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ग्रामीण भारत को सशक्त बनाने में नाबार्ड का ग्रामीण वित्तीय समावेशन सर्वेक्षण

Posted On: 10 OCT 2024 5:48PM by PIB Delhi

राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक नाबार्ड ने वर्ष 2021-22 के लिए देश भर में कराए गए दूसरे अखिल भारतीय ग्रामीण वित्तीय समावेशन सर्वेक्षण (एनएएफआईएस) के निष्कर्ष प्रकाशित किए हैं। इसके एक लाख ग्रामीण परिवारों के सर्वेक्षण के प्राथमिक आंकड़ों में कोविड उपरांत विभिन्न आर्थिक और वित्तीय संकेतक शामिल हैं। आर्थिक विकास में वित्तीय समावेशन की महत्वपूर्ण भूमिका मानते हुए नाबार्ड ने कृषि वर्ष (जुलाई-जून) 2016-17 में पहला सर्वेक्षण किया था जिसके परिणाम अगस्त 2018 में जारी हुए थे। इसके बाद अर्थव्यवस्था में आई कई चुनौतियों और कृषि क्षेत्र की सहायता तथा ग्रामीण सामाजिक-आर्थिक प्रगति को बढ़ावा देने की विभिन्न नीतियां लागू की गई हैं। एनएएफआईएस 2021-22 के परिणाम इसकी परख करने में सहायक हो सकते हैं कि 2016-17 के बाद से ग्रामीण आर्थिक और वित्तीय विकास संकेतकों में क्या सकारात्मक बदलाव हुए हैं। सर्वेक्षण में सभी 28 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर और लद्दाख शामिल रहे।

ग्रामीण आबादी को समृद्ध बनाने के प्रयास में : एनएएफआईएस 2021-22 से प्राप्त जानकारी

  • औसत मासिक आय में वृद्धि : परिवारों की औसत मासिक आय में पांच वर्ष की अवधि में 57.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई और यह 2016-17 के 8,059 रुपये से बढ़कर 2021-22 में 12,698 रुपये हो गई। यह 9.5 प्रतिशत की मामूली चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर दर्शाती है। वित्तीय वर्ष के आधार पर इस अवधि में वार्षिक औसत सकल घरेलु उत्पाद वृद्धि 9 प्रतिशत रही। सभी परिवारों के कुल आकलन के अनुसार औसत मासिक आय 12,698 रुपये रही। इसमें कृषि परिवारों की कमाई थोड़ी बेहतर 13,661 रुपये जबकि गैर-कृषि परिवारों की 11,438 रुपये रही। सरकारी या निजी क्षेत्र में वेतन आधारित रोजगार सभी परिवारों के लिए आय का सबसे बड़ा स्रोत रहा जबकि कृषि परिवारों के लिए खेती ही आय का मुख्य स्रोत थी जो उनकी मासिक आय का लगभग एक तिहाई हिस्सा थी उसके बाद आय में सरकारी या निजी सेवाओं का एक-चौथाई हिस्सा, श्रम से प्राप्त मज़दूरी का हिस्सा 16 प्रतिशत, और अन्य उद्यम से प्राप्त आय का 15 प्रतिशत योगदान रहा। गैर-कृषि परिवारों के कुल घरेलू आय में 57 प्रतिशत योगदान सरकारी/निजी सेवा का रहा। इसके बाद दूसरे स्थान पर लगभग 26 प्रतिशत श्रम मज़दूरी से प्राप्त आय रही।  

 

