वित्त मंत्रालय
भारतीय अर्थव्यवस्था ने स्थिर ऋण वृद्धि दर्शायी; बैंकों ने उच्च लाभप्रदता व कम एनपीए दर्ज की
ग्रामीण वित्तीय संस्थानों की परिसम्पत्तियों की गुणवत्ता बेहतर हुई, कुल एनपीए वित्तीय वर्ष 2023 में 3.2 प्रतिशत से घटकर वित्तीय वर्ष 2024 में 2.4 प्रतिशत हुई
क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की ऋण जमा अनुपात मात्र 2023 में 67.5 प्रतिशत से बढ़कर मार्च 2024 में 71.2 प्रतिशत हुई
मौद्रिक नीति ने सतत विकास एवं तरलता सुनिश्चित करते हुए मूल्य स्थिरता को बनाए रखा
चार वर्षों में भारतीय पूंजी बाजारों में निवेशकों की संख्या वित्तीय वर्ष 2020 में 4.9 करोड़ से बढ़कर वर्ष 2024 के अंत में 13.2 करोड़ हुई, जोकि दोगुनी से भी अधिक है
प्राथमिक बाजारों (इक्विटी और ऋण) से कुल संसाधन जुटाए जाने की राशि पिछले वित्तीय वर्ष में जुटाई गई राशि की तुलना में 5 प्रतिशत अधिक है, अप्रैल से दिसंबर 2024 के दौरान यह राशि 11.1 लाख करोड़ रुपये है
भारतीय बीमा बाजार ने बेहतर वृद्धि दर्ज की, वित्तीय वर्ष 2024 में कुल बीमा प्रीमियम 7.7 प्रतिशत बढ़कर 11.2 लाख करोड़ तक पहुंचा
पेंशन बाजार ने मजबूत वृद्धि दर्ज की, सितंबर 2024 तक अभिदाताओं की कुल संख्या 783.4 लाख पहुंच गई
वित्तीय समावेशन सूचकांक मार्च 2021 में 53.9 से बढ़कर मार्च 2024 में 64.2 हो गया
स्वतंत्र विनियामक निकायों (आईआरबी) में विनियामक प्रभावकारिता मूल्यांकन को संस्थागत बनाना मजबूत वित्तीय क्षेत्र की कुंजी हैः आर्थिक समीक्षा
Posted On:
31 JAN 2025 1:51PM by PIB Delhi
केंद्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने आज संसद में आर्थिक समीक्षा 2024-25 पेश करते हुए कहा कि भारत के मौद्रिक और वित्तीय क्षेत्रों ने वित्तीय वर्ष 2024-25 के पहले नौ महीनों के दौरान अच्छा प्रदर्शन किया है।
आर्थिक समीक्षा के अनुसार, वर्तमान वित्तीय वर्ष के दौरान बैंक ऋण स्थिर दर से बढ़ा है। अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (एससीबी) की लाभप्रदता में निरंतर सुधार हुआ है, जोकि पूंजी-से-जोखिम भारित परिसंपत्ति अनुपात (सीआरएआर) में वृद्धि के साथ-साथ सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों में (जीएनपीए) में गिरावट से परिलक्षित होता है। एससीबी का जीएनपीए अनुपात लगातार गिरकर सितंबर 2024 के अंत में 2.6 प्रतिशत के 12 वर्ष के निचले स्तर पर आ गया है। वित्तीय वर्ष 2025 की पहली छमाही के दौरान एससीबी की लाभप्रदता में सुधार हुआ और कर पश्चात लाभ (पीएटी) में 22.2 प्रतिशत (वर्ष-दर-वर्ष) की वृद्धि हुई।
आर्थिक समीक्षा ने बैंक जमा राशियों में दहाई अंकों की वृद्धि जारी रहने के तथ्य को रेखांकित किया है। नवंबर 2024 के अंत तक, एससीबी की समग्र जमा राशि में वर्ष-दर-वर्ष के आधार पर 11.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई। क्षेत्रवार, वर्तमान वित्तीय वर्ष में 29 नवंबर, 2024 तक कृषि ऋण में वृद्धि 5.1 प्रतिशत की रही। औद्योगिक ऋण में बढ़ोतरी हुई और यह नवंबर 2024 के अंत तक 4.4 प्रतिशत रही, जोकि एक साल पहले दर्ज 3.2 प्रतिशत से अधिक थी। सभी उद्योगों में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) को दिया जाने वाला बैंक ऋण बड़े उद्यमों को दिये जाने वाले ऋम वितरण की तुलना में तेजी से बढ़ रहा है। नवंबर 2024 के अंत तक एमएसएमई को दिये जाने वाले ऋण में वर्ष-दर-वर्ष के आधार पर 13 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई, जबकि बड़े उद्यमों के लिए यह वृद्धि 6.1 प्रतिशत थी।
