प्रधानमंत्री कार्यालय
मन की बात की 127वीं कड़ी में प्रधानमंत्री के सम्बोधन का मूल पाठ (26.10.2025)
Posted On:
26 OCT 2025 11:34AM by PIB Delhi
मेरे प्यारे देशवासियो,
नमस्कार, ‘मन की बात’ में आप सब का स्वागत है। पूरे देश में इस समय त्योहारों का उल्लास है। हम सबने कुछ दिन पहले दीपावली मनाई है और अभी बड़ी संख्या में लोग छठ पूजा में व्यस्त हैं। घरों में ठेकुआ बनाया जा रहा है। जगह-जगह घाट सज रहे हैं। बाजारों में रौनक है। हर तरफ श्रद्धा, अपनापन और परंपरा का संगम दिख रहा है। छठ का व्रत रखने वाली महिलाएं जिस समर्पण और निष्ठा से इस पर्व की तैयारी करती हैं वो अपने आप में बहुत प्रेरणादायक है।
साथियों,
छठ का महापर्व संस्कृति, प्रकृति और समाज के बीच की गहरी एकता का प्रतिबिंब है। छठ के घाटों पर समाज का हर वर्ग एक साथ खड़ा होता है। ये दृश्य भारत की सामाजिक एकता का सबसे सुंदर उदाहरण है। आप देश और दुनिया के किसी भी कोने में हों, यदि मौका मिले, तो, छठ उत्सव में जरूर हिस्सा लें। एक अनोखे अनुभव को खुद महसूस करें। मैं छठी मैया को नमन करता हूँ। सभी देशवासियों को, विशेषकर बिहार, झारखंड और पूर्वांचल के लोगों को छठ महापर्व की शुभकामनाएँ देता हूँ।
साथियों,
त्योहारों के इस अवसर पर मैंने आप सभी के नाम एक पत्र लिखकर अपनी भावनाएँ साझा की थी। मैंने चिट्ठी में देश की उन उपलब्धियों के बारे में बताया था जिससे इस बार त्योहारों की रौनक पहले से ज्यादा हो गई है। मेरी चिट्ठी के जवाब में मुझे देश के अनेक नागरिकों ने अपने संदेश भेजे हैं। वाकई ‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने हर भारतीय को गर्व से भर दिया है। इस बार उन इलाकों में भी खुशियों के दीप जलाए गए जहाँ कभी माओवादी आतंक का अंधेरा छाया रहता था। लोग उस माओवादी आतंक का जड़ से खात्मा चाहते हैं जिसने उनके बच्चों का भविष्य संकट में डाल दिया था।
GST बचत उत्सव को लेकर भी लोगों में बहुत उत्साह है। इस बार त्योहारों में एक और सुखद बात देखने को मिली। बाजारों में स्वदेशी सामानों की खरीदारी जबरदस्त तरीके से बढ़ी है। लोगों ने मुझे जो संदेश भेजे हैं, उसमें बताया है कि इस बार उन्होंने किन स्वदेशी चीजों की खरीदारी की है।
साथियों,
मैंने अपने पत्र में खाने के तेल में 10 प्रतिशत की कमी करने का भी आग्रह किया था, इस पर भी लोगों ने बहुत सकारात्मक रुख दिखाया है।
साथियों,
स्वच्छता और स्वच्छता के प्रयास, इस पर भी मुझे ढ़ेर सारे संदेश मिले हैं। मैं आपसे देश के तीन अलग-अलग शहरों की ऐसी गाथाएं साझा करना चाहता हूँ जो बहुत प्रेरणादायक हैं। छतीसगढ़ के अम्बिकापुर में शहर से प्लास्टिक कचरा साफ करने के लिए एक अनोखी पहल की गई है। अम्बिकापुर में Garbage Cafe चलाए जा रहे हैं। ये ऐसे cafe हैं, जहाँ प्लास्टिक कचरा लेकर जाने पर भरपेट खाना खिलाया जाता है। अगर कोई व्यक्ति एक किलो प्लास्टिक लेकर जाए उसे दोपहर या रात का खाना मिलता है और कोई आधा किलो प्लास्टिक ले जाए तो नाश्ता मिल जाता है। ये cafe अम्बिकापुर म्युनिसिपल कॉरपोरेशन चलाता है।
