नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय

भारत ने 157.32 गीगावॉट की कुल गैर-जीवाश्म आधारित संस्थापित ऊर्जा क्षमता के साथ अपना एनडीसी लक्ष्य हासिल किया, जो कुल संस्थापित ऊर्जा क्षमता का 40.1% है


डीपीआईआईटी के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) प्रकोष्ठ के अनुसार भारतीय ‘गैर-परंपरागत ऊर्जा’ क्षेत्र को 2020-21 के दौरान 797.21 मिलियन अमरीकी डॉलर का एफडीआई प्राप्त हुआ

उच्च दक्षता वाले सोलर पीवी मॉड्यूल के निर्माण को समर्थन और बढ़ावा देने के लिए सरकार ने 28 अप्रैल 2021 को 4,500 करोड़ रुपये की लागत से प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव स्कीम “उच्च दक्षता वाले सोलर पीवी मॉड्यूल संबंधी राष्ट्रीय कार्यक्रम” की शुरुआत की

30 नवंबर 2021 तक 14 राज्यों में 37.92 गीगावॉट की संचयी क्षमता वाले 52 सौर पार्कों को मंज़ूरी दी गई

देशभर में 30 नवंबर 2021 तक 5.7 गीगावॉट संचयी क्षमता की सोलर रूफ टॉप परियोजनाएं शुरू की गईं

सरकार ने भारत की तटरेखा के साथ लगने वाली अपतटीय पवन ऊर्जा की क्षमता का दोहन करने के लिए अपतटीय पवन ऊर्जा नीति को अधिसूचित किया

मंत्रालय ने ट्रांसमिशन के बुनियादी ढांचे और भूमि के सर्वोत्तम एवं कुशल उपयोग, नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन में परिवर्तनशीलता को कम करने और बेहतर ग्रिड स्टेबिलिटी प्राप्त करने के उद्देश्य से बड़े ग्रिड से जुड़ी पवन-सौर पीवी हाइब्रिड परियोजनाओं को बढ़ावा देने के लिए एक दिशा प्रदान करने वाली पवन सौर हाइब्रिड नीति को अधिसूचित किया

राज्य नोडल एजेंसियों (एसएनए) से प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार 30 नवंबर 2021 तक 1.45 लाख से अधिक सोलर स्ट्रीट लाइटें लगाई गईं, 9.03 लाख सोलर स्टडी लैंप वितरित किए गए और 2.5 मेगावाट के सोलर पावर पैक्स स्थापित किए गए

विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 63 के तहत सौर और पवन ऊर्जा की खरीद के लिए बोली संबंधी प्रतिस्पर्धी दिशानिर्देश जारी किए गए

घरेलू स्तर पर बिजली उत्पादन के इको-सिस्टम को मज़बूत और व्यापक बनाने के प्रयास किए गए हैं, पीएम-कुसुम, सोलर रूफटॉप और सीपीएसयू जैसी योजनाओं में ‘घरेलू सामग्री आवश्यकता (Domestic Content Requirement)’ की अनिवार्य शर्त रखी गई है, जिससे घरेलू स्तर पर 36 गीगावॉट से भी अधिक सोलर पीवी (सेल्स और मॉड्यूल) की मांग हो रही है

विश्व में भारत चौथा सबसे बड़ी पवन ऊर्जा क्षमता वाला देश है

नवीकरणीय ऊर्जा की निकासी को आसान बनाने और भविष्य की ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए ग्रिड को पुनः आकार देने के क्रम में ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर (जीईसी) परियोजनाएं शुरू की गईं

प्रधानमंत्री ने 15 अगस्त 2021 को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर अपने भाषण में राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन के शुभारंभ की घोषणा की और भारत को ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन और निर्यात की दिशा में वैश्विक हब बनाने का संकल्प लिया

वन सन- वन वर्ल्ड- वन ग्रिड (OSOWOG)

OSOWOG विषय पर अध्ययन के लिए 08 सितंबर 2021 को नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE), अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) और विश्व बैंक के बीच एक त्रिपक्षीय समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए गए

नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने कोविड-19 के कारण पैदा हुई लॉकडाउन जैसी अप्रत्याशित परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, निर्धारित नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं को पूरा करने के लिए करीब 7.5 महीने का समय-विस्तार देने के संबंध में आदेश जारी किए

