जल शक्ति मंत्रालय
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राष्ट्रीय जल मिशन ने सुजलम भारत विजन के अंतर्गत "जल संरक्षण और पुनर्भरण" पर छठी विषयगत कार्यशाला का आयोजन किया


कार्यशाला में जल संरक्षण में नीतिगत अभिसरण, नवाचार और सामुदायिक नेतृत्व पर प्रकाश डाला गया

राज्यों और क्षेत्रीय अधिकारियों ने जल पुनर्भरण और प्रबंधन में सर्वोत्तम प्रथाओं और सफलता की कहानियों का प्रदर्शन किया

ग्रामीण जल सुरक्षा को मज़बूत करने के लिए मनरेगा और जल संरक्षण को एकीकृत करने पर ध्यान केंद्रित किया गया

प्रविष्टि तिथि: 07 OCT 2025 7:45PM by PIB Delhi

28-29 नवंबर 2025 को निर्धारित सुजलम भारत के विजन पर विभागीय शिखर सम्मेलन के लिए तैयारी विषयगत कार्यशालाओं के हिस्से के रूप में, जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग, जल शक्ति मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय जल मिशन (एनडब्ल्यूएम) ने एनडीएमसी कन्वेंशन सेंटर, नई दिल्ली में "जल संरक्षण और पुनर्भरण" पर 6वीं विषयगत कार्यशाला का भौतिक रूप से सफलतापूर्वक आयोजन किया।

मुख्य सचिवों के चौथे सम्मेलन में माननीय प्रधानमंत्री द्वारा प्रस्तुत दृष्टिकोण के अनुरूप, जिसमें 2025 में छह विभागीय शिखर सम्मेलनों का आह्वान किया गया था ताकि केंद्र और राज्यों के अधिकारियों को गहन विचार-विमर्श के लिए एक साथ लाया जा सके, इस कार्यशाला ने नीति को क्रियान्वित करने, नवाचार को बढ़ावा देने और अनुकरणीय जमीनी स्तर की पहलों को प्रदर्शित करने के लिए एक राष्ट्रीय मंच प्रदान किया। नीति आयोग द्वारा समन्वित और माननीय केंद्रीय जल शक्ति मंत्री, श्री सी. आर. पाटिल की अध्यक्षता में आयोजित होने वाला यह विभागीय शिखर सम्मेलन सुजलम भारत के दृष्टिकोण को प्राप्त करने में सहयोग, सीखने और साझा स्वामित्व के महत्व पर ज़ोर देगा।

इस विषयगत कार्यशाला में राष्ट्रीय जल प्रबंधन की अपर सचिव एवं मिशन निदेशक सुश्री अर्चना वर्मा, राष्ट्रीय जल प्रबंधन के संयुक्त सचिव श्री सुमंत नारायण, राष्ट्रीय जल प्रबंधन और ग्रामीण विकास मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी, राज्य नोडल अधिकारी, मुख्य कार्यकारी अधिकारी, इंजीनियर, वैज्ञानिक, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, केरल, महाराष्ट्र और गुजरात के पंचायती राज संस्थानों (पीआरआई) के प्रतिनिधि और नागरिक समाज संगठनों के सदस्य उपस्थित थे। विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लगभग 275 प्रतिनिधियों ने इसमें भाग लिया, जिससे जल संरक्षण और प्रबंधन में विशेषज्ञता और क्षेत्रीय अनुभवों का व्यापक दायरा परिलक्षित हुआ।

