विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय
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डॉ. जितेंद्र सिंह ने पहली बार दवा प्रतिरोध से निपटने के लिए भारत के पहले स्वदेशी एंटीबायोटिक नेफिथ्रोमाइसिन को लॉन्च किया


नई एंटीबायोटिक दवा-प्रतिरोधी निमोनिया से निपटने के लिए केवल 3 खुराक के साथ 10 गुना प्रभावकारी है

Posted On: 20 NOV 2024 6:15PM by PIB Delhi

भारत के जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र के तहत महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने आज प्रतिरोधी संक्रमणों के लिए पहली स्वदेशी एंटीबायोटिक 'नाफिथ्रोमाइसिन' का औपचारिक रूप से शुभारंभ किया।


डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि 2014 के बाद जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सत्ता संभाली तब से हमारे शोधकर्ताओं को उनकी क्षमता का पता लगाने के लिए उचित प्रकार का सहयोग मिला। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के व्यक्तिगत हस्तक्षेप ने अब इस कार्य को और अधिक आसान बना दिया है।

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जैव प्रौद्योगिकी विभाग की इकाई 'जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद' (बीआईआरएसी) के सहयोग से एंटीबायोटिक 'नेफिथ्रोमाइसिन' को विकसित किया गया है। इसे फार्मा कंपनी 'वोलकार्ड' द्वारा 'मिकनाफ' के नाम से बाजार में उतारा गया है। यह देश का पहला स्वदेशी रूप से विकसित एंटीबायोटिक है, जिसका उद्देश्य रोगाणुरोधी प्रतिरोध (एएमआर) से निपटना है।

इस नवाचार को कम्युनिटी-एक्वायर्ड बैक्टीरियल निमोनिया (सीएबीपी) के इलाज के लिए डिजाइन किया गया है, जो दवा-प्रतिरोधी बैक्टीरिया के कारण होने वाली एक गंभीर बीमारी है, जो बच्चों और बुजुर्गों के साथ-साथ मधुमेह, कैंसर आदि के रोगियों सहित कमजोर लोगों को प्रभावित करती है।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने नेफिथ्रोमाइसिन के तीन दिवसीय उपचार को दवा-प्रतिरोधी निमोनिया से निपटने में एक गेम-चेंजर के रूप में वर्णित किया। उन्होंने कहा कि इस बीमारी की वजह से हर साल वैश्विक स्तर पर 20 लाख से अधिक लोगों की मौत होती है। भारत दुनिया के निमोनिया का 23% बोझ वहन करता है। मौजूदा उपचारों के साथ चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिसमें एजिथ्रोमाइसिन जैसी दवाओं के लिए व्यापक प्रतिरोध भी शामिल है। जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (बीआईआरएसी) के सहयोग से वॉकहार्ट द्वारा विकसित नया एंटीबायोटिक वर्तमान विकल्पों की तुलना में दस गुना अधिक प्रभावी है और रोगियों के लिए एक सुरक्षित, तेज और अधिक सहनीय समाधान प्रदान करता है।


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नेफिथ्रोमाइसिन का प्रभाव अलग है क्योंकि यह विशिष्ट और असामान्य रोगजनकों दोनों को लक्षित करते हुए शक्तिशाली समाधान प्रदान करती है। इस वर्ग में कोई नया एंटीबायोटिक तीन दशकों से अधिक समय से दुनिया भर में विकसित नहीं किया गया है। उल्लेखनीय रूप से यह एजिथ्रोमाइसिन की तुलना में दस गुना अधिक प्रभावी है और केवल तीन दिवसीय खुराक के साथ तुलनात्मक ढंग से बेहतर परिणाम देता है जैसा कि नैदानिक परीक्षणों (क्लिनिकल ट्रायल) में दिखा है। अपनी प्रभावकारिता से अलग नेफिथ्रोमाइसिन बेहतर सुरक्षा और सहनशीलता का दावा करता है। एंटीबायोटिक में न्यूनतम गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल दुष्प्रभाव होते हैं, किसी महत्वपूर्ण दवा से कोई पारस्परिक क्रिया नहीं होती है और यह भोजन से अप्रभावित रहता है, जिससे यह रोगियों के लिए एक बहुमुखी विकल्प बन जाता है।


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नेफिथ्रोमाइसिन 30 से अधिक वर्षों में विश्व स्तर पर विकसित होने वाले अपने वर्ग के पहले नए एंटीबायोटिक के रूप में एक ऐतिहासिक सफलता का प्रतीक है। यह महत्वपूर्ण मील का पत्थर ऐसे समय में आया है जब रोगाणुरोधी प्रतिरोध (एएमआर) एक बढ़ता हुआ वैश्विक स्वास्थ्य संकट है और कुछ नई दवाएं योजना में हैं, जो जल्द ही आएंगी। नेफिथ्रोमाइसिन का विकास भारत की वैज्ञानिक प्रगति का एक प्रमाण है, जो बहु-दवा-प्रतिरोधी रोगजनकों का मुकाबला करने के लिए एक बहुत आवश्यक समाधान प्रदान करता है। इसका अभिनव डिजाइन विशिष्ट और असामान्य दोनों को लक्षित करता है। साथ ही मौजूदा प्रतिरोध तंत्र को दूर करने की इसकी क्षमता, इसे दुनिया भर में अनगिनत जीवन बचाने की क्षमता के साथ एएमआर के खिलाफ लड़ाई में आशा की किरण के रूप में स्थापित करता है।


