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टैगोर की कविता के रहस्यमय क्षेत्र को एक श्रद्धांजलि, 'रबिंद्र काव्य रहस्य' का उद्देश्य टैगोर को विरोधी के रूप में चित्रित करने की कोशिशों को विफल करना है: निर्माता हिमांशु धानुका

सायंतन घोषाल द्वारा निर्देशित बांग्ला फिल्म 'रबिंद्र काव्या रहस्य' का भारतीय पैनोरमा खंड के अंतर्गत आज 54वें भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (इफ्फी) में प्रीमियर किया गया। यह फिल्म दस अन्य उल्लेखनीय फिल्मों के साथ इफ्फी में प्रतिष्ठित आईसीएफटी - यूनेस्को गांधी पदक के लिए प्रतिस्पर्धा कर रही है।

मीडिया प्रतिनिधियों के साथ बातचीत करते हुए, निर्देशक घोषाल ने इफ्फी में भारतीय पैनोरमा के अंतर्गत सम्मानित गांधी पदक के लिए फिल्म के नामांकन पर अपनी खुशी व्यक्त की। फिल्म के बारे में बात करते हुए, श्री घोषाल ने इसके जटिल कथानक में अपनी अंतर्दृष्टि साझा की, इसे रहस्यमय तत्वों के साथ एक रोमांच से भरी गाथा के रूप में वर्णित किया।

फिल्म के बारे में बात करते हुए, निर्माता हिमांशु धानुका ने कहा कि फिल्म में नायक प्रियांशु चटर्जी श्री टैगोर के बहुमुखी व्यक्तित्व का प्रतिनिधित्व कते हैं, जो समकालीन युग में एक हत्या के रहस्य को सुलझाने की कोशिश करते हैं, जो दो अलग-अलग समय-सीमाओं में बुनी हुई कहानी को उजागर करता है। श्री धनुका ने कहा कि यह फिल्म रबींद्रनाथ टैगोर की कविता के रहस्यमय क्षेत्र की एक गाथा है, जो मानवीय भावनाओं और पहचान की जटिलताओं की खोज करती है।

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श्री धानुका ने यह भी कहा कि एक मनोरम कथा में दो समय-सीमाओं को जोड़ने वाली यह फिल्म रबींद्रनाथ टैगोर के शाश्वत छंदों की तरह लोगों के दिल और दिमाग पर एक अमिट छाप छोड़ेगी।

उन्होंने कहा कि फिल्म अगले वर्ष की शुरुआत में पश्चिम बंगाल और देश भर के सिनेमाघरों में दर्शकों को लुभाने के लिए रिलीज की जाएगी।

श्री धानुका ने कहा कि 'रबिंद्र काव्य रहस्य' उस युग के गुमनाम नायकों को समर्पित है और इसका उद्देश्य टैगोर को विरोधी के रूप में चित्रित करने की कोशिशों के पीछे की सच्चाई को उजागर करना है।

फिल्म सारांश :

रबींद्रनाथ टैगोर की साहित्यिक विरासत की काव्यात्मक चित्रपत्र के खिलाफ स्थापित, 'रबिंन्द्र काव्य रहस्य' एक ऐसी कथा का अनावरण करती है जो समय और भावनाओं की सीमाओं से परे है। यह फिल्म एक मर्डर मिस्ट्री है जो दो समय-सीमाओं में तैयार हुई है - एक 100 वर्ष पहले और दूसरी वर्तमान समय में। एक सदी पहले, कवि एकलव्य सेन अपने साथियों के धोखे का शिकार हुए, जिन्होंने धुर्तता और बेशर्मी के साथ उनकी काव्य रचनाएं चोरी की। प्रतिशोध लेने के लिए, एकलव्य ने उनके मौत की साजिश रची। समय चक्र की एक दौड़ में, कवि और जासूस अभिक बोस ने रबींद्र संगीत गायक हिया सेन के साथ मिलकर एक सदी पुराने रहस्य को सुलझाने की कोशिश करते हैं, जो एक प्रतिशोधी कवि के संदेश से उत्पन्न होता है। जैसे ही वे रबींद्रनाथ टैगोर के जीवन को प्रतिध्वनित करने वाली हत्याओं के भंवर में उतरते हैं, वे छिपी हुई कलाकृतियों, भारत की सांस्कृतिक विरासत को कमजोर करने की एक नापाक साजिश और एक सच्चाई का पता लगाते हैं, जो इतिहास को नया रूप दे सकता है। यह कहानी बंगाल के सुरम्य परिदृश्यों में उजागर होती है, जहां टैगोर की विचारोत्तेजक कविताओं में बुने गए विषयगत धागों को प्रतिध्वनित करते हुए अलग-अलग जीवन मिलते हैं। प्राकृतिक सुंदरता और क्षेत्र के रहस्यमय आकर्षण के बीच, फिल्म मानवीय संबंधों, आकांक्षाओं और आंतरिक सत्य की खोज की पेचीदगियों पर प्रकाश डालती है।

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