पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय
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केंद्रीय मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने ज्योति, बिष्णु और नाट्य सूर्य को श्रद्धांजलि देने के साथ ही तेजपुर में ऋषिकेश गोस्वामी की 'पोस्टमास्टर साधु' का अनावरण किया


तेजपुर के विद्वानों ने असमिया लोगों को उनकी यात्रा के हर मोड़ पर मार्गदर्शन दिया है : सर्बानंद सोनोवाल

हमें जुबीन गर्ग की कही बात पर गहराई से विचार करना चाहिए कि 'जो कौम नहीं पढ़ता, उसे गमोसा या गमछा (गमोसा असम की सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है) नहीं बचा सकता' : श्री सोनोवाल

हमारे युवाओं को याद रखना चाहिए कि किताबें सूचनाएं नहीं भेजतीं बल्कि किताबें ज्ञान का प्रकाश फैलाती हैं : श्री सोनोवाल

मेरी मां की गोद मेरे जीवन का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय थी : श्री सोनोवाल

किताबें हमारे मन के द्वार खोलती हैं और हमारे विचारों के क्षितिज को व्यापक बनाती हैं: ऋषिकेश गोस्वामी

Posted On: 11 OCT 2025 9:01PM by PIB Delhi

केंद्रीय पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्री (एमओपीएसडब्ल्यू) सर्बानंद सोनोवाल ने आज तेजपुर में आयोजित एक विशेष समारोह में प्रसिद्ध लेखक, वक्ता और साहित्यिक कार्यकर्ता ऋषिकेश गोस्वामी के निबंधों के तीसरे संग्रह 'पोस्टमास्टर साधु' का अनावरण किया।

इस कार्यक्रम में तेजपुर के बौद्धिक और सांस्कृतिक जगत के प्रतिष्ठित सदस्यों की उपस्थिति देखी गई। इनमें विधायक और कलागुरु विष्णु प्रसाद राभा के बेटे पृथ्वीराज रावा; रूपकंवर ज्योति प्रसाद अग्रवाल की पुत्री ज्ञानश्री पाठक; अभिनेता और नाट्यसूर्या फणी शर्मा के पुत्र सुजीत शर्मा; दैनिक जन्मभूमि के संपादक संजीव फूकन; और असमिया प्रतिदिन के कार्यकारी संपादक धैर्य हजारिका व अन्य शामिल थे।

इस अवसर पर श्री सोनोवाल ने कहा कि पुस्तक लेखन और पढ़ने की जीवंत संस्कृति बौद्धिक रूप से विकसित समाज का पोषण करती है। किसी राष्ट्र का साहित्यिक खजाना उसकी आत्मा को प्रतिबिंबित करता है। ऋषिकेश गोस्वामी ने असम बाल साहित्य ट्रस्ट के माध्यम से असमिया बाल साहित्य को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और युवा पाठकों की कल्पनाशीलता को रचनात्मकता और गहराई के साथ पोषित किया है।

केंद्रीय मंत्री ने आगे कहा कि मुझे उनकी पिछली दो पुस्तकों, ‘नेतृत्व एक कला’ और ‘मनुहोर मृत्यु’ के विमोचन में शामिल होने का सौभाग्य मिला। 'पोस्टमास्टर साधु' में ऋषिकेश गोस्वामी मानव जीवन और मूल्यों के जटिल नैतिक आयामों को दर्शाते हैं, जो समाज को करुणा और ज्ञान के साथ प्रगति करने के लिए प्रेरित करते हैं। साहित्य सामाजिक चेतना को जागृत करने में एक गहरी भूमिका निभाता है-यह लोगों के सुख, संघर्ष और आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित करता है।

सर्बानंद सोनोवाल ने आगे कहा कि महान असमिया विचारकों लक्ष्मीनाथ बेजबरुआ, ज्योति प्रसाद अग्रवाल, बिष्णु प्रसाद राभा, फणी शर्मा से लेकर डॉ. भूपेन हजारिका तक ने लंबे समय से साहित्य और कला का उपयोग असमिया समाज का मार्गदर्शन करने और इसकी सांस्कृतिक जड़ों को मजबूत करने के लिए किया।

श्री सोनोवाल ने कहा कि आज का अवसर सौभाग्यशाली है, क्योंकि हमारे बीच तेजपुर की त्रिमूर्ति - ज्योति, बिष्णु और नाट्य सूर्या के परिवार लोग मौजूद हैं। उनकी विरासत ने असमिया कला और संस्कृति की नींव रखी। इस पवित्र भूमि के साथ मेरा व्यक्तिगत रिश्ता रहा है। यहीं तेजपुर में मैं 1994 में दूसरी बार अखिल असम छात्र संघ का अध्यक्ष चुना गया था। यह स्थान मेरे लिए प्रेरणा और शक्ति का स्रोत बना हुआ है।

तेजपुर को असमिया विचार और रचनात्मकता का मार्गदर्शक बताते हुए मंत्री ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि यह शहर साहित्य और संस्कृति में नए मानक स्थापित करता रहेगा। दार्शनिक फ्रांसिस बेकन को उद्धृत करते हुए सोनोवाल ने कहा कि पढ़ना ही एक संपूर्ण मनुष्य का निर्माण करता है। कोई रील या ट्वीट किसी इंसान को पूर्ण नहीं कर सकता केवल पढ़ना ही हमें गहराई, चिंतन और कल्पना से भर सकता है।