नेफिथ्रोमाइसिन का विकास 14 वर्षों के समर्पित अनुसंधान और 500 करोड़ रुपये के निवेश का परिणाम है। इसमें अमेरिका, यूरोप और भारत में नैदानिक परीक्षण किए गए हैं। जैव प्रौद्योगिकी उद्योग भागीदारी कार्यक्रम (बीआईपीपी) के तहत बीआईआरएसी द्वारा समर्थित यह पहल स्वास्थ्य सेवा नवाचार को आगे बढ़ाने में सार्वजनिक-निजी सहयोग की शक्ति को प्रदर्शित करती है। डॉ. जितेंद्र सिंह ने इस बात पर प्रकाश डाला कि दवा अब विनिर्माण और सार्वजनिक उपयोग के लिए केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) से अंतिम अनुमोदन की प्रतीक्षा कर रही है, जो एएमआर के खिलाफ भारत की लड़ाई में एक बड़ी छलांग है।


मंत्री ने एएमआर के महत्व को रेखांकित करते हुए इसे एक वैश्विक संकट बताया जो बीमारियों को बढ़ाता है और स्वास्थ्य देखभाल की लागत में भी इजाफा करता है। उन्होंने इस मुद्दे से निपटने में नवाचार और सहयोग की महत्वपूर्ण भूमिका की ओर इशारा करते हुए इस बात पर जोर दिया कि कोविड-19 महामारी ने जैव प्रौद्योगिकी और इसकी क्षमता के बारे में जन जागरूकता में काफी वृद्धि की है। डॉ. जितेंद्र सिंह ने वैज्ञानिक समुदाय से निदान, एएमआर निगरानी और नए एंटीबायोटिक अनुसंधान में आगे की प्रगति के लिए इस गति (मोमेंटम) का लाभ उठाने का भी आग्रह किया।

विश्व एएमआर जागरूकता सप्ताह रोगाणुरोधी प्रतिरोध की वैश्विक चुनौती पर प्रकाश डालता है, इसको लेकर डॉ. जितेंद्र सिंह ने इस खतरे का मुकाबला करने के लिए सरकार, दवा उद्योग और अनुसंधान संस्थानों के हितधारकों को सामूहिक रूप से काम करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि आज की उपलब्धि भारत को जैव प्रौद्योगिकी नवाचार में एक वैश्विक नेता के रूप में स्थापित करते हुए एएमआर का समाधान करने और सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार करने की हमारी प्रतिबद्धता की को उजागर करता है।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के बीच सहयोगात्मक प्रयासों की भी प्रशंसा की, जिन्होंने नेफिथ्रोमाइसिन के विकास को संभव बनाया। उन्होंने कहा कि यह साझेदारी मॉडल जो निजी क्षेत्र के नवाचार के साथ सरकारी समर्थन को जोड़ता है, जैव प्रौद्योगिकी और फार्मास्यूटिकल्स में भारत के नेतृत्व को स्थापित करने के लिए महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि नेफिथ्रोमाइसिन की सफलता स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों के लिए घरेलू समाधान विकसित करने की भारत की बढ़ती क्षमता का प्रमाण है।

मंत्री ने अनुसंधान और विकास विशेष रूप से एएमआर के क्षेत्र में निरंतर निवेश के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि नवाचार को बढ़ावा देने के लिए सरकार का सक्रिय दृष्टिकोण स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित करने के साथ-साथ वैश्विक एएमआर संकट से निपटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। डॉ. जितेंद्र सिंह ने अनुसंधान संस्थानों, दवा उद्योग और सरकारी निकायों के बीच निरंतर सहयोग की आवश्यकता पर बल दिया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि भारत दवा प्रतिरोधी संक्रमणों से निपटने के वैश्विक प्रयासों में सबसे आगे रहे।

अंत में डॉ. जितेंद्र सिंह ने एएमआर के खिलाफ लड़ाई में भारत के भविष्य के बारे में बेहतर काम करने उम्मीद जताई। यह उपलब्धि न केवल रोगाणुरोधी प्रतिरोध के खिलाफ हमारी लड़ाई में एक ऐतिहासिक कदम है बल्कि जीवन रक्षक दवाओं के विकास में भविष्य की सफलताओं का मार्ग भी प्रशस्त करती है। उन्होंने कहा कि हम जीवन को बेहतर बनाने और सभी के लिए एक स्वस्थ, अधिक सुदृढ़ भविष्य बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। नेफिथ्रोमाइसिन का सॉफ्ट लॉन्च हमारे समय के सबसे अधिक दबाव वाले स्वास्थ्य खतरों में से एक से निपटने में दुनिया का नेतृत्व करने की भारत की क्षमता का एक शक्तिशाली स्मरण पत्र के रूप में कार्य करता है।

इस कार्यक्रम में डीबीटी के सचिव और बीआईआरएसी के अध्यक्ष डॉ. राजेश एस. गोखले, वॉकहार्ट के अध्यक्ष डॉ. हाबिल खोराकीवाला, बीआईआरएसी के एमडी डॉ. जितेंद्र कुमार, जम्मू एम्स के अध्यक्ष डॉ. वाई. के. गुप्ता सहित वैज्ञानिक समुदाय के प्रमुख नेताओं ने भाग लिया। नेफिथ्रोमाइसिन का लॉन्च एएमआर से निपटने और वैश्विक स्वास्थ्य में सार्थक योगदान देने के भारत के दृढ़ संकल्प का संकेत देता है।

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एमजी/केसी/आरकेजे


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