विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय

कार्बनिक नैनोट्यूब का उपयोग कर नई कृत्रिम लाइट-हार्वेस्टिंग प्रणाली सौर कोशिकाओं, फोटोकैटलिसिस, ऑप्टिकल सेंसर और ट्यूनेबल मल्टी कलर लाइट इमिटेटिंग सामग्रियों के लिए उपयोगी

Posted On: 24 MAY 2023 4:30PM by PIB Delhi

प्राकृतिक प्रकाश संश्लेषण प्रणालियों से प्रेरित होकर शोधकर्ताओं ने जैविक नैनोट्यूब का उपयोग कर हार्वेस्टिंग कृत्रिम लाइट की नई पद्धति विकसित की है जिसका उपयोग सौर कोशिकाओं, फोटोकैटलिसिस, ऑप्टिकल सेंसरों और ट्यूनेबल मल्टी कलर लाइट इमिटेटिंग सामग्रियों के लिए किया जा सकता है।

प्रकृति में, पौधे और प्रकाश संश्लेषक बैक्टिरिया सूर्य की रोशनी ग्रहण करते हैं और रासायनिक ऊर्जा के रूप में इसके अंतिम भंडारण के लिए ऊर्जा और इलेक्ट्रान हस्तांतरण कदमों के समूह के माध्यम से इसे रिएक्शन सेंटर को डेलीवर करते हैं। प्रकाश संचयन परिसरों में ऐंटेना क्रोमोफोरस को आसपास के प्रोटीनों द्वारा सटीक तरीके से श्रृंखला समूहों में समन्वित किया जाता है जो बदले में अत्यधिक कुशल तरीके से उनके बीच ऊर्जा स्थानांतरण को सक्षम बनाता है। प्राकृतिक प्रकाश संश्लेषण प्रणालियों का अनुकरण करना और और ऊर्जा हस्तांतरण की मौलिक प्रक्रियाओं की समझ और विशेष रूप से उन प्रणालियों के प्रति, जिनके लिए ऊर्जा  रूपांतरण और भंडारण की आवश्यकता पड़ती है, हाल के वर्षों में जबर्दस्त दिलचस्पी देखने में आई है।

इस दिशा में, शिक्षा मंत्रालय के तहत एक स्वायत्तशासी संस्थान कोलकाता स्थित भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान (आईआईएसईआर) के डॉ. सुप्रतिम बनर्जी और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के एक स्वायत्तशासी संस्थान कोलकाता स्थित एस एन बोस राष्ट्रीय मूलभूत विज्ञान केंद्र (एसएनबीएनसीबीएस) के डॉ. सुमन चक्रवर्ती ने जैविक फ्लोरोसेंट अणु और चिकित्सकीय रूप से महत्वपूर्ण बायोपॉलिमर के मिलन से प्राप्त कार्बनिक नैनोट्यूब में कृत्रिम प्रकाश संचयन पर प्रायोगिक और कंप्यूटेशनल जांच की। पहला यानी जैविक फ्लोरोसेंट अणु एक एम्फीफिलिक कैटिओनिक मोलेक्यूल है जिसे स्यानो स्टिलबेंस कहा जाता है। फ्लोरोसेंट गुणधर्मों वाला एक जैविक अणु जो अपनी संचयित अवस्था में अधिक उत्सर्जन प्रदर्शित करने के लिए जाना जाता है और दूसरा यानी बायोपॉलिमर एक एनियोनिक चिकित्सीय रूप से महत्वपूर्ण बायोपॉलिमर है जिसे एक्सेसियस मीडिया में हेपारिन (सर्जरी के दौरान और शल्य चिकित्सा के बाद के उपचारों में एक एंटी-कैयगुलेंट के रूप में उपयोग तकं लाया जाता है) कहा जाता है।

