विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय

पॉलीहर्बल पर्यावरण अनुकूल (इको-फ्रेंडली) तकनीक डेयरी पशुधन में होने वाले   टिक के संक्रमण का मुकाबला कर सकती है

Posted On: 28 MAR 2022 5:33PM by PIB Delhi

नीम (अज़ादिराचटा इंडिका) और नागोड (विटेक्स नेगुंडो) जैसे हर्बल अवयवों से युक्त एक फार्मूलेशन (सूत्रीकरण) डेयरी पशुओं में होने वाले टिक संक्रमण से निपटने में प्रभावी पाया गया है। जो किसान डेयरी पशु उत्पादन पर निर्भर हैं, वे टिक के संक्रमण जैसी पशुओं की बीमारियों से परेशान रहते हैं। ये बाहरी परजीवी सभी भौगोलिक क्षेत्रों के मवेशी शेड में व्यापक रूप से पाए जाते हैं और तेजी से फैलते भी हैं। इससे पशुओं में टिक चिंता, भूख न लगना और दूध उत्पादन में कमी आने के कारण किसानों की आय भी कम हो जाती है। ये परजीवी प्रणालीगत प्रोटोजोअन संक्रमण के वाहक होने के साथ ही डेयरी पशु स्वास्थ्य और उत्पादकता के लिए खतरा हैं।

वर्तमान में किसान लागत में महंगे रासायनिक एसारिसाइड्स पर निर्भर हैं और परजीवी की प्रकृति के कारण इनका बार-बार उपयोग करना पड़ता है। इससे लागत बढ़ जाती है, और शायद ही कभी किसान, विशेष रूप से छोटे, सीमांत किसानों को रासायनिक एसारिसाइड की मांग के इस दुष्चक्र से छुटकारा मिल सकता हो ।

बाहरी परजीवियों का मुकाबला करने और इनपुट लागत को कम करने के लिए उपयुक्त हस्तक्षेप उपायों को विकसित करने की तत्काल आवश्यकता के को देखते हुए विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के एक स्वायत्त निकाय, राष्ट्रीय नवप्रवर्तन प्रतिष्ठान–भारत (नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन-एनआईएफ-इंडिया) ने एक फॉर्मूलेशन को  विकसित एवं मानकीकृत किया है जिसमें सामान्य  नीम (अज़ादिराचटा इंडिका) और नागोड (विटेक्स नेगुंडो) जैसे हर्बल तत्व मिलाए गए हैं। ये औषधीय वृक्ष व्यापक रूप से स्वदेशी समुदायों के बीच उगते हैं और विभिन्न बीमारियों के उपचार में पारम्परिक औषधीय प्रणाली का सामान्य हिस्सा हैं।

इस फॉर्मूलेशन को तैयार करना आसान है और यह हार्ड टिक इन्फेक्शन और मवेशियों में एटियलॉजिकल परजीवी राइपिसेफलस (बूफिलस) एसपी के खिलाफ प्रभावी है।

गुजरात के गांधीनगर जिले में किए गए अध्ययनों ने हार्ड टिक संक्रमण के खिलाफ प्रभावकारिता का प्रदर्शन किया। कांगड़ा जिले में पशु चिकित्सा कॉलेज, पालमपुर हिमाचल प्रदेश के साथ आयोजित एनआईएफ की सहयोगी गतिविधि में एटियलॉजिकल परजीवी राइपिसेफलस (बूफिलस) एसपी के खिलाफ समान प्रतिशतीय प्रभावकारिता पाई गई। पुणे जिला सहकारी दूध उत्पादक संघ मर्यादित, जिसे लोकप्रिय रूप से कटराज डेयरी, पुणे के नाम से जाना जाता है, के साथ इंटरफेस ने पुणे जिले के दौंड, शिरूर और पुरंदर तालुका में किसान-अनुकूल प्रौद्योगिकी का अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन करने में मदद की, साथ ही क्षमता निर्माण गतिविधियों को शुरू किया गया। किसान खुद खेत में फार्मूलेशन विकसित कर सकते हैं । कार्यात्मक प्रभावकारिता, तैयारी का आसान तरीका और ज्ञात प्रथाओं ने किसानों को इस तकनीक पर ध्यान देने में सहायता की। इससे स्थानीय स्वास्थ्य परंपराओं में मूल्य वर्धन, अंतर्निहित क्षमताओं को मजबूत करने, संस्थागत स्वास्थ्य प्रणालियों पर निर्भरता कम करने और ज्ञान प्रणाली से लाभ प्राप्त करने में मदद मिली।