Posted On: 28 DEC 2021 3:58PM by PIB Delhi

सीओपी 21 में राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित किए गए योगदान (एनडीसी) के तौर पर भारत वर्ष 2030 तक अपनी संस्थापित विद्युत क्षमता का 40% गैर-जीवाश्म ऊर्जा स्रोतों से प्राप्त करने के प्रति वचनबद्ध था, लेकिन भारत ने नवंबर 2021 में ही इस लक्ष्य को हासिल कर लिया है। 30 नवंबर 2021 को देश की संस्थापित नवीकरणीय ऊर्जा (आरई) क्षमता 150.54 गीगावॉट (सौर ऊर्जा 48.55 गीगावॉट, पवन ऊर्जा 40.03 गीगावॉट, लघु पनबिजली 4.83, जैव-शक्ति 10.62, बड़ी पनबिजली ऊर्जा 46.51 गीगावॉट) है, जबकि देश की परमाणु ऊर्जा आधारित संस्थापित विद्युत क्षमता 6.78 गीगावॉट है। इससे कुल गैर-जीवाश्म आधारित संस्थापित ऊर्जा क्षमता 157.32 गीगावॉट हो जाती है, जोकि 392.01 गीगावॉट की कुल संस्थापित विद्युत क्षमता का 40.1% है। हाल ही में संपन्न हुए सीओपी26 में माननीय प्रधानमंत्री द्वारा की गई घोषणा के अनुरूप, भारत सरकार वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से 500 गीगावॉट संस्थापित विद्युत क्षमता का लक्ष्य हासिल करने के लिए प्रतिबद्ध है।

पिछले साढ़े सात वर्षों के दौरान भारत ने सभी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता के क्षेत्र में सबसे तेज़ गति से वृद्धि दर्ज की है। इस दौरान नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता (बड़े स्तर के पनबिजली संयंत्रों सहित) में 1.97 गुना और सौर ऊर्जा के क्षेत्र में 18 गुना से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई है।

  1. नवीकरणीय क्षेत्रों में निवेश
  • भारत में नवीकरणीय ऊर्जा कार्यक्रम को निजी क्षेत्र के निवेश द्वारा संचालित किया जाता है। रिन्युएबल्स 2020 ग्लोबल स्टेटस रिपोर्ट आरईएन21 के अनुसार, वर्ष 2014-19 के दौरान नवीकरणीय ऊर्जा कार्यक्रमों और परियोजनाओं ने भारत में 64.4 बिलियन अमरीकी डॉलर के निवेश को आकर्षित किया। अकेले वर्ष 2019 में इस क्षेत्र में 11.2 बिलियन अमरीकी डॉलर का निवेश हुआ। नए अवसर सामने आए हैं और व्यवसाय के लिए माहौल पैदा हुआ है। भारतीय कंपनियों ने धन के स्रोत के रूप में विदेशी स्टॉक एक्सचेंजों के बारे में विचार करना शुरू कर दिया है। नवीकरणीय क्षेत्र में निवेश के लिए भारत प्रगतिशील तरीके से एक अनुकूल गंतव्य बन गया है।
  • डीपीआईआईटी के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) प्रकोष्ठ के अनुसार भारतीय ‘गैर-परंपरागत ऊर्जा’ क्षेत्र को वर्ष 2014-15 से जून 2021 तक करीब 7.27 बिलियन अमरीकी डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) प्राप्त हुआ। इसमें से 797.21 मिलियन अमरीकी डॉलर का एफडीआई वर्ष 2020-21 के दौरान प्राप्त हुआ था। उदार विदेशी निवेश नीति ने विदेशी निवेशकों को वित्तीय और/या तकनीकी सहयोग के लिए अथवा नवीकरणीय ऊर्जा आधारित विद्युत उत्पादन परियोजनाओं का निर्माण करने के लिए भारतीय कंपनियों के साथ संयुक्त उद्यम शुरू करने की अनुमति प्रदान की है। सरकार की मौजूदा एफडीआई नीति के तहत इक्विटी के तौर पर 100 प्रतिशत तक विदेशी निवेश स्वत: मंज़ूरी के लिए पात्र है।
  1. प्रमुख कार्यक्रम और योजनाएं:
  • प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाअभियान (PM-KUSUM): ऊर्जा और जल सुरक्षा प्रदान करने, कृषि क्षेत्र को डीज़ल मुक्त करने और सौर ऊर्जा का उत्पादन कर किसानों की आय को बढ़ाने के लिए, सरकार ने पीएम-कुसुम योजना शुरू की है। इस योजना में मुख्यतः तीन भाग शामिल हैं:
  • भाग कः 10,000 मेगावॉट के विकेन्द्रीकृत ग्रिड कनेक्टेड सौर विद्युत संयंत्रों को स्थापित करना, जिसमें प्रत्येक की क्षमता 2 मेगावॉट तक होगी।
  • भाग खः सौर ऊर्जा से संचालित 20 लाख कृषि पंपों की स्थापना  
  • भाग गः मौजूदा ग्रिड से जुड़े 15 लाख कृषि पंपों का सौर ऊर्जा पर लेकर जाना

