मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय
azadi ka amrit mahotsav

पशुपालकों, डेयरी उत्पादकों और मछुआरों के लिए सहायक योजनाएं

Posted On: 05 AUG 2025 2:58PM by PIB Delhi

केंद्र सरकार राष्ट्रीय पशुधन मिशन (एनएलएम), पशुपालन अवसंरचना विकास निधि (एएचआईडीएफ), राष्ट्रीय गोकुल मिशन (आरजीएम), पशुधन स्वास्थ्य और रोग नियंत्रण कार्यक्रम (एलएचडीसीपी), राष्ट्रीय डेयरी विकास कार्यक्रम (एनपीडीडी), प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएम-एमएसवाई), प्रधानमंत्री मत्स्य किसान समृद्धि योजना (पीएम-एमकेएसएसवाई), मत्स्य पालन और जलीय कृषि तथा अवसंरचना विकास निधि (एफआईडीएफ) कार्यक्रमों को देश भर में पशुधन किसानों, डेयरी उत्पादकों और मछुआरों की सहायता के लिए कार्यान्वित कर रही है। इसका उद्देश्य उत्पादकता को बढ़ावा देना, सतत विकास सुनिश्चित करना और पशुपालन, डेयरी और मत्स्य पालन क्षेत्रों से जुड़े लोगों की आजीविका को बढ़ाना है, जिसका विवरण निम्नानुसार है:

(i) राष्ट्रीय पशुधन मिशन (एनएलएम): पुनर्गठित राष्ट्रीय पशुधन मिशन (एनएलएम), वर्ष 2021-22 में आरंभ किया गया। यह योजना रोजगार सृजन, उद्यमिता विकास और प्रति-पशु उत्पादकता बढ़ाने पर केंद्रित है, जिससे मांस, बकरी के दूध, अंडे और ऊन के उत्पादन में वृद्धि का लक्ष्य रखा गया है। 21 फरवरी 2024 को इस योजना में और संशोधन किया गया, जिसमें ऊंटों, घोड़ों और गधों की नस्ल-उन्नयन के साथ-साथ बंजर भूमि, चरागाह भूमि और बंजर वन भूमि का उपयोग करके चारा उत्पादन की पहल को भी शामिल किया गया।

इस योजना के निम्नलिखित तीन उप-मिशन हैं:

  1. पशुधन और मुर्गी पालन के नस्ल विकास पर उप-मिशन: उप-मिशन मुर्गी पालन, भेड़, बकरी और सूअर पालन जैसे क्षेत्रों में उद्यमिता विकास और नस्ल सुधार पर जोर देता है। इसका उद्देश्य उद्यमिता पहल के लिए व्यक्तियों, किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ), किसान सहकारी संगठनों (एफसीओ), संयुक्त देयता समूहों (जेएलजी), स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) और कंपनी अधिनियम के तहत धारा 8 कंपनियों को प्रोत्साहित करना है। इसके अतिरिक्त, यह नस्ल सुधार के लिए बुनियादी ढांचे की स्थापना में राज्य सरकारों की सहायता करता है। भारत सरकार मुर्गी पालन, भेड़, बकरी, सूअर पालन और ऊंट, घोड़े और गधे की नस्लों पर केंद्रित इकाइयों की स्थापना के लिए प्रत्येक कार्यकलाप के लिए फार्म की श्रेणी और निर्धारित सब्सिडी सीमा के आधार पर 50 लाख रुपये तक 50 प्रतिशत सब्सिडी प्रदान करती है। उप-मिशन का उद्देश्य कृत्रिम गर्भाधान और न्यूक्लियस प्रजनन फार्मों की स्थापना के माध्यम से भेड़, बकरी, ऊंट, सुअर, ऊंटनी, गधे और घोड़े के आनुवंशिक सुधार पर भी ध्यान केंद्रित करना है। सहायता राज्य सरकारों को प्रदान की जाती है।
  2. चारा एवं चारा विकास पर उप-मिशन: यह उप-मिशन चारा उत्पादन के लिए आवश्यक प्रमाणित चारा बीजों की उपलब्धता सुनिश्चित करने हेतु चारा बीज आपूर्ति श्रृंखला को बढ़ाने पर केंद्रित है। यह चारा ब्लॉक, घास की गठरी और साइलेज बनाने वाली इकाइयों की स्थापना का समर्थन करके उद्यमिता को बढ़ावा देता है, साथ ही बंजर भूमि, बंजर वन भूमि और इसी तरह के क्षेत्रों में चारा उत्पादन को प्रोत्साहित करता है। विभिन्न प्रकार के बीजों: प्रजनक बीजों के लिए 250 रुपये/किग्रा, आधार बीजों के लिए 150 रुपये/किग्रा, और प्रमाणित बीजों के लिए 100 रुपये/किग्रा के उत्पादन के लिए प्रोत्साहन दिए जाते हैं।
  3. नवोन्मेषण एवं विस्तार उप-मिशन: इस उप-मिशन का उद्देश्य भेड़, बकरी, सूअर और चारा एवं चारा क्षेत्र से संबंधित अनुसंधान एवं विकास में लगे संस्थानों, विश्वविद्यालयों और संगठनों को प्रोत्साहित करना है। यह विस्तार कार्यकलापों, पशुधन बीमा और नवोन्मेषण को भी समर्थन प्रदान करता है। इस क्षेत्र को आगे बढ़ाने के लिए अनुप्रयुक्त अनुसंधान करने हेतु केंद्रीय एजेंसियों, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) संस्थानों और विश्वविद्यालय फार्मों को सहायता प्रदान की जाती है। इसके अतिरिक्त, यह पशुपालन योजनाओं, संगोष्ठियों, सम्मेलनों, प्रदर्शन गतिविधियों और राज्य सरकारों के माध्यम से कार्यान्वित अन्य सूचना, शिक्षा एवं संचार (आईईसी) पहलों के लिए जागरूकता अभियान सहित विस्तार सेवाओं को बढ़ावा देता है।

