विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय

एक श्वेत वामन (व्हाईट ड्वार्फ) और उसके साथी तारे के ब्रह्मांडीय नृत्य से उत्पन्न धूल का अध्ययन जीवन की शुरुआत के रहस्यों को उजागर कर सकता है

Posted On: 23 AUG 2022 4:48PM by PIB Delhi

2007 की सर्दियों वाले महीनों में दुनिया भर के खगोल भौतिकीविद सुदूर अन्तरिक्ष में एक श्वेत वामन (व्हाईट ड्वार्फ) और उसके साथी तारे के ब्रह्मांडीय नृत्य से उत्पन्न हुए एक ऐसे उज्ज्वल विस्फोट का निरीक्षण करने के लिए पहाड़ों की चोटियों पर स्थित वेधशालाओं में पंक्तिबद्ध होकर गए थे जिसके परिणामस्वरूप एक विस्फोटित नोवा के चारों ओर मोटी धूल एकत्र हो गई थी।

 

एसएन बोस सेंटर फॉर बेसिक साइंस (एसएनबीसीबीएस) के वैज्ञानिक डॉ. आर के दास और उनकी टीम जिसने इस अध्ययन के लिए खुद को माउंट आबू वेधशाला (राजस्थान) में तैनात कर लिया था, ने नोवा वी 1280 स्कॉर्पी नामक विस्फोटित नोवा को देखा और यह पाया कि इस घटना के एक महीने के बाद इस नोवा के चारों ओर एक मोटी धूल की परत बन गई जो अगले लगभग 250 दिनों के लिए बनी रही।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के एक स्वायत्त संस्थान एसएनबीसीबीएस की टीम ने इस अंत: विस्फोटित (इंप्लोडिंग) नए तारे (नोवा) के इन्फ्रारेड स्पेक्ट्रा पर देखे गए डेटा का उपयोग किया और एक सरल मॉडल का निर्माण किया जिससे उन्हें धूल बनने के पूर्व और उसके बाद के चरणों के दौरान वहां हाइड्रोजन घनत्व, तापमान, चमक और मौलिक तत्वों की प्रचुरता जैसे इसके विभिन्न का अनुमान लगाने में मदद मिली। उन्होंने उत्सर्जन (इजेक्टा) में कार्बन, नाइट्रोजन और ऑक्सीजन जैसे कुछ तत्वों के साथ-साथ छोटे अक्रिस्टलीय (अमोर्फौस) कार्बन धूल के कणों और खगोलीय सिलिकेट के बड़े धूल कणों की प्रचुरता पाई है।

चिली (दक्षिण अमेरिका) में वेरी लार्ज टेलीस्कोप इंटरफेरोमीटर से टीम के अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों द्वारा किए गए समानांतर अध्ययन में धूल का निर्माण देखा गया। इससे उन्हें पहली बार किसी नए तारे (नोवा) के चारों ओर धूल के आवरण के विस्तार की दर का सटीक माप लेने में मदद मिली।

यह तारकीय घटना जो कि वैज्ञानिकों के लिए विस्फोटक तारकीय पदार्थ का अध्ययन करने का सुनहरा अवसर थी, अंतरिक्ष-धूल टकराव का ऐसा एक उदाहरण था जो विभिन्न ग्रहों के बीच अत्यधिक दूरी होने के बाद भी जीवों को ग्रह पर जीवन शुरू करने के लिए प्रेरित कर सकता था। नए तारों की धूल के उनके अध्ययन से ऐसी धूल की प्रकृति और विशेषताओं एवं उनसे संबंधित प्रक्रियाओं को समझने में मदद मिल सकती है।

नए तारों से उत्सर्जन (नोवा इजेक्शन) के दौरान प्रतिकूल वातावरण में ब्रह्मांडीय धूल या अतिरिक्त-स्थलीय धूल का निर्माण होना कई वर्षों से एक खुला प्रश्न रहा है। इस प्रकार की सैकड़ों किलोग्राम धूल प्रतिदिन पृथ्वी पर गिरती है। हालांकि ऐसी धूल के निर्माण, उसकी प्रकृति और संरचना को अभी तक ठीक से समझा नहीं गया है। डॉ. दास ने समझाया कि तारों के बीच धूल (इंटरस्टेलर डस्ट) जिसे बनने में आमतौर पर कुछ हजार साल लगते हैं की तुलना में नोवा इजेक्टा के दौरान धूल का बनना कोई सामान्य घटना नहीं है। ऐसा विस्फोट के बाद 30 से 100 दिनों के भीतर केवल कुछ ही नए तारों (नोवा) में देखा गया है और इसलिए ऐसी घटनाओं से नोवा में धूल बनने की प्रक्रिया का अध्ययन करने का अवसर प्रदान मिल जाता है।