ग्रामीण वित्तीय संस्थाओं ने भी अपेक्षाकृत निम्न एनपीए और बेहतर ऋण वितरण दर्ज किया। आरआरबी का समेकित समेकित शुद्ध लाभ वित्तीय वर्ष 2023 में 4,974 करोड़ रुपये से बढ़कर वित्तीय वर्ष 2024 में 7,571 करोड़ रुपये गया। समेकित सीआरएआर मार्च 2023 तक 13.4 प्रतिशत से बढ़कर 31 मार्च, 2024 तक 14.2 प्रतिशत के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गया। आरआरबी का ऋण जमा अनुपात मार्च 2023 में 67.5 प्रतिशत से बढ़कर मार्च 2024 तक 71.2 प्रतिशत हो गया।
आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने विकास को बनाए रखने और मुद्रास्फीति को स्वीकार्य सीमा के भीतर रखने के दोहरे लक्ष्य को हासिल करने के उद्देश्य से वित्तीय वर्ष 2025 (अप्रैल 2024–दिसंबर 2024) के पहले नौ महीनों के दौरान अपनी विभिन्न बैठकों में नीतिगत रेपो दर को 6.5 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखने का निर्णय लिया।
आर्थिक समीक्षा ने इस तथ्य को रेखांकित किया कि तरलता समायोजन सुविधा के अंतर्गत समग्र स्थिति द्वारा दर्शायी जाने वाली प्रणालीगत तरलता भी अक्टूबर-नवंबर 2024 के दौरान अधिशेष (सरप्लस) रहा।
समीक्षा में इस बात की जानकारी दी गई है कि वित्तीय समावेशन के मामले में भी सरकार ने उल्लेखनीय प्रगति की है और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) का वित्तीय समावेशन सूचकांक मार्च 2021 में 53.9 से बढ़कर मार्च 2024 के अंत में 64.2 हो गया है। भारत की वित्तीय समावेशन यात्रा को सुगम बनाने में ग्रामीण वित्तीय संस्थाओं (आरएफआई) की महत्त्पूर्ण भूमिका रही है। विकास वित्तीय संस्थानों (डीएफआई) ने अवसंरचना विकास परियोजनाओं के वित्त पोषण के माध्यम से देश की आर्थिक प्रगति में उल्लेखनीय योगदान दिया है।
पूंजीगत बाजार
आर्थिक समीक्षा 2024-25 में बताया गया है कि पूंजीगत बाजारों ने वास्तविक अर्थव्यवस्था के लिए पूंजी निर्माण को उत्प्रेरित कर घरेलू बचत के वित्तीयकरण को बढ़ाते हुए और धन सृजन को समर्थन प्रदान करते हुए मजबूत प्रदर्शन किया है। मजबूत सूक्ष्म आर्थिक तत्वों, बेहतर कॉर्पोरेट आय, सहयोगी संस्थागत निवेश, एसआईपी की ओर से मजबूत प्रवाह और बेहतर औपचारिकीकरण, डिजिटलीकरण एवं पहुंच ने बाजार की वर्तमाने वृद्धि को तेज किया है।
समीक्षा ने इस तथ्य को रेखांकित किया है कि बाजार में उतार-चढ़ाव और भू-राजनीतिक अनिश्चितताओं के बावजूद वित्तीय वर्ष 2025 में प्राथमिक बाजारों में लिस्टिंग गतिविधियों एवं निवेशकों के उत्साह में वृद्धि देखी गई। वैश्विक आईपीओ लिस्टिंग में भारत की हिस्सेदारी वर्ष 2023 में 17 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2024 में 30 प्रतिशत हो गई, जिससे यह वैश्विक स्तर पर अग्रणी योगदानकर्ता बन गया। अप्रैल से दिसंबर 2024 तक प्राथमिक बाजारों (इक्विटी और ऋण) कुल 11.1 लाख करोड़ रुपये राशि के संसाधन जुटाए गये, जो पूरे वित्तीय वर्ष 2024 के दौरान जुटाई गई राशि से 5 प्रतिशत अधिक है।
दिसंबर 2024 के अंत में बीएसई बाजार का पूंजीकरण जीडीपी अनुपात 136 प्रतिशत था, जो पिछले 10 वर्षों में काफी बढ़ गया है। भारतीय स्टॉक का सकारात्मक प्रदर्शन मजबूत लाभप्रदता वृद्धि, डिजटल वित्तीय अवसंरचना के तेज वृद्धि, निवेशक आधार के विस्तार और उत्पादों एवं प्रक्रियाओं में पर्याप्त सुधारों से प्रेरित था।
