पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय
संसद प्रश्न:- ग्राउंड लेवल ओजोन से संबंधित जानकारियां
Posted On:
09 DEC 2024 8:55PM by PIB Delhi
राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक (एनएएक्यूएस), 2009 के अंतर्गत बारह (12) प्रदूषकों में से एक ओजोन (ओ3) के लिए परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा अधिसूचित किया गया है। ओजोन (ओ3) के लिए परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक औद्योगिक, आवासीय, ग्रामीण और पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र के लिए 8 घंटे की निगरानी मूल्य के लिए 100 µg/m3 और 1 घंटे की निगरानी मूल्य के लिए 180 µg/m3 के रूप में निर्धारित किया गया है। एनएएक्यूएस के अनुसार, परिवेशी वायु में ओजोन (ओ3) के मापन की विधि यूवी फोटोमेट्रिक, केमिलुमिनेसेंस और रासायनिक विधि है।
ओज़ोन एक द्वितीयक प्रदूषक है जो सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में वायुमंडलीय प्रतिक्रियाओं (क्षोभमंडल) के माध्यम से जमीनी स्तर पर बनता है और इसके लिए जिम्मेदार कारक उच्च तापमान और नाइट्रोजन के ऑक्साइड (एनओएक्स) और वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों (वीओसी) का उत्सर्जन है। एनओएक्स के प्रमुख स्रोतों में वाहन, बिजली संयंत्र और ईंधन/कचरे का जलना शामिल है और वीओसी वाहनों, पेट्रोल पम्पों, सॉल्वैंट्स के उपयोग और कचरे के जलने से उत्सर्जित होते हैं।
ओजोन के पूर्ववर्ती तत्वों, अर्थात एनओएक्स और वीओसी उत्सर्जन को निम्नलिखित तरीके से नियंत्रित किया जाता है:
- अप्रैल, 2020 से देशभर में बीएस VI अनुरूप वाहनों की शुरुआत से पूर्ववर्ती बीएस IV अनुरूप वाहनों की तुलना में एनओएक्स उत्सर्जन में कमी आई है, जिसमें दोपहिया वाहनों के मामले में 70-85 प्रतिशत की कमी, 4 पहिया वाहनों के मामले में 25प्रतिशत -68 प्रतिशत और भारी वाहनों के मामले में 87 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है।
- भारी वाहनों के नाइट्रोजन ऑक्साइड उत्सर्जन को कम करने के लिए देश में बीएस-IV से बीएस-VI ईंधन मानकों को अपनाया जाएगा ।
- सरकार, पीएम इलेक्ट्रिक ड्राइव रिवोल्यूशन इन इनोवेटिव व्हीकल एन्हांसमेंट (पीएम-ई ड्राइव) के तहत इलेक्ट्रिक मोबिलिटी को भी बढ़ावा दे रही है, जिसके परिणामस्वरूप शून्य वाहन उत्सर्जन होगा।
- मानव निर्मित फाइबर उद्योग, उर्वरक उद्योग, दवा उद्योग, पेंट उद्योग आदि क्षेत्रों के लिए एनओएक्स और वीओसी के लिए औद्योगिक उत्सर्जन मानकों को संशोधित /शुरू किया गया है।
- कोयला/लिग्नाइट आधारित ताप विद्युत संयंत्रों, औद्योगिक बॉयलरों, भट्टियों, सीमेंट संयंत्र (अपशिष्टों के सह-प्रसंस्करण के बिना) और स्टैंडअलोन क्लिंकर ग्राइंडिंग संयंत्रों के लिए भी एनओएक्स उत्सर्जन मानक निर्धारित किए गए हैं।
- माननीय एनजीटी और माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के अनुपालन में, दिल्ली-एनसीआर के सभी पेट्रोल पम्पों पर वाष्प रिकवरी सिस्टम (वीआरएस) स्थापित किया गया है। वीआरएस की स्थापना से पेट्रोलियम ईंधन भरने और उतारने के संचालन के दौरान बेंजीन और अन्य वीओसी उत्सर्जन को कम किया जा सकता है।
- गैसीय ईंधन (सीएनजी, एलपीजी आदि) तथा इथेनॉल सम्मिश्रण जैसे स्वच्छ/वैकल्पिक ईंधनों का प्रयोग होना चाहिए।
- सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देना, सड़कों में सुधार करना तथा सड़कों पर भीड़भाड़ कम करने के लिए अधिक पुलों का निर्माण करना।
- प्रदूषण नियंत्रण (पीयूसी) प्रमाणपत्र जारी करने की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करना।
- बायोमास और कचरा जलाने पर प्रतिबंध।
- ठोस अपशिष्ट, जैव-चिकित्सा अपशिष्ट और खतरनाक अपशिष्ट आदि के संबंध में अपशिष्ट प्रबंधन नियमों का कार्यान्वयन।
- ताप विद्युत संयंत्रों के लिए कड़े उत्सर्जन मानदंडों की अधिसूचना।
