नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय

सतत विकास लक्ष्य-7 में उल्लिखित 2030 तक सार्वभौमिक ऊर्जा पहुंच प्राप्त करने के लिए सौर मिनी-ग्रिड को लेकर प्रयासों को तेज करने की जरूरत है


जी20 ऊर्जा रूपांतरण कार्य समूह की चौथी बैठक के संक्षिप्त कार्यक्रम में सार्वभौमिक ऊर्जा पहुंच के लिए सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने का रोडमैप जारी किया गया

Posted On: 20 JUL 2023 7:55PM by PIB Delhi

गोवा में आज ऊर्जा रूपांतरण कार्य समूह की चौथी बैठक के एक संक्षिप्त कार्यक्रम के दौरान नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआई) ने अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन के सहयोग से सार्वभौमिक ऊर्जा पहुंच के लिए सौर ऊर्जा का एक रोडमैप जारी किया। इस कार्यक्रम में एक कार्यशाला और पैनल चर्चा भी आयोजित की गई, जिनमें ऊर्जा पहुंच के मुद्दों व समाधानों पर विचार-विमर्श किया गया।

इस कार्यशाला और पैनल चर्चा को आप यहां देख सकते हैं।

"ऊर्जा रूपांतरण में सौर ऊर्जा पसंदीदा तकनीक के रूप में उभरी है"

 

इस कार्यशाला को नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय में सचिव श्री भूपिंदर सिंह भल्ला ने संबोधित किया। उन्होंने कहा, “सार्वभौमिक ऊर्जा पहुंच प्रदान करने की चुनौती, अन्य वैश्विक ऊर्जा रूपांतरण मुद्दों को प्रभावित करती है, इसलिए जब तक हम सभी को विश्वसनीय, टिकाऊ और सस्ती ऊर्जा पहुंच प्रदान करने की दिशा में त्वरित उन्नति नहीं करते, अन्य क्षेत्रों में हमारी प्रगति बाधित रहेगी। भारत ने स्वच्छ ऊर्जा की दिशा में रूपांतरण के एक हिस्से के तहत महत्वाकांक्षी प्रतिबद्धताएं व्यक्त की हैं। हम 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन-आधारित ऊर्जा संसाधनों से कुल 50 फीसदी विद्युत ऊर्जा स्थापित क्षमता प्राप्त करने की योजना बना रहे हैं। हालांकि, नवीकरणीय तकनीकों की एक व्यापक विविधता उपलब्ध है और हर एक के अपने अनोखे लाभ हैं, विशेष रूप से सौर ऊर्जा एक पसंदीदा तकनीक के रूप में उभरी है, जो ऊर्जा पहुंच, ऊर्जा सुरक्षा और ऊर्जा रूपांतरण को आगे बढ़ाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। 2023 में भारत की जी20 अध्यक्षता के तहत तैयार 'सार्वभौमिक ऊर्जा पहुंच के लिए सौर ऊर्जा का रोडमैप' पर जारी इस रिपोर्ट के माध्यम से हमारा लक्ष्य यह प्रदर्शित करना है कि कैसे सौर ऊर्जा अपने अलग-अलग रूपों में पूरी दुनिया के देशों में बिजली आपूर्ति और सामाजिक-आर्थिक लाभ प्रदान करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।”

       

 

" विद्युतीकरण दृष्टिकोण ऊर्जा पहुंच चुनौतियों का समाधान करने के लिए सौर ऊर्जा पर केंद्रित है"

 

अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन के महानिदेशक डॉ. अजय माथुर ने कहा, “अभी भी वैश्विक आबादी का 9 फीसदी हिस्सा बिजली की पहुंच से वंचित है। अगर मौजूदा विकास दर जारी रहती है, तो 2030 तक लगभग 66 करोड़ लोग, जो वैश्विक आबादी का 8 फीसदी हैं, बिजली की सुविधा के बिना होंगे। इसके अतिरिक्त 2030 तक 190 करोड़ से अधिक लोगों को स्वच्छ तरीके से खाना पकाने की सुविधा की जरूरत होगी। उप-सहारा अफ्रीका और ग्रामीण क्षेत्रों को ऊर्जा पहुंच की सबसे गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। बैटरी भंडारण के साथ संयुक्त सौर ऊर्जा विद्युतीकरण के लिए वांछित विकल्प के रूप में उभर रही है, विशेषकर उन जगहों पर जो ग्रिड से कुछ दूरी पर स्थित हैं। यह तकनीकी, वित्तीय और सामाजिक लाभ प्रदान करता है। विभिन्न परिस्थितियों में ऊर्जा पहुंच चुनौतियों का समाधान करने के लिए सौर ऊर्जा पर केंद्रित विद्युतीकरण दृष्टिकोण का एक समुच्चय तैनात किया जा सकता है।”