(ii) पशुपालन अवसंरचना विकास निधि (एएचआईडीएफ): पशुपालन और डेयरी विभाग द्वारा 29, (ii) पशुपालन अवसंरचना विकास निधि (एएचआईडीएफ): पशुपालन और डेयरी विभाग द्वारा 29,110.25 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ व्यक्तिगत उद्यमियों, निजी फर्मों, एमएसएमई, किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ), धारा 8 संस्थाओं और डेयरी सहकारी समितियों से निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए पशुपालन अवसंरचना विकास निधि (एएचआईडीएफ) का क्रियान्वयन किया जा रहा है, जिससे कि (i) डेयरी प्रसंस्करण और मूल्य संवर्धन सुविधाएं, (ii) मांस प्रसंस्करण और मूल्य संवर्धन इकाइयां, (iii) पशु चारा विनिर्माण संयंत्र, (iv) मवेशी/भैंस/भेड़/बकरी/सुअर के लिए नस्ल संवर्धन प्रौद्योगिकी और नस्ल गुणन फार्म, (v) पशु चिकित्सा टीका और दवा उत्पादन केंद्र, (vi) पशु अपशिष्ट प्रबंधन समाधान (कृषि-अपशिष्ट प्रबंधन) और (vii) ऊन प्रसंस्करण सुविधा केंद्र स्थापित किए जा सकें।

इस कार्यक्रम के अंतर्गत, पशुपालन एवं डेयरी विभाग, योग्य संस्थाओं को, जो किसी भी अनुसूचित बैंक/नाबार्ड/एनसीडीसी/एनडीडीबी/सिडबी से परियोजना की लागत के 90 प्रतिशत तक के सावधि ऋण प्राप्त कर सकती हैं, 8 वर्षों तक 3 प्रतिशत ब्याज सहायता प्रदान करता है, जिसमें ऋण की कोई अधिकतम सीमा नहीं है। इस कार्यक्रम के माध्यम से, एनएबी संरक्षण ट्रस्टी प्राइवेट लिमिटेड के साथ मिलकर बनाया गया एक ऋण गारंटी कोष (750.00 करोड़ रुपये), एमएसएमई के लिए सावधि ऋणों पर 25 प्रतिशत गारंटी प्रदान कर रहा है। व्यापार में सुगमता और पारदर्शी व्यवस्था बनाए रखने के लिए आवेदन से लेकर संवितरण तक एक वेब पोर्टल (ahidf.udyamimitra.in) विकसित किया गया है।

(iii) राष्ट्रीय गोकुल मिशन (आरजीएम): भारत सरकार दिसंबर 2014 से देशी नस्लों के विकास और संरक्षण, गोजातीय जनसंख्या के आनुवंशिक उन्नयन और दुग्ध उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि के लिए राष्ट्रीय गोकुल मिशन का क्रियान्वयन कर रही है, जिससे किसानों के लिए दुग्ध उत्पादन अधिक लाभदायक हो सके। देशी नस्लों के विकास और संरक्षण के लिए राष्ट्रीय गोकुल मिशन के अंतर्गत उठाए गए कदम इस प्रकार हैं:

(i) राष्ट्रव्यापी कृत्रिम गर्भाधान कार्यक्रम: इस कार्यक्रम का उद्देश्य कृत्रिम गर्भाधान (एआई) कवरेज को बढ़ाना और देशी नस्लों सहित उच्च आनुवंशिक योग्यता वाले सांडों के सीमेन से किसानों के द्वार पर गुणवत्तापूर्ण कृत्रिम गर्भाधान सेवाएं (एआई) प्रदान करना है। कार्यक्रम की प्रगति को वास्तविक समय के आधार पर भारत पशुधन/एनडीएलएम (राष्ट्रीय डिजिटल पशुधन मिशन) पर ऑनलाइन अपलोड किया गया है और कृत्रिम गर्भाधान तथा कार्यक्रम से लाभान्वित किसानों की पारदर्शिता सुनिश्चित की गई है। आज तक 9.16 करोड़ पशुओं को कवर किया गया है, 14.12 करोड़ कृत्रिम गर्भाधान किए गए हैं और कार्यक्रम के अंतर्गत 5.54 करोड़ किसान लाभान्वित हुए हैं। उत्पादकता में वृद्धि के साथ भाग लेने वाले किसानों की आय में बढ़ोतरी होने की उम्मीद है।

(ii) सेक्स सॉर्टेड सीमेन: देश में केवल मादा बछड़ों के उत्पादन के लिए 90 प्रतिशत सटीकता तक सेक्स सॉर्टेड सीमेन उत्पादन शुरू किया गया है। सेक्स सॉर्टेड सीमेन का उपयोग न केवल दूध उत्पादन को बढ़ाने बल्कि आवारा मवेशियों की आबादी को सीमित करने में भी उल्लेखनीय कदम साबित हुआ है। भारत में पहली बार, राष्ट्रीय गोकुल मिशन के तहत स्थापित सुविधा केंद्रों ने देशी मवेशियों की नस्लों के सेक्स सॉर्टेड सीमेन का सफलतापूर्वक उत्पादन किया है। ये सुविधा केंद्र गुजरात, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में स्थित पांच सरकारी सीमेन स्टेशनों पर स्थापित किये गये हैं। इसके अतिरिक्त, तीन निजी सीमेन स्टेशन भी सेक्स सॉर्टेड सीमेन खुराक के उत्पादन में योगदान दे रहे हैं। अब तक, उच्च आनुवंशिक योग्यता वाले बैलों का उपयोग करके 1.25 करोड़ सेक्स सॉर्टेड सीमेन खुराक का उत्पादन किया गया है।

सेक्स सॉर्टेड सीमेन का उपयोग करते हुए त्वरित नस्ल सुधार कार्यक्रम: इस कार्यक्रम के अंतर्गत देशी नस्लों के सेक्स सॉर्टेड सीमेन को बढ़ावा दिया जाता है। इस घटक के अंतर्गत, सुनिश्चित गर्भधारण पर सेक्स सॉर्टेड सीमेन की लागत का 50 प्रतिशत तक प्रोत्साहन किसानों को उपलब्ध कराया जाता है।

स्वदेशी रूप से विकसित सेक्स सॉर्टेड सीमेन उत्पादन प्रौद्योगिकी का शुभारंभ: स्वदेशी रूप से विकसित सेक्स सॉर्टेड सीमेन उत्पादन प्रौद्योगिकी का शुभारंभ किया गया है और इस प्रौद्योगिकी से सेक्स सॉर्टेड सीमेन की लागत 800 रुपये से घटकर 250 रुपये प्रति खुराक हो गई है। यह प्रौद्योगिकी हमारे किसानों के लिए क्रांतिकारी परिवर्तन है क्योंकि सेक्स सॉर्टेड सीमेन उचित दरों पर उपलब्ध है। स्वदेशी सेक्स सॉर्टेड सीमेन उत्पादन प्रौद्योगिकी देश में देशी मादा मवेशियों की संख्या बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।

(iii) ग्रामीण भारत में बहुउद्देश्यीय कृत्रिम गर्भाधान तकनीशियन (मैत्री): मैत्री को किसानों के घरों के दरवाजों पर गुणवत्तापूर्ण कृत्रिम गर्भाधान सेवाएं प्रदान करने के लिए प्रशिक्षित और सुसज्जित किया जाता है। इस योजना के अंतर्गत प्रशिक्षण के लिए 31,000 रुपये और उपकरणों के लिए 50,000 रुपये की सहायता उपलब्ध कराई जाती है। अब तक, 38,736 मैत्री प्रशिक्षित और नियुक्त किए जा चुके हैं। मैत्री की स्थापना के साथ, किसानों के घर-द्वार पर कृत्रिम गर्भाधान कवरेज उपलब्ध है।

(iv) इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) प्रौद्योगिकी का कार्यान्वयन: देश में पहली बार, देशी नस्लों के विकास और संरक्षण हेतु गोजातीय आईवीएफ प्रौद्योगिकी को बढ़ावा दिया गया है। विभाग ने देश में देशी नस्लों के संवर्धन हेतु 23 आईवीएफ प्रयोगशालाएं स्थापित की हैं। इन प्रयोगशालाओं से 26999 व्यवहार्य भ्रूण तैयार किए गए हैं और इनमें से 15005 भ्रूणों का स्थानांतरण किया गया है और 2366 बछड़ों का जन्म हुआ है।