साथियों,
इसी तरह का कमाल बेंगलुरु में इंजीनियर कपिल शर्मा जी ने किया है। बेंगलुरू को झीलों का शहर कहा जाता है और कपिल जी ने यहां झीलों को नया जीवन देने का अभियान शुरू किया है। कपिल जी की टीम ने बेंगलुरु और आसपास के इलाकों में 40 कुंओं और 6 झीलों को फिर से जिंदा कर दिया है। खास बात तो ये है कि उन्होंने अपने mission में corporates और स्थानीय लोगों को भी जोड़ा है। उनकी संस्था पेड़ लगाने के अभियान से भी जुड़ी है।
साथियो,
अम्बिकापुर और बेंगलुरू, ये प्रेरक उदाहरण बताते हैं कि जब ठान लिया जाए तो बदलाव भी आकर के ही रहता है।
साथियों,
बदलाव के एक और प्रयास का उदाहरण, मैं आपसे साझा करना चाहता हूँ। आप सब जानते हैं जैसे पहाड़ों पर और मैदानी इलाकों में जंगल होते हैं ये जंगल मिट्टी को बांधे रहते हैं, कुछ वैसी ही अहमियत समंदर के किनारे mangrove की होती है। Mangrove समुद्र के खारे पानी और दलदली जमीन में उगते हैं और समुद्री eco-system का एक अहम हिस्सा होते हैं। सुनामी या cyclone जैसी आपदा आने पर ये Mangrove बहुत मददगार साबित होते हैं।
साथियों,
गुजरात के वन विभाग ने Mangrove के इस महत्व को समझते हुए खास मुहिम चलाई हुई है। 5 साल पहले वन विभाग की टीमों ने अहमदाबाद के नजदीक धोलेरा में Mangrove लगाने का काम शुरू किया था, और आज, धोलेरा तट पर साढ़े तीन हजार हेक्टेयर में Mangrove फैल चुके हैं। इन Mangrove का असर आज पूरे क्षेत्र में देखने को मिल रहा है। वहाँ के eco system में dolphins की संख्या बढ़ गई है। केकड़े और दूसरे जलीय जीव भी पहले से ज्यादा हो गए हैं। यही नहीं, अब यहाँ प्रवासी पक्षी भी काफी संख्या में आ रहे हैं। इससे वहाँ के पर्यावरण पर अच्छा प्रभाव तो पड़ा ही है, धोलेरा के मछली पालकों को भी फायदा हो रहा है।
साथियों,
धोलेरा के अलावा गुजरात के कच्छ में भी इन दिनों Mangrove Plantation बहुत जोरों पर हो रहा है, वहाँ कोरी क्रीक में, ‘Mangrove Learning Centre’ भी बनाया गया है।
साथियों,
पेड़-पौधों की, वृक्षों की यही तो खासियत होती है। जगह चाहे कोई भी हो, वो हर जीव मात्र की बेहतरी के लिए काम आते हैं। इसीलिए तो हमारे ग्रन्थों में कहा गया है –
धन्या महीरूहा येभ्यो,
निराशां यान्ति नार्थिनः।|
अर्थात्, वो वृक्ष और वनस्पतियाँ धन्य हैं, जो किसी को भी निराश नहीं करते। हमें भी चाहिए, हम जिस भी इलाके में रहते हैं, पेड़ अवश्य लगाएं। ‘एक पेड़ माँ के नाम’ के अभियान को हमें और आगे बढ़ाना है|
मेरे प्यारे देशवासियो,
क्या आप जानते हैं कि ‘मन की बात’ में हम जिन विषयों पर चर्चा करते हैं, उनमें मेरे लिए सबसे संतोष की बात क्या होगी? तो मैं इस बारे में यही कहूँगा कि ‘मन की बात’ में हम जिन विषयों की चर्चा करते हैं, उनसे लोगों को समाज के लिए कुछ अच्छा, कुछ Innovative करने की प्रेरणा मिलती है। इससे हमारी संस्कृति, हमारे देश के कई पहलू उभरकर सामने आते हैं।
