शिक्षा मंत्रालय
आईआईटी भिलाई ने विकसित की पर्यावरण-अनुकूल तकनीक, प्लास्टिक कचरे के पुनर्चक्रण में बड़ी सफलता
प्रविष्टि तिथि:
26 AUG 2025 6:00PM by PIB Raipur
प्लास्टिक प्रदूषण जैसी गंभीर वैश्विक चुनौती से निपटने के लिए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) भिलाई के रसायन विभाग की शोध टीम ने एक क्रांतिकारी तकनीक विकसित की है। यह तकनीक पॉलीएथिलीन टेरेफ्थेलेट (पीईटी) — जो बोतलों, वस्त्रों और पैकेजिंग में बड़े पैमाने पर उपयोग होता है और जिसके विघटन में सैकड़ों वर्ष लगते हैं — के पुनर्चक्रण को न केवल सरल बनाएगी बल्कि पर्यावरण के अनुकूल भी सिद्ध होगी।
शोध टीम के सदस्य प्रियंक सिन्हा, सुदीप्त पाल, स्वरूप माईति और डॉ. संजीब बैनर्जी ने बताया कि मौजूदा यांत्रिक पुनर्चक्रण में पीईटी की गुणवत्ता घट जाती है, जबकि पारंपरिक रासायनिक पुनर्चक्रण अत्यधिक ऊर्जा-गहन और प्रदूषणकारी है। इस चुनौती को ध्यान में रखते हुए टीम ने एक नई तकनीक विकसित की है, जिसमें चुंबकीय रूप से पुनः प्राप्त होने योग्य लौह-आधारित नैनो उत्प्रेरक (nano zero-valent iron) का उपयोग किया गया है।
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इस उत्प्रेरक की मदद से पीईटी को उसके मूल मोनोमर बीएचईटी (बिस(2-हाइड्रॉक्सीएथिल) टेरेफ्थेलेट) में उच्च दक्षता और चयनात्मकता के साथ परिवर्तित किया जा सकता है। सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उत्प्रेरक को कई बार बिना दक्षता खोए पुनः प्रयोग किया जा सकता है और हानिकारक उप-उत्पाद भी न्यूनतम उत्पन्न होते हैं। यह तकनीक पूर्ण चक्र (क्लोज़्ड-लूप) प्लास्टिक पुनर्चक्रण का मार्ग प्रशस्त करती है और कचरे को मूल्यवान संसाधन में बदलने की क्षमता रखती है।
डीएसआईआर-सीआरटीडीएच, भारत सरकार और आईआईटी भिलाई के सहयोग से सम्पन्न यह शोध दर्शाता है कि नैनोप्रौद्योगिकी और हरित रसायन (ग्रीन केमिस्ट्री) का संगम प्लास्टिक कचरे की समस्या का टिकाऊ और व्यावहारिक समाधान प्रदान कर सकता है।
यह अध्ययन विश्वप्रसिद्ध जर्नल एसीएस एनवायरनमेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी में प्रकाशित हुआ है और इसे स्वच्छ, स्मार्ट और सतत भविष्य की दिशा में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि माना जा रहा है।
आरडीजे/एसके/केआरवी/पीजे
(रिलीज़ आईडी: 2160950)
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