आईवीएफ प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हुए त्वरित नस्ल सुधार कार्यक्रम किसानों के घर तक प्रौद्योगिकी पहुंचाने के लिए आरंभ किया गया है। इस घटक के अंतर्गत किसानों को प्रति सुनिश्चित गर्भावस्था 5000 रुपये की दर से प्रोत्साहन राशि उपलब्ध कराई जाती है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत देशी नस्लों के विकास को बढ़ावा दिया जाता है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत अब तक 6637 भ्रूण स्थानांतरित किए गए हैं, 1247 गर्भधारण स्थापित किए गए हैं और 731 मादाओं सहित 785 बछड़ों का जन्म हुआ है।

स्वदेशी कल्चर मीडिया का शुभारंभ: देश में आईवीएफ प्रौद्योगिकी को और बढ़ावा देने के लिए इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) के लिए स्वदेशी मीडिया का शुभारंभ किया गया है। यह स्वदेशी मीडिया, महंगे आयातित मीडिया का एक किफ़ायती विकल्प प्रदान करता है। इस मीडिया के उपयोग से भ्रूण उत्पादन की लागत 5000 रुपये से घटकर 2000 रुपये प्रति भ्रूण हो जाती है।

(v) संतति परीक्षण एवं वंशावली चयन कार्यक्रम: इस कार्यक्रम का उद्देश्य उच्च आनुवंशिक गुणधर्म वाले सांडों का उत्पादन करना है, जिनमें देशी नस्लों के सांड भी शामिल हैं। गिर, साहीवाल नस्ल के मवेशियों और मुर्रा, मेहसाणा नस्ल की भैंसों के लिए संतति परीक्षण किया जाता है। वंशावली चयन कार्यक्रम के अंतर्गत राठी, थारपारकर, हरियाना, कांकरेज नस्ल के मवेशियों और जाफराबादी, नीली रावी, पंढरपुरी और बन्नी नस्ल की भैंसों को शामिल किया गया है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत उत्पादित देशी नस्लों के रोगमुक्त उच्च आनुवंशिक गुणधर्म वाले सांड देश भर के सीमेन केंद्रों को उपलब्ध कराए जाते हैं। अब तक 4243 उच्च आनुवंशिक गुणधर्म वाले सांडों का प्रजनन कराया जा चुका है और उन्हें सीमेन उत्पादन के लिए सीमेन केंद्रों को उपलब्ध कराया गया है।

(vi) देशी नस्लों के सीमेन सहित सीमेन उत्पादन में गुणात्मक और मात्रात्मक सुधार लाने के लिए सीमेन केंद्रों का सुदृढ़ीकरण। अब तक 47 सीमेन केंद्रों को सुदृढ़ बनाने की मंजूरी दी जा चुकी है।

(vii) इस योजना के अंतर्गत देशी गोजातीय नस्लों के महत्व के बारे में किसानों में जागरूकता पैदा करने के लिए प्रजनन शिविर, दूध उत्पादन प्रतियोगिता, बछड़ा रैलियां, किसान प्रशिक्षण कार्यक्रम, सेमिनार और कार्यशाला, सम्मेलन आदि आयोजित किए गए हैं।

(iv) पशुधन स्वास्थ्य और रोग नियंत्रण कार्यक्रम (एलएचडीसीपी): पशुधन स्वास्थ्य और रोग नियंत्रण कार्यक्रम (एलएचडीसीपी) देश की विशाल पशुधन आबादी के स्वास्थ्य की सुरक्षा पर केंद्रित है। विश्व की सबसे बड़ी पशुधन आबादी में से एक होने के कारण, उनके स्वास्थ्य को बनाए रखना न केवल पशुओं के कल्याण के लिए बल्कि भारत की अर्थव्यवस्था, खाद्य सुरक्षा और लाखों पशुपालकों की आजीविका के लिए भी महत्वपूर्ण है। यह कार्यक्रम रोग की रोकथाम, नियंत्रण और प्रबंधन पर जोर देता है, जो पशुपालन क्षेत्र की उत्पादकता और दक्षता में महत्वपूर्ण योगदान देता है। भारत सरकार के मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के तहत पशुपालन और डेयरी विभाग (डीएएचडी) द्वारा कार्यान्वित, एलएचडीसीपी, एक केंद्र प्रायोजित योजना (सीएसएस) का उद्देश्य टीकाकरण, बेहतर पशु चिकित्सा सेवाओं, बेहतर रोग निगरानी और बेहतर पशु चिकित्सा बुनियादी ढांचे के माध्यम से पशु स्वास्थ्य के लिए जोखिमों को कम करना है।