साथियों,
आपमें से बहुतों को याद होगा कि करीब पाँच वर्ष पहले मैंने इस कार्यक्रम में भारतीय नस्ल के ‘श्वान’ यानि dogs की चर्चा की थी। मैंने देशवासियों के साथ ही अपने सुरक्षा बलों से आग्रह किया था कि वे भारतीय नस्ल के Dogs को अपनाएं, क्योंकि वो हमारे परिवेश और परिस्थितियों के अनुरूप ज्यादा आसानी से ढ़ल जाते हैं। मुझे ये बताते हुए खुशी हो रही है कि हमारी सुरक्षा एजेंसियों ने इस दिशा में काफी सराहनीय प्रयास किए हैं। BSF और CRPF ने अपने दस्तों में भारतीय नस्ल के Dogs की संख्या बढ़ाई है। Dogs की training के लिए BSF का National Training Centre ग्वालियर के टेकनपुर में है। यहाँ उत्तर प्रदेश के रामपुर हाउंड, कर्नाटक और महाराष्ट्र के मुधोल हाउंड इस पर विशेष रूप से focus किया जा रहा है। इस Centre पर trainers technology और innovation की मदद से श्वानों को बेहतर तरीके से train कर रहे हैं। भारतीय नस्ल वाले Dogs के लिए Training Manuals को फिर से लिखा गया है ताकि उनकी unique strengths को सामने लाया जा सके। बेंगलुरु में CRPF के Dog Breeding and training school में मोंग्रेल्स, मुधोल हाउंड, कोम्बाई और पांडिकोना जैसे भारतीय श्वानों को train किया जा रहा है।
साथियों,
पिछले वर्ष लखनऊ में All India Police Duty Meet का आयोजन हुआ था। उस समय, रिया नाम की श्वान ने लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा था। यह एक मुधोल हाउंड है जिसे BSF ने Train किया है। रिया ने यहाँ कई Foreign Breeds को पछाड़ते हुए पहला पुरस्कार जीता।
साथियों,
अब BSF ने अपने Dogs को विदेशी नामों के बजाय भारतीय नाम देने की परंपरा शुरू की है। हमारे यहाँ के देशी श्वान ने अद्भुत साहस भी दिखाया है। पिछले वर्ष, छतीसगढ़ के माओवाद से प्रभावित रहे क्षेत्र में गश्त के दौरान CRPF के एक देसी श्वान ने 8 किलोग्राम विस्फोटक का पता लगाया था। BSF और CRPF ने इस दिशा में जो प्रयास किए हैं उसके लिए मैं उन्हें बधाई देता हूँ। वैसे मुझे 31 October का भी इंतजार है। यह लौहपुरुष सरदार पटेल की जयंती का दिन है। इस अवसर पर हर वर्ष गुजरात के एकता नगर में ‘Statue of Unity’ के समीप विशेष समारोह आयोजित किए जाते हैं। यहीं पर एकता दिवस परेड भी होती है और इस परेड में फिर से भारतीय श्वानों के सामर्थ्य का प्रदर्शन होगा। आप भी, मौका निकालकर इसे जरूर देखिएगा।
मेरे प्यारे देशवासियो,
सरदार पटेल जी की 150वीं जयंती का दिन पूरे देश के लिए एक बहुत विशेष अवसर है। सरदार पटेल आधुनिक काल में राष्ट्र की सबसे महान विभूतियों में से एक रहे हैं। उनके विराट व्यक्तित्व में अनेक गुण एक साथ समाहित थे। वे एक अत्यंत प्रतिभाशाली छात्र रहे। उन्होंने भारत और ब्रिटेन दोनों ही जगह पढ़ाई में बेहतरीन प्रदर्शन किया। वे अपने समय के सबसे सफल वकीलों में से भी एक थे। वो वकालत में और नाम कमा सकते थे, लेकिन गांधी जी से प्रेरित होकर उन्होंने खुद को स्वतंत्रता आंदोलन में पूरी तरह समर्पित कर दिया। ‘खेड़ा सत्याग्रह’ से लेकर ‘बोरसद सत्याग्रह’ तक अनेक आंदोलनों में उनके योगदान को आज भी याद किया जाता है। अहमदाबाद Municipality के प्रमुख के रूप में उनका कार्यकाल भी ऐतिहासिक रहा था। उन्होंने स्वच्छता और सुशासन को सर्वोच्च प्राथमिकता दी। उप-प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के रूप में उनके योगदान के लिए हम सभी सदैव उनके ऋणी रहेंगे।
