत्पादन क्षमता लगभग 8000 मेगावॉट से 10000 मेगाव़ॉट है।
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- बिजली और अक्षय ऊर्जा उपकरण के लिए विनिर्माण क्षेत्र: नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय और एमओपी विभिन्न क्षेत्रों में विनिर्माण क्षेत्र स्थापित करने की योजना पर काम कर रहे हैं। राज्यों को उनके प्रस्ताव के आधार पर चुना जाएगा। निर्माताओं को भूमि, बिजली और जल शुल्क, राज्य प्रोत्साहन आदि के लिए संकट मुक्त भूमि और सर्वोत्तम मूल्य मिलेंगे।
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- मंत्रालय कैपिटल मशीन की सूची को भी अंतिम रूप दे रहा है ताकि उन्हें विनिर्माण संयंत्र स्थापित करने के लिए आवश्यक आयात पर छूट मिल सके।
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- प्रोजेक्ट डेवेलमेंट सेल (पीडीसी) को घरेलू और विदेशी निवेशकों को सुविधा प्रदान करने के लिए स्थापित किया गया है। पीडीसी उन संभावित निवेशकों तक पहुंच रहा है जो भारत में विनिर्माण क्षमता स्थापित करने के इच्छुक हैं;
7.11 फिलहाल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) सेल को मंत्रालय में मौजूदा कोविड-19 महामारी के कारण अवसरवादी अधिग्रहण/भारतीय कंपनियों के अधिग्रहण पर अंकुश लगाने के लिए डीपीआईआईटी की सिफारिशों के अनुरूप बनाया गया है।
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एमजी/एएम/वीएस