एलएचडीसीपी में तीन प्रमुख घटक शामिल हैं, जिनमें से प्रत्येक पशुधन स्वास्थ्य और रोग नियंत्रण के विशिष्ट पहलुओं को लक्षित करता है:

  1. राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम (एनएडीसीपी): एनएडीसीपी का उद्देश्य मवेशियों, भैंसों, भेड़ों, बकरियों और सूअरों में खुरपका-मुंहपका रोग (एफएमडी) को नियंत्रित करना और बाद में उसका उन्मूलन करना है, साथ ही टीकाकरण द्वारा गोजातीय ब्रुसेलोसिस पर भी नियंत्रण करना है। यह कार्यक्रम सामूहिक प्रतिरक्षा विकसित करने और रोग की व्याप्ति को कम करने के लिए व्यापक स्तर पर टीकाकरण अभियान चलाता है।
  2. पशुधन स्वास्थ्य एवं रोग नियंत्रण (एलएचएंडडीसी): एलएचएंडडीसी का उद्देश्य रोगनिरोधी टीकाकरण, क्षमता निर्माण, रोग निगरानी और पशु चिकित्सा अवसंरचना को सुदृढ़ करके आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण, जूनोटिक, विदेशी और आकस्मिक रोगों पर नियंत्रण करके पशु स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार करना है। एलएचएंडडीसी में तीन उप-घटक शामिल हैं, जो इस प्रकार हैं:

(i) गंभीर पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम (सीएडीसीपी): गंभीर पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम (सीएडीसीपी) का उद्देश्य टीकाकरण के साथ भेड़ और बकरियों में पेस्ट डेस पेटिट्स रूमिनेंट्स (पीपीआर) रोग को नियंत्रित और उन्मूलन करना तथा सूअरों में क्लासिकल स्वाइन फीवर (सीएसएफ) रोग को नियंत्रित करना है।

(ii) पशु चिकित्सा अस्पतालों और औषधालयों की स्थापना और सुदृढ़ीकरण - मोबाइल पशु चिकित्सा इकाइयां (ईएसवीएचडी-एमवीयू): ईएसवीएचडी-एमवीयू की परिकल्पना 1962 टोल-फ्री नंबर 1000-1000 के माध्यम से किसानों के दरवाजे पर पशु चिकित्सा सेवाएं प्रदान करने के लिए की गई है।

(iii) पशु रोगों के नियंत्रण हेतु राज्यों को सहायता (एएससीएडी): एएससीएडी के अंतर्गत राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को एनएडीसीपी और सीएडीसीपी के अंतर्गत आने वाली बीमारियों के अलावा, जूनोटिक, विदेशी, आकस्मिक और आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण बीमारियों के नियंत्रण हेतु वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। इसमें नैदानिक प्रयोगशालाओं का सुदृढ़ीकरण, निगरानी, प्रकोप नियंत्रण और प्रभावित पशुओं को हटाने के लिए किसानों को मुआवजा देना शामिल है।

पशु औषधि: एलएचडीसीपी के पशु औषधि घटक को प्रधानमंत्री-किसान समृद्धि केंद्रों (पीएम-केएसके) और सहकारी समितियों के माध्यम से एथनो-वेटरनरी दवाओं (ईवीएम) सहित किफायती जेनेरिक पशु चिकित्सा दवाओं की उपलब्धता को सुगम बनाने के लिए शामिल किया गया है। इस घटक को औषधि विभाग और सहकारिता मंत्रालय के सहयोग से क्रियान्वित किया जाएगा।

(v) राष्ट्रीय डेयरी विकास कार्यक्रम (एनपीडीडी): पशुपालन एवं डेयरी विभाग (डीएएचडी) देश भर में "राष्ट्रीय डेयरी विकास कार्यक्रम (एनपीडीडी)" योजना का क्रियान्वयन कर रहा है। वर्तमान में, एनपीडीडी योजना निम्नलिखित दो घटकों के साथ क्रियान्वित की जा रही है:

