पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय
केंद्र और संबंधित राज्य/केंद्रशासित प्रदेश की सरकारों के बीच लागत साझाकरण के आधार पर देश में आर्द्रभूमि के संरक्षण और प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय जलीय इकोसिस्टम प्रणाली संरक्षण योजना (एनपीसीए) कार्यान्वित की जा रही है
Posted On:
11 DEC 2023 5:27PM by PIB Delhi
केंद्र और राज्य सरकारें आर्द्रभूमि (झीलों सहित) की सुरक्षा, संरक्षण और नवीनीकरण के लिए हर संभव कदम उठाती हैं। वहीं, विकासात्मक और मानवजनित गतिविधियों से उत्पन्न समस्याएं आर्द्रभूमि को प्रभावित करते हैं।
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) ने पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम- 1986 के तहत आर्द्रभूमि (संरक्षण और प्रबंधन) नियम- 2017 को अधिसूचित किया है। ये नियम अन्य बातों के साथ किसी भी तरह के अतिक्रमण, ठोस अपशिष्ट डंपिंग, उद्योगों, शहरों, कस्बों, गांवों और अन्य मानव बस्तियों से अशोधित व गंदगी की निकासी और इन नियमों को लागू किए जाने की तारीख से परिकलित पिछले 10 वर्षों में औसत बाढ़ स्तर से 50 मीटर के भीतर स्थित नांव घाटों को छोड़कर किसी भी तरह के स्थायी प्रकृति के निर्माण कार्यों सहित गैर-आर्द्रभूमि उपयोगों के लिए परिवर्तित करने पर रोक लगाते हैं। इसके अलावा इन नियमों के तहत राज्य/केंद्रशासित प्रदेश आर्द्रभूमि प्राधिकरण का गठन किया गया है, जो आर्द्रभूमियों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए जिम्मेदार हैं।
वर्तमान में मंत्रालय, केंद्र सरकार और संबंधित राज्य/केंद्रशासित प्रदेश सरकारों के बीच लागत साझाकरण के आधार पर देश में आर्द्रभूमियों के संरक्षण और प्रबंधन के लिए एक केंद्रीय प्रायोजित योजना- राष्ट्रीय जलीय इकोसिस्टम प्रणाली संरक्षण योजना (एनपीसीए) कार्यान्वित कर रहा है। इस योजना में अपशिष्ट जल के अवरोधन, मोड़ और उपचार जैसी विभिन्न गतिविधियां शामिल हैं।
यह राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों और स्थानीय निकायों की जिम्मेदारी है कि वे आर्द्रभूमि में प्रदूषण को रोकने और नियंत्रित करने के लिए सीवेज व औद्योगिक अपशिष्टों को निर्धारित मानदंडों के अनुरूप जरूरी उपचार सुनिश्चित करें। इसके अलावा ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम- 2016 देश में ठोस अपशिष्ट के प्रबंधन के लिए वैधानिक ढांचा प्रदान करता है। इन नियमों के अनुसार स्थानीय अधिकारी और ग्राम पंचायतें ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के लिए जिम्मेदार हैं। इसके अलावा अपशिष्ट उत्पन्नकर्ता अपने द्वारा उत्पन्न कचरे को तीन अलग-अलग रूपों में यानी जैव-निम्नीकरणीय, अजैविक निम्नीकरणीय और घरेलू खतरनाक कचरे को उपयुक्त डिब्बों में अलग-अलग करने के साथ संग्रहित करेगा और विभिन्न निर्देशों या स्थानीय अधिकारियों द्वारा समय-समय पर जारी अधिसूचनाओं के अनुरूप अलग किए गए अपशिष्ट को अधिकृत कचरा इकट्ठा करने वालों या अपशिष्ट संग्रहणकर्ताओं को सौंप देगा। इसके अलावा नियम के अनुसार कोई भी कचरा उत्पन्नकर्ता अपने द्वारा उत्पन्न ठोस कचरे को अपने परिसर के बाहर सड़कों, खुले सार्वजनिक स्थानों पर या नाली या जल निकायों में नहीं फेंकेगा, न जलाएगा और न ही जमीन के भीतर दफन नहीं करेगा।
यह जानकारी केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री श्री अश्विनी कुमार चौबे ने आज लोकसभा में एक लिखित जवाब में दी।
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एमजी/एआर/एचकेपी
(Release ID: 1985293)