 

 

"फीड-इन टैरिफ और टैरिफ पुनर्गठन के माध्यम से विकेंद्रीकृत सौर मिनी- ग्रिड की सहायता की जा सकती है"

 

गोवा सरकार के मुख्य सचिव श्री पुनीत कुमार गोयल ने कहा, “परिवहन खर्च की वजह से ईंधन की अधिक लागत के कारण विशेषरूप से सुदूर क्षेत्रों या द्वीपों में डीजल जनरेटर के उपयोग के चलते बिजली की लागत 36 रुपये प्रति यूनिट तक बढ़ जाती है। सौर ऊर्जा प्राकृतिक आपदाओं के दौरान भी ऐसे क्षेत्रों में बिजली आपूर्ति करने में सक्षम रही है और साथ ही इसकी लागत में भी उल्लेखनीय कमी देखी गई है। भारत ने विकेंद्रीकृत सौर ऊर्जा के लिए महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किए हैं और ग्रिड से जुड़ी विकेंद्रीकृत सौर क्षमता के लिए फीड-इन टैरिफ व टैरिफ पुनर्गठन के उपयोग के जरिए उनकी तैनाती में सहायता की जा सकती है। इसके अतिरिक्त बड़े पैमाने पर खरीदारी के चलते बैटरी की लागत में कमी आने की उम्मीद है, जिससे सौर मिनी-ग्रिड के विकास को और अधिक सहायता मिलेगी। ऐसे मिनी-ग्रिड पवन या बायोमास ऊर्जा के साथ सौर संकरण के जरिए बेहतर विश्वसनीयता और बिजली उपकरण की कम लागत भी देखी जा सकती है। हालांकि, बड़े पैमाने पर उपकरण निर्माण, ऑन-ग्राउंड कार्यान्वयन व परिचालन और रखरखाव की क्षमता के साथ-साथ बाधाएं बनी हुई हैं, जिन्हें जरूर संबोधित किया जाना चाहिए।”

 

 

"सौर सुदूर और सबसे वंचित आबादी की ऊर्जा जरूरतों को पूरा कर सकता है"

 

सभी के लिए सतत ऊर्जा (एसईफोरऑल) के लिए संयुक्त राष्ट्र महासचिव की सीईओ व विशेष प्रतिनिधि और यूएन एनर्जी की सह-अध्यक्ष श्रीमती डेमिलोला ओगुनबियि ने कहा, “सौर ऊर्जा अफ्रीका और भारत, दोनों के लिए विकासात्मक लाभ प्राप्त करने को लेकर वास्तविक दक्षिण-दक्षिण सहयोग का मार्ग प्रशस्त कर सकती है। 2027 तक सौर ऊर्जा की कुल क्षमता लगभग 2050 गीगावाट तक पहुंचने की उम्मीद है। इसके अलावा सौर ऊर्जा सुदूर और सबसे वंचित आबादी की ऊर्जा जरूरतों को पूरा कर सकती है और सबसे दूरस्थ स्थान तक ऊर्जा की आपूर्ति कर सकती है। हालांकि, प्रभाव की महत्वपूर्ण संभावनाओं वाले दो प्रमुख सक्षम क्षेत्र बने हुए हैं, जिन पर ध्यान दिया जाना बाकी है। सबसे पहले विभिन्न देशों में व्यापक और न्यायसंगत पैमाने पर निवेश की जरूरत है। दूसरे, ऐसी सक्षम नीतियों और विनियमों की कमी को दूर करने की आवश्यकता है, जो सार्वभौमिक ऊर्जा पहुंच के लिए सौर ऊर्जा की तैनाती का समर्थन कर सकें।"

 

 

"अविद्युतीकृत आबादी को ऊर्जा प्रदान करने के लिए 19,200 करोड़ अमेरिकी डॉलर का निवेश जरूरी है"

