पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय
संसद प्रश्न: भूस्खलन संभावित क्षेत्रों का मानचित्रण
Posted On:
20 AUG 2025 4:42PM by PIB Delhi
भूस्खलन अध्ययन के लिए नोडल एजेंसी होने के नाते, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) ने हिमालयी क्षेत्र, पूर्वोत्तर भारत के तृतीयक बेल्ट और पश्चिमी घाट सहित देश के संपूर्ण भूस्खलन प्रवण पहाड़ी/पर्वतीय क्षेत्रों के लिए 1: 50,000 पैमाने पर राष्ट्रीय भूस्खलन संवेदनशीलता मानचित्रण (एनएलएसएम) कार्यक्रम के अंतर्गत भूस्खलन संवेदनशीलता मानचित्रण का कार्य पूरा कर लिया है, जो 19 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के कुछ हिस्सों में फैला हुआ है और लगभग 4.3 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को कवर करता है। भूस्खलन संवेदनशीलता मानचित्र, भूस्खलन की शुरुआत के प्रति संवेदनशीलता की सापेक्ष संभावना के आधार पर उच्च, मध्यम और निम्न क्षेत्रों में वर्गीकृत कुल क्षेत्र को दर्शाते हैं, और भूस्खलन प्रवण नाजुक ढलानों में क्षेत्रीय भूमि उपयोग योजना के लिए एक महत्वपूर्ण भू-सूचना उपकरण के रूप में उपयोग किया जा सकता है। जीएसआई ने रिमोट सेंसिंग (आरएस) और क्षेत्र-आधारित स्रोत डेटा, दोनों का उपयोग करके 91,000 ऐतिहासिक भूस्खलनों की जानकारी भी एकत्र की। कुल 33,904 भूस्खलनों की क्षेत्र-सत्यापन किया गया है और आपदा-पश्चात अध्ययनों के तहत वर्ष-वार एकत्र किए गए नए भूस्खलन आंकड़ों के साथ डेटाबेस को लगातार अद्यतन किया जा रहा है। भूस्खलन संवेदनशीलता मानचित्र और उत्पन्न भूस्खलन सूची को सभी हितधारकों द्वारा निःशुल्क डाउनलोड हेतु जीएसआई के राष्ट्रीय भूविज्ञान डेटा रिपॉजिटरी (एनजीडीआर) और भूकोष मानचित्र पोर्टल पर अपलोड किया जाता है। यह जीएसआई के भूसंकेत पोर्टल और भूस्खलन मोबाइल ऐप पर भी देखने के लिए उपलब्ध है।
एनएलएसएम बेसलाइन के आधार पर, जीएसआई ने भूस्खलन संवेदनशीलता मानचित्रण को मेसो-स्केल (1:10,000/1:5,000) तक उन्नत किया है। यह पहल एनएलएसएम और राज्य सरकारों के परामर्श से चिन्हित 200 महत्वपूर्ण क्षेत्रों को 2028 तक पूरा करने पर केंद्रित है। 2024-25 के फील्ड सीज़न के अंत तक, जीएसआई ने 160 महत्वपूर्ण क्षेत्रों/इलाकों में मेसो-स्केल (1:10,000) पर काम पूरा कर लिया है। ये उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाले मानचित्र संवेदनशील पहाड़ी क्षेत्रों में नियोजन में सहायक हैं, जिससे बुनियादी ढाँचे के विकास में अधिक सूचित निर्णय लेने में मदद मिलती है, यहाँ तक कि ज़ोनिंग नियमों को लागू करने और सामुदायिक सुरक्षा सुनिश्चित करने में भी मदद मिलती है।
इसके अतिरिक्त, जीएसआई ने भूस्खलन और अस्थिर ढलानों के लिए उपयुक्त उपचारात्मक उपाय सुझाने के लिए 1:1000/2000 पैमाने पर आपदा-पश्चात भूस्खलन संबंधी अनेक अध्ययन तथा विस्तृत स्थल-विशिष्ट भूस्खलन जांच भी की है। पिछले पांच वर्षों (2019-2024) के दौरान, जीएसआई ने देश भर में पुराने भूस्खलन की 45 विस्तृत साइट-विशिष्ट जांच की है।
देश के सभी भूस्खलन-प्रवण क्षेत्रों को भूस्खलन की संवेदनशीलता की स्थिति के आधार पर वर्गीकृत किया गया है। भूस्खलन की संवेदनशीलता की स्थिति का राज्यवार विवरण नीचे दी गई तालिका में दिया गया है:
|
1000 वर्ग किमी क्षेत्र में
|
राज्य
|
कम
|
कम %
|
मध्यम
|
मध्यम %
|
उच्च
|
उच्च %
|
आंध्र प्रदेश
|
1
|
48
|
1
|
46
|
0
|
6
|
अरुणाचल प्रदेश
|
33
|
47
|
27
|
38
|
10
|
15
|
असम
|
21
|
87
|
3
|
11
|
1
|
2
|
गोवा
|
3
|
71
|
1
|
26
|
0
|
3
|
हिमाचल प्रदेश
|
17
|
41
|
12
|
30
|
12
|
29
|
जम्मू और कश्मीर (यूटी)
|
19
|
65
|
7
|
23
|
3
|
12
|
कर्नाटक
|
26
|
82
|
4
|
14
|
1
|
4
|
केरल
|
10
|
52
|
7
|
35
|
3
|
13
|