साथियों,
सरदार पटेल ने भारत के bureaucratic framework की एक मजबूत नींव भी रखी । देश की एकता और अखंडता के लिए उन्होंने अद्वितीय प्रयास किए । मेरा आप सबसे आग्रह है, 31 अक्टूबर को सरदार साहब की जयंती देश-भर में होने वाली Run For Unity में आप भी जरूर शामिल हों - और अकेले नहीं सब को साथ लेकर के शामिल हों । एक प्रकार से युवा चेतना का ये अवसर बनना चाहिए एकता की दौड़, एकता को मजबूती देगी। ये उस महान विभूति के प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि है, जिन्होंने भारत को एकता के सूत्र में पिरोया था ।
मेरे प्यारे देशवासियो,
चाय के साथ मेरा जुड़ाव तो आप सभी जानते ही हैं, लेकिन आज मैंने सोचा कि ‘मन की बात’ में क्यों न कॉफी पर चर्चा की जाए । आपको याद होगा, बीते साल हमने ‘मन की बात’ में अराकू कॉफी पर बात की थी । कुछ समय पहले ओडिशा के कई लोगों ने मुझसे कोरापुट कॉफी को लेकर भी अपनी भावनाएं साझा की । उन्होंने मुझे पत्र लिखकर कहा कि ‘मन की बात’ में कोरापुट कॉफी पर भी चर्चा हो ।
साथियों,
मुझे बताया गया है कि कोरापुट कॉफी का स्वाद गजब होता है, और इतना ही नहीं, स्वाद तो स्वाद, कॉफी की खेती भी लोगों को फायदा पहुंचा रही है| कोरापुट में कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो अपने passion की वजह से कॉफी की खेती कर रहे हैं । corporate world में अच्छी-खासी नौकरी करते थे, लेकिन वो कॉफी को इतना पसंद करते हैं कि इस field में आ गए और अब सफलता से इसमें काम कर रहे हैं । ऐसी कई महिलाएं भी हैं, जिनके जीवन में कॉफी से सुखद बदलाव हुआ है । कॉफी से उन्हें सम्मान और समृद्धि, दोनों हासिल हुई है । सच ही कहा गया है :
कोरापुट कॉफी अत्यंत सुस्वादु।
एहा ओडिशार गौरव।
(English Translation)
Koraput Coffee is truly delectable!
This indeed is the pride of Odisha!
साथियों,
दुनिया-भर में भारत की कॉफी बहुत लोकप्रिय हो रही है। चाहे कर्नाटका में चिकमंगलुरु, कुर्ग और हासन हो। तमिलनाडु में पुलनी, शेवरॉय, नीलगिरी और अन्नामलाई के इलाके हों, कर्नाटक–तमिलनाडु सीमा पर बिलिगिरि क्षेत्र हो या फिर केरला में वायनाड, त्रावणकोर और मालाबार के इलाके - भारत की कॉफी की diversity देखते ही बनती है। मुझे बताया गया है कि हमारा north- east भी coffee cultivation में आगे बढ़ रहा है। इससे भारतीय कॉफी की पहचान दुनिया-भर में और मजबूत हो रही है - तभी तो कॉफी को पसंद करने वाले कहते हैं :
India’s coffee is coffee at its finest.
It is brewed in India and loved by the World.