 

आज जारी सार्वभौमिक ऊर्जा पहुंच के लिए सौर ऊर्जा के रोडमैप में अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन की ओर से किए गए विश्लेषण के आधार पर अविद्युतीकृत आबादी का लगभग 59 फीसदी (39.6 करोड़ लोग) सौर-आधारित मिनी-ग्रिड के माध्यम से विद्युतीकरण के लिए सबसे उपयुक्त हो सकते हैं,  लगभग 30 फीसदी (20.3 करोड़ लोग) ग्रिड विस्तार के जरिए और बाकी 11 फीसदी (7.7 करोड़ लोग) विकेंद्रीकृत नवीकरणीय ऊर्जा समाधानों के माध्यम से विद्युतीकरण के लिए सबसे उपयुक्त हो सकते हैं। इसे प्राप्त करने के लिए लगभग 19,200 करोड़ अमेरिकी डॉलर के कुल निवेश की जरूरत होगी। इनमें लगभग 25,738 मेगावाट क्षमता के लिए सौर-आधारित मिनी-ग्रिड में 9700 करोड़ अमेरिकी डॉलर, लगभग 1,224 मेगावाट क्षमता के लिए सौर-आधारित विकेन्द्रीकृत नवीकरणीय ऊर्जा (डीआरई) समाधान में 1800 करोड़ अमेरिकी डॉलर और आवश्यक बुनियादी ढांचे के लिए ग्रिड एक्सटेंशन में 7800 करोड़ अमेरिकी डॉलर की लागत शामिल है।

परियोजना लागत के 50 फीसदी की व्यवहार्यता अंतर निधि को ध्यान में रखते हुए, जरूरी मिनी-ग्रिड की स्थापना के लिए लगभग 4850 करोड़ अमेरिकी डॉलर की वित्तीय सहायता की जररूत होगी। विश्व बढ़े हुए निवेश, इकोसिस्टम विकास पहल, केंद्रित हस्तक्षेप, संसाधनों का वांछित उपयोग और विद्युतीकरण पहल के साथ सौर पीवी-आधारित कुकिंग सॉल्यूशन्स एकीकरण के माध्यम से साल 2030 तक सार्वभौमिक ऊर्जा पहुंच प्राप्त करने के लिए त्वरित विकास परिदृश्य में तेजी ला सकता है।

इस रोडमैप में आगे कहा गया है कि जब ऊर्जा पहुंच प्राप्त करने के लिए जरूरी प्रौद्योगिकी समाधान उपलब्ध हैं, इन समाधानों की तैनाती को स्थायी रूप से बढ़ाने के लिए कई चुनौतियों का समाधान किया जाना चाहिए। इस  रिपोर्ट के मुताबिक विश्व के देश व्यापक रूप से नीतियों और विनियमों की आवश्यकता को पहचानते हैं, इसके बावजूद इस क्षेत्र में प्रगति की जरूरत है। इसके परिणामस्वरूप निजी क्षेत्र के प्रतिभागी और स्थानीय उद्यमी ऊर्जा पहुंच परियोजनाओं में शामिल होने से हिचक रहे हैं। अंतर-सरकारी संगठन नीति और नियामक ढांचे को विकसित करने में बिजली की पहुंच वाले देशों की सहायता करके एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं, जो हस्तक्षेप के लिए एक सक्षम वातावरण का निर्माण करते हैं।

ऊर्जा पहुंच की कमी का सामना करने वाली अधिकांश आबादी अविकसित क्षेत्रों में रहती है, जहां उपभोक्ताओं को बिजली प्राप्त करने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। इन क्षेत्रों में डेवलपर्स के लिए उच्च वित्तीय जोखिम परियोजना लागत में बढ़ोतरी करते हैं, जिससे उपभोक्ता सामर्थ्य और आपूर्तिकर्ता व्यवहार्यता के बीच अंतर बढ़ जाता है। जोखिम कम करने के उपाय और रियायती वित्तपोषण निजी क्षेत्र के निवेश को ऊर्जा पहुंच परियोजनाओं के लिए आकर्षित कर सकते हैं, जिससे मापनीयता व स्थिरता की सुविधा प्राप्त हो सकती है।

