पृथ्‍वी विज्ञान मंत्रालय

भारत और वियतनाम ने आज समुद्र विज्ञान तथा पारिस्थितिकी में वैज्ञानिक तथा तकनीकी सहयोग को बढ़ावा देने के लिए एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए


यह एमओयू दोनों देशों के बीच समुद्र विज्ञान तथा पारिस्थितिकी से संबंधित पहला समझौता है

केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने वियतनाम के आगंतुक प्राकृतिक संसाधन तथा पर्यावरण मंत्री श्री ट्रान होंग हा के साथ बातचीत में भारतीय शिष्टमंडल का नेतृत्व किया

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा, समुद्री परिसंपत्तियों की खोज विश्व समुद्री अर्थव्यवस्था में अंतरराष्ट्रीय सहयोग के एक नए युग का सूत्रपात करेगी

Posted On: 17 DEC 2021 6:39PM by PIB Delhi

वियतनाम के प्राकृतिक संसाधन तथा पर्यावरण मंत्री श्री ट्रान होंग हा ने आज केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह के साथ यहां पृथ्वी भवन में मुलाकात की और दोनों देशों के बीच शिष्टमंडल स्तर की बातचीत के दौरान महासागर तथा समुद्र संबंधित सहयोग पर चर्चा की।

दोनों मंत्रियों ने आज समुद्र विज्ञान तथा पारिस्थितिकी में वैज्ञानिक तथा तकनीकी सहयोग को बढ़ावा देने के लिए अब तक के पहले समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए। केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने भारत सरकार की तरफ से तथा प्राकृतिक संसाधन तथा पर्यावरण मंत्री (एमओएनआरई) श्री ट्रान होंग हा ने वियतनाम की सरकार की तरफ से एमओयू पर हस्ताक्षर किया। यह एमओयू दोनों देशों के बीच समुद्र विज्ञान तथा पारिस्थितिकी से संबंधित पहला समझौता है।

श्री ट्रान होंग हा के नेतृत्व में वियतनाम के शिष्टमंडल में वियतनाम सरकार के अंतरराष्ट्रीय सहयोग के उप महानिदेशक टुआन नेगोक ली, भारत में वियतनाम के दूतावास के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी कार्यालय के प्रमुख श्री ली ट्रुआंग जियांग, भारत में वियतनाम के दूतावास के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी कार्यालय के प्रतिनिधि अधिकारी श्री एंडी बुई तथा अन्य वरिष्ठ अधिकारी शामिल थे जबकि केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह के नेतृत्व में भारतीय शिष्टमंडल में पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय में सचिव डॉ. एम रविचंद्रन, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय में संयुक्त सचिव श्रीमती इंदिरा मूर्ति, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय में वैज्ञानिक डॉ. विजय कुमार, वैज्ञानिक गोपाल अयंगर, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय में वैज्ञानिक परविंदर मणि, वैज्ञानिक के आर मंगलला, वैज्ञानिक पी के श्रीवास्तव तथा अन्य लोग शामिल थे। भारत सरकार के विदेश मंत्रालय का प्रतिनिधित्व भारत कुठारी एवं नीथु राजन ने किया।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि समुद्री परिसंपत्तियों की खोज विश्व समुद्री अर्थव्यवस्था में अंतरराष्ट्रीय सहयोग के एक नए युग का सूत्रपात करेगी। उन्होंने कहा कि द्विपक्षीय समझौता तटीय रेखा परिवर्तन, तलछट्ट परिवहन दर, तटीय सुरक्षा उपायों से संबंधित सूचना और संसाधन साझा करने का मार्ग प्रशस्त होगा। डॉ. सिंह ने कहा कि वियतनाम की तरफ से तथा भारतीय विशेषज्ञों द्वारा अग्रगामी स्थान की पहचान एक तटीय सुरक्षा समाधान विकसित करने में तकनीकी सहायता उपलब्ध कराएगी।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि भारत प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सामुद्रिक वैज्ञानिक अनुसंधान में अग्रिम पंक्ति के देशों में एक के रूप में उभरा है और अब यह देश के लिए भविष्य की ऊर्जा तथा धातु मांगों को पूरा करने के लिए संसाधनों से पूर्ण महासागर तल की खोज में सक्रियतापूर्वक जुड़ा है। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार द्वारा शुरु की गई ‘‘गहरा महासागर मिशन‘‘ ने ‘ब्लू इकानोमी‘ को समृद्ध बनाने के लिए विभिन्न संसाधनों के एक और क्षितिज का सूत्रपात किया है।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि भारत और वियतनाम समुद्र विज्ञान में अनुसंधान को आगे बढ़ाने, महासागरों की और अधिक मौलिक समझ अर्जित करने और समग्र रूप् से समाज को लाभान्वित करने के लक्ष्यों के साथ मूलभूत वैज्ञानिक और व्यवहारिक अनुसंधान को और आगे बढ़ाने के लिए सहयोग की शुरुआत करेंगे। उन्होंने कहा कि दोनों ही देशों ने समुद्र विज्ञान तथा पारिस्थितिकी के क्षेत्रों में सहयोगात्मक अनुसंधान करने पर भी सहमति जताई है और निकट भविष्य में दोनों ही देशों द्वारा समान हितों के क्षेत्र में इन्हें आरंभ किया जाएगा।