डिजिटल युग में बदलते व्यवहार पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि प्रौद्योगिकी ने हमारे पढ़ने के तरीके को बदल दिया है। हम कागज से ज्यादा स्क्रीन पर पढ़ते हैं, लेकिन तकनीक हमारी दुश्मन नहीं है। यह ई-बुक्स, ऑडियोबुक्स और डिजिटल लाइब्रेरीज के जरिए हमारी सहयोगी बन सकती है। हमारी चुनौती पढ़ने को फिर से आनंददायक बनाना है। हमारे युवाओं को यह समझना होगा कि किताबें सूचनाएं नहीं भेजतीं बल्कि वे ज्ञान का प्रकाश फैलाती हैं।

मातृभाषा और आधुनिक आकांक्षा के बीच संतुलन पर विचार करते हुए श्री सोनोवाल ने कहा कि हमारे समाज में मातृभाषा और आधुनिक महत्वाकांक्षा के बीच एक मौन संघर्ष है। कई लोग मानते हैं कि अंग्रेजी ही सफलता का एकमात्र रास्ता है। जिस जमीन पर आप खड़े हैं, उसे भूलकर कोई सफलता के पहाड़ पर कैसे चढ़ सकता है? मेरी मां की गोद मेरे जीवन का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय थी।

उन्होंने कहा कि बेजबरुआ, ज्योति प्रसाद, बिष्णु राभा, बीरेंद्र कुमार भट्टाचार्य, मामोनी रायसोम गोस्वामी, नीलमणि फूकन, सौरव कुमार चालिहा, भूपेन हजारिका से लेकर होमेन बोरगोहेन तक असम के साहित्यिक दिग्गजों ने समाज की सामूहिक अंतरात्मा को आवाज दी और असमिया भाषा और साहित्य को वैश्विक दर्शकों तक पहुंचाया।

दिवंगत संगीत आइकन को याद करते हुए श्री सोनोवाल ने कहा कि हमें जुबीन गर्ग को श्रद्धांजलि अर्पित करनी चाहिए। उनका निधन न केवल संगीत के लिए बल्कि असमिया साहित्य के लिए भी एक क्षति है। जुबीन सिर्फ एक गायक नहीं थे वे जनता की आवाज भी थे। उनके गीतों में असम की आत्मा, यहां की नदियां, प्रकृति, भावनाएं और पीढ़ियों की आशाएं समाहित थीं। मैं जुबीन के संगीत को पसंद करने वाले युवाओं से आग्रह करता हूं कि वे उनके गीतों का अध्ययन करें, ताकि धुन के पीछे की आत्मा को समझ सकें। उनका काम युवा असमियों को अपनी मातृभाषा से प्रेम करने और उसमें निपुणता हासिल करने के लिए प्रेरित करता रहेगा।

मंत्री ने प्रौद्योगिकी के माध्यम से असमिया भाषा को भविष्य के लिए तैयार करने पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि हमें अपनी पांडुलिपियों का डिजिटलीकरण करना होगा, अपनी मौखिक परंपराओं को रिकॉर्ड करना होगा और असमिया साहित्य का एक डिजिटल डेटाबेस बनाना होगा। एआई और डिजिटल उपकरणों के माध्यम से भाषाई संरक्षण पर अनुसंधान को फलने-फूलने दें। ज्ञान के माध्यम से हम अपनी संस्कृति को संरक्षित करें और संस्कृति के माध्यम से हम प्रगति को प्रेरित करें। हम पढ़ने, लिखने और आलोचनात्मक विचार के लिए एक जीवंत वातावरण बनाएं जो नए लेखकों, पाठकों और रचनात्मक विचारों को पोषित करे।

अपने संबोधन के समापन पर श्री सोनोवाल ने असमिया को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि हम प्रधानमंत्री के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करते हैं। यह उनकी दूरदर्शिता और प्रतिबद्धता ही है कि हमारी प्रिय असमिया भाषा को भारत की शास्त्रीय भाषा के रूप में मान्यता मिली है।

असम बाल साहित्य ट्रस्ट के सचिव ऋषिकेश गोस्वामी ने अपनी टिप्पणी में कहा कि तेजपुर की पवित्र भूमि ज्योति, विष्णु और नाट्य सूर्य का घर है, इसने हमेशा खुली बाहों से मुझे बुलाया है। मैं बहुत भावुक महसूस कर रहा हूं कि आज यहां शहर के विद्वानों और शुभचिंतकों की उपस्थिति में मेरे निबंधों के तीसरे संग्रह 'पोस्टमास्टर साधु' का अनावरण किया गया है।

गोस्वामी ने कहा कि मानव जाति के विचार, कल्पना और रचनात्मकता हमेशा किताबों के पन्नों में प्रतिबिंबित होती रही है। इस संग्रह के माध्यम से मैंने जीवन के अनुभवों, सामाजिक वास्तविकताओं और मानवीय भावनाओं को विभिन्न दृष्टिकोणों से सामने लाने का प्रयास किया है।  यदि पाठक इस पुस्तक को स्नेह से स्वीकार करेंगे तो मुझे बहुत अच्छा लगेगा।

पढ़ने की नई संस्कृति का आह्वान करते हुए गोस्वामी ने कहा कि किताबें खरीदना और पढ़ना उनके प्रति प्रेम जगाना  ये आज बहुत जरूरी हैं। किताबें हमारे मन के द्वार खोलती हैं और हमारी दृष्टि का विस्तार करती हैं। हम सभी को युवा पीढ़ी के बीच पढ़ने के आनंद को पुनर्जीवित करने के लिए खुद को प्रतिबद्ध करना चाहिए, ताकि हम एक विचारशील और रचनात्मक समाज का निर्माण कर सकें।

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पीके/केसी/आरकेजे


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