पूंजीगत बाजारों में निवेशकों की भागीदारी निरंतर बढ़ रही है और निवेशकों की संख्या वित्तीय वर्ष 2020 में 4.9 करोड़ से बढ़कर 31 दिसंबर, 2024 को 13.2 करोड़ हो गई। सक्रिय लिस्टिंग गतिविधियों और भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) जैसे नियामकों द्वारा अतिरेक को नियंत्रित करने के उद्देश्य से किये गये हालिया उपायों के साथ इस वृद्धि से बाजार के निरंतर विस्तार की उम्मीद है।
बीमा एवं पेंशन क्षेत्र
समीक्षा के मुताबिक, भारत का बीमा क्षेत्र अच्छा प्रदर्शन कर रहा है और अगले पांच सालों (2024-2028) के दौरान इसके जी-20 के बाकी देशों की तुलना में सबसे तेज गति से वृद्धि करने की उम्मीद है। इसने अपनी प्रगति जारी रखी हुई है और वित्तीय वर्ष 2024 में कुल बीमा प्रीमियम 7.7 प्रतिशत बढ़कर 11.2 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया। 3.7 प्रतिशत की समग्र बीमा पैठ दर 7 प्रतिशत के वैश्विक औसत के कम है, के कारण कवरेज में उल्लेखनीय अंतर है, जोकि बीमा कंपनियों के लिए अपनी पहुंच बढ़ाने का अवसर प्रस्तुत करता है। टियर 2 और 3 शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों को लक्षित करके जहां जागरूकता और पहुंच सीमित है, बीमाकर्ता नये ग्राहक खंडों तक पहुंच सकते हैं और विकास को बढ़ावा दे सकते हैं।
समीक्षा इस तथ्य को रेखांकित करता है कि राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (एनपीएस) और अटल पेंशन योजना (एपीवाई) की शुरुआत के बाद से भारत के पैंशन क्षेत्र में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। सितंबर 2024 तक अभिदाताओं की कुल संख्या 783.4 लाख तक पहुंच गई, जो सितंबर 2023 में 675.2 लाख से वर्ष-दर-वर्ष के आधार पर 16 प्रतिशत की वृद्धि को दर्शाती है। निम्न मध्यम आय वाले देश से उच्च मध्यम आय वाले देश के रूप में अर्थव्यवस्था के बदलाव से पेंशन क्षेत्र में वृद्धि होने की उम्मीद है। बीमा एवं पेंशन क्षेत्र में सार्वभौमिक कवरेज तथा वित्तीय इको-सिस्टम को मजबूत करने क दृष्टिकोण के साथ बेहतर प्रदर्शन करना जारी रखेंगे।
दिवालियापन कानून
दिवाला और दिवालियापन संहिता, 2016 (आईबीसी/कोड) ने संकटग्रस्त संस्थाओं के लिए एक आधुनिक और व्यापक दिवाला समाधान ढांचे की शुरुआत की है। वित्तीय संकट और एनपीए को संबोधित करके इस संहिता ने देश के बैंकिंग क्षेत्र की दुरुस्ती पर एक अमिट प्रभाव डाला है और देनदार-लेनदार संबंध को फिर से परिभाषित किया है। इस संहिता के तहत समाधान के लिए भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा संदर्भित 12 बड़े खातों में से 10 का सफलतापूर्वक समाधान किया गया है। मार्च 2024 तक 10.2 लाख करोड़ रुपये के अंतर्निहित डिफॉल्ड वाले कॉर्पोरेट कर्जदारों के कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया की शुरुआत के लिए भेजे गये 28,818 आवेदन उनके स्वीकार होने से पहले वापस ले लिए गये। कानूनी, आर्थिक और वित्तीय प्रणालियों जैसी उच्चस्तरीय प्रणालियों के साथ अपनी बातचीत के माध्यम से इस संहिता के अन्य दूरगामी प्रभाव हुए हैं।
वित्तीय क्षेत्र
वित्तीय क्षेत्र मुख्य रूप से स्वतंत्र नियामक निकायों-भारतीय रिजर्व बैंक, भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड, भारतीय बीमा विनियामक विकास प्राधिकरण, पेंशन निधि विनियामक विकास प्राधिकरण तथा भारतीय दिवाला और दिवालियापन बोर्ड के माध्यम से शासित होता है। वित्तीय स्थिरता एवं विकास परिषद के पास व्यापक वित्तीय स्थिरता जनादेश है, जो अंतर-नियामक समन्वय को सक्षम बनाता है और वित्तीय क्षेत्र के विकास को बढ़ावा देता है। प्रत्येक आईआरबी