मेरे प्यारे देशवासियो,
अब ‘मन की बात’ में एक ऐसे विषय की बात, जो हम सबके दिलों के बेहद करीब है। ये विषय है हमारे राष्ट्र गीत का - भारत का राष्ट्र गीत यानी ‘वन्देमातरम्’। एक ऐसा गीत, जिसका पहला शब्द ही हमारे हृदय में भावनाओं का उफान ला देता है। ‘वन्देमातरम्’ इस एक शब्द में कितने ही भाव हैं, कितनी ऊर्जाएं हैं। सहज भाव में ये हमें माँ-भारती के वात्सल्य का अनुभव कराता है। यही हमें माँ-भारती की संतानों के रूप में अपने दायित्वों का बोध कराता है। अगर कठिनाई का समय होता है तो ‘वन्देमातरम्’ का उद्घोष 140 करोड़ भारतीयों को एकता की ऊर्जा से भर देता है।
साथियों,
राष्ट्रभक्ति, माँ-भारती से प्रेम, यह अगर शब्दों से परे की भावना है तो ‘वन्देमातरम्’ उस अमूर्त भावना को साकार स्वर देने वाला गीत है। इसकी रचना बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय जी ने सदियों की गुलामी से शिथिल हो चुके भारत में नए प्राण फूंकने के लिए की थी। ‘वन्देमातरम्’ भले ही 19वीं शताब्दी में लिखा गया था लेकिन इसकी भावना भारत की हजारों वर्ष पुरानी अमर चेतना से जुड़ी थी। वेदों ने जिस भाव को “माता भूमि: पुत्रो अहं पृथिव्या:”( Earth is the mother and I am her child) कहकर भारतीय सभ्यता की नींव रखी थी। बंकिमचंद्र जी ने ‘वन्देमातरम्’ लिखकर मातृभूमि और उसकी संतानों के उसी रिश्ते को भाव विश्व में एक मंत्र के रूप में बांध दिया था।
साथियों,
आप सोच रहे होंगे कि मैं अचानक से वन्देमातरम् की इतनी बातें क्यों कर रहा हूं। दरअसल कुछ ही दिनों बाद, 7 नवंबर को हम ‘वन्देमातरम्’ के 150वें वर्ष के उत्सव में प्रवेश करने वाले हैं। 150 वर्ष पूर्व ‘वन्देमातरम्’ की रचना हुई थी और 1896 (अट्ठारह सौ छियानवे) में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने पहली बार इसे गाया था।
साथियों,
‘वन्देमातरम्’ के गान में करोड़ों देशवासियों ने हमेशा राष्ट्र प्रेम के अपार उफान को महसूस किया है। हमारी पीढ़ियों ने ‘वन्देमातरम्’ के शब्दों में भारत के एक जीवंत और भव्य स्वरूप के दर्शन किए हैं।
सुजलाम्, सुफलाम्, मलयज शीतलाम्,
शस्यश्यामलाम्, मातरम्!
वंदे मातरम्!
हमें ऐसा ही भारत बनाना है। ‘वन्देमातरम्’ हमारे इन प्रयासों में हमेशा हमारी प्रेरणा बनेगा। इसलिए, हमें ‘वन्देमातरम्’ के 150वें वर्ष को भी यादगार बनाना है। आने वाली पीढ़ी के लिए ये संस्कार सरिता को हमें आगे बढ़ाना है। आने वाले समय में ‘वन्देमातरम्’ से जुड़े कई कार्यक्रम होंगे, देश में कई आयोजन होंगे। मैं चाहूँगा, हम सब देशवासी ‘वन्देमातरम्’ के गौरवगान के लिए स्वत: स्फूर्त भावना से भी प्रयास करें| आप मुझे अपने सुझाव #VandeMatram150 के साथ जरूर भेजिए। #VandeMatram150। मुझे आपके सुझावों का इंतजार रहेगा और हम सब इस अवसर को ऐतिहासिक बनाने के लिए काम करेंगे।
मेरे प्यारे देशवासियो,