इस योजना का उद्देश्य केन्द्र सरकार की 34,000 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता के साथ देश की सौर क्षमता में 30.8 गीगावॉट अतिरिक्त सौर क्षमता को जोड़ना है। पहले वर्ष के अनुभवों के आधार पर फीडर स्तर के सौरकरण के लिए तैयार किए गए व्यापार मॉडल को भाग-ग के तहत एक नए संस्करण के रूप में शामिल किया गया था। पीएम-केएसवाई और कृषि अवसंरचना कोष के साथ इस योजना के कंवर्जेंस का काम भी पूरा किया गया। धन की सहज उपलब्धता के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक ने इस योजना के तीनों भागों को प्राथमिकता के आधार पर ऋण मुहैया कराए जाने वाले दिशा-निर्देशों में शामिल किया। कुल मिलाकर, भाग-क के तहत छोटे सौर ऊर्जा संयंत्रों की लगभग 5000 मेगावॉट क्षमता, भाग-ख के तहत 3.6 लाख स्टैंडअलोन सौर पंप और भाग-ग के दो अलग-अलग संस्करणों के अंतर्गत ग्रिड से जुड़े 10 लाख से अधिक पंपों को सौर ऊर्जा पर परिवर्तित करने का कार्य विभिन्न राज्यों में आवंटित किया गया है। कोविड-19 के प्रतिबंधों में रियायत मिलने के बाद, इंस्टालेशन के काम ने गति पकड़ी है, और 30 नवंबर 2021 तक भाग-ख के अंतर्गत 75,000 से ज़्यादा स्टैंडअलोन सौर पंप लगाए गए हैं, भाग-क के तहत कुल 20 मेगावॉट क्षमता के सौर ऊर्जा प्लांट्स लगाए जा चुके हैं और भाग-ग के अंतर्गत ग्रिड से जुड़े 1000 से ज्यादा पंपों को सौर ऊर्जा संचालित श्रेणी में परिवर्तित किया गया है। भाग-ग के अंतर्गत दिसंबर 2020 में पेश किए गए फीडर लेवल सोलराइजेशन संस्करण के कार्यान्वयन के कार्य को भी कई राज्यों में शुरू कर दिया गया है।