  1. एनपीडीडी का घटक '' राज्य सहकारी डेयरी फेडरेशनों/जिला सहकारी दुग्ध उत्पादक संघों/एसएचजी/दुग्ध उत्पादक कंपनियों/किसान उत्पादक संगठनों के लिए गुणवत्तापूर्ण दूध परीक्षण के साथ-साथ प्राथमिक शीतलन सुविधाओं के लिए बुनियादी ढांचे के सृजन/सुदृढ़ीकरण पर केंद्रित है।
  2. एनपीडीडी योजना के घटक 'बी' "सहकारिता के माध्यम से डेयरी (डीटीसी)" जेआईसीए सहायता प्राप्त परियोजना का उद्देश्य संगठित बाजार तक किसानों की पहुंच बढ़ाकर, डेयरी प्रसंस्करण सुविधाओं और विपणन बुनियादी ढांचे को उन्नत करके और उत्पादक स्वामित्व वाली संस्थाओं की क्षमता में वृद्धि करके दूध और डेयरी उत्पादों की बिक्री में वृद्धि करना है। डीटीसी को 1568.28 करोड़ रुपये (जेआईसीए ऋण घटक 924.56 करोड़ रुपये, सरकार का हिस्सा 475.54 करोड़ रुपये और सहकारी/उत्पादक कंपनी का हिस्सा 168.18 करोड़ रुपये) के परिव्यय के साथ लॉन्च किया गया था।

(vi) डेयरी कार्यकलापों से जुड़ी डेयरी सहकारी समितियों और किसान उत्पादक संगठनों को सहायता प्रदान करना (एसडीसीएफपीओ): राज्य डेयरी सहकारी संघों को गंभीर रूप से प्रतिकूल बाजार स्थितियों या प्राकृतिक आपदाओं के कारण उत्पन्न संकट से निपटने के लिए कार्यशील पूंजी ऋण के संबंध में ब्याज अनुदान (नियमित 2 प्रतिशत और शीघ्र पुनर्भुगतान पर अतिरिक्त 2 प्रतिशत) प्रदान करके सहायता प्रदान करना। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 500 करोड़ रुपये यानी प्रत्येक वर्ष 100 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ 2021-22 से 2025-26 तक अम्ब्रेला स्कीम "बुनियादी ढांचा विकास निधि" के एक भाग के रूप में डेयरी कार्यकलापों में संलग्न डेयरी सहकारी समितियों और किसान उत्पादक संगठनों (एसडीसीएफपीओ) को सहायता प्रदान करने वाली केंद्रीय क्षेत्र योजना के कार्यान्वयन को मंजूरी दी है। इसके अतिरिक्त, दिनांक 01.02.2024 के कैबिनेट निर्णय के अनुसार, यह अनुमोदित किया गया है कि एसडीसीएफपीओ का कार्यान्वयन स्वीकृत परिव्यय (अर्थात 2021-22 से 2025-26 तक 500 करोड़ रुपये) के भीतर अवसंरचना विकास निधि (आईडीएफ) के एक घटक के रूप में जारी रहेगा।

(vii) प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई): यह मई 2020 में शुरू की गई एक प्रमुख योजना है जिसका उद्देश्य सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में 20,050 करोड़ रुपये के निवेश के साथ देश में मत्स्य पालन क्षेत्र के सतत और उत्तरदायी विकास तथा मछुआरों के कल्याण के माध्यम से सामुद्रिक क्रांति लाना है। पीएमएमएसवाई का उद्देश्य मछली उत्पादन को बढ़ावा देना, रोज़गार के अवसर सृजित करना और मत्स्य पालन क्षेत्र का सतत विकास सुनिश्चित करना है। इस योजना में केंद्रीय क्षेत्र और केंद्र प्रायोजित दोनों घटकों के साथ अंतर्देशीय और समुद्री मत्स्य पालन, जलीय कृषि, कटाई के बाद की अवसंरचना और विपणन को शामिल किया गया है। मछुआरों, मत्स्य कृषकों, उद्यमियों, स्वयं सहायता समूहों, एफपीओ आदि को वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। पीएमएमएसवाई के अंतर्गत विभिन्न उप-योजनाएं इस प्रकार हैं:

(ए) प्रधानमंत्री मत्स्य किसान समृद्धि योजना (पीएम-एमकेएसएसवाई): यह पीएमएमएसवाई के तहत केंद्रीय क्षेत्र की एक उप-योजना है जिसे वित्त वर्ष 2023-24 से 2026-27 तक 6,000 करोड़ रुपये की नियोजित निधि के साथ कार्यान्वित किया जा रहा है।

(vii) मत्स्य पालन और जलीय कृषि अवसंरचना विकास निधि (एफआईडीएफ): मत्स्य पालन और जलीय कृषि अवसंरचना विकास निधि (एफआईडीएफ) को 2018-19 से 7522.48 करोड़ रुपये के कुल निधि के साथ कार्यान्वित किया जा रहा है। एफआईडीएफ, अन्य बातों के साथ-साथ, राज्य सरकारों/केंद्र शासित प्रदेशों, राज्य संस्थाओं और अन्य हितधारकों सहित पात्र संस्थाओं (ईई) को विभिन्न मत्स्य पालन अवसंरचना सुविधा केंद्रों के विकास हेतु रियायती वित्त प्रदान करता है ताकि चिन्हित मत्स्य पालन अवसंरचना सुविधा केंद्रों का विकास किया जा सके। एफआईडीएफ के तहत, मत्स्य पालन विभाग, राष्ट्रीय मत्स्य पालन संस्थानों (एनएलई) द्वारा रियायती वित्त प्रदान करने के लिए 3 प्रतिशत प्रति वर्ष तक ब्याज छूट प्रदान करता है, जिसकी ब्याज दर 5 प्रतिशत प्रति वर्ष से कम नहीं होनी चाहिए।

