विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय
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भारतीय पठार पर दक्कन ज्वालामुखी के दौरान उष्णकटिबंधीय वनस्पतियों ने काफी जीवटता दिखाई

Posted On: 13 JAN 2025 5:18PM by PIB Delhi

एक नए अध्ययन के अनुसार, दक्कन ज्वालामुखी का उष्णकटिबंधीय वनस्पतियों पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ा। यह लगभग 66 मिलियन वर्ष पहले हुई ज्वालामुखी विस्फोट की घटना थी, जिसके कारण बड़े पैमाने पर जीव-जंतु विलुप्त हो गए थे।

दक्कन ज्वालामुखी ने अप्रत्यक्ष रूप से अति-विविध उष्णकटिबंधीय वनस्पतियों के विकास पर सकारात्मक प्रभाव डाला, क्योंकि इसने जिम्नोस्पर्मों (अनावृतबीजी) के साथ-साथ डायनासोरों के विशाल जीव समुदाय को नष्ट कर दिया। यही नहीं, इसने एंजियोस्पर्मों (आवृतबीजी) के उद्भव और विकास के लिए अनुकूल गर्म तथा आर्द्र जलवायु के भीतर नवजात, अछूते, बंजर किन्तु उपजाऊ आवास उपलब्ध कराए।

इस अध्ययन से यह आशा जगती है कि यदि हमारे उष्णकटिबंधीय वर्षावनों को बिना छेड़े छोड़ दिया जाए तो वे अनुकूल जलवायु परिस्थितियों में शीघ्र ही पुनर्जीवित हो सकते हैं।

दक्कन ज्वालामुखी विस्फोट क्रेटेशियस-पेलियोजीन (के-पीजी) सीमा से पहले और उसके बाद कई लाख साल तक जारी रहा।  इससे पता चलता है कि यह के-पीजी सामूहिक विलुप्ति के लिए ट्रिगरिंग एजेंटों में से एक था, जिसने वैश्विक स्तर पर अमोनॉइड (अकशेरुकी सेफेलोपोड्स) और डायनासोर प्रजातियों को समाप्त कर दिया। हालांकि इस घटना के प्रभाव की गहन जांच की गई, लेकिन वनस्पतियों पर इसके प्रभाव पर बहस जारी है। दक्कन ज्वालामुखी के उपरिकेंद्र के रूप में, भारतीय प्लेट इस समय के दौरान किसी भी संबंधित पुष्प परिवर्तन की पहचान करने के लिए एक आदर्श आद्यरूप प्रदान करती है।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के स्वायत्त संस्थान बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पैलियोसाइंसेज (बीएसआईपी) के एक अध्ययन से पता चलता है कि स्थलीय जीवों (विशेष रूप से डायनासोर) के लिए अत्यधिक विनाशकारी परिणामों के बावजूद, दक्कन ज्वालामुखी ने वनस्पतियों पर केवल क्षेत्रीय और अल्पकालिक प्रभाव डाला। इसके बजाय, इसने भारतीय पठार पर विभिन्न आवासों के भीतर एंजियोस्पर्म के विविधीकरण और विस्तार को बढ़ावा दिया। निष्कर्ष रूप से, अंतर उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (आईटीसीजेड) के भीतर भारतीय पठार का अक्षांशीय स्थानांतरण, अफ्रीका और भारत के बीच एक फिल्टर कॉरिडोर का निर्माण और दक्कन ज्वालामुखी के निष्क्रिय चरणों के दौरान अत्यधिक गर्म तथा आर्द्र जलवायु ने उष्णकटिबंधीय वर्षावन समुदाय में विलुप्त होने के बजाय तेजी से विकास और विविधीकरण को बढ़ावा दिया।