  • प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) स्कीमः उच्च दक्षता वाले सोलर पीवी मॉड्यूल के निर्माण को समर्थन और बढ़ावा देने के लिए सरकार ने 28 अप्रैल 2021 को 4,500 करोड़ रुपये की लागत से प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव स्कीम “उच्च दक्षता वाले सोलर पीवी मॉड्यूल संबंधी राष्ट्रीय कार्यक्रम” की शुरुआत की। इसमें सेल, वेफर्स, इनगॉट्स और पॉलीसिलिकॉन जैसे अलग-थलग पड़े घटक भी शामिल हैं। ये योजना सौर फोटो वोल्टाइक (पीवी) क्षेत्र में आयात निर्भरता कम करती है। इस योजना संबंधी निर्णय का अनुपालन करते हुए उच्च दक्षता वाले सौर पीवी मॉड्यूल निर्माताओं के लिए बोलियों के आमंत्रण संबंधी एक निविदा जारी की गई थी। इस निविदा को सौर पीवी मॉड्यूल निर्माताओं का काफी अच्छा रिस्पॉन्स मिला। इसमें कुल 18 बोलियां प्राप्त हुईं, जो वर्तमान 11 गीगावॉट सौर पीवी मॉड्यूल निर्माण क्षमता में लगभग 55 गीगावॉट सौर पीवी मॉड्यूल निर्माण क्षमता को जोड़ सकती हैं। तीन सफल बोलीदाताओं को 8737 मेगावॉट क्षमता की एकीकृत सौर पीवी उत्पादन इकाइयां स्थापित करने के लिए 11 नवंबर 2021 और 02 दिसंबर 2021 को आईआरईडीए की ओर से अवार्ड लेटर जारी कर दिए गए हैं।
  • सौर पार्क योजनाः व्यापक स्तर पर ग्रिड से जुड़ी सौर ऊर्जा परियोजनाओं को ध्यान में रखते हुए मार्च 2022 तक 40 गीगावॉट की लक्षित क्षमता के साथ “सौर पार्कों और अल्ट्रा मेगा सौर ऊर्जा परियोजनाओं के विकास” की एक योजना लागू की जा रही है। ये सोलर पार्क सभी वैधानिक मंज़ूरियों के साथ-साथ भूमि, बिजली, सड़क, पानी जैसी आवश्यक बुनियादी सुविधाएं प्रदान कर सौर ऊर्जा निर्माताओं को प्लग एंड प्ले मॉडल की सुविधा प्रदान करता है। 30 नवंबर 2021 तक 14 राज्यों में 37.92 गीगावॉट की संचयी क्षमता वाले 52 सौर पार्कों को मंज़ूरी दी जा चुकी है। इन पार्कों में करीब 9.2 गीगावॉट संचयी क्षमता की सौर ऊर्जा परियोजनाओं को शुरू कर दिया गया है।
  • रूफ टॉप सोलर प्रोग्राम फेज़-2: वर्ष 2021-22 तक 40 गीगावॉट की संस्थापित क्षमता के लक्ष्य के साथ रूफ टॉप सोलर सिस्टम के त्वरित परिनियोजन के लिए रूफ टॉप सोलर प्रोग्राम फेज-2 को भी लागू किया जा रहा है। यह योजना आवासीय सेक्टरों को 4 गीगावॉट तक की सोलर रूफ टॉप क्षमता विकसित करने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करती है। इस योजना में पिछले वर्ष की तुलना में अधिक उपलब्धि हासिल करने के लिए वितरण कंपनियों को प्रोत्साहित करने का प्रावधान भी है। आवासीय क्षेत्रों के लिए घरेलू स्तर पर निर्मित सौर सेल्स और मॉड्यूल का उपयोग अनिवार्य कर दिया गया है। इस योजना से उम्मीद है कि ये भारत में सौर सेल्स और मॉड्यूल निर्माण क्षमता को बढ़ाने की दिशा में प्रेरक तरीके से कार्य करेगी। 30 नवंबर 2021 तक देश में कुल 5.7 गीगावॉट क्षमता की सोलर रूफ टॉप परियोजनाओं को स्थापित किया जा चुका है। रूफटॉप सोलर प्रोग्राम फेज- 2 के अंतर्गत आवासीय क्षेत्रों के लिए 4 गीगावॉट के लक्ष्य के विपरीत, विभिन्न राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को 3.4 गीगावॉट का आवंटन किया जा चुका है और 1.07 गीगावॉट को पहले ही स्थापित किया जा चुका है।
  • केन्द्रीय सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम (सीपीएसयू) योजनाः केन्द्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों द्वारा घरेलू स्तर पर निर्मित सेल्स और मॉड्यूल के साथ 12 गीगावॉट ग्रिड-कनेक्टेड सौर पीवी विद्युत परियोजनाओं को शुरू करने के लिए एक योजना लागू की जा रही है। इस योजना के अंतर्गत व्यवहार्यता अंतर अनुदान (Viability Gap Funding ) सहायता प्रदान की जाती है। यह योजना सौर क्षमता में वृद्धि करने के अलावा घरेलू स्तर पर निर्मित सौर सेल्स/मॉड्यूल की मांग को भी बढ़ाएगी, जिससे घरेलू स्तर पर उत्पादन में मदद मिलेगी।
  • पवन ऊर्जा।

120 मीटर की हब ऊंचाई पर भारत की पवन ऊर्जा क्षमता 695 गीगावॉट है। पिछले करीब 7.5 वर्षों के दौरान पवन ऊर्जा की संस्थापित क्षमता 1.9 गुना बढ़कर लगभग 40 गीगावॉट हो गई है। 9.67 गीगावॉट की विभिन्न परियोजनाएं शुरू होने के विभिन्न चरण में हैं (30 नवंबर 2021 तक)। भारत के पास विश्व की चौथी सबसे बड़ी पवन ऊर्जा क्षमता है।

पवन ऊर्जा क्षेत्र का नेतृत्व एक मजबूत परियोजना इको-सिस्टम, संचालन क्षमता और लगभग 12 गीगावॉट प्रति वर्ष की विनिर्माण क्षमता के साथ स्वदेशी पवन ऊर्जा उद्योग द्वारा किया जाता है। विंड टर्बाइन मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र की सभी प्रमुख कंपनियों की हमारे देश में उपस्थिति है, और 15 से अधिक अलग-अलग कंपनियों द्वारा लाइसेंस प्राप्त उत्पादन के अंतर्गत संयुक्त उद्यम, विदेशी कंपनियों की सहायक कंपनियों और भारतीय कंपनियों की अपनी खुद की तकनीक के माध्यम से पवन टर्बाइन के 35 से अधिक विभिन्न मॉडलों का निर्माण यहाँ किया जा रहा है। भारत में पवन टर्बाइन की इकाइयों का आकार बढ़कर 3.6 मेगावॉट हो गया है।

सरकार ने भारत की तटरेखा के साथ लगने वाली अपतटीय पवन ऊर्जा की क्षमता का दोहन करने के लिए अपतटीय पवन ऊर्जा नीति को अधिसूचित कर दिया है। मंत्रालय गुजरात और तमिलनाडु के तटों पर अपतटीय पवन परियोजनाओं की स्थापना के लिए रणनीति और खाका तैयार कर रहा है।