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  • औसत मासिक व्यय में वृद्धि : ग्रामीण परिवारों का औसत मासिक व्यय 2016-17 के 6,646 रुपये से बढ़कर 2021-22 में 11,262 रुपये हो गया । कृषि परिवारों ने गैर-कृषि परिवारों के 10,675 रुपये की तुलना में अपेक्षाकृत अधिक 11,710 रुपये का व्यय किया। गोवा और जम्मू -कश्मीर जैसे राज्य और केन्द्र शासित प्रदेश में मासिक घरेलू व्यय 17,000 रुपये से अधिक रहा। कुल मिलाकर कृषि परिवारों ने गैर-कृषि परिवारों की तुलना में उच्च आय और व्यय किया।
  • बचत में वृद्धि : परिवारों की वार्षिक औसत वित्तीय बचत 2016-17 के 9,104 रुपये से बढ़कर 2021-22 में 13,209 रुपये हो गई। 2016-17 में 50.6 प्रतिशत की तुलना में 2021-22 में परिवारों ने 66 प्रतिशत अधिक धन की बचत की। कृषि परिवारों ने गैर-कृषि परिवारों से बेहतर बचत की। इस अवधि में कृषि परिवारों ने 71 प्रतिशत बचत जबकि गैर-कृषि परिवारों ने 58 प्रतिशत बचत की। 11 राज्यों में 70 प्रतिशत या उससे अधिक परिवारों ने बचत की। इनमें उत्तराखंड (93 प्रतिशत), उत्तर प्रदेश (84 प्रतिशत), और झारखंड (83 प्रतिशत) सबसे अग्रणी रहे। इसके विपरीत गोवा (29 प्रतिशत), केरल (35 प्रतिशत), मिजोरम (35 प्रतिशत), गुजरात (37 प्रतिशत), महाराष्ट्र (40 प्रतिशत), और त्रिपुरा (46 प्रतिशत) जैसे राज्यों में आधे से भी कम परिवारों ने बचत की जानकारी दी।
  • किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) : ग्रामीण कृषि क्षेत्रों में वित्तीय समावेशन में किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) महत्वपूर्ण साधन के रूप में उभरा है। पांच वर्षों में इसके प्रसार में पर्याप्त वृद्धि रही। कुल 44 प्रतिशत कृषि परिवारों ने वैध किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) होने की बात कही। 0.4 हेक्टेयर से अधिक भूमि वाले या पिछले वर्ष बैंकों से कृषि ऋण प्राप्त करने वाले लोगों में से 77 प्रतिशत ने अपने पास वैध किसान क्रेडिट कार्ड होने की जानकारी दी।
  • बीमा कवरेज : बीमा कवरेज के दायरे में भी उल्लेखनीय प्रगति रही। किसी बीमा कवर के दायरे में कम से कम एक सदस्य के परिवारों का प्रतिशत 2016-17 के 25.5 प्रतिशत से बढ़कर 2021-22 में 80.3 प्रतिशत हो गया। हर पांच में से चार परिवारों में कम से कम एक सदस्य बीमा कवरेज में था। इसमें कृषि परिवारों ने गैर-कृषि परिवारों की तुलना में लगभग 13 प्रतिशत बेहतर प्रदर्शन किया। विभिन्न बीमाओं में वाहन बीमा सबसे अधिक पाया गया। 55 प्रतिशत परिवार इसमें कवर थे। जीवन बीमा का दायरा भी 24 प्रतिशत परिवारों तक विस्तारित हुआ। इसमें भी गैर-कृषि परिवारों (20%) की तुलना में कृषि परिवारों (26 प्रतिशत) का प्रदर्शन बेहतर रहा।

 

  • पेंशन कवरेज : पेंशन वित्तीय सहायता प्रदान कर पेंशन भोगियों के जीवन की गुणवत्ता बढ़ाती है। इससे दूसरों पर उनकी निर्भरता कम होती है और उनका आत्म-सम्मान और आत्मविश्वास बढ़ता है। वृद्धावस्था, परिवार, सेवानिवृत्ति या विकलांगता जैसे किसी भी प्रकार का पेंशन प्राप्त करने वाले कम से कम एक सदस्य वाले परिवारों का प्रतिशत 2016-17 के 18.9 प्रतिशत से 2021-22 में बढ़कर 23.5 प्रतिशत हो गया। 60 वर्ष से अधिक आयु के कम से कम एक सदस्य वाले 54 प्रतिशत परिवारों ने इसे प्राप्त करने की जानकारी दी। यह समाज के बुजुर्ग सदस्यों की सहायता में पेंशन के महत्व को उजागर करता है।

 

  • वित्तीय साक्षरता: वित्तीय साक्षरता में भी 17 प्रतिशत सुधार रहा। यह 2016-17 के 33.9 प्रतिशत से 2021-22 में बढ़कर 51.3 प्रतिशत हो गया। प्रभावी धन प्रबंधन करना, सूचित वित्तीय निर्णय लेने, खर्चों पर नज़र रखने और समय पर बिलों का भुगतान करने करने वाले व्यक्तियों का अनुपात भी इस अवधि में 56.4 प्रतिशत से बढ़कर 72.8 प्रतिशत हो गया। वित्तीय ज्ञान पर आधारित मूल्यांकन में ग्रामीण क्षेत्रों के 58 प्रतिशत और अर्ध-शहरी क्षेत्रों के 66 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने सभी प्रश्नों के सही उत्तर दिए।

निष्कर्ष

एनएएफआईएस 2021-22 के परिणाम 2016-17 के पिछले सर्वेक्षण के बाद से ग्रामीण वित्तीय समावेशन में हुई उल्लेखनीय प्रगति दर्शाते हैं। नए सर्वेक्षण के अनुसार ग्रामीण परिवारों की आय, बचत, बीमा कवरेज और वित्तीय साक्षरता में उल्लेखनीय सुधार हुआ। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि, प्रधानमंत्री किसान मानधन योजना, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना(एमजीएनआरईजीएस), प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना- (पीएमएवाई-जी), प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई), दीनदयाल अंत्योदय योजना- राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन(डीएवाई एनआरएलएम) दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना( डीडीयू-जीकेवाई)जैसी सरकारी कल्याणकारी योजनाओं ने ग्रामीण आबादी के जीवन को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। वित्तीय सेवाओं की पहुंच के विस्तार के साथ ही इन परिवारों के आर्थिक सशक्तिकरण की उज्ज्वल संभावनाएं दिखती हैं। यह सर्वेक्षण ग्रामीण विकास की चलाई जा रही योजनाओं और निवेश का महत्व बताता है जिससे भारत की ग्रामीण आबादी को अधिक समृद्ध बनाने और आर्थिक रूप से उनके सुरक्षित भविष्य का मार्ग प्रशस्त करने में सहायक होगा।

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