संस्कृति मंत्रालय
बाघ एवं व्याध- ओडिशा की एक पारंपरिक पट्टचित्र
Posted On:
08 JUN 2023 6:01PM by PIB Bhopal
इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय के नवीन श्रृंखला 'सप्ताह का प्रादर्श' के अंतर्गत आज जून माह के द्वितीय सप्ताह के प्रादर्श के रूप में ‘ बाघ एवं व्याध,ओडिशा की एक पारंपरिक पट्टचित्र ,पूरी ओडिशा , के चित्रकार समुदाय से संग्रहालय द्वारा सन, 2016 में संकलित किया गया है इस प्रादर्श को इस सप्ताह दर्शकों के मध्य प्रदर्शित किया गया।
इस सम्बन्ध में संग्रहालय के निदेशक डॉ.भुवन विक्रम ने बताया कि पट्टचित्र अर्थात कपड़े पर चित्र। यह ओडिशा की एक पारंपरिक लोक चित्रकला है। एक महीन सूती कपड़े पर सफेद नर्म पत्थर के चूर्ण और इमली के बीजों से बने गोंद के मिश्रण से लेप किया जाता है। धूप में सुखाकर इस कपड़े को कड़क और चिकनी अर्धअवशोषी सतह दी जाती है। सुखाने के बाद इसे चिकना करने के लिए खद्दर के पत्थर से कई बार रगड़ा जाता है। चित्रों को बनाने के लिए प्रयोग किए जाने वाले सफेद, लाल, पीले, काले, हरे और भूरे रंग प्राकृतिक रंगों से बनाए जाते हैं। दीये की कालिख से काला, हरिताली पत्थर से पीला, हिंगल पत्थर से लाल, सीप के बारीक चूर्ण को उबालकर सफेद और हरी पत्तियों और कैथा गोंद को उबालकर हरा रंग बनाया जाता है, गेरू पत्थर से भूरा रंग प्राप्त किया जाता है। पट्टचित्र के मुख्य विषय धार्मिक होते हैं, जिनमें हिंदू पौराणिक कथाओं, रामायण और महाभारत की कहानियों के दृश्यों को चित्रित किया जाता है। इस चित्र में कदंब के पेड़ की शाखा पर बैठा एक शिकारी पानी पीने वाली बाघिन की ओर अपने तीर को ताने हुए दर्शाया गया है जिसे देखकर बाघिन को बचाने के लिए बाघ शिकारी को मारने के लिए पेड़ पर चढ़ने की कोशिश कर रहा है। यह चित्र एक शिकारी की प्रकृति या मनःस्थिति के बारे में कलाकार के विचार को दर्शाता है। एक जल स्रोत पर शिकारी बाघ के पानी पीने के लिए आने की प्रतीक्षा कर रहा है। दूसरे अर्थ में कलाकार ने बाघ और बाघिन के बीच एक पारिवारिक स्नेह के बारे में सोचा। यहाँ एक कलाकार की कल्पना ऐसी रचना रचती है जहाँ मनुष्य और पशु संबंध, पारिवारिक स्नेह परिलक्षित होते हैं।
(Release ID: 1930821)
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