मंत्रालय ने ट्रांसमिशन के बुनियादी ढांचे और भूमि के सर्वोत्तम एवं कुशल उपयोग, नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन में परिवर्तनशीलता को कम करने और बेहतर ग्रिड स्टेबिलिटी प्राप्त करने के उद्देश्य से बड़े ग्रिड से जुड़ी पवन-सौर पीवी हाइब्रिड परियोजनाओं को बढ़ावा देने के लिए एक दिशा प्रदान करने वाली पवन सौर हाइब्रिड नीति संबंधी अधिसूचना जारी कर दी है। 30 नवंबर 2021 तक 3.75 गीगावॉट क्षमता की पवन-सौर हाइब्रिड परियोजनाओं का कार्य सौंप दिया गया है, जिसमें से 0.2 गीगावॉट क्षमता की परियोजनाओं को शुरू कर दिया गया है। इसके अलावा, 1.7 गीगावॉट की पवन-सौर हाइब्रिड परियोजनाएं बोली के विभिन्न चरणों में हैं।

  • ऑफ-ग्रिड सोलर पीवी एप्लिकेशंस प्रोग्राम फेज़-3: 30 मार्च 2021 तक सोलर स्ट्रीट लाइटें, सोलर स्टडी लैंप और सोलर पावर पैक्स के लिए ऑफ-ग्रिड सोलर पीवी एप्लिकेशंस प्रोग्राम फेज़-3 उपलब्ध था। राज्य नोडल एजेंसियों (एसएनए) से प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार 30 नवंबर 2021 तक 1.45 लाख से अधिक सोलर स्ट्रीट लाइटें लगाई गईं, 9.03 लाख सोलर स्टडी लैंप वितरित किए गए और 2.5 मेगावाट के सोलर पावर पैक्स स्थापित किए गए।
  • अटल ज्योति योजना (अजय) फेज़- 2: सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास निधि (एमपीलैड फंड) से 25% फंड योगदान के साथ अजय फेज़-2 के तहत सौर स्ट्रीट लाइटें लगाने की योजना को 1 अप्रैल 2020 से बंद कर दिया गया था, क्योंकि सरकार ने एमपीलैड फंड को अगले दो वर्षों 2020-21 और 2021-22 के लिए बंद करने का निर्णय लिया था। हालाँकि इस योजना के तहत मार्च 2020 तक मंज़ूर की गईं 1.5 लाख सोलर स्ट्रीट लाइटें लगाने का काम निर्बाध गति से जारी था। जानकारी के अनुसार 30 नवंबर 2021 तक 1.21 लाख स्ट्रीट लाइटें लगाई जा चुकी हैं और शेष स्ट्रीट लाइटों को लगाने का कार्य दिसंबर 2021 तक पूरा करने का लक्ष्य तय किया गया है।
  • हरित ऊर्जा गलियारा (ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर)

नवीकरणीय ऊर्जा की निकासी को आसान बनाने और भविष्य की ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए ग्रिड को फिर से आकार देने के क्रम में ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर (जीईसी) परियोजनाएं शुरू की गई हैं। योजना का पहला भाग, 3200 सर्किट किलोमीटर (सीकेएम) ट्रांसमिशन लाइनों और 17,000 एमवीए क्षमता के उप-स्टेशनों की लक्षित क्षमता वाला अंतर-राज्यीय जीईसी, मार्च 2020 में पूरा हुआ। योजना का दूसरा भाग, 9700 सर्किट किलोमीटर (सीकेएम) ट्रांसमिशन लाइनों और 22,600 एमवीए क्षमता के उप-स्टेशनों की लक्षित क्षमता वाले अंतर-राज्यीय जीईसी का कार्य जून 2022 तक पूरा होने का अनुमान है। 30 नवंबर 2021 तक 8434 सर्किट किलोमीटर (सीकेएम) ट्रांसमिशन लाइनों का निर्माण किया गया है और 15268 एमवीए के उप-स्टेशनों को चार्ज किया गया है।

  • बिजली उत्पादन के लिए अन्य नवीकरणीय संसाधन

मंत्रालय की ओर से निम्नलिखित जैव-ऊर्जा योजनाएं संचालित की जा रही थीं:

  • शहरी, औद्योगिक और कृषि अपशिष्टों/अवशेषों से ऊर्जा उत्पादन संबंधी कार्यक्रम
  • चीनी मिलों और अन्य उद्योगों में बायोमास आधारित बिजली उत्पादन को प्रोत्साहन देने के लिए योजना
  • बायोगैस पावर (ऑफ-ग्रिड) जेनरेशन और थर्मल एप्लीकेशन प्रोग्राम (बीपीजीटीपी)
  • नवीन राष्ट्रीय बायोगैस और जैविक खाद कार्यक्रम (NNBOMP)

