मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय
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दक्षिण कन्नड़ में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव तथा समुद्री संभावनाएं

Posted On: 17 DEC 2024 4:13PM by PIB Delhi

मत्स्यपालन विभाग, भारत सरकार मात्स्यिकी के सतत प्रबंधन (सस्टेनेबल मेनेजमेंट) के लिए प्रतिबद्ध है और जलवायु परिवर्तन और इसके प्रभावों पर कार्य  गतिविधियों पर  अधिक बल  देता है। जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को समझने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर), भारत सरकार के तत्वावधान में मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान नियमित रूप से अनुसंधान कर रहे ताकि मात्स्यिकी और जलीय कृषि की स्थिरता के लिए क्लाइमेट रेसीलिएन्ट  रणनीति विकसित की जा सके ।

मत्स्यपालन विभाग, भारत सरकार मात्स्यिकी क्षेत्र के समग्र विकास की दिशा में कई पहल कर रहा है, जिसमें मछुआरों की आजीविका को मजबूत करने पर विशेष जोर दिया गया है। इस दिशा में प्रमुख पहलों में 2015-16 से 2019-20 के दौरान लागू की गई नीली क्रांति योजना, मात्स्यिकी क्षेत्र के लिए किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) का प्रावधान और मात्स्यिकी में रियायती वित्तपोषण को सक्षम करने के लिए फिशरीज़ एंड  एक्वाकल्चर  इन्फ्रास्ट्रक्चर   डवलपमेन्ट  फंड (एफआईडीएफ) शामिल है। 2020 में, भारत सरकार ने मात्स्यिकी क्षेत्र के समग्र विकास के लिए 20050 करोड़ रुपए के कुल निवेश पर एक प्रमुख योजना - प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) को मंजूरी दी, जिसे वित्त वर्ष 2020-21 से वित्त वर्ष 2024-25 तक 5 (पांच) वर्षों की अवधि के लिए कर्नाटक सहित भारत के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में लागू किया जा रहा है।

 

विगत चार वर्षों (2020-21 से 2023-24) और वर्तमान वित्त वर्ष (2024-25) के दौरान पीएमएमएसवाई के अंतर्गत, मत्स्यपालन विभाग, भारत सरकार ने कर्नाटक सरकार के 1056.34 करोड़ रुपए के मात्स्यिकी विकास प्रस्तावों को मंजूरी दी है। पीएमएमएसवाई के अंतर्गत स्वीकृत गतिविधियों में अन्य बातों के साथ-साथ दक्षिण कन्नड़ सहित कर्नाटक में मछुआरों और मत्स्य किसानों के कल्याण के लिए समुद्री और अंतर्देशीय मात्स्यिकी गतिविधियों को बढ़ावा देना शामिल है, जैसे डीप सी फिशिंग वेसेल्स के अधिग्रहण के लिए सहायता, निर्यात क्षमता के लिए मौजूदा फिशिंग वेसेल्स का उन्नयन, मछुआरों को सुरक्षा किट, मछली पकड़ने पर  प्रतिबंध के दौरान मछुआरों को आजीविका और पोषण संबंधी सहायता, फिशिंग वेसेल्स पर संचार उपकरण, संरक्षण के लिए तट के साथ आर्टिफ़िश्यल रीफ़्स की स्थापना। इसके अलावा, हैचरी की स्थापना, जलकृषि के लिए क्षेत्र विस्तार, खारे पानी की जलकृषि, ओर्नामेंटल फिश रियरिंग इकाइयों, सी वीड कल्टिवेशन, बाइवल्व कल्टिवेशन, जलाशयों में केज कल्चर, री-सर्क्युलेटरी एक्वाकल्चर सिस्टम (आरएएस) और बायोफ्लोक कल्चर के माध्यम से जलकृषि को बढ़ावा देने की दिशा में गतिविधियों को भी मंजूरी दी गई है। पीएमएमएसवाई को संबंधित राज्य सरकारों/केंद्र शासित प्रदेशों के माध्यम से कार्यान्वित किया जाता है और लाभार्थी की पहचान और चयन राज्य सरकारों/केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा योजना के दिशानिर्देशों के अनुसार किया जाता है।

 

पीएमएमएसवाई के अंतर्गत, क्रियाकलापों का उद्देश्य समुद्री शैवाल की खेती सहित अप्रयुक्त संभावित क्षेत्रों का बेहतर उपयोग करना है। मत्स्यपालन विभाग, भारत सरकार ने पीएमएमएसवाई के अंतर्गत विभिन्न समुद्री शैवाल (सी वीड)  परियोजनाओं को मंजूरी दी है, जिसमें राफ्ट, मोनोलाइन के माध्यम से सी वीड कल्टीवेशन, सी वीड एक्वापार्क की स्थापना, सी वीड बैंक और विभिन्न राज्य/केंद्र शासित प्रदेशों और अनुसंधान संस्थानों की अनुसंधान एवं विकास परियोजनाएं शामिल हैं। इसमें कर्नाटक में सी वीड कल्टीवेशन के लिए स्वीकृत 10,000 सी वीड राफ्ट और 21,000 मोनोलाइन/ट्यूब नेट भी शामिल हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने सूचित किया है कि भारतीय तट के साथ 24,000 हेक्टेयर उपयुक्त क्षेत्र की पहचान सी वीड कल्टीवेशन के लिए की गई है, जिसमें कर्नाटक के लिए 14 स्थानों को कवर करने वाला 1579 हेक्टेयर शामिल है।  

कर्नाटक सरकार ने सूचित किया है कि वर्तमान में राज्य सरकार के  पास मैंगलोर में अलग मात्स्यिकी विश्वविद्यालय स्थापित करने का कोई प्रस्ताव नहीं है।

यह जानकारी मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री श्री राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने आज लोकसभा में एक लिखित उत्तर में दी।

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