वैज्ञानिकों ने पराग, बीजाणुओं और कार्बनिक पदार्थों का अध्ययन करके इसका पता लगाया, जिसे उन्होंने जीवित और जीवाश्म रूपों में तलछटी चट्टानों से निकाला था। चट्टान (मडस्टोन और क्लेस्टोन) के नमूने महाराष्ट्र के येओतमल क्षेत्र से 17 मीटर मोटी तलछटी श्रृंखला से एकत्र किए गए थे। पैलिनोमॉर्फ्स पराग, बीजाणुओं (पेलिनोमॉर्फ्स) और कार्बनिक पदार्थ (पौधे के मलबे) को पैलिनोलॉजिकल और पैलिनोफेसीज विश्लेषण (जीवित और जीवाश्म रूपों में पराग, बीजाणु, कार्बनिक पदार्थ आदि का अध्ययन) के लिए विभिन्न एसिड के साथ पचाकर नमूनों से निकाला गया था। पैलिनोलॉजी का उपयोग बायोस्ट्रेटीग्राफी की स्थापना और पैलियोइकोलॉजी, पैलियोक्लाइमेट तथा पैलियोबायोजियोग्राफी के पुनर्निर्माण के लिए किया जाता है, जबकि पैलिनोफेसीज अध्ययनों का उपयोग निक्षेपण पर्यावरण के पुनर्निर्माण के लिए किया गया था।

अर्थ साइंस रिव्यूज नामक पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन से पता चलता है कि इस तथ्य के बावजूद कि दक्कन ज्वालामुखी ने पर्यावरण में जहरीली ग्रीनहाउस गैसों को छोड़ा, जिससे वैश्विक तापमान में वृद्धि के कारण के-पीजी बड़े पैमाने पर विलुप्त हो गए, उष्णकटिबंधीय वनस्पतियों ने उप-सहस्राब्दी पैमाने पर तेजी से सुधार किया, जो जलवायु तनावों के लिए उष्णकटिबंधीय वनस्पतियों की उच्च सहनशीलता को दर्शाता है। इसलिए, भूवैज्ञानिक अतीत के दौरान भूवैज्ञानिक और जलवायु उथल-पुथल से वनस्पतियों में आए बदलाव को समझना वैश्विक तापमान वृद्धि के कारण चल रहे जलवायु परिवर्तनों के प्रति उनकी प्रतिक्रियाओं का पूर्वानुमान लगाने में सहायता कर सकता है।

चित्र 1: महाराष्ट्र के येओतमल क्षेत्र के लिए पैलिनोलॉजी, पैलिनोफेसीज, एनएलआर और सीए से अनुमानित पुष्पीय उत्तराधिकार का सरलीकृत पैलियोवेजिटेशनल मॉडल।

 

चित्र 2: दक्कन ज्वालामुखी के संबंध में वनस्पति उत्तराधिकार और पर्यावरणीय बदलावों के चरणों को दर्शाने वाली घटनाओं का प्रवाह चार्ट।

 

 

चित्र 3: (ए-बी)। पैलियोजियोग्राफिक और पैलियोक्लाइमैटिक पुनर्निर्माण का समतलीय निरूपण, केएलआईए को उत्तर-पूर्वी अफ्रीका और उत्तरी भारत को जोड़ने वाले बायोटिक फ़िल्टर कॉरिडोर के रूप में प्रदर्शित करता है (रोड्रिगेज एट अल., 2021 के बाद; युआन एट अल., 2022: भौगोलिक निर्देशांक जीप्लेट्स से संदर्भित किए गए थे)।

A. लगभग 68 मिलियन वर्ष और B. लगभग 66 मिलियन वर्ष पर पुनर्निर्माण।

C. लगभग 68 मिलियन वर्ष और 66 मिलियन वर्ष पर भारतीय पठार की गति का योजनाबद्ध निरूपण।

संक्षिप्तीकरण: टीएफ-ट्रांसफॉर्म फॉल्ट, एनएसजेड-नॉदर्न सबडक्शन जोन, एसएसजेड-साउथ सबडक्शन जोन, केएलआईए-कोहिस्तान-लद्दाख आर्क, 1-जबलपुर, 2-नागपुर, 3-नंद-डोंगरगांव, 4- पिसदुरा,

5-चंद्रपुर, 6-छिंदवाड़ा, 7-मोहगांवकलां, 8-डिंडोरी, 9-नवरगांव, 10-येओतमल, 11-धार, 12-धनगांव, 13-बैतूल, 14-रायगढ़, 15-महाबलेश्वर, 16-नस्कल, 17-कच्छ, 18- लक्ष्मीपुर, 19-अंजार, 20-सागर।

 

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