 

नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय उपर्युक्त योजनाओं को 2020-21 से लागू कर रहा है। जो कार्यक्रम 31 मार्च 2021 तक वैध थे, उन्हें ईएफसी द्वारा वित्त वर्ष 2021-22 से 2025-26 की अवधि तक जारी रखने की सिफारिश की गई है, ताकि ये पहले से निर्धारित ज़िम्मेदारियों को पूरा कर सकें। ऐसे में 31 मार्च 2021 के बाद कोई भी नई परियोजना स्वीकृत नहीं की गई।

30 नवंबर 2021 तक बायोमास बिजली और कोजेनरेशन परियोजनाओं की संस्थापित क्षमता लगभग 9.4 गीगावॉट (बगैस) और 0.77 GWeq (गैर-बगैस), ऊर्जा परियोजनाओं की क्षमता 199.14 मेगावॉट (ग्रिड कनेक्टेड) और 234.97 MWeq (ऑफ ग्रिड), और 1146 छोटी जल विद्युत परियोजनाओं से लगभग 4.83 गीगावॉट क्षमता वाली छोटी पनबिजली परियोजनाएं संचालित हो रही थीं।

  1. नीतियाँ और पहलः
  • विभिन्न परियोजनाओं के लिए सौर और पवन ऊर्जा की अंतर-राज्यीय बिक्री संबंधी इंटर स्टेट ट्रांसमिशन सिस्टम (आईएसटीएस) शुल्क में छूट को 30 जून 2025 से लागू किया जाएगा।
  • विद्युत प्रणाली को कार्बन मुक्त करने एवं ऊर्जा सुरक्षा हासिल करने के भारत के दीर्घकालिक लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए और जुलाई 2016 की हमारी अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धता के तहत वर्ष 2021-22 तक सभी राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों पर समान रूप से लागू दीर्घकालिक नवीकरणीय खरीद दायित्व संबंधी निर्देशों को अधिसूचित किया गया। इसके अलावा, विद्युत मंत्रालय ने 29 जनवरी 2021 को गैर-सौर नवीकरणीय खरीद दायित्व (आरपीओ) के अंतर्गत जलविद्युत खरीद दायित्व (एचपीओ) को शामिल किया और 2029-30 तक एचपीओ सहित 2019-20 से 2021-22 के लिए दीर्घकालिक अपडेटेड आरपीओ ट्रैजेक्ट्री को अधिसूचित किया।
  • बिजली अधिनियम, 2003 की धारा 63 के अंतर्गत सौर और पवन ऊर्जा की खरीद के लिए प्रतिस्पर्धी बोली दिशानिर्देश अधिसूचित किए गए हैं। ये दिशानिर्देश खरीद प्रक्रिया के मानकीकरण और एकरूपता तथा विभिन्न हितधारकों के बीच जोखिम को साझा करने के लिए एक रूपरेखा प्रदान करते हैं, जिससे निवेश को बढ़ावा मिलता है, बाज़ार में विश्वसनीयता बढ़ती है और परियोजनाओं के लिए लाभप्रदता में सुधार होता है। ये दिशानिर्देश खरीद प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और निष्पक्षता लाने का काम भी करते हैं। पारदर्शिता और निष्पक्षता की वजह से ही पिछले कुछ वर्षों में सौर और पवन ऊर्जा की कीमतों में भारी गिरावट भी आई है। दिसंबर 2020 में गुजरात ऊर्जा विकास निगम लिमिटेड (जीयूवीएनएल) द्वारा 500 मेगावाट क्षमता की परियोजनाओं की नीलामी में सोलर पीवी पावर टैरिफ घटकर अब तक के सबसे निचले स्तर 1.99 रुपये प्रति यूनिट पर पहुंच गया था।
  • भुगतान की सुरक्षा सुनिश्चित कर निवेशकों में विश्वास पैदा करने और स्वतंत्र बिजली निर्माताओं को भुगतान में होने वाली देरी से संबंधित जोखिमों से निपटने में मदद करने के लिए डिस्कॉम (DISCOM) को ऋण पत्र (एलसी) जारी करने का अधिकार दिया गया है।
  • घरेलू स्तर पर बिजली उत्पादन के इको-सिस्टम को मज़बूत और व्यापक बनाने के प्रयास किए गए हैं। पीएम-कुसुम, सोलर रूफटॉप और सीपीएसयू जैसी योजनाओं में घरेलू सामग्री आवश्यकता (Domestic Content Requirement) की अनिवार्य शर्त रखी गई है, जिससे घरेलू स्तर पर 36 गीगावॉट से भी अधिक सोलर पीवी (सेल्स और मॉड्यूल) की मांग हो रही है। विदेशों से आयात किए जाने वाले सोलर पीवी सेल्स और मॉड्यूल्स के प्रसार को रोकने के उद्देश्य से 30 जुलाई 2018 से लेकर अलग दो वर्षों के लिए एक सुरक्षा शुल्क लगाया गया था। आगे इस शुल्क को और बढ़ाया गया। 30 जुलाई 2020 से 29 जनवरी 2021 के दौरान आयात पर इसकी दर 14.90 प्रतिशत, जबकि 30 जनवरी 2021 से 29 जुलाई 2021 के दौरान आयात पर इसकी दर 14.50 प्रतिशत थी। सरकार ने 01 अप्रैल 20222 से सौर पीवी मॉड्यूल के आयात पर 40 फीसदी और सौर पीवी सेल्स के आयात पर 25 फीसदी की दर से मूल सीमा शुल्क (बीसीडी) लगाने का निर्णय लिया है।
  1. हाइड्रोजन मिशन

