नीति आयोग
भारतीय रासायनिक प्रौद्योगिकी संस्थान (सीएसआईआर- आईआईसीटी), हैदराबाद में "अनुसंधान एवं विकास (आर एंड डी) में सुगमता" पर छठी क्षेत्रीय परामर्श बैठक का आयोजन किया गया
Posted On:
12 SEP 2025 1:07PM by PIB Delhi
10-11 सितंबर 2025 को "अनुसंधान एवं विकास (आर एंड डी) में सुगमता" पर छठी परामर्श बैठक का आयोजन किया गया। इस परामर्श बैठक में भारत के अनुसंधान एवं विकास इकोसिस्टम को दृढ़ बनाने पर गहन चर्चा के लिए संस्थागत प्रमुखों, कुलपतियों और वैज्ञानिक मंत्रालय/विभागों के एक प्रतिष्ठित समूह ने विचार-विमर्श किया।
भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी (आईएनएसए) के अध्यक्ष प्रो. आशुतोष शर्मा और वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के महानिदेशक डॉ. एन. कलैसेल्वी ने अपने मुख्य संबोधन में भारत के अनुसंधान परिदृश्य को नए सिरे से परिभाषित करने की आवश्यकता पर बल दिया, जिसमें अनुसंधान एवं विकास में सुगमता को प्राथमिकता दी जाए। उन्होंने कहा कि यद्यपि भारत में गहन वैज्ञानिक क्षमताएं मौजूद हैं, फिर भी प्रयोगशाला नवाचारों को समाज, उद्योग और बाज़ारों तक शीघ्रता से पहुंचाने के लिए मज़बूत संस्थागत ढांचे, सुव्यवस्थित नियमन और प्रभावी उद्योग संपर्कों की आवश्यकता है।
बैठक में तेलंगाना के राज्यपाल श्री जिष्णु देव वर्मा भी उपस्थित थे, जिन्होंने इस बात पर बल दिया कि एक सुदृढ़ अनुसंधान एवं विकास ढाँचा तैयार करना आत्मनिर्भर भारत के दृष्टिकोण का मूल आधार है। उन्होंने कहा कि भारत को न केवल नए ज्ञान के सृजन पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, बल्कि उसे ऐसी तकनीकों, प्रक्रियाओं और समाधानों में परिवर्तित करना चाहिए जो राष्ट्रीय आत्मनिर्भरता और वैश्विक प्रतिस्पर्धा को मज़बूत करें। राज्यपाल ने विज्ञान को सामाजिक प्रगति के साथ जोड़ने वाले एक मंच पर विविध हितधारकों को एक साथ लाने के लिए नीति आयोग की पहल की सराहना की।
परमाणु ऊर्जा आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अनिल काकोडकर और नीति आयोग के सदस्य डॉ. वी.के. सारस्वत ने भारतीय विज्ञान एवं अनुसंधान के भविष्य पर अपने विचार प्रस्तुत किए। उन्होंने अनुसंधान संस्थानों को उद्योग समूहों, स्टार्टअप्स और सार्वजनिक क्षेत्र के अनुप्रयोगों से जोड़ने वाले अनुवादात्मक मार्गों पर नए सिरे से ध्यान देने का आह्वान किया, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि ज्ञान सृजन से लेकर परिनियोजन तक की मूल्य श्रृंखला निर्बाध और कुशल हो।
तकनीकी सत्रों में, विश्वविद्यालयों, राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं और संस्थानों के कुलपतियों एवं निदेशकों जैसे प्रतिभागियों ने नियामक ढांचों, वित्त पोषण तंत्रों, उन्नत ज्ञान संसाधनों तक पहुंच, संस्थागत प्रक्रियाओं और अनुप्रयुक्त एवं अनुवादात्मक अनुसंधान के मॉडलों पर गहन विचार-विमर्श किया। इसमें अग्रणी संस्थानों का योगदान रहा।
बैठक का समापन इस महत्वपूर्ण संदेश के साथ हुआ कि भारत का वैज्ञानिक भविष्य न केवल अनुसंधान की सुगमता से, बल्कि उससे भी अधिक महत्वपूर्ण रूप से, अनुसंधान को मूर्त परिणामों में बदलने की सुगमता से परिभाषित होगा। नीति निर्माण, वित्त पोषण प्राथमिकताओं और संस्थागत ढांचों में अनुवाद को एक मूल सिद्धांत के रूप में शामिल करने से यह सुनिश्चित होगा कि भारत का अनुसंधान उद्यम ज्ञान सृजन से आगे बढ़कर ऐसे नवाचार प्रस्तुत करे जो उद्योग को मज़बूत करें, राष्ट्रीय आत्मनिर्भरता को बढ़ावा दें और अपने नागरिकों के जीवन स्तर में सुधार करें।
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