इसके बाद, डेयरी यूनियन ने उपचार लागत को कम करने और परजीवियों के पुन: होने के जोखिम को कम करने के लिए डेयरी किसानों को प्रशिक्षण देना शुरू किया। महाराष्ट्र पशु और मत्स्य विज्ञान विश्वविद्यालय, पशु चिकित्सा विज्ञान कॉलेज, पालमपुर, हिमाचल प्रदेश, पशु चिकित्सा विज्ञान कॉलेज, हासन, कर्नाटक ने भी संबंधित राज्य में स्केलिंग के लिए वैकल्पिक प्रौद्योगिकी के इस संस्थान मॉडल की सिफारिश की है।

संस्थानों के साथ उपयुक्त भागीदारी के गठन से व्यापक क्षेत्र में डेयरी किसानों के बीच प्रौद्योगिकी की उपलब्धता का विस्तार करने में मदद मिली। भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद (आईसीएआर)-राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान, करनाल के सहयोग से प्रदर्शन आयोजित किए गए, जिसके परिणामस्वरूप हरियाणा में प्रणालीगत मूल्यांकन, ज्ञान का हस्तांतरण हुआ। इन प्रयासों के साथ, क्षेत्र मूल्यांकन के माध्यम से अभ्यास के पैकेज के रूप में प्रौद्योगिकी की सिफारिश की गई थी। पैराएक्सटेंशन स्टाफ को आईसीएआर-कृषि विज्ञान केंद्र, तमिलनाडु पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, कलासमुथिरम, तमिलनाडु के कल्लाकुरिची जिले द्वारा प्रशिक्षित किया गया था। संस्था ने क्षेत्रीय संयुक्त निदेशक, पशुपालन विभाग,  तमिलनाडु सरकार के सहयोग से प्रौद्योगिकी को लोकप्रिय बनाया था।

सूत्रीकरण (फार्मूलेशन) तैयार करने के लिए लगभग 2.5 किलोग्राम नीम की ताजी पत्तियों को एकत्र कर 4 लीटर गुनगुने पानी में रखा जाता है। इसी तरह नागौड के लगभग एक किलोग्राम ताजे पत्तों को एकत्र कर 2 लीटर गुनगुने पानी में रख दिया जाता है। इन दवाओं को कम से कम एक घंटे तक गुनगुने पानी में रखा जाता है। बाद में, तैयार घोल  को सामान्य कमरे के तापमान के तहत रात भर ठंडा करने के लिए रख दिया  जाता  है । प्रत्येक घोल की ऊपरी  सतह पर तैरनेवाले  तैलीय पदार्थ  (कच्चा अर्क) को  एकत्र और संग्रहीत किया जाता है। नीम, नागोड के इन अलग-अलग कच्चे अर्कों  को आवश्यकता के अनुसार 3:1 (लिंबडा / नीम: नागोड / मोंक पीपर) के अनुपात में मिलाना होगा। इस स्टॉक घोल को उपयोग के लिए 3.6 लीटर सामान्य पानी में मिलाया जा सकता है।

राष्ट्रीय नवाचार संगठन (एनआईएफ) की पॉलीहर्बल दवा खेत की स्थानीय स्थितियों में प्रभावोत्पादकता और कृषि क्षेत्रों के सामने उपलब्ध संसाधनों पर आधारित प्रौद्योगिकी के विकास को प्रदर्शित करने के लिए उपयुक्त पाई गई थी। जरूरतमंद किसानों को प्रौद्योगिकी को आगे बढ़ाने के लिए अंतर-संस्थागत सरकारी सहयोग के समर्थन से लोकप्रिय बनाने के उपाय भी किए गए थे ।

 

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बाह्य परजीवी संक्रमित पशु पर उपयोग की विधि, पुणे जिला, महाराष्ट्र

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प्रौद्योगिकी के बारे में  डेयरी किसानों को प्रशिक्षण, लिंबोदरा, गांधीनगर जिला, गुजरात

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