जल शक्ति मंत्रालय

एनएमसीजी ने स्टॉकहोम विश्व जल सप्ताह- 2021 के चौथे दिन 'जीरो लिक्विड डिस्चार्ज सिटीज' विषय पर सत्र आयोजित किया

Posted On: 26 AUG 2021 7:20PM by PIB Delhi

स्वच्छ गंगा के लिए राष्ट्रीय मिशन ने स्टॉकहोम विश्व जल सप्ताह- 2021 के अंतिम दिन 'जीरो लिक्विड डिस्चार्ज सिटीज' पर तीसरी बैठक एवं सत्र का आयोजन किया और श्री सुमौलेंद्र घोष, केपीएमजी ग्लोबल वाटर लीड ने इस सत्र का संचालन किया। उन्होंने सभी का स्वागत करते हुए एनएमसीजी को एक एकीकृत मिशन के रूप में पेश किया, जो गंगा नदी बेसिन के पुनरुद्धार, संरक्षण और इसकी सुरक्षा पर केंद्रित है। यह विश्व की सबसे बड़ी नदी घाटियों में से एक है। इस सत्र के संदर्भ में उन्होंने शून्य तरल निर्वहन (जेडएलडी) के बारे में विस्तार से बताया, जो एक प्रसिद्ध अवधारणा है लेकिन इस समय केवल उद्योगों से जुड़ी है और यही उचित समय है जब इसे भारतीय शहरों तक विस्तारित किया जा सकता है। हम सभी जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न खतरों जैसे बाढ़, समुद्र के स्तर में वृद्धि या सूखे जैसी समस्याओं से परिचित है। भारत के अनेक देशों के साथ-साथ विश्व के बड़े शहर भी गंभीर जल सुरक्षा के खतरे का सामना कर रहे हैं तथा इस प्रकार के संकट से निपटने के लिए हमें अपशिष्ट जल के पुनर्चक्रण और उसके पुनः उपयोग पर जोर देने की आवश्यकता है। उन्होंने अपने समापन संबोधन में कहा कि कार्बन उत्सर्जन में नेट जीरो की तरह ही शून्य तरल निर्वहन की अवधारणा उपचारित अपशिष्ट जल के पुनः उपयोग को बढ़ाने में मददगार साबित हो सकती है।

इसके पश्चात उन्होंने एनएमसीजी के महानिदेशक श्री राजीव रंजन मिश्रा को उपचारित अपशिष्ट जल के पुनः इस्तेमाल के साथ-साथ क्रियान्वयन संबंधित चुनौतियों तथा नीतिगत उपायों पर चर्चा करने और उद्योगों एवं मंत्रालयों के सहयोग से एनएमसीजी के लिए किए गए कार्यों पर चर्चा करने के लिए आमंत्रित किया। श्री मिश्रा ने कहा कि यह एक आकांक्षापूर्ण विषय है और इसे हासिल करने के लिए उद्योगों को पहले ही इसके लिए प्रेरित किया जा रहा है लेकिन जेडएलडी के लक्ष्य को हासिल करने के लिए शहरों को अपना ध्यान केन्द्रित करने की आवश्यकता है। गंगा बेसिन देश के सबसे महत्वपूर्ण और विशिष्ट नदी घाटी क्षेत्र में से एक है और नदी को स्वच्छ बनाए रखने के लिए बायोमेडिकल इंजीनियरिंग में नवाचार और अनुसंधान (आईआरबीएम) तथा शहरी नदी प्रबंधन योजना की दिशा में कदम उठाए जा रहे है। उन्होंने कहा,  ‘हमें पारिस्थितिकी और आर्थिक जरूरतों सहित समग्र जल चक्र पर ध्यान केन्द्रित किए जाने की आवश्यकता है और कुछ भी बर्बादी नहीं होना चाहिए।’ उन्होंने यह भी कहा कि हमें अपनी नदियों में अपशिष्ट जल प्रवाहित नहीं करना चाहिए और इस प्रकार के जल की कार्य क्षमता, पुनर्चक्रण और इस्तेमाल के आधार पर उसे अलग-अलग नाम देने पर विचार करना चाहिए।

एनएमसीजी के महानिदेशक ने शहरी स्तर पर जेडएलडी के लक्ष्य को हासिल करने के लिए नीतियों को विकसित करने तथा अन्य परिचालन संबंधी उपायों पर ध्यान केन्द्रित करने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि एनएमसीजी ने जीआईजेड इंडिया के सहयोग से देश में उपचारित अपशिष्ट जल के पुनः उपयोग के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक रूपरेखा तैयार की है। अंत में उन्होंने कहा कि हमें नियामक और परिचालन संबंधी पहलुओं में शोध समाधान और प्रशासनिक सहयोग प्रदान करने के लिए बिजली, कृषि और अन्य क्षेत्रों तथा शैक्षणिक संस्थानों के साथ सहयोग करने की आवश्यकता है।

श्री घोष ने नीतिगत पहलुओं और सरकार के कई अन्य विभागों द्वारा इस क्षेत्र में किए जा रहे उत्कृष्ट कार्यों को रेखांकित करने के लिए श्री मिश्रा को धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि सरकार की तरफ से जो पहल की जा रही है उन्हें निजी क्षेत्र की भागीदारी से पूरा किया जाना चाहिए, जिन्हें या तो नियामक अथवा बाजार से जुड़ी प्रोत्साहन प्रणालियों के माध्यम से किया जाना चाहिए। उन्होंने एक ऐसे मॉडल के बारे में भी संक्षेप में बात की जो डब्ल्यूआरजी2030 द्वारा अवधारित किया जा रहा है। यह मॉडल अपशिष्ट जल के पुनः इस्तेमाल प्रमाण पत्र व्यापार प्रणाली है जो बाजार आधारित पूंजी एवं व्यापार प्रणाली से जुड़ा है। केपीएमजी इस अवधारणा के परिचालन में डब्ल्यूआरजी2030 के साथ मिलकर काम कर रहा है। व्यापार प्रमाण पत्र प्रणाली जल बजट आवंटन के आधार पर तय की जाती है और मात्रा से अधिक हासिल करने वालों के लिए इसमें दंड एवं अतिरिक्त क्रेडिट अंकों जैसे घटकों का भी इस्तेमाल किया जाता है। भारत में इसे प्रायोगिक तौर पर शुरू किया जा चुका है और धीरे-धारे इसे वैश्विक स्तर पर बढ़ाया जाएगा। उन्होंने अपने संबोधन के अंत में कहा कि जहां यह राष्ट्रीय स्तर की रूपरेखा अस्तित्व में आती है वहां आवश्यक व्यापक फ्रेमवर्क के सृजन की आवश्यकता है।

श्री घोष ने भारत के लिए राष्ट्रीय जल पुनः उपयोग फ्रेमवर्क (एनडब्ल्यूआरएफ) पर विचार व्यक्त करने के लिए श्री जेरेमी बर्ड, जीआईजेड इंडिया को आमंत्रित किया। उन्होंने कहा कि भारत और दुनिया के अन्य हिस्सों में जो मुद्दें हैं उसी तरह के मसले यूरोपीय ढांचे में भी है। उन्होंने रेखांकित किया कि विभिन्न देश उपचारित जल का उपयोग विभिन्न कार्यों जैसे औद्योगिक इस्तेमाल, मनोरंजन गतिविधियों आदि के लिए कर रहे है। उन्होंने कहा कि हमें इस अवधारणा को व्यापक पैमाने पर क्रियान्वित करने की दिशा में इसे प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। उन्होंने इससे जुड़ी अन्य चुनौतियों का जिक्र करते हुए सम्पूर्ण लागत मुद्दों, परिवहन लागत, मांग को पूरा करने और गुणवत्ता तथा मात्रा के संदर्भ में भी आपूर्ति पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि हमें शहरों के लिए जेडएलडी को लागू करने की दिशा में सार्वजनिक एवं निजी दोनों क्षेत्रों सहित विभिन्न मॉडलों को विकसित करने की आवश्यकता है और एनडब्ल्यूआरएफ को इन्हीं अवधारणाओं के आधार पर विकसित किया गया है तथा यह प्राकृतिक संसाधनों पर पड़ रहे दबाव को कम करेगा। श्री जेरेमी बर्ड के विचारों से सहमति जताते हुए सुश्री बिरगिट वोगेल ने भारत में पानी की कमी की विशाल समस्या को हल करने के लिए एनडब्ल्यूआरएफ के विकास और इसके क्रियान्वयन का समर्थन किया।

श्री घोष ने इसके पश्चात गुजरात के सूरत शहर में उपचारित अपशिष्ट जल के पुन: उपयोग के बारे में विस्तार से जानकारी देने के लिए श्री बंछानिधि पाणि, निगम आयुक्त, सूरत नगर निगम को आमंत्रित किया। उन्होंने बताया कि सूरत शहर को पानी की आपूर्ति तापी नदी से हो रही है और सूरत शहर की जल खपत 1200 एमएलडी है। वर्ष 2014 में उद्योगों की जल संबंधी मांग को पूरा करने के लिए तृतीयक जल उपचार संयंत्र शुरू किया गया। इसे शुरू में पानी की मांग आधारित दृष्टिकोण के तौर पर शुरू किया गया था और उस समय 35 एमएलडी उपचारित अपशिष्ट जल उपलब्ध कराया जाता था, लेकिन इस समय उद्योगों के लिए यह मांग 115 एमएलडी हो गई है। उन्होंने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि यह मॉडल आर्थिक रूप से काफी फायदेमंद साबित हुआ है क्योंकि वे 140 करोड़ रूपये प्राप्त कर रहे है सभी वर्तमान एसटीपी की परिचालन और रख-रखाव लागत से काफी अधिक है। उन्होंने कहा हालांकि यह मुख्य रूप से उद्योगों के लिए ही है लेकिन इसका इस्तेमाल भूमि, निर्माण कार्यों और मनोरंजन उद्देश्यों के लिए ही किया जाता है और 950 एमएलडी जल में से 30 प्रतिशत से अधिक अपशिष्ट जल का पुन: उपयोग किया जाता है। जेडएलडी के उद्देश्य को हासिल करने के लिए सूरत नगर निगम वर्ष 2025 तक 50 प्रतिशत लक्ष्य और 2030 तक इसे बढ़ाकर 100 प्रतिशत करने की दिशा में अग्रसर है। उन्होंने बताया कि इन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए एसबीएम शहरी, अमृत, 15वें वित्त आयोग समेत अन्य मिशनों और योजनाओं को एक साथ समाहित कर दिया गया और एक नई योजना की शुरूआत की जा चुकी है जहां अनुपचारित सीवर जल को उद्योगों को उपलब्ध कराया जाएगा, जहां वे अपने स्तर पर इसे साफ करेंगे और इससे इसकी साफ-सफाई में होने वाली लागत में कम आएगी। सूरत नगर निगम जेडएलडी को एक आकांक्षात्मक अवधारणा बनाने की बजाए रोडमैप के रूप में विकसित करने की दिशा में सफल रहा है। 

 क्रियान्वयन सत्र के पश्चात डॉ. नूपुर बहादुर टेरी को उत्कृष्टता केंद्र के माध्यम से शोध एवं विकास के महत्व पर प्रकाश डालने के लिए आमंत्रित किया गया और उन्होंने बताया कि किस प्रकार सभी हितधारकों को संगठित किया गया और शहर स्तर पर जेडएलडी को लागू किए जाने की दिशा में काम किया जा रहा हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि राष्ट्रीय जल पुनः चक्रण ढांचे के दो महत्वपूर्ण घटक शोध एवं नवाचार है और टेरी की उन्नत ऑक्सीकरण प्रौद्योगिकी को किफायती तरीके से जेडएलडी के लक्ष्य को हासिल करने में मदद करनी चाहिए। इस प्रौद्योगिकी का विकास आधारभूत ढांचा क्षमता को विकसित करने के लिए किया गया है और उत्कृष्टता केन्द्र के इस विचार का उद्देश्य एसडीजी हासिल करना तथा कचरे के पुन: उपयोग की क्षमता को उपयुक्त बनाना है।

इसके बाद श्री अरुण लखानी अध्यक्ष, विश्वराज समूह को उनके विचार साझा करने के लिए आमंत्रित किया गया और उन्होंने टिकाऊ अर्थव्यवस्था को हासिल करने के लिए नगरपालिका के बुनियादी ढांचे को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता पर बल दिया। नागपुर में यह पूरे क्षेत्र में किया जा रहा है जहां पहले कदम के रूप में एनआरडब्ल्यू को कम किया जाता है और मात्रा एवं गुणवत्ता का भी ध्यान रखा जाता है और इसमें निजी क्षेत्र की भी भूमिका है क्योंकि 24X7 आधार पर जलापूर्ति और उसकी मांग का प्रबंधन करना एक बड़ी चुनौती है। हमें सीवरेज प्रणाली के कचरे के बेहतर तरीके से निपटारे की दिशा में निवेश करने की आवश्यकता है क्योंकि इस समय केवल एक तिहाई अपशिष्ट जल को ही शोधित किया जाता है। उन्होंने कहा कि उद्योंगों में सभी गैर-पीने योग्य कार्यों के लिए ताजे पानी के स्थान पर उपचारित जल का इस्तेमाल किया जाना जरूरी है। नागपुर में पीपीपी मॉडल लागू किया गया है जहां 200 एमएलडी अपशिष्ट जल को शोधित किया जाता है और 190 एमएलडी उपचारित जल ताप विद्युत संयंत्र को उपलब्ध कराया जाता है। उन्होंने बताया कि थर्मल विद्युत संयंत्र में ही 110 एमएलडी अपशिष्ट जल शोधन संयंत्र है। नागपुर में इस समय 600 एमएलडी से अधिक अपशिष्ट जल हो रहा है और इसमें से 300 एमएलडी से अधिक को शोधित किया जा रहा है। हमें कृषि क्षेत्रों पर ध्यान केन्द्रित करने की आवश्यकता है तथा इसके मूल्य निर्धारण को भी ध्यान में रखा जाना जरूरी है और केन्द्र सरकार को शोधित जल एवं नीतिगत मूल्य की अंतर लागत पर सहायता देनी चाहिए।

श्री रजनीश चोपड़ा, ग्लोबल हेड वीए टेक वबाग लिमिटेड ने चेन्नई शहर का जिक्र किया जहां पिछले कुछ वर्षों में पानी की कमी रही थी। चेन्नई में इस समय 727 एमएलडी द्वितीय शोधित  जल पैदा हो रहा है और इसमें से 110 एमएलडी को शोधित कर उद्योगों की आपूर्ति की जा चुकी है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सभी शहरों में औद्योगिक इकाइयां और उपभोक्ता उपलब्ध नहीं है और इसके इस्तेमाल के लिए हमें अन्य मानकों को अपनाना जरूरी है। उन्होंने तेहरान शहर का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां किस प्रकार शोधित अपशिष्ट पानी को विभिन्न प्रकार के कार्यों जैसे विद्युत उत्पादन और सिंचाई आदि के लिए उपलब्ध कराया गया था जिससे कृषि क्षेत्र को काफी लाभ हुआ। उन्होंने कहा कि इस प्रकार की रणनीतियों को अपनाने से हर चीज की खपत हो जाती है और चेन्नई ने 550 एमएलडी भूमिगत जल को रिचार्ज करने की योजना बनाई है जिसका इस्तेमाल पीने के लिए भी किया जा सकेगा।

त्रिवेणी इंजीनियरिंग एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड के सीईओ बी. के. अग्रवाल को मथुरा रिफाइनरी के बारे में विस्तार से जानकारी देने के लिए आमंत्रित किया गया था जिसके साथ एनएमसीजी भी जुड़ा है। उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश के मथुरा में शोधित अपशिष्ट जल इंडियन ऑयल रिफाइनरी को उपलब्ध कराया गया था और इसके अलावा वे अपशिष्ट जल को कपड़ा उद्योगों के लिए शोधित कर रहे हैं तथा इस दिशा में अनुसंधान जारी है। उन्होंने सुझाव दिया कि जिन शहरों और जिलों में पानी का अत्यधिक दोहन हो रहा है या पानी की कमी है वहां प्रायोगिक तौर पर योजनाएं बनानी चाहिए और शहरों तथा जिलों में पानी के अत्यधिक दोहन के लिए शुल्क आधारित दृष्टिकोण अपनाया जा सकता है।

अंत में, आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर विनोद तारे ने बताया कि जीआरबीएमपी ने भी गंगा नदी के संदर्भ में जेडएलडी की अवधारणा का उल्लेख किया है। उन्होंने प्राथमिक रूप से भौगोलिक क्षेत्रों के आधार पर शोधित अपशिष्ट जल के पुन: उपयोग करने का सुझाव दिया और यह कहा कि इसके पुनः इस्तेमाल के उद्देश्यों के लिए हमें स्थिति और क्षेत्र विशिष्ट मानकों पर भी ध्यान देना है। अंत में श्री घोष और श्री मिश्रा ने सभी वक्ताओं और प्रतिभागियों को सत्र में हिस्सा लेने और इसे व्यावहारिक रूप से सफल बनाने के लिए धन्यवाद दिया।

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