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20वीं केंद्रीय निगरानी समिति की बैठक में नदी संरक्षण पर 15 राज्यों में हुई प्रगति की समीक्षा की गई

Posted On: 19 AUG 2025 9:22PM by PIB Delhi

आज जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण विभाग की सचिव श्रीमती देबाश्री मुखर्जी की अध्यक्षता में नदी संरक्षण पर केंद्रीय निगरानी समिति (सीएमसी) की 20वीं बैठक (भाग-II) आयोजित की गई। बैठक में राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) के महानिदेशक श्री राजीव कुमार मित्तल, एनआरसीडी के संयुक्त सचिव श्री कर्ण सिंह, नमामि गंगे मिशन के कार्यकारी निदेशक तथा राज्य सरकारों और प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों के प्रतिनिधियों सहित वरिष्ठ अधिकारियों ने भाग लिया। बैठक में 15 राज्यों में नदी संरक्षण प्रयासों की प्रगति की समीक्षा पर ध्यान केंद्रित किया गया।


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बैठक की अध्यक्षता करते हुए श्रीमती देबाश्री मुखर्जी ने इस बात पर जोर दिया कि नदियों का पुनरुद्धार न केवल एक पारिस्थितिक प्राथमिकता है बल्कि एक सामाजिक एवं आर्थिक आवश्यकता भी है। सचिव श्रीमती देबाश्री मुखर्जी ने बाढ़ क्षेत्र निर्धारण पर काम करने, सीवेज और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन परियोजनाओं को पूरा करने, सीवेज उपचार संयंत्रों (एसटीपी) और सामान्य अपशिष्ट उपचार संयंत्रों (सीईटीपी) के अनुपालन को लागू करने और उपचारित अपशिष्ट जल के पुनः उपयोग के लिए नवीन उपायों को अपनाने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सभी राज्यों के प्रयास समाधान-उन्मुख होने चाहिए और उनका लक्ष्य नदी जल की गुणवत्ता और पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य में सुधार के लिए स्थायी उपाय करने चाहिए।
समिति ने 2018 और 2022 के बीच कई राज्यों में प्रदूषित नदी खंडों में कमी होने के उत्साहजनक रुझानों का उल्लेख किया। सीपीसीबी के नवीनतम आकलन में सिक्किम एकमात्र ऐसा राज्य बनकर उभरा है जहां नदियां प्रदूषित नहीं हैं। असम और पंजाब जैसे राज्यों में हुई प्रगति पर भी प्रकाश डाला गया, जिन्होंने बाढ़ के मैदानों के सीमांकन और अतिक्रमण हटाने के लिए कदम उठाए हैं। इससे नदी पुनरुद्धार की महत्वपूर्ण चुनौतियों में से एक का समाधान हो गया है। ओडिशा में उपचारित अपशिष्ट जल के पुनः उपयोग, भूजल विनियमन उपायों और भुवनेश्वर में चंडका जलग्रहण क्षेत्र से तूफानी जल का मार्ग परिवर्तन करने जैसी बाढ़ प्रबंधन प्रयासों की सराहना की गई। शोधित अपशिष्ट जल के उपयोग के लिए परियोजनाओं को शुरू करने में पंजाब के प्रयासों और सतलुज नदी के लिए बाढ़ के मैदान क्षेत्रों की अधिसूचना को भी महत्वपूर्ण उपलब्धियों के रूप में देखा गया। महाराष्ट्र ने उपचारित सीवेज के बड़े पैमाने पर पुनर्चक्रण के उपायों की जानकारी दी, विशेष रूप से इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रॉजेक्ट्स (बुनियादी ढांचा परियोजनाओं) में इस शोधित पानी के उपयोग को अनिवार्य किया गया। वहीं, मेघालय और मिजोरम ने ठोस अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों को मजबूत करने में स्वच्छ भारत मिशन 2.0 के तहत प्रगति का प्रदर्शन किया। अपशिष्ट को अलग-अलग करने (पृथक्करण), खाद बनाने तथा उद्योगों द्वारा शून्य तरल उत्सर्जन को अपनाने के प्रति व्यापक दृष्टिकोण को लेकर सिक्किम की सराहना की गई।

साथ ही समिति ने सीवेज उपचार क्षमता में कमियों, सीवेज उपचार संयंत्रों की अनियमितताओं और कुछ औद्योगिक प्रदूषण प्रबंधन परियोजनाओं में अपर्याप्त प्रगति को दूर करने की आवश्यकता पर भी प्रकाश डाला। सचिव ने जवाबदेही बनाए रखने और प्रगति की निरंतर निगरानी के लिए नदी पुनरुद्धार समितियों की नियमित बैठकें आयोजित करने की आवश्यकता पर बल दिया। बैठक का समापन सभी भागीदार राज्यों से प्रदूषण मुक्त और टिकाऊ नदी पारिस्थितिकी तंत्र के लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में काम करने की सामूहिक जिम्मेदारी के आह्वान के साथ हुआ।

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पीके/केसी/आरकेजे


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