कार्यशाला की शुरुआत पारंपरिक जल कलश समारोह के साथ हुई, जो पवित्र और जीवनदायी संसाधन के रूप में जल के प्रति भारत की चिरस्थायी श्रद्धा का प्रतीक है। अपने उद्घाटन भाषण में, एनडब्ल्यूएम की एएस एंड एमडी, सुश्री अर्चना वर्मा ने ग्रह पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव और पारिस्थितिक संतुलन सुनिश्चित करने के लिए जल संरक्षण की तत्काल आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि कार्यशाला ने नीति निर्माताओं, प्रशासकों, युवा अधिकारियों, वैज्ञानिकों, इंजीनियरों और नागरिक समाज के प्रतिनिधियों को अपने जमीनी स्तर के अनुभवों, नवाचारों और सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने के लिए एक साथ लाया, जिससे भारत के जल भविष्य को सुरक्षित करने के लिए एक समग्र और समावेशी दृष्टिकोण सुनिश्चित हुआ। कार्यशाला के परिणामों को राज्य-विशिष्ट नोट्स और फीडबैक नोट्स के रूप में संकलित किया जाना था, जो आगामी विभागीय शिखर सम्मेलन के तहत कार्यान्वयन योग्य रणनीतियों का आधार बनेंगे, तथा इस बात पर बल देंगे कि सतत जल प्रबंधन जीवन, आजीविका और पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा के लिए आवश्यक साझा जिम्मेदारी है।

संयुक्त सचिव (NWM) की प्रस्तुति में पहले हुई पांच वर्चुअल कार्यशालाओं और आज की कार्यशाला के परिणामों पर चर्चा की गई। उन्होंने यह भी बताया कि निति आयोग के दिशा-निर्देशों के अनुसार राज्य-विशिष्ट नोट्स और फीडबैक नोट्स समय पर भरना कितना ज़रूरी है। उन्होंने मनरेगा (MGNREGA) की अनुसूची-I में हुए हालिया संशोधन पर भी जोर दिया, जो जल संरक्षण को ग्रामीण रोज़गार और विकास से जोड़ने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

श्री किरण पाध्य, कार्यक्रम अधिकारी, ग्रामीण विकास मंत्रालय, ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGS) पर विस्तृत प्रस्तुति दी। उन्होंने बताया कि पिछले 11 वर्षों में इस योजना ने किस तरह जल संरक्षण में अहम भूमिका निभाई है और इसकी पहलें ग्राम स्तर पर जल प्रबंधन और संसाधनों की टिकाऊ व्यवस्था को मजबूत करने में कितनी प्रभावी रही हैं।

राज्य और क्षेत्रीय स्तर की प्रस्तुतियों में देशभर से आए नवाचारी तरीकों और उत्कृष्ट प्रथाओं को प्रदर्शित किया गया। छत्तीसगढ़ की जिला पंचायत सीईओ सुश्री सुरुचि सिंह ने राजनांदगांव में किए गए कार्यों का एक वर्चुअल क्लिप दिखाया और जल संरक्षण के दो तरीकों पर चर्चा की एक वैज्ञानिक जीआईएस आधारित तरीका और दूसरा सामुदायिक भागीदारी पर आधारित तरीका, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि तकनीक और स्थानीय सहभागिता के मेल से कैसे टिकाऊ परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं। आंध्र प्रदेश के ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज विभाग के आयुक्त श्री कृष्ण कुमार तेजा मायलावरापु ने जल संरक्षण की एक केंद्रीकृत रणनीति प्रस्तुत की, जो पहले विकेन्द्रीकृत मॉडल से परिवर्तित की गई थी। उन्होंने स्थानीय स्तर पर अपनाए गए नवाचारी समाधानों, उत्कृष्ट प्रथाओं और क्षेत्रीय क्रियान्वयन से मिले अनुभवों पर प्रकाश डाला। मध्य प्रदेश के खंडवा जिले की जिला पंचायत के सीईओ डॉ. नागर्जुन बी. गोंडा ने अपर्याप्त निगरानी के कारण भूजल के अत्यधिक दोहन, और एक समग्र जल सूचना प्रणाली की कमी जैसे मुद्दों को रेखांकित किया, साथ ही उन्होंने जल घनन समर्थन अभियान का विवरण प्रस्तुत किया, जिसमें 14 राज्य विभागों की भागीदारी से समन्वय को सुदृढ़ करने और जल प्रबंधन को बेहतर बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं। तमिलनाडु के जल संसाधन विभाग के सचिव थिरु जे. जयहकन्थन और विशेष सचिव थिरु एस. श्रीधरन ने मत्स्य पालन संस्कृति और पारंपरिक सिंचाई टैंकों के महत्व पर जोर दिया, नालों की कनेक्टिविटी और अतिक्रमण की चुनौतियों पर चर्चा की, और जिला स्तर पर नदियों की सफाई और पुनर्स्थापन के लिए उठाए गए कदमों का उल्लेख किया। केरल जल प्राधिकरण के संयुक्त प्रबंध निदेशक डॉ. बीनू फ्रांसिस ने केरल की जल स्थिति पर चर्चा की, जिसमें उन्होंने तेजी से बहाव, बार-बार आने वाली बाढ़ों और सामुदायिक आधारित जल संरक्षण प्रयासों की आवश्यकता को विशेष रूप से रेखांकित किया।