डिजाइन, प्रत्यायोजित कार्यों की प्रकृति और स्वायत्ता की डिग्री में भिन्न होता है, रजो इसके विकास और विनियमित डोमेन के सामाजिक-राजनीतिक संदर्भ के लिए अद्वितीय है। हालांकि कुछ बुनियादी संरचना तत्व सभी विनियामक निकायों के लिए सामान्य हैः वे एक कानून द्वारा समर्थित हैं, विधायिका के प्रति जवाबदेह हैं, सरकार से कुछ हद तक स्वायत्तता का आनंद लेते हैं, विधायी, कार्यकारी एवं अर्ध-न्यायिक कार्य करते हैं और तकनीकी निर्णय लेने की प्रक्रियाओं जैसे विशेष कार्यों में संलग्ल हैं।
विनियम कानून के बुनियादी उपकरण हैं जिनके माध्यम से आईआरबी अपने कार्यों का संचालन करते हैं और अपनी निष्पक्षता को पूरा करते हैं। विनियामक कार्रवाई की दक्षता और प्रभावशीलता सीधे विनियमों की गुणवत्ता पर निर्भर करती है। इन आईआरबी की प्राथमिक जिम्मेदारी नियम बनाना है, जिसके लिए शक्ति कानून द्वारा आईआरबी को सौंपी जाती है और यह आईआरबी की स्वायत्तता का एक अनिवार्य घटक है।
आर्थिक समीक्षा बताता है कि विनियमन की गुणवत्ता मुख्य रूप से पांच मानकों- लोकतांत्रिक औचित्य, विनियामक की जवाबदेही, निष्पक्ष, सुलभ एवं खुली प्रक्रियाओं, विशेषज्ञता तथा सक्षमता- पर आंकी जाती है।
भारत के वित्तीय क्षेत्र की साइबर सुरक्षा
प्रौद्योगिकीय प्रगति के साथ भारतीय वित्तीय क्षेत्र में एक डिजिटल परिवर्तन देखा जा रहा है, जिससे दक्षता एवं पहुंच में वृद्धि हुई है और विविध साइबर खतरों के प्रति जोखिम बढ़ा है। फिशिंग और रैनसमवेयर से लेकर वितरित सेवा निषेध हमलों, एसएमएस करना और नकली दुर्भावनापूर्ण मोबाइल एप्लिकेशन तक के ये खतरे वित्तीय प्रणाली की स्थिरता के लिए गंभीर चुनौतियां पेश करते हैं। वित्तीय क्षेत्र के बढ़ते डिजिटलीकरण को देखते हुए एफएसडीसी साइबर सुरक्षा के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, क्योंकि वित्तीय क्षेत्र की साइबर संवेदनशीलता को मजबूत करना वित्तीय स्थिरता को बनाए रखने की कुंजी है।
वैश्विक साइबर सुरक्षा सूचकांक (जीसीआई) 2024 में भारत की टियर-1 रैंकिंग, 100 में से 98.49 के सराहनीय स्कोर के साथ इसकी साइबर सुरक्षा से जुड़ी यात्रा में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। यह मान्यता भारत को साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में दुनिया के ‘रोल-मॉडल’ देशों में रखती है। जीसीआई राष्ट्रीय प्रयासों का मूल्यांकन पांच स्तंभों- कानूनी, तकनीकी, संगठनात्मक, क्षमता निर्माण और सहयोग- पर करता है, जो भारत के समग्र दृष्टिकोण को उजागर करता है। भारत ने मजबूत कानूनी ढांचों, लक्षित शिक्षा कार्यक्रमों और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से अपने साइबर सुरक्षा इको-सिस्टम को सुदृढ़ किया है। जागरूकता, कौशल विकास और अनुसंधान को बढ़ावा देकर, देश उभरती चुनौतियों के लिए तैयारी करते हुए वर्तमान साइबर खतरों को प्रभावी ढंग से संबोधित करता है, जिससे डिजिटल अवसंरचना को सुरक्षित करने में अपने नेतृत्व की पुष्टि होती है।
भारतीय वित्तीय क्षेत्र यूपीआई, ओपन क्रेडिट इनेबलमेंट नेटवर्क (ओसीईएन) और टी+1 सेटलमेंट जैसे विभिन्न वित्तीय नवाचारों का साक्षी है। इन नवाचारों ने भारत में ऋण तक पहुंच को काफी आसान बना दिया है। आर्थिक समीक्षा का कहना है कि उपरोक्त उभरते संकेत भारत के वित्तीय क्षेत्र में एक नये युग की शुरुआत के प्रतीक हैं।
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एनबी/एमजी/हिन्दी इकाई-07
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