रक्षा मंत्रालय
“रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता न केवल देश की रणनीतिक स्वायत्तता को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है बल्कि विकसित भारत के व्यापक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भी महत्वपूर्ण है”: रक्षा सचिव
“रक्षा मंत्रालय ने खरीद के लिए कुछ प्रक्रियाओं की समयसीमा घटा दी है जिससे लगभग 69 सप्ताह की बचत होगी”: रक्षा सचिव
उन्होंने निजी उद्योगों से अनुसंधान एवं विकास पर ध्यान केंद्रित करने और पूंजीगत उपकरण, मशीनरी और इंजीनियरिंग क्षमता में निवेश करने का भी आग्रह किया
Posted On:
30 MAY 2025 10:58PM by PIB Delhi
भारत के रक्षा दृष्टिकोण पर चर्चा करते हुए रक्षा सचिव श्री राजेश कुमार सिंह ने कहा कि यह देश की सामरिक स्वायत्तता को बनाए रखने के लिए आत्मनिर्भरता पर केंद्रित है। यह विकसित भारत के व्यापक लक्ष्य जैसे कि हमारे वर्तमान सकल घरेलू उत्पाद को 4 ट्रिलियन डॉलर से बढ़ाकर 2047 तक 32 ट्रिलियन डॉलर करना, हमारे विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ाना, भारत की स्टार्टअप संस्कृति को बढ़ाना और हमारे औद्योगिक आधार को व्यापक बनाना, रोजगार सृजन करना और प्रौद्योगिकी के दोहरे उपयोग से होने वाले इसके अतिरिक्त लाभ को प्राप्त करने में भी महत्वपूर्ण है। वे 29-30 मई, 2025 को नई दिल्ली में आयोजित एक रक्षा सम्मेलन में बोल रहे थे।
रक्षा सचिव ने कहा कि स्वदेशीकरण, स्थानीय उद्योग को बढ़ावा देने की पूरी प्रक्रिया का पिछले दशक में महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है। उन्होंने कहा कि भारत 2015 में शीर्ष आयातक से बढ़कर आज शीर्ष 25 निर्यातकों में से एक बन गया है। आज 100 से अधिक भारतीय कंपनियां 100 से अधिक देशों को निर्यात कर रही हैं। इन उत्पादों की सूची में ब्रह्मोस जैसी मिसाइलें, पिनाका जैसे रॉकेट लॉन्चर, सिमुलेटर, बख्तरबंद वाहन, डोर्नियर विमान, विभिन्न प्रकार के जहाज, अपतटीय गश्ती जहाज आदि शामिल हैं। निर्यात में वृद्धि का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पिछले दस वर्षों में हमारा निर्यात 30 गुना बढ़कर पिछले वित्तीय वर्ष में 23,622 करोड़ रुपये हो गया है। हमारे रक्षा उद्योग में आज 16 रक्षा सार्वजनिक उपक्रम, 430 लाइसेंस प्राप्त कंपनियां और लगभग 16000 एमएसएमई शामिल हैं। उन्होंने कहा कि घरेलू रक्षा बिक्री भी 2014 में 43746 करोड़ रुपये से बढ़कर 2023-24 में 127000 करोड़ रुपये हो गई है।
श्री राजेश कुमार सिंह ने याद दिलाया कि वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान रक्षा मंत्रालय ने पिछले पांच वर्षों में पहली बार रक्षा आधुनिकीकरण बजट का पूरा उपयोग किया है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि मंत्रालय ने पिछले वित्त वर्ष के दौरान रिकॉर्ड 2 लाख करोड़ रुपये के अनुबंधों पर हस्ताक्षर किए हैं जो अब तक की सबसे अधिक राशि है और 2023-24 के आंकड़ों से दोगुनी है। इससे यह सुनिश्चित होगा कि सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण होता रहे। इससे मंत्रालय को केंद्रीय बजट में अधिक हिस्सेदारी की मांग करने में भी मदद मिलेगी जिससे पहले चरण के रूप में पांच वर्षों में न्यूनतम रक्षा से जीडीपी अनुपात 2.5 प्रतिशत और उसके बाद मध्यावधि में 3 प्रतिशत तक हो जाएगा।
उन्होंने कहा कि खरीद की समयसीमा के बारे में, रक्षा मंत्रालय ने सुधारों के वर्ष में खरीद के लिए कुछ प्रक्रियाओं की समयसीमा घटा दी है। इससे प्रक्रिया की समयसीमा में कुल मिलाकर लगभग 69 सप्ताह की बचत होगी। खरीद प्रक्रिया को विस्तार से बताने वाला एक बड़ा दस्तावेज- रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया 2020 वर्तमान वास्तविकताओं के अनुसार फिर से तैयार किया जा रहा है। ज्यादातर सार्वजनिक क्षेत्र पर केंद्रित पारंपरिक नामांकन आधारित लागत-आधिक्य खरीद से हटकर एक अधिक प्रतिस्पर्धी मूल्य निर्धारण मॉडल की ओर बढ़ने की आवश्यकता है जहां सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्र ऑर्डर के लिए प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि यह दृष्टिकोण पहले से ही जहाज निर्माण और हाल ही में एएमसीए परियोजना के लिए लागू किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि संबंधित सरकारी विभागों पर जवाबदेही तय करने के लिए एक निश्चित समय सीमा के बाद डीम्ड लाइसेंसिंग की अवधारणा, लागत आधारित मूल्य निर्धारण से प्रतिस्पर्धी बोली की ओर, सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों के लिए उत्पाद आरक्षण जैसे पुराने दृष्टिकोण को समाप्त करना, कठोर और निरर्थक प्रक्रियाओं को समाप्त करके खरीद समयसीमा में कटौती जैसे उपायों से रक्षा औद्योगिक आधार का वास्तविक विस्तार और विविधीकरण होगा।
निजी क्षेत्र को व्यापार करने में आसानी और समान अवसर प्रदान करने का आश्वासन देते हुए रक्षा सचिव ने उनसे पूंजीगत उपकरणों, मशीनरी और इंजीनियरिंग क्षमता में निवेश के माध्यम से अनुसंधान और विकास तथा पूंजी निर्माण पर ध्यान केंद्रित करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि दीर्घावधि में जिन कंपनियों के पास इंजीनियरिंग जनशक्ति या पूंजीगत उपकरण या अनुसंधान और विकास में निवेश करने की इच्छा नहीं है, उन्हें रक्षा क्षेत्र में प्रवेश करने के बारे में नहीं सोचना चाहिए क्योंकि भारत की सामरिक स्वायत्तता में उनका योगदान तब तक महत्वपूर्ण नहीं होगा जब तक वे देश के भीतर स्थानीय विनिर्माण तंत्र बनाने में इस तरह का निवेश नहीं करते हैं।
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(Release ID: 2132962)