प्रधानमंत्री ने 15 अगस्त 2021 को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर अपने भाषण में राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन के शुभारंभ की घोषणा की और भारत को ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन और निर्यात की दिशा में वैश्विक हब बनाने का संकल्प लिया। राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन दस्तावेज़ का मसौदा अभी अंतर-मंत्रालयीय स्तर पर विचाराधीन है।

यह मिशन अन्य बातों के साथ-साथ पेट्रोलियम रिफाइनिंग और उर्वरक उत्पादन जैसे क्षेत्रों में हरित हाइड्रोजन की मांग पैदा करने, महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों के स्वदेशी निर्माण में मदद करने, अनुसंधान एवं विकास गतिविधियां, और एक सक्षम नीति और नियामक ढांचा बनाने की दिशा में एक प्रभावशाली ढांचा तैयार करने का प्रस्ताव करता है। इन प्रस्तावित पहलों से ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन के लिए अतिरिक्त नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता का विकास होगा।

  1. वन सन- वन वर्ल्ड- वन ग्रिड (OSOWOG)

OSOWOG विषय पर अध्ययन के लिए 08 सितंबर 2021 को नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE), अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) और विश्व बैंक के बीच एक त्रिपक्षीय समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए गए। वर्तमान में, इस काम के लिए नियुक्त गए एक सलाहकार द्वारा अध्ययन के कार्यान्वयन की योजना, रोडमैप और संस्थागत ढांचे को विकसित करने की दिशा में कार्य किया जा रहा है। इस संबंध में सलाहकार ने अपनी शुरुआती रिपोर्ट सितंबर 2021 में ही जमा कर दी थी। इस स्टडी के वर्ष 2022 के मध्य तक संपन्न होने की उम्मीद है।

  1. अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन

भारत के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और फ्रांस के राष्ट्रपति ने 30 नवंबर 2015 को पेरिस, फ्रांस में एक अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (आईएसए) की शुरुआत की थी। 06 दिसंबर 2017 को 15 देशों ने आईएसए के फ्रेमवर्क समझौते पर हस्ताक्षर कर इसका समर्थन किया, इसके साथ ही आईएसए पहला अंतरराष्ट्रीय अंतर-सरकारी संगठन बन गया, जिसका मुख्यालय भारत में स्थित है।

15 जुलाई 2020 को एक संशोधन पारित हुआ, जो संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों सहति विभिन्न देशों को आईएसए में शामिल होने में सक्षम बनाता है। आईएसए के फ्रेमवर्क एग्रीमेंट पर 30 नवंबर 2021 तक 101 देश हस्ताक्षर कर चुके हैं। इनमें से 80 देशों ने इसकी पुष्टि भी की है।