साथ ही, सरकार ने देशभर में वायु प्रदूषण के स्तर को कम करने के लिए राष्ट्रीय स्तर की रणनीति के रूप में 2019 में राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) शुरू किया है। सीपीसीबी ने 130 मिलियन से अधिक/गैर-प्राप्ति शहरों (पांच वर्षों से लगातार एनएएक्यूएस को पार करने वाले शहर) की पहचान की है। वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए इन सभी 130 गैर-प्राप्ति/मिलियन से अधिक शहरों में कार्यान्वयन के लिए शहर विशिष्ट स्वच्छ वायु कार्य योजनाएं तैयार और शुरू की गई हैं। ये शहर विशिष्ट स्वच्छ वायु कार्य योजनाएं शहर विशिष्ट वायु प्रदूषण स्रोतों जैसे मिट्टी और सड़क की धूल, वाहन, घरेलू ईंधन, एमएसडब्ल्यू जलाना, निर्माण सामग्री और उद्योगों को अल्पकालिक प्राथमिक कार्रवाई के साथ-साथ मध्यम से लंबी समय सीमा में लागू करने के लिए लक्षित करती हैं, जो परिवेशी वायु गुणवत्ता में सुधार करती हैं। एनसीएपी कार्य योजनाओं के तहत शहरी कार्य योजनाओं के लिए वार्षिक कार्ययोजना संबंधित शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबी) द्वारा प्रस्तुत की जानी चाहिए, जिसमें एनओएक्स उत्सर्जन को इस तरह से नियंत्रित करने के कार्य शामिल हैं :
- माल ढुलाई के लिए ऑफ-पीक यात्री यात्रा समय का उपयोग करना तथा दिन के समय शहरों में भारी वाहनों के प्रवेश को प्रतिबंधित करना।
- वाहनों में स्वच्छ ईंधन एवं ईंधन की गुणवत्ता का होना जरूरी है।
- सार्वजनिक परिवहन के लिए नई इलेक्ट्रिक बसें (चार्जिंग स्टेशन जैसी उचित बुनियादी सुविधाओं सहित) और सीएनजी बसें शुरू की जाएंगी, जिससे सड़कों पर निजी वाहनों की संख्या कम होगी, जिससे टेल-पाइप उत्सर्जन पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी।
- शहर में ऑटो गैस आपूर्ति के लिए सीएनजी अवसंरचना और सार्वजनिक परिवहन वाहनों को सीएनजी मोड में परिवर्तित करना।
- ई-वाहनों के लिए चार्जिंग अवसंरचना
- पुराने वाहनों को चरणबद्ध तरीके से हटाया जाएगा तथा वाहन स्क्रैपेज नीति लागू की जाएगी।
- उद्योगों द्वारा उत्सर्जन कम करने के लिए उद्योगों की निगरानी को तेज करना होगा।
- प्रदूषणकारी उद्योगों का स्थानांतरण।
- पेट कोक/लकड़ी/कोयला/फर्नेस तेल से सीएनजी/पीएनजी में रूपांतरण।
- नगरपालिका के ठोस अपशिष्टों को जलाने पर नियमित जांच एवं नियंत्रण।
वायु प्रदूषण सांस और उससे जुड़ी बीमारियों को प्रभावित करने वाले कारकों में से एक है। स्वास्थ्य पर पर्यावरण सहित कई अन्य कारकों का असर पड़ता है, जिसमें खान-पान की आदतें, व्यावसायिक आदतें, सामाजिक-आर्थिक स्थिति, चिकित्सा इतिहास, प्रतिरक्षा, आनुवंशिकता आदि शामिल हैं। सीपीसीबी ने ग्राउंड लेवल ओजोन के संपर्क में आने से होने वाली स्वास्थ्य से संबंधित बीमारियों के बारे में कोई सर्वेक्षण नहीं किया है। हालांकि, ओ3 के स्वास्थ्य प्रभाव इस प्रकार हैं:
- ओ3 के साँस लेने से सीने में दर्द, खांसी, मतली, गले में जलन और कंजेशन सहित कई प्रकार की स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
- ओ3 के संपर्क में आने से ब्रोंकाइटिस, हृदय रोग, वातस्फीति, अस्थमा की आशंका बढ़ जाती है तथा फेफड़ों की क्षमता कम हो जाती है।
- ओ3 प्रदूषण के बार-बार संपर्क में आने से फेफड़ों को स्थायी क्षति हो सकती है।
- यह लोगों को एलर्जी के प्रति अधिक संवेदनशील बनाता है।
सीपीसीबी, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों (एसपीसीबी), प्रदूषण नियंत्रण समितियों (पीसीसी) और राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (नीरी) के साथ मिलकर राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता निगरानी कार्यक्रम (एनएएमपी) के अंतर्गत ओजोन और अन्य प्रदूषकों की निगरानी करता है।
ओजोन क्षयकारी पदार्थों (ओडीएस) को नियंत्रित करने के लिए, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफएंडसीसी) ने ओजोन क्षयकारी पदार्थ (विनियमन और नियंत्रण) नियम, 2000 को अधिसूचित किया है, जो भारत में ओडीएस के उपयोग, आयात और निर्यात को नियंत्रित करता है।
केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री श्री कीर्ति वर्धन सिंह ने आज लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में यह जानकारी दी।
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