वियतनाम के प्राकृतिक संसाधन तथा पर्यावरण मंत्री (एमओएनआरई) श्री ट्रान होंग हा ने दीर्घकालिक महासागर योजना निर्माण तथा महासागर प्रबंधन संसाधनों में भारत से सहायता प्राप्त करने की इच्छा व्यक्त की। श्री ट्रान होंग हा ने महासागर परिसंपत्ति अन्वेषण में सहयोग को सुदृढ़ बनाने के लिए दोनों देशों के वैज्ञानिकों एवं विशेषज्ञों की नलाइन बातचीत को भी रेखांकित किया।

दोनों देशों द्वारा सहमत भारत-वियतनाम एमओयू के तहत सहयोग के सात प्रमुख क्षेत्र हैं। सहयोग के इन चिन्हित क्षेत्रों का उद्देश्य भारत और वियतनाम द्वारा समुद्री संसाधनों का सतत विकास करना है। प्रमुख क्षेत्र हैं तटीय क्षरण और संवेदनशीलता, तटीय प्रबंधन, समुद्री पारिस्थितिकी और महत्वपूर्ण वासों की निगरानी और मानचित्रण, महासागर अवलोकन प्रणाली, समुद्री प्रदूषण तथा सूक्ष्म प्लास्ट्क्सि, समुद्री मौसम पूर्वानुमान और क्षमता निर्माण।

एमओयू के एक हिस्से के रूप में, दोनों देश वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं, तकनीकी विशेषज्ञों, परियोजनाओं और समुद्री विज्ञान और प्रौद्योगिकी में सूचना के आदान प्रदान को सुगम बनाएंगे। वे ज्ञान, मौलिक अनुसंधान और महासागर के स्वास्थ्य और संसाधनों के वृहद लाभ की समझ को बढ़ाने में एक दूसरे की सहायता करेंगे। सहयोग के नए क्षेत्रों, कार्यक्रमों एवं प्रस्तावों को तैयार करने, एमओयू अधिदेशों के लिए योजना बनाने तथा उन्हें कार्यान्वित करने के लिए वित्तीय सहायता उपलब्ध कराने, प्रशासनिक और तकनीकी प्रक्रियाओं पर निर्णय करने तथा कार्य की प्रगति की निगरानी करने से संबंधित सुझाव देने के लिए एक संयुक्त समिति की स्थापना भी की जाएगी।

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय में सचिव डॉ. एम रविचंद्रन ने कहा, ‘भारत-वियतनाम एमओयू तब और भी महत्वपूर्ण और प्रासंगिक बन जाता है जब संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस दशक को महासागर के दशक के रूप में मान्यता दी है। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय अवलोकन, पूर्वानुमानों, अनुसंधान एवं विकास तथा संसाधनों के सतत उपयोग जैसे परस्पर आपसी समाजगत लाभ के क्षेत्रों में सहयोग करने के लिए इच्छुक है।

यह एमओयू पांच वर्षों की अवधि के लिए वैध बना रहेगा और उसके बाद के पांच वर्षों की अवधि के लिए केवल एक बार स्वाभविक रूप से इसका नवीनीकरण हो जाएगा। इन दोनों में से कोई भी एक देश एमओयू की समाप्ति से पूर्व इस एमओयू को खत्म करने के इरादे से कम से कम छह महीने पहले दूसरे देश को लिखित नोटिस दे सकता है।

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