विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय
परमाणु तंत्र में अल्ट्रालो तापमान पर तरंगों के बीच लंबे समय तक रहने वाले सहसंबंधों का लाभ प्रभावी क्वांटम कंप्यूटिंग के लिए उठाया जा सकता है
Posted On:
30 DEC 2021 4:39PM by PIB Delhi
वैज्ञानिकों द्वारा तरंगों को मापने के लिए विकसित की गई नई तकनीक की मदद से एक अध्ययन किया गया है जिसमें यह पता चला है कि एटॉमिक सिस्टम में अल्ट्रा लो तापमान पर तरंगों का सह संबंध लंबे समय तक रहता है। लंबे समय तक रहने वाली स्पिन सुसंगतता वाला सिस्टम क्वांटम कंप्यूटर के रूप में एक बेहतर संसाधन है। यह क्वांटम संचालन और लॉजिक गेट्स को अधिक कुशलता से लागू करने में सुलभ बना देता है। इसकी मदद से सिस्टम उन प्रणालियों की तुलना में बेहतर क्वांटम सेंसर बन सकता है जहां सुसंगतता अल्पकालिक है।
परमाणु प्रणालियों में कम तापमान पर खोजी गई इस नई तकनीक का उपयोग कुशल क्वांटम सेंसिंग और क्वांटम सूचना प्रसंस्करण में क्वांटम गणना और सुरक्षित संचार में लागू करने के लिए किया जा सकता है। नई खोजी गई तकनीक बिना किसी बदलाव के क्वांटम चरण संक्रमण जैसे क्वांटम फेनोमेना की रीयल टाइम में गतिशीलता का अध्ययन करने में मदद कर सकती है।
स्पिन, परमाणु और इलेक्ट्रॉनों तथा प्रोटॉन जैसे प्राथमिक कणों की एक मौलिक क्वांटम प्रॉपर्टी होती है। परमाणुओं को जैसे-जैसे कम तापमान पर ठंडा किया जाता है, उनकी क्वांटम प्रकृति अधिक प्रमुखता से सामने आती है। हालांकि स्पिन डिग्री मुक्त होती है इस पर तो काफी चर्चा होती रहती है, लेकिन विशेषरूप से क्वांटम सूचना प्रसंस्करण के संदर्भ में अल्ट्रालो तापमान में स्पिन पर गतिशील माप उपलब्ध नहीं था। ऐसा इसलिए था क्योंकि ठंडे परमाणु प्रयोगों में अधिकांश पता लगाने की तकनीक निष्क्रिय हो जाती है और पता लगाने की प्रक्रिया में परमाणु नमूने को बाधित करती है।
भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के एक स्वायत्त संस्थान, रमन अनुसंधान संस्थान, बैंगलोर के वैज्ञानिकों की एक टीम ने स्वयं की तैयार की गई नई विधि का उपयोग करके सूक्ष्म-केल्विन तापमान तक ठंडा किए गए परमाणुओं के स्पिन गुणों को मापा है। आमतौर पर इस तापमान (पूर्ण शून्य तापमान के बहुत करीब) पर अध्ययन में क्वांटम प्रॉपर्टी प्रभावी होती है, लेकिन यह पहली बार है कि ध्रुवीय उतार-चढ़ाव माप का उपयोग करके इस तापमान व्यवस्था में स्पिन गतिकी का पता लगाया गया है।
नई तकनीक की मदद से वैज्ञानिकों ने स्पिन की प्रॉपर्टी और एक परमाणु स्पिन के पूरे जीवनकाल को पता लगाने की संवेदनशीलता में मौजूदा तकनीक की तुलना में लाखों गुणा सुधार किया है और स्पिन के गुणों मापा है। उन्होंने साबित किया कि इस कम तापमान पर स्पिन सुसंगतता लंबे समय तक रहती है।
इस अध्ययन के लिए वैज्ञानिकों के दल का नेतृत्व किया संजुक्ता रॉय, दिब्येंदु रॉय और सप्तऋषि चौधरी ने तथा आरआरआई के पीएच.डी. छात्र महेश्वर स्वर और सुभाजीत भर ने सुसंगत लेजर ड्राइव का उपयोग करके स्पिन शोर की सिग्नल शक्ति को दस लाख गुना बढ़ा दिया। उन्होंने स्पिन शोर स्पेक्ट्रोस्कोपी तकनीक को स्पेक्ट्रोस्कोपिस्ट मापने वाली प्रणालियों के लिए प्रयोग करने योग्य बनाया जहां सिग्नल का स्तर बहुत कम होता है जिससे पता चलना मुश्किल होता है। यह शोध फिजिकल जर्नल में प्रकाशित हुआ है। इस शोध के लिए वित्तीय सहायता इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (एमईआईटीवाई) के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) द्वारा उपलब्ध कराई गई।
आरआरआई के इस शोध दल के अनुसार, यह कार्य नोबेल पुरस्कार विजेता सर सी वी रमन के प्रकाश प्रकीर्णन पर मौलिक कार्य से मूलतः प्रेरित है। उन्होंने निरपेक्ष शून्य तापमान के पास तटस्थ परमाणुओं को ठंडा करने के लिए लेजर शीतलन तकनीक का उपयोग किया और इन ठंडे परमाणुओं में क्वांटम संक्रमणों को सुसंगत रूप से चलाने के लिए लेजर प्रकाश का उपयोग किया और इन परमाणुओं में स्पिन गतिकी का ठीक-ठीक पता लगाने के लिए एक पोलरिमेट्रिक डिटेक्शन तकनीक का उपयोग किया। आखिरकार, उन्होंने ठंडे परमाणुओं में स्पिन के जीवनकाल को निर्धारित किया और पाया कि वे लंबे समय तक लगभग एक मिलीसेकंड जीवित रहे, जो कमरे के तापमान पर परमाणुओं के स्पिन जीवनकाल से कम से कम एक हजार गुना अधिक है। आरआरआई टीम ने उन्नत क्वांटम यांत्रिक अवधारणाओं के आधार पर सैद्धांतिक ढांचे की मदद से अवलोकनों को समझाया।
आरआरआई टीम ने इस नई तकनीक के महत्व के बारे में बताते हुए कहा कि जहां पहले से उपलब्ध तकनीक का उपयोग करके समूह में परमाणु गुणों का पता लगाया जाता था वहीं इस नई महत्वपूर्ण तकनीक की मदद से परमाणुओं की स्पिन-गतिशीलता का एकल-परमाणु स्तर पर पता लगाया जा सकता है।"
अध्ययन दल के अनुसार, इस तकनीक का उपयोग ऐसे उपकरण बनाने के लिए किया जा सकता है जो छोटे चुंबकीय क्षेत्रों का सटीक रूप से पता लगा सकते हैं, जिनका उपयोग खनन और पूर्वेक्षण में महत्वपूर्ण होता है। यह अनुसंधान बायोमेडिकल इमेजिंग के लिए भी महत्वपूर्ण होगा, जहां छोटे चुंबकीय क्षेत्रों के समय-समाधान माप की आवश्यकता होती है।
शोध प्रकाशन लिंक: DOI: 10.1103/PhysRevResearch.3.043171
और अधिक जानकारी के लिए, सप्तर्षि चौधरी के इस ईमेल अड्रेस (srishic@rri.res.in) पर संपर्क किया जा सकता है।
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