आम तौर पर ऊर्जा पहुंच की कमी वाले देशों में एक अन्य प्रमुख पहलू विद्युतीकरण पहल को संचालित करने के लिए अधिक तकनीकी और वित्तीय विशेषज्ञता की जरूरत होती है। उन्हें कौशल विकास गतिविधियों, वैश्विक सर्वश्रेष्ठ अभ्यासों तक पहुंच और क्षेत्रीय उद्यमियों को सहायता देने वाले कार्यक्रमों की आवश्यकता है। ऊर्जा पहुंच की कमी वाले देशों में दीर्घकालिक प्रगति के लिए प्रशिक्षण व क्षमता निर्माण, उद्यमशीलता समर्थन और जागरूकता पैदा करना महत्वपूर्ण हैं।

जरूरी मिनी-ग्रिड परिनियोजन को पूरा करने के लिए लगभग 4850 करोड़ अमेरिकी डॉलर की वित्तीय सहायता की आवश्यकता है, जो परियोजना लागत का 50 फीसदी है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि निवेश बढ़ाकर, इकोसिस्टम विकास पहलों को बढ़ावा देकर, केंद्रित हस्तक्षेपों को लागू करके, संसाधनों का वांछित उपयोग करके और विद्युतीकरण पहलों के साथ सौर पीवी-आधारित कुकिंग सॉल्यूशनों को एकीकृत करके विश्व तेजी से विकास के परिदृश्य में तेजी ला सकती है और साल 2030 तक सार्वभौमिक ऊर्जा पहुंच हासिल कर सकता है। सार्वभौमिक ऊर्जा पहुंच के लिए सौर ऊर्जा का रोडमैप पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

 

 

अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन के बारे में:

अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन 116 सदस्य और हस्ताक्षरकर्ता देशों का एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है। यह पूरे विश्व में ऊर्जा की पहुंच और ऊर्जा सुरक्षा में सुधार के लिए सरकारों के साथ काम करता है और कार्बन मुक्त यानी पर्यावरण अनुकूल भविष्य पाने के एक स्थायी तरीके के रूप में सौर ऊर्जा को बढ़ावा देता है। आईएसए का मिशन साल 2030 तक सौर ऊर्जा क्षेत्र में 1 लाख करोड़ डॉलर का निवेश करना है. इसके साथ ही प्रौद्योगिकी और इसके वित्तपोषण की लागत को कम करना है। यह कृषि, स्वास्थ्य, परिवहन और बिजली उत्पादन क्षेत्रों में सौर ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा देता है। आईएसए के सदस्य देश नीतियों और नियमों को लागू करके, सर्वश्रेष्ठ कार्य प्रणालियों को साझा करके, साझा मानकों पर सहमत होकर और निवेश जुटाकर बदलाव ला रहे हैं। इन कार्यों के जरिए आईएसए ने सौर परियोजनाओं के लिए नए व्यापार मॉडल की पहचान, डिजाइन और परीक्षण किया है, कारोबार में सुगमता लाने वाली सोलर एनालिटिक्स और सलाह के माध्यम से सरकारों को अपने ऊर्जा कानून व नीतियों को सौर-अनुकूल बनाने के लिए समर्थन दिया है, विभिन्न देशों की सौर प्रौद्योगिकी की मांग को एक साथ लाया है, जिससे लागत कम हुई है, जोखिमों को कम करके वित्त तक आसान पहुंच बनाकर क्षेत्र को निजी निवेश के लिए और अधिक आकर्षक बनाया है और सौर इंजीनियरों व ऊर्जा नीति निर्माताओं के लिए सौर प्रशिक्षण, आंकड़े और समझ तक पहुंच में बढ़ोतरी की है। आईएसए भारत में मुख्यालय वाला पहला अंतरराष्ट्रीय अंतर सरकारी संगठन बन गया है। यह बहुपक्षीय विकास बैंकों (एमडीबी), विकास वित्तीय संस्थानों (डीएफआई), निजी व सार्वजनिक क्षेत्र के संगठनों, नागरिक समाज और अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के साथ साझेदारी कर रहा है, जिससे सौर ऊर्जा के माध्यम से विशेष रूप से कम विकसित देशों (एलडीसी) और लघु द्वीप विकासशील क्षेत्रों (एसआईडीएस) में लागत प्रभावी व रूपांतरणकारी समाधान किया जा सके। अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करें।

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