उप राष्ट्रपति सचिवालय
JRD स्टेट यूनिवर्सिटी, चित्रकूट में आयोजित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी 'आधुनिक जीवन में ऋषि परंपरा' विषय पर उपराष्ट्रपति के भाषण का मूल पाठ
Posted On:
07 SEP 2024 6:21PM by PIB Delhi
जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य जी के चरणों में नमन करने के उद्देश्य से, जब पहली बार आपका आशीर्वचन मिला हम दोनों को तो मुझे लग गया की मैं इनका एकलव्य हूं, आज मैं इनका शिष्य हूं। भारत ऋषि-मुनियों का देश रहा है। ऋषि परंपरा हमारे खून में है, पर आज इन सब का प्रतीक हमारे समक्ष है जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी के रूप में। देश ने आपको पद्म विभूषण से सुशोभित किया, पर आपका व्यक्तित्व इतना बड़ा है कि कोई भी अलंकरण उसमें कुछ जोड़ नहीं सकता।
आज गणेश चतुर्थी के पावन त्यौहार पर ऋषि परंपरा को समर्पित इस संगोष्ठी का शुभारंभ हो रहा है, और इससे बेहतर कुछ नहीं हो सकता। यह सब कुछ जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य जी की उपस्थिति में हो रहा है। आपकी उपस्थिति अपने आप में ही एक बहुत बड़ा संदेश है, हम सब लोगों के लिए मार्गदर्शन है। कल ऋषि पंचमी का त्यौहार है, जो हमारे सप्त-ऋषियों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने का दिन है। मैंने तो इसकी शुरुआत आज ही कर दी है, गुरुजी के चरणों में आशीर्वाद लेकर। भारत को और दुनिया को ऋषि परंपरा की आवश्यकता आज से ज्यादा कभी किसी युग में नहीं रही। चारों तरफ अशांति है, द्वेष्ता है, संकट है व्यक्ति, व्यक्ति के हित को नजरअंदाज करता है।
आपका पूरा जीवन, जीवन का समर्पण, जीवन का दर्शन एकग्रता से एक ही जगह केंद्रित रहा है। और यह खुद को दृष्टिविहीन नहीं मानते। कैसी विडंबना है कि यह सोच भी कैसे आ सकता है हमारे दिल में, जो हम सभी को ज्ञान देते हैं, जिनका प्रकाश लेने के लिए हम सब लालायित है, वह जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य जी दृष्टिहीन कैसे हो सकते हैं
मेरे उत्तर प्रदेश के कार्यक्रम में इस कार्यक्रम को मेरी धर्मपत्नी के विशेष अनुरोध पर इसे जोड़ा गया है की हम दोनों का मानना है कि हम आकर आपको आमंत्रित करें क्योंकि आजादी के बाद पहली बार उपराष्ट्रपति भवन बना है और वहां आपका पदार्पण होना अति आवश्यक है। पर हमारी भावना का अब तक आंशिक अनुमोदन हुआ है। आपका वहां आना नहीं है आपका वहा रहना है कुछ दिन।
दुनिया में कहीं भी चले जाओ, बड़े-बड़े दुनिया के लोगों ने , जब अशांति महसूस कर रहे थे, पथ से भटक गए, अंधकार दिखाई दिया, तो उनका रुख भारत की तरफ हुआ। हाल के कालखंड में भी, बड़ा नाम कमाने वाले तकनीकी युग में, उन लोगों को भी मार्क दर्शन और रोशनी इस देश में मिली। इसलिए हम कहते हैं, कि हमारी ऋषि परंपरा की वजह से ही आज, भारत जल में, थल में, आकाश में और अंतरिक्ष में, बहुत बड़ी छलांग लगा रहा है।
ऋषि परंपरा का मूल मंत्र है कि हम वसुधैव कुटुंबकम के सिद्धांत में विश्वास रखते हैं। पूरे विश्व ने भारत का लोहा माना जब G20 में हमारा motto था One Earth One Family One Future. हमारे ओजस्वी प्रधानमंत्री जी ने जब विश्व कूटनीति को दो सिद्धांत दिए। उन सिद्धांतों के मूल में ऋषि परंपरा है, पहला, भारत ने कभी expansion में विश्वास नहीं किया। दूसरे की ज़मीन को नहीं देखा। हजारों साल की संस्कृति और इतिहास इस बात को साबित करता है। दूसरा, किसी भी परिस्थिति में, किसी भी संकट का, किसी भी दुर्घटना का, किसी भी अंतरराष्ट्रीय कलह का समाधान युद्ध नहीं हो सकता। समाधान का एक ही रास्ता है, Dialogue and diplomacy. यह प्रधानमंत्री जी ने कहा था। यह हमारे लिए नई बात नहीं है। यह हमारी सांस्कृतिक धरोहर है।