राष्ट्रीय पशुधन मिशन (एनएलएम) के अंतर्गत नवोन्मेषण एवं विस्तार पर उप-मिशन, विस्तार प्रयासों, पशुधन बीमा और नवोन्मेषण पहलों का समर्थन करता है। इस क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए अनुप्रयुक्त अनुसंधान करने हेतु केंद्रीय एजेंसियों, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) संस्थानों और विश्वविद्यालय फार्मों को सहायता प्रदान की जाती है। इसके अतिरिक्त, यह पशुपालन कार्यक्रमों, संगोष्ठियों, सम्मेलनों, प्रदर्शन कार्यकलापों और राज्य सरकारों द्वारा किए गए अन्य सूचना, शिक्षा और संचार (आईईसी) प्रयासों के लिए जागरूकता अभियान सहित विस्तार सेवाओं को प्रोत्साहित करता है। राष्ट्रीय पशुधन मिशन के अंतर्गत पशुधन बीमा के अंतर्गत बीमित पशुओं और जारी की गई धनराशि का विवरण अनुलग्नक-I में दिया गया है।

पीएमएमएसवाई अन्य बातों के साथ-साथ, मछुआरों और मत्स्य श्रमिकों को समूह दुर्घटना बीमा कवरेज के माध्यम से सामाजिक सुरक्षा उपाय प्रदान करता है, जिसमें समुद्री और अंतर्देशीय मछुआरे और संबद्ध मत्स्य श्रमिक दोनों शामिल हैं। इसमें बीमा प्रीमियम की पूरी राशि केंद्र और राज्य के बीच सामान्य राज्यों के लिए 60:40 के अनुपात में, हिमालयी और पूर्वोत्तर राज्यों के लिए 90:10 के अनुपात में, जबकि केंद्र शासित प्रदेशों के मामले में, पूरी प्रीमियम राशि केंद्र द्वारा वहन की जाती है। पीएमएमएसवाई के तहत प्रदान की जाने वाली बीमा कवरेज में (i) मृत्यु या स्थायी पूर्ण विकलांगता होने पर 5,00,000/- रुपये (ii) स्थायी आंशिक विकलांगता होने पर 2,50,000/- रुपये और (iii) दुर्घटना की स्थिति में 25,000/- रुपये की राशि का अस्पताल में भर्ती होने का खर्च शामिल है। पीएमएमएसवाई के कार्यान्वयन के पिछले तीन वर्षों (2022-23 से 2024-25) के दौरान, केंद्र सरकार ने 103.73 लाख मछुआरों के बीमा कवरेज के लिए 54.03 करोड़ रुपये की राशि जारी की है, जिसमें सालाना 34.57 लाख मछुआरों का औसत है। इसके अलावा, पीएम-एमकेएसएसवाई जलीय कृषि किसानों को 4 हेक्टेयर जल प्रसार क्षेत्र तक के खेत आकार के साथ बीमा की खरीद करने पर एकमुश्त प्रोत्साहन प्रदान करता है। 'एकमुश्त प्रोत्साहन' जलीय कृषि फार्म के जल प्रसार क्षेत्र के प्रति हेक्टेयर 25000 रुपये की सीमा के अधीन प्रीमियम की लागत के 40 प्रतिशत की दर से प्रदान किया जाता है। एकल किसान को देय अधिकतम प्रोत्साहन 4 हेक्टेयर जल प्रसार क्षेत्र के खेत आकार तक 100,000 रुपये है। अधिकतम देय प्रोत्साहन राशि 1 लाख रुपये है और अधिकतम पात्र इकाई आकार 1800 घन मीटर है। उपरोक्त 'एकमुश्त प्रोत्साहन' लाभ केवल एक फसल, अर्थात् एक फसल चक्र के लिए खरीदे गए जलीय कृषि बीमा के लिए प्रदान किया जाता है।