इस टीम ने एक विस्तृत श्रृंखला में मापदंडों में बदलाव किया और प्रत्येक मॉडल के लिए वर्णक्रम (स्पेक्ट्रम) उत्पन्न करने वाले पचास हजार से अधिक मॉडलों का निर्माण किया। अंत में उन्होंने देखे गए स्पेक्ट्रम को बनाए गए मॉडलों के साथ सही प्रकार से मिलाने का कार्य किया। सर्वोत्तम रूप से मिलान किए गए प्रारूप से उन्होंने में विस्फोट पूर्व और उसके बाद के धूल निर्माण चरण के दौरान मापदंडों का अनुमान लगाया। धूल उत्पन्न करने वाले नए तारों (नोवा) की इतनी व्यापक तरीके से मॉडलिंग पहले कभी नहीं की गई थी। इस सम्पूर्ण प्रक्रिया में कई साल लग गए।

सौर मानकों की तुलना में विस्फोटित नव तारों (इंप्लोडिंग नोवा) के पूर्व-धूल (प्री- डस्ट) चरण में समस्थानिकों (आइसोटोप्स) की उच्च प्रचुरता के अलावा वैज्ञानिकों ने धूल- पश्चात (पोस्ट - डस्ट) चरण की अवस्था में हुए उत्सर्जन (इजेक्टा) में विद्यमान छोटे अक्रिस्टलीय (अमोर्फौस) कार्बन धूल के कणों और बड़े खगोलीय सिलिकेट धूल के कणों का मिश्रण पाया। मिश्रित सुगंधित- स्निग्ध (मिक्स्ड एरोमैटिक – ऐलीफैटिक) संरचना वाले अक्रिस्टलीय (अमोर्फौस) कार्बनिक ठोस जैसे कुछ जटिल कार्बनिक यौगिक भी पाए गए जो सितारों और ग्रहों में आणविक बादल के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह अध्ययन हाल ही में जर्नल एस्ट्रोफिजिकल जर्नल में प्रकाशित हुआ है।

टीम ने सुझाव दिया है कि जैसे -जैसे V1280 स्कॉर्पी नोवा के धूल के आवरण का विस्तार जारी रहेगा, ये धूल के कण अंततः अंतरतारकीय (इंटरस्टेलर) पदार्थ के साथ मिलते जाएंगे। लेकिन इस प्रक्रिया में हजारों साल लगेंगे – जोकि ब्रह्मांडीय समय के पैमाने में एक छोटी सी समयावधि है।

  • 1 : वी 1280 एससीओ की नियर - इन्फ्रारेड छवि (इमेज) (एनएसीओ / वीएलटी) (चेसनेउ ईटी एएल . एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स)

चित्र 2 : एमआईडीआई / वीएलटीआई (चेसनेउ ईटी एएल अल. , खगोल विज्ञान और खगोल भौतिकी, 2008) द्वारा देखे गए वी 1280 एससीओ के आसपास परिस्थितिजन्य धूल के आवरण के आकार का विकास।

चित्र 3. धूल- पश्चात (पोस्ट-डस्ट) चरण मॉडल के लिए योजनाबद्ध आरेख (पांडे ईटी एएल. एस्ट्रोफिजिकल जर्नल, 2022)

 

चित्रा 4. धूल- पश्चात चरण (पोस्ट- डस्ट फेज) में देखे गए काले धराशायी ठोस (ऑब्जर्व्ड ब्लैक डैश्ड सॉलिड) और मॉडल से तैयार (जेनरेटेड) वर्णक्रम (स्पेक्ट्रा) (लाल ठोस रेखा - रेड सॉलिड लाइन ) कालखंड (ईपोच) 4 का एनआईआर वर्णक्रम (स्पेक्ट्रम) (पांडे ईटी एएल . , एस्ट्रोफिजिकल जर्नल, 2022 )

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