जहां आपकी बात है, मैं तो आश्चर्यचकित हो गया क्या स्मरण शक्ति कितना बड़ा अध्ययन है जब पहली बार मैंने और मेरी धर्मपत्नी ने आपका आशीर्वाद प्राप्त किया, और धर्मपत्नी का नाम बताया डॉ. सुदेश धनखड़, दो चौपाइयां सुना दीं। एक माइक्रो सेकंड भी नहीं लगा। यह बताता है कि आज हमारे बीच ऋषि पुरुष विद्वान है उपस्थित ही हमारे लिए नया पथ दिखाने लायक है।
मैं यह कहना चाहता हूं कि बहुत लोग कई बार यह समझ नहीं पाते है वो ऐसे रास्ते पर चले जाते है की धर्म भूल जाते हैं, राष्ट्र धर्म को भूल जाते हैं, निजी स्वार्थ को ऊपर कर लेते हैं, राजनीति स्वार्थ में अंधाधुंध कार्य करते हैं। ऋषि परंपरा कभी इसकी इजाजत नहीं देती। अपनी हजारों साल की पृस्ठभूमि में देखिये किसी का भी शासन हो कोई भी शासन व्यवस्था हो ऋषि के मुख वचन से जो निकल गया वह हमेशा निर्णायक रहा है, राजा विवश रहा है उसकी हमेशा अनुपालन हुई है। गत दशक के अंदर ऋषि परंपरा का पूरा सम्मान हो रहा है।
राष्ट्रपति भवन के लिए वह क्या दिन होगा जब हम थे और आपको पद्म विभूषण से अलंकृत किया गया। यह उसी परंपरा की दिशा में एक छोटा कदम था।
चारों तरफ नजर फैलाइए, क्या कोई देश हम जैसा है? क्या कोई देश दूर से भी दिखता है जो हमारी तरह सांस्कृतिक विरासत का धनी हो? 5000 साल की संस्कृति आज भी जीवित है, जिवंत है। मेरी बात को आप लिख लीजिए, आने वाले हर पल-पल के अंदर हम इस संस्कृति को आगे बढ़ाते रहेंगे। यह हमारा जीवन दर्शन होगा, हमारे जीवन के अस्तित्व का एक आधार रहेगा।
Let me tell you friends the world faces today existential challenges and याद रखिए हमारे पास इस धरती के अलावा कोई दूसरी जगह रहने के लिए नहीं है। We can meet those challenges only by subscribing to the principles of Rishi Parampara. Rishi Parampara का मूल सिद्धांत क्या है? The pristine sublimity of Rishi Parampara is to make sacrifices. You will find happiness and satisfaction; your mind, heart, and soul will be ignited when you serve humanity. And for that, friends, you will have to give up reckless pursuit of materialism—reckless pursuit to an extent की संबंधों का मतलब नहीं है, दोस्ती का मतलब नहीं, समाज का मतलब नहीं, देश का मतलब नहीं सिर्फ खुद के हित का मतलब this is antithetical to Rishi parampara the nectar of receipt parampara the essence of Rishi parampara is take all long with you.
श्री रामभद्राचार्य जी ने अपना पूरा जीवन इसी में लगाया है। आप दीर्घायु हों, स्वस्थ रहें, आप हम सबका मार्गदर्शन करते रहें। हम ईश्वर से यही मांग कर सकते हैं कि हमारे ईश्वर को ईश्वरीय उपस्थिति में हमारे समक्ष जितना ज्यादा रहने को मिलेगा वह हमारे लिए सार्थक होगा।
श्री रामभद्राचार्य जी एकलव्य, आज उनका शिष्य बनकर जा रहा है।
नमस्कार!
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