पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय
संसद प्रश्न: प्राकृतिक आपदाओं के लिए पूर्व चेतावनी प्रणाली
Posted On:
11 DEC 2024 4:38PM by PIB Delhi
जलवायु परिवर्तन अनुमानों का पता लगाने के लिए भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम) के जलवायु परिवर्तन अनुसंधान केंद्र में अत्याधुनिक स्वदेशी पृथ्वी प्रणाली मॉडल (ईएसएम) विकसित किया गया है। क्षेत्रीय जलवायु परिवर्तन अनुमानों का दस्तावेजीकरण करने वाली राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन आकलन रिपोर्ट छात्रों, शोधकर्ताओं और नीति निर्माताओं की सुविधा के लिए जारी की गई है। रिपोर्ट https://link.springer.com/book/10.1007/978-981-15-4327-2 पर उपलब्ध है। यह अपनी तरह की पहली रिपोर्ट है, जिसमें हिंद महासागर और हिमालय से सटे भारतीय उपमहाद्वीप के क्षेत्रीय जलवायु और मानसून पर मानवीय गतिविधियों के कारण उत्पन्न वैश्विक जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के बारे में व्यापक चर्चा की गई है। उपलब्ध जलवायु रिकॉर्ड के आधार पर, रिपोर्ट में दर्ज किया गया है कि 1901-2018 के दौरान भारत में सतही वायु तापमान में लगभग 0.7 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है उष्णकटिबंधीय हिंद महासागर में समुद्री सतह का तापमान भी 1951-2015 की अवधि के दौरान लगभग एक डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है। मानव-प्रेरित जलवायु परिवर्तन के स्पष्ट संकेत भारतीय क्षेत्र में मानवजनित जीएचजी और एरोसोल फोर्सिंग और भूमि उपयोग और वन क्षेत्र में आई कमी के कारण उभरे हैं और इस कारण जलवायु चरम सीमाओं में वृद्धि देखने को मिली है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने भारत की जलवायु में शीत लहरें, गर्म लहरें, बाढ़, बिजली, बर्फबारी, धूल के तूफान, ओलावृष्टि, गरज के साथ बारिश, कोहरा, तेज हवाएं, अत्यधिक वर्षा, सूखा और चक्रवात जैसी तेरह सबसे खतरनाक मौसम सम्बंधी घटनाओं की जानकारी वाली खतरा और भेद्यता एटलस तैयार की गई है। ये जानकारी संवेदनशील क्षेत्रों में रहने वाले नागरिकों की सुरक्षा के लिए उपयोगी है।
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने दो वर्षों में 2,000 करोड़ रुपये के परिव्यय वाली केंद्रीय क्षेत्र योजना 'मिशन मौसम' को मंजूरी दे दी है। इस मिशन का मुख्य उद्देश्य भारत को मौसम का सामना करने के लिए तैयार करना और जलवायु के प्रति स्मार्ट बनाना तथा सभी को समय से पहले चेतावनी देना है। मिशन मौसम को भारत के मौसम और जलवायु से संबंधित विज्ञान, अनुसंधान और सेवाओं को जबरदस्त बढ़ावा देने के लिए बहुआयामी और परिवर्तनकारी पहल के रूप में देखा जा रहा है।
मिशन मौसम, जलवायु परिवर्तन और खराब मौसम में होने वाली घटनाओं के प्रभाव को कम करके तथा खराब मौसम सम्बंधी घटनाओं के प्रति समुदायों की तैयारी में लचीलापन को बढ़ाकर कृषि, बिजली, सिंचाई, शिपिंग, जल संसाधन प्रबंधन, स्वास्थ्य, विमानन, परिवहन क्षेत्र, आपदा प्रबंधन, अपतटीय तेल प्रबंधन, सार्वजनिक सुरक्षा आदि जैसे मौसम और जलवायु से प्रभावित होने वाले संवेदनशील क्षेत्रों की जरूरतों को पूरा करेगा।
आईएमडी ने समय-समय पर तबाही लाने वाले मौसम का पता लगाने, निगरानी करने और समय पर प्रारंभिक चेतावनी देने के लिए नई तकनीकों और प्रौद्योगिकी को अपनाया है। अवलोकन नेटवर्क, संख्यात्मक मौसम पूर्वानुमान मॉडल और सुपरकंप्यूटर के उपयोग से मौसम की घटनाओं की निगरानी और पूर्वानुमान को बेहतर बनाने के लिए पहल और विकास किए गए हैं।
आईएमडी मौसमी से लेकर अब तक के पैमाने पर निर्बाध पूर्वानुमान प्रणाली का उपयोग करता है और मौसम सम्बंधी खतरों की निगरानी और पूर्वानुमान के लिए अच्छी तरह से परिभाषित मानक संचालन प्रक्रियाओं (एसओपी) को लागू करता है। आईएमडी आवश्यक तैयारियों और निवारक उपायों को बढ़ाने के लिए विभिन्न प्लेटफार्म/चैनल के माध्यम से आपदा प्रबंधन अधिकारियों और आम जनता के साथ सभी प्रकार के खराब मौसम की जानकारी और प्रारंभिक चेतावनियों को साझा करने के लिए अत्याधुनिक प्रसार प्रणाली का उपयोग करता है। इसमें सोशल मीडिया, कॉमन अलर्ट प्रोटोकॉल, मोबाइल ऐप, व्हाट्सएप और एपीआई शामिल हैं। नतीजतन, ग्रामीण और तटीय क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को समय पर सुरक्षित आश्रयों में पहुंचाया जाता है, जिससे अधिकतर लोगों की जान की सुरक्षा हो जाती है।
सभी आंकड़े, मौसम सम्बंधी चेतावनियां और जलवायु अनुमान नीति निर्माताओं, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए), राज्य आपदा प्रशासकों और प्रबंधकों तथा सभी हितधारकों के लिए उपलब्ध हैं, ताकि लचीले समाज के निर्माण में मदद मिल सके।
केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथा पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. जितेंद्र सिंह ने आज लोकसभा में एक लिखित उत्तर में यह जानकारी दी।
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