गुजरात के जल संसाधन विभाग के ओएसडी श्री श्रेयश गुप्ता ने माइक्रो सिंचाई के माध्यम से मांग-आधारित प्रबंधन और बैराज, वेयर तथा सुजलाम सुफलाम अनलाइन नहरों जैसी आपूर्ति-पक्ष की पहलों पर प्रस्तुति दी। उन्होंने तटीय क्षेत्रों में खारे पानी के प्रवेश (सालिनिटी इंग्रेस) की समस्या पर चर्चा की, नदी घाटियों के बीच जल स्थानांतरण (इंटर-बेसिन वाटर ट्रांसफर) का विवरण दिया, और 2022 में शुरू किए गए जियोमेम्ब्रेन फार्म तालाब जैसे नवाचारों को रेखांकित किया। महाराष्ट्र के वाटर एंड लैंड मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट (WALMI) के प्रमुख डॉ. दिलीप दुर्बुडे ने राज्य की आधुनिक जल संरक्षण तकनीकों की दृष्टि, मांग और आपूर्ति के संतुलन को अनुकूल बनाने की पहलें, और जल दक्षता बढ़ाने की रणनीतियों पर चर्चा की। महाराष्ट्र के सांगली जिले के जिला परिषद सीईओ श्री विशाल नारवड़े ने LiFE पहल (Lifestyle for Environment) के तहत जनभागीदारी को प्रोत्साहित करने पर जोर दिया और विभिन्न जिलों में अपनाई गई श्रेष्ठ प्रथाओं को साझा किया। वॉटर फॉर पीपलसंगठन के कंट्री डायरेक्टर श्री बिष्वदीप घोष ने सामुदायिक केंद्रित मॉडल, नवाचारी तकनीकों, स्थानीय व्यवहार परिवर्तन के उपकरणों, सरकारी कार्यक्रमों के लिए तकनीकी सहायता, जल बजटिंग और ग्रामीण जल समस्याओं के समाधान के लिए एकल खिड़की प्रणाली (सिंगल-विंडो सॉल्यूशन) की आवश्यकता पर बल दिया।

एक संवादात्मक चर्चा और फीडबैक सत्र के माध्यम से प्रतिभागियों की राय और सुझावों को समेकित किया गया, जिसमें सभी ने नीतिगत एकीकरण को मजबूत करने, जल स्रोतों की स्थिरता को बढ़ावा देने, और सामुदायिक आधारित जल प्रबंधन पहलों को सशक्त बनाने की प्रतिबद्धता दोहराई। कार्यशाला के निष्कर्षों से उम्मीद है कि वे सुझलम भारतदृष्टिकोण के लिए विभागीय शिखर सम्मेलन को समृद्ध करेंगे और राष्ट्रीय जल सुरक्षा और लचीलापन प्राप्त करने के लिए एक व्यापक रोडमैप तैयार करने में मदद करेंगे। इस कार्यशाला ने भारत सरकार की माननीय प्रधानमंत्री के सुझलम भारत के विज़न के प्रति अटूट प्रतिबद्धता को रेखांकित किया, यह बताते हुए कि टिकाऊ जल प्रबंधन केवल एक नीतिगत प्राथमिकता नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय दायित्व है, जिसके लिए देश के प्रत्येक नागरिक की सक्रिय भागीदारी आवश्यक है ताकि भारत के कीमती जल संसाधनों का संरक्षण और पुनर्जीवन किया जा सके।

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पीके/केसी/वीएस


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