संस्कृत का नाम सुनते ही हमारे मन मस्तिष्क में आता है - हमारे ‘धर्मग्रंथ’, ‘वेद’, ‘उपनिषद’, ‘पुराण’, शास्त्र, प्राचीन ज्ञान-विज्ञान, अध्यात्म और दर्शन। लेकिन एक समय, इन सबके साथ-साथ ‘संस्कृत’ बातचीत की भी भाषा थी। उस युग में अध्ययन और शोध संस्कृत में ही किये जाते थे। नाट्य मंचन भी संस्कृत में होते थे। लेकिन दुर्भाग्य से गुलामी के कालखंड में भी और आजादी के बाद भी संस्कृत लगातार उपेक्षा का शिकार हुई। इस वजह से युवा-पीढ़ियों में संस्कृत के प्रति आकर्षण भी कम होता चला गया। लेकिन साथियो, अब समय बदल रहा है, तो संस्कृत का भी समय बदल रहा है। संस्कृति और Social Media की दुनिया ने संस्कृत को नई प्राणवायु दे दी है। इन दिनों कई युवा संस्कृत को लेकर बहुत रोचक काम कर रहे हैं। आप Social Media पर जाएंगे तो आपको ऐसी कई Reels दिखेगी जहां कई युवा संस्कृत में, और संस्कृत के बारे में बात करते दिखाई देंगे। कई लोग तो अपने Social Media Channel के जरिए संस्कृत सिखाते भी हैं। ऐसे ही एक युवा Content Creator हैं – भाई यश सालुंड्के। यश की खास बात ये है कि वो Content Creator भी हैं और क्रिकेटर भी हैं। संस्कृत में बात करते हुए क्रिकेट खेलने की उनकी Reel लोगों ने खूब पसंद की है। आप सुनिए –
(AUDIO BYTE OF YASH’s SANSKRIT COMMENTARY)
साथियों,
कमला और जान्हवी, इन दो बहनों का काम भी शानदार है। ये दोनों बहनें अध्यात्म, दर्शन और संगीत पर Content बनाती हैं। Instagram पर एक और युवा का चैनल है ‘संस्कृत छात्रोहम्’। इस चैनल को चलाने वाले युवा-साथी संस्कृत से जुड़ी जानकारियाँ तो देते ही हैं, वो संस्कृत में हास-परिहास के Video भी बनाते हैं। युवा संस्कृत में ये Video भी खूब पसंद करते हैं। आप में से कई साथियो ने समष्टि के Videos भी देखे होंगे। समष्टि संस्कृत में अपने गानों को अलग-अलग तरह से प्रस्तुत करती है। एक और युवा हैं ‘भावेश भीमनाथनी’। भावेश संस्कृत श्लोकों, आध्यात्मिक दर्शन और सिद्धांतों के बारे में बात करते हैं।
साथियों,
भाषा किसी भी सभ्यता के मूल्यों और परंपराओं की वाहक होती है। संस्कृत ने ये कर्तव्य हजारों वर्षों तक निभाया है। ये देखना सुखद है कि अब संस्कृत के लिए भी कुछ युवा अपना कर्तव्य निभा रहे हैं।
मेरे प्यारे देशवासियो,
अब मैं आपको जरा Flashback में लेकर चलूँगा। आप कल्पना करिए, 20वीं सदी का शुरुआती कालखंड! तब दूर-दूर तक आजादी की कहीं कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही थी। पूरे भारत में अंग्रेजों ने शोषण की सारी सीमाएं लांघ दी थी और उस दौर में हैदराबाद के देशभक्त लोगों के लिए दमन का दौर और भी भयावह था। वे क्रूर और निर्दयी निज़ाम के अत्याचारों को भी झेलने को मजबूर थे। गरीबों, वंचितों और आदिवासी समुदायों पर तो अत्याचार की कोई सीमा ही नहीं थी। उनकी जमीनें छीन ली जाती थीं, साथ ही भारी टैक्स भी लगाया जाता था। अगर वे इस अन्याय का विरोध करते, तो उनके हाथ तक काट दिए जाते थे।
साथियों,