लद्दाख (केंद्र शासित प्रदेश)
|
17
|
42
|
15
|
37
|
8
|
21
|
महाराष्ट्र
|
15
|
53
|
12
|
41
|
2
|
6
|
मणिपुर
|
13
|
54
|
7
|
28
|
4
|
18
|
मेघालय
|
20
|
90
|
2
|
9
|
0
|
1
|
मिजोरम
|
13
|
59
|
6
|
25
|
4
|
16
|
नगालैंड
|
8
|
48
|
5
|
31
|
4
|
21
|
सिक्किम
|
2
|
40
|
2
|
42
|
1
|
18
|
तमिलनाडु
|
8
|
75
|
2
|
19
|
1
|
6
|
त्रिपुरा
|
1
|
93
|
0
|
5
|
0
|
2
|
उत्तराखंड
|
18
|
46
|
12
|
32
|
9
|
22
|
पश्चिम बंगाल
|
1
|
42
|
1
|
41
|
1
|
17
|
कुल
|
245
|
56
|
126
|
29
|
63
|
15
|
भूस्खलन सहित प्राकृतिक आपदाओं की बढ़ती आवृत्ति को देखते हुए, जीएसआई 2020 से चरणबद्ध तरीके से देश के भूस्खलन संभावित क्षेत्रों के लिए क्षेत्रीय भूस्खलन पूर्वानुमान प्रणाली (आरएलएफएस) विकसित करने में सक्रिय रूप से शामिल है। यह पूर्वानुमान प्रणाली संभावित वर्षा सीमा, संख्यात्मक मौसम पूर्वानुमान (एनडब्ल्यूपी) मॉडल और वर्षा से प्रेरित भूस्खलन के लिए समय पर पूर्वानुमान/चेतावनी हेतु अवलोकित वर्षा आँकड़ों पर आधारित है। इस उद्देश्य के लिए, जीएसआई ने भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी), राष्ट्रीय मध्यम अवधि मौसम पूर्वानुमान केंद्र (एनसीएमआरडब्ल्यूएफ), इसरो के राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्र (एनआरएससी) और सभी संबंधित राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों (एसडीएमए) के साथ डेटा एकीकरण, पूर्वानुमान और मॉडल सत्यापन के लिए सहयोग किया है।
इस प्रयास के अनुरूप, जीएसआई ने बहु-संघीय लैंडस्लिप परियोजना के एक भाग के रूप में, भारत के लिए एक प्रोटोटाइप क्षेत्रीय भूस्खलन पूर्व चेतावनी प्रणाली (एलईडब्ल्यूएस) विकसित की है। 2025 के मानसून से, जीएसआई आठ राज्यों के 21 जिलों के लिए परिचालन और प्रायोगिक भूस्खलन पूर्वानुमान बुलेटिन जारी कर रहा है। 2025 के दौरान जिन जिलों में पूर्वानुमान बुलेटिन जारी किए जा रहे हैं (प्रायोगिक और परिचालन दोनों) उनका राज्यवार विवरण इस प्रकार है:
राज्य (जिलों की संख्या)
|
जिले का नाम
|
परिचालन पूर्वानुमान और जमीनी परीक्षण
|
पश्चिम बंगाल (02)
|
दार्जिलिंग, कलिम्पोंग
|
तमिलनाडु (01)
|
नीलगिरी
|
भू-परीक्षण के लिए प्रायोगिक पूर्वानुमान (केवल परीक्षण के उद्देश्य से एसडीएमएएस और डीडीएमए के साथ साझा किया गया)
|
सिक्किम (06)
|
सोरेंग, पाकयोंग, मंगन, ग्यालशिंग, गंगटोक, नामची
|
केरल (02)
|
वायनाड, इडुक्की
|
कर्नाटक (01)
|
कोडागू
|
उत्तराखंड (04)
|
रुद्रप्रयाग,चमोली,उत्तरकाशी,टिहरी गढ़वाल
|
हिमाचल प्रदेश (02)
|
शिमला, किन्नौर
|
नागालैंड (03)
|
पेरेन, दीमापुर, कोहिमा
|
भारत सरकार उच्च जोखिम वाले भूस्खलन-प्रवण क्षेत्रों वाले राज्यों को विशेष सहायता प्रदान करती है। इसमें राष्ट्रीय भूस्खलन जोखिम न्यूनीकरण कार्यक्रम और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) द्वारा कार्यान्वित आपदा मित्र योजना के माध्यम से वित्तीय सहायता, आपदा प्रतिक्रिया में सामुदायिक स्वयंसेवकों को प्रशिक्षण देना शामिल है। इसका उद्देश्य आपदा के बाद तत्काल सामुदायिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए स्वयंसेवकों को कौशल प्रदान करना है, और आपदा-प्रवण क्षेत्रों पर विशेष ध्यान देना है। यह योजना एक केंद्रीय क्षेत्र की योजना है, अर्थात यह पूरी तरह से केंद्र सरकार द्वारा वित्त पोषित है।
यह जानकारी आज लोकसभा में एक लिखित उत्तर में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री, कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन राज्य मंत्री, परमाणु ऊर्जा विभाग और अंतरिक्ष विभाग डॉ. जितेंद्र सिंह ने दी।
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पीके/केसी/जीके/डीके
(Release ID: 2158606)