मत्स्य पालन विभाग विभिन्न हितधारकों, विशेष रूप से मछुआरों, मत्स्य कृषकों, मत्स्य श्रमिकों, मत्स्य विक्रेताओं, उद्यमियों, अधिकारियों, मत्स्य सहकारी समितियों और मत्स्य कृषक उत्पादक संगठनों (एफएफपीओ) के सदस्यों को विभिन्न मत्स्य प्रौद्योगिकी, जलीय कृषि और कटाई-पश्चात संबंधित गतिविधियों के लिए प्रशिक्षण, जागरूकता कार्यक्रमों और अनुभव-भ्रमण के माध्यम से प्रशिक्षण, कौशल विकास, कौशल उन्नयन और क्षमता निर्माण पर विशेष ध्यान देता है। प्रशिक्षण, जागरूकता, ज्ञानवर्धक दौरों और क्षमता निर्माण कार्यक्रम राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड (एनएफडीबी), आईसीएआर संस्थानों, कृषि विज्ञान केंद्रों (केवीके), अन्य संगठनों और राज्य/संघ राज्य क्षेत्र मत्स्य पालन विभागों के माध्यम से संचालित किए जाते हैं।

पिछले दो वर्षों के दौरान प्रमुख योजनाओं के अंतर्गत आवंटित धनराशि और लाभार्थियों को कवर किए जाने का राज्यवार विवरण संलग्न अनुलग्नक में दिया गया है। आंकड़ों में वर्ष-वार और राज्य-वार विवरण शामिल हैं:

  • वित्त वर्ष 2023-24 और वित्त वर्ष 2024-25 के लिए राष्ट्रीय पशुधन मिशन (एनएलएम) योजना की पशुधन बीमा गतिविधि के अंतर्गत जारी धनराशि और बीमित पशुओं का राज्यवार विवरण अनुलग्नक-I में दिया गया है।
  • वित्त वर्ष 2023-24 और वित्त वर्ष 2024-25 के लिए राष्ट्रीय पशुधन मिशन (एनएलएम) योजना के राष्ट्रीय पशुधन मिशन-उद्यमिता विकास (एनएलएम-ईडीपी) के अंतर्गत वास्तविक और वित्तीय प्रगति का राज्यवार विवरण अनुलग्नक-II में दिया गया है।
  • वित्त वर्ष 2023-24 से 2024-25 के दौरान स्वीकृत परियोजनाओं और पशुपालन अवसंरचना विकास (एएचआईडीएफ) के लिए जारी ब्याज अनुदान का राज्यवार विवरण अनुलग्नक-III में दिया गया है।
  • राष्ट्रीय गोकुल मिशन के अंतर्गत राष्ट्रव्यापी कृत्रिम गर्भाधान कार्यक्रम में राज्य-वार उपलब्धियां अनुलग्नक-IV में दी गई हैं।
  • पिछले 2 वर्षों के दौरान राष्ट्रीय गोकुल मिशन के अंतर्गत जारी धनराशि अनुलग्नक-V में दी गई है।
  • वित्त वर्ष 2023-24 से 2024-25 के दौरान पशुधन स्वास्थ्य एवं रोग नियंत्रण कार्यक्रम (एलएचडीसीपी) के अंतर्गत जारी धनराशि अनुलग्नक-VI में दी गई है।
  • जून 2025 तक कार्यरत मोबाइल पशु चिकित्सा इकाइयों की संख्या और लाभान्वित किसानों की संख्या का राज्य-वार विवरण अनुलग्नक-VII में दिया गया है।
  • वित्त वर्ष 2023-24 और 2024-25 के दौरान खुरपका-मुंहपका रोग (एफएमडी), ब्रुसेलोसिस, क्लासिकल स्वाइन फीवर (सीएसएफ) और पेस्ट डेस पेटिट्स रूमिनेंट्स (पीपीआर) के विरुद्ध किए गए टीकाकरण और लाभान्वित किसानों का राज्य-वार विवरण अनुलग्नक-VIII में दिया गया है।
  • वित्त वर्ष 2023-24 से 2024-25 के दौरान पीएमएमएसवाई के तहत जारी धनराशि का राज्य-वार विवरण अनुलग्नक-IX में दिया गया है।
  • वित्त वर्ष 2023-24 से 2024-25 के दौरान एनपीडीडी योजना के घटक एके तहत जारी राज्य-वार धनराशि अनुलग्नक-X में दी गई है।
  • वित्त वर्ष 2023-24 से 2024-25 के दौरान एसडीसीएफपीओ (कार्यशील पूंजी पर ब्याज अनुदान) की राज्य-वार प्रगति अनुलग्नक-XI में दी गई है।

अनुलग्नक देखने के लिए यहां क्लिक करें।

केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी राज्य मंत्री प्रो. एस.पी. सिंह बघेल ने 5 अगस्त, 2025 को लोकसभा में एक लिखित उत्तर में यह जानकारी दी।

***

पीके/केसी/एसकेजे/एसके


(Release ID: 2152733) Visitor Counter : 15
Read this release in: English , Urdu