ऐसे कठिन समय में करीब बीस साल का एक नौजवान इस अन्याय के खिलाफ खड़ा हुआ था। आज एक खास वजह से मैं उस नौजवान की चर्चा कर रहा हूं। उसका नाम बताने से पहले मैं उसकी वीरता की बात आपको बताऊँगा। साथियो, उस दौर में जब निज़ाम के खिलाफ एक शब्द बोलना भी गुनाह था। उस नौजवान ने सिद्दीकी नाम के निज़ाम के एक अधिकारी को खुली चुनौती दे दी थी। निज़ाम ने सिद्दीकी को किसानों की फसलें जब्त करने के लिए भेजा था। लेकिन अत्याचार के खिलाफ इस संघर्ष में उस नौजवान ने सिद्दीकी को मौत के घाट उतार दिया। वो गिरफ़्तारी से बच निकलने में भी कामयाब रहा। निज़ाम की अत्याचारी पुलिस से बचते हुए वो नौजवान वहाँ से सैकड़ों किलोमीटर दूर असम जा पहुंचा।
साथियों,
मैं जिस महान विभूति की चर्चा कर रहा हूं उनका नाम है कोमरम भीम। अभी 22 अक्टूबर को ही उनकी जन्म-जयंती मनाई है। कोमरम भीम की आयु बहुत लंबी नहीं रही, वो महज 40 वर्ष ही जीवित रहे लेकिन अपने जीवन-काल में उन्होंने अनगिनत लोगों, विशेषकर आदिवासी समाज के हृदय में अमिट छाप छोड़ी। उन्होंने निज़ाम के खिलाफ संघर्ष कर रहे लोगों में नई ताकत भरी। वे अपने रणनीतिक कौशल के लिए भी जाने जाते थे। निज़ाम की सत्ता के लिए वे बहुत बड़ी चुनौती बन गए थे। 1940 में निज़ाम के लोगों ने उनकी हत्या कर दी थी। युवाओं से मेरा आग्रह है कि वे उनके बारे में अधिक से अधिक जानने का प्रयास करें।
कोमरम भीम की…
ना विनम्र निवाली।
आयन प्रजल हृदयाल्लों...
एप्पटिकी निलिचि-वूँटारू।
(English Translation)
My humble tributes to Komaram Bhimji ,
He remains forever in the hearts of people.
साथियों,
अगले महीने की 15 तारीख को हम ‘जनजातीय गौरव दिवस’ मनाएंगे। यह भगवान बिरसा मुंडा जी की जयंती का सुअवसर है। मैं भगवान बिरसा मुंडा जी को श्रद्धापूर्वक नमन करता हूं। देश की आज़ादी के लिए, आदिवासी समुदाय के अधिकारों के लिए, उन्होंने जो काम किया वो अतुलनीय है। मेरे लिए ये सौभाग्य की बात है कि मुझे झारखंड में भगवान बिरसा मुंडा जी के गाँव उलिहातु जाने का अवसर मिला था। मैंने वहाँ की माटी को माथे पर लगाकर प्रणाम किया था। भगवान बिरसा मुंडा जी और कोमारम भीम जी की तरह ही हमारे आदिवासी समुदायों में कई और विभूतियां हुई हैं। मेरा आग्रह है कि आप उनके बारे में अवश्य पढ़ें।
मेरे प्यारे देशवासियों,
‘मन की बात’ के लिए मुझे आपके भेजे हुए ढ़ेरों संदेश मिलते हैं। कई लोग इन संदेशों में अपने आस-पास के प्रतिभाशाली लोगों के बारे में चर्चा करते हैं। मुझे पढ़कर बहुत खुशी होती है कि हमारे छोटे शहरों, कस्बों, गावों में भी innovative ideas पर काम हो रहे हैं। अगर आप ऐसे व्यक्ति या समूहों को जानते हैं, जो सेवा की भावना से समाज को बदलने में जुटे हैं, तो मुझे जरूर बताइये। मुझे आपके संदेशों का हमेशा की तरह इंतजार रहेगा। अगले महीने, हम, ‘मन की बात’ के एक और episode में मिलेंगे, कुछ नए विषयों के साथ मिलेंगे, तब तक के लिये मैं विदाई लेता हूं।
आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद। नमस्कार।
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MJPS/ST/VK
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