  1. मुद्दे/चुनौतियां
  • प्रतिस्पर्धी शर्तों पर आवश्यक वित्त और निवेश की व्यवस्था करना, बड़ी परियोजना लक्ष्यों को पूरा करने के उद्देश्य से वित्त व्यवस्था के लिए बैंकिंग क्षेत्र को तैयार करना, कम ब्याज दर के रास्ते तलाशना, लंबी अवधि के अंतरराष्ट्रीय फंडिंग जुटाना, और तकनीकी एवं वित्तीय बाधाओं का समाधान निकालने के लिए जोखिम कम या साझा करने की दिशा में एक उपयुक्त तंत्र विकसित करना वर्तमान में सबसे बड़ी चुनौतियां हैं। किसानों को उद्यमी बनने और भारत की विकास गाथा में भाग लेने का अवसर प्रदान करने वाली पीएम-कुसुम योजना के शुभारंभ के साथ ही आकर्षक शर्तों पर धन जुटाने की आवश्यकता और ज़्यादा बढ़ गई है। निवेश जोखिमों को कम करने और मंज़ूरी प्रक्रियाओं को आसान बनाने के लिए चल रहे प्रयासों को भी मजबूत करने की आवश्यकता होगी।
  • भूमि अधिग्रहणः नवीकरणीय ऊर्जा के विकास में भूमि अधिग्रहण प्रमुख चुनौतियों में से एक है। आरई क्षमता वाली भूमि की पहचान, उसका कंवर्जन (यदि आवश्यक हो), भूमि सीलिंग अधिनियम से मंजूरी, भूमि पट्टे के किराए संबंधी निर्णय, राजस्व विभाग से मंजूरी, और ऐसी अन्य मंजूरियां लेने में समय लगता है। आरई परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण में राज्य सरकारों को प्रमुख भूमिका निभानी होगी।
  • देश में नवाचार और विनिर्माण के अनुकूल इको-सिस्टम का निर्माण करना
  • नवीकरणीय ऊर्जा के बड़े हिस्से को ग्रिड के साथ एकीकृत करना
  • नवीकरणीय ऊर्जा से फर्म और प्रेषण योग्य बिजली की आपूर्ति को सक्षम बनाना
  • तथाकथित ऐसे क्षेत्र जहाँ कार्बन कम करना मुश्किल है, वहां तक नवीकरणीय ऊर्जा को पहुंचाना। कोविड-19 महामारी के बीच आरई क्षेत्र की सुविधा के लिए एमएनआरई द्वारा कुछ कदम:
  1. कोविड-19 महामारी के दौरान नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र की सुविधा के लिए एमएनआरई द्वारा उठाए गए कुछ कदम:
  • लॉकडाउन में नवीकरणीय ऊर्जा प्लांट्स का बिना किसी रुकावट के सुचारू रूप से परिचालनः

नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय कोविड महामारी के चलते राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के दौरान राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों से आग्रह किया था कि वे अपने यहाँ नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन स्टेशनों (आरईजीएस) (सौर ऊर्जा प्लांट्स, पवन बिजली प्लांट्स, सोलर-पवन हाइब्रिड बिजली प्लांट्स, छोट पनबिजली प्लांट्स, बायोमास/बायोगैस बिजली प्लांट्स आदि) में बिना किसी रुकावट के आवश्यक परिचालन की सुविधा प्रदान करें और इन प्लांट्स के लिए आवश्यक सामग्री को लाने-ले जाने की सुविधा/अनुमति प्रदान करें।

  • लॉकडाउन और कोविड-19 के मद्देनज़र लगभग साढ़े सात महीने का समय-विस्तारः

नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने कोविड-19 के कारण पैदा हुई लॉकडाउन जैसी अप्रत्याशित परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, निर्धारित नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं को पूरा करने के लिए करीब साढ़े सात महीने का समय-विस्तार संबंधी आदेश जारी किए।

  • बिल की सुविधाः हस्ताक्षर वाली हार्ड कॉपी की अनिवार्यता में छूट

एमएनआरई ने हस्ताक्षर वाली हार्ड कॉपी जमा करने पर जोर दिए बिना, ईमेल पर चालान स्वीकार करने के संबंध में निर्देश जारी किए थे  और ऐसे मामलों में जहां लॉकडाउन के कारण संयुक्त मीटर रीडिंग (जेएमआर) पर हस्ताक्षर नहीं किया जा सकता है, वहां आरई डेवलपर्स द्वारा मीटर रीडिंग/डाउनलोड किए गए मीटर डाटा की तस्वीर के आधार पर चालान की स्वीकृति की अनुमति दी गई।

  • मस्ट रन, समय पर भुगतान और किसी भी तरह की बाधा न होने पर जोरः

नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने स्पष्टीकरण जारी कर कहा था कि नवीकरणीय ऊर्जा (आरई) उत्पादन स्टेशनों को 'मस्ट-रन' का दर्जा दिया गया है, और ये मस्ट-रन का दर्जा लॉकडाउन की अवधि के दौरान भी जस का तस बना रहता है, इसलिए लॉकडाउन के दौरान भी इन स्टेशनों का बिना किसी रुकावट के परिचालन सुनिश्चित होना चाहिए। मंत्रालय ने डिस्कॉम (DISCOM) को निर्देश देते हुए कहा कि चूंकि नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन स्टेशनों में देश के कुल बिजली उत्पादन का एक छोटा हिस्सा होता है, ऐसे में नवीकरणीय ऊर्जा स्टेशनों को नियमित आधार पर भुगतान जाना चाहिए, ठीक वैसे ही जैसे लॉकडाउन से पहले किया जा रहा था।   

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