हेपारिन की उपस्थिति में, इस अध्ययन में उपयोग में लाए गए कैटिओनिक सयनो स्टिलबेंस ने इलेक्ट्रोस्टैटिक रूप से संचालित सह-एसेंबली प्रक्रिया के माध्यम से चमकीले हरे-पीले उत्सर्जन के साथ नैनोट्यूब का निर्माण किया। बैक्टिरिया में प्रकाश संश्लेषण निष्पादन करने के लिए प्रयुक्त ऐंटेना क्रोमोफोरस या पिगमेंटेड (रंगीन) झिल्ली से जुड़े वेसिकल्स की ही तरह नैनोट्यूब ने एक ऐसी सिस्टम में, जिसने प्राकृतिक प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया का अनुकरण किया, एक उच्च रूप से दक्ष ऊर्जा डोनर के रूप में काम किया।

उन्होंने नाइल रेड या नाइल ब्लू जैसे एक्सेप्टर डाई को ऊर्जा डोनेट की जिसके परिणामस्वरूप सफेद रोशनी सहित आरंभिक हरे-पीले से नारंगी-लाल तक उत्सर्जन रंग ट्यूनिंग हुई। इस अध्ययन में प्रदर्शित ऊर्जा हस्तांतरण परिघटना को एफआरईटी (फोरस्टर रेजोनेंस ऊर्जा हस्तांतरण) के नाम से जाना जाता है जिसका डीएन/आरएनए संरचनाओं के निर्धारण, जैविक झिल्लियों के मानचित्रण, वास्तविक समय पीसीआर जांच आदि जैसे विभिन्न अनुप्रयोगों में उल्लेखनीय महत्व है। भविष्य रासायनिक या विद्युत ऊर्जा के रूप में भंडारण के लिए सौर ऊर्जा के रूपांतरण की दिशा में बढ़ रहा है और ऊर्जा हस्तांतरण ऐसे अनुप्रयोगों के लिए एक प्रमुख कारक है।

रॉयल सोसाइटी ऑफ कैमिस्ट्री के प्रमुख जर्नल कैमिकल साईंस में प्रकाशित अध्ययन में, नैनोट्यूब के निर्माण की जांच ऐबजौप्र्शन एंड फ्लुरोसेंस स्पेक्ट्रस्कोपी, ट्रांसमिशन इलेक्ट्रोन माइक्रोस्कोपी (टीईएम) और फ्लुरोसेंस लाइफटाइम इमेजिंग माइक्रोस्कोपी (एफएलआईएम) अध्ययनों का उपयोग करने के माध्यम से की गई थी। मोलेक्युलर डायनैमिक्स (एमडी) सिमुलेशन अध्ययनों ने प्रदर्शित किया कि स्यानो स्टिलबेन मोलेक्यूल्स ने हेपारिन की उपस्थिति में सिलेंड्रिकल संरचनाओं का निर्माण किया। लोकल मोलेकुलर लेवल इंटरएक्शंस और स्यानो स्टिलबेन क्रोमोफोर्स की पैकिंग जिसके कारण एक-आयामी नैनोस्ट्रक्चर का निर्माण हुआ, को भी सिमुलेशन अध्ययनों के माध्यम से विजुअलाइज और क्वांटिफाई किया गया। इन प्रणालियों में एफआरईटी प्रोसेस की तापमान प्रतिक्रिया के कारण, उन्हें और आगे 20-90 डिग्री सेल्सियस में रेटियोमेट्रिक इमिशन थर्मोमीटर (जो दो अलग अलग वेवलेंग्थ पर इमिशन तीव्रता में वैरियेशन पर आधारित तापमान को सेंस करते हैं) के रूप में उपयोग में लाया गया और इसने इन कृत्रिम लाइट - हार्वेस्टिंग सिस्टम के व्यावहारिक अनुप्रयोग को रेखांकित किया।

प्रकाशन लिंक : https://dx.doi.org/10.1039/d3sc00375b

और अधिक विवरण के लिए, कृपया संपर्क करें :

डॉ. सुप्रतिम बनर्जी  ; (supratim.banerjee@iiserkol.ac.in) और

डॉ. सुमन चक्रवर्